‘रास्ता खोलो’ अभियान: दौसा जिले के ग्रामीणों के लिए विकास की नई राह

राजस्थान सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सुविधा, सामाजिक समरसता और विकास को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से शुरू किया गया “रास्ता खोलो” अभियान अब केवल प्रशासनिक योजना नहीं रह गया है, बल्कि यह एक सामाजिक क्रांति का रूप ले चुका है। इस अभियान का सबसे प्रभावशाली उदाहरण है दौसा ज़िला, जहाँ ग्रामीणों की वर्षों पुरानी समस्याओं का समाधान हुआ है। सैकड़ों रास्ते जो दशकों से बंद थे, आज फिर से आवाजाही के लिए खुल चुके हैं।

अभियान की पृष्ठभूमि: वर्षों से बंद पड़ी थीं जीवन रेखाएँ

ग्रामीण भारत में सड़कें सिर्फ यातायात का साधन नहीं होतीं, ये जीवन की धमनियाँ होती हैं। दौसा जिले में कई ऐसे रास्ते थे जो अतिक्रमण, आपसी झगड़ों या प्रशासनिक उदासीनता के कारण बंद पड़े थे। नतीजतन, न केवल नागरिकों को दैनिक आवागमन में कठिनाई होती थी, बल्कि स्कूल जाने वाले बच्चों, खेतों तक पहुंचने वाले किसानों, बीमारों को अस्पताल तक पहुंचाने वाले परिजनों तक सभी प्रभावित होते थे।

प्रशासनिक पहल: अप्रैल 2025 से प्रारंभ हुआ ‘रास्ता खोलो’ अभियान

जिला कलेक्टर श्री देवेंद्र कुमार के निर्देशन में अप्रैल 2025 से “रास्ता खोलो” अभियान की शुरुआत की गई। अभियान का उद्देश्य था— ग्रामीण अंचल में वर्षों से बंद पड़े रास्तों को अतिक्रमण मुक्त करवाना, ताकि गांवों के भीतर और बाहर आवागमन आसान हो सके। राज्य सरकार के आदेशों के तहत उपखंड अधिकारी, तहसीलदार, पटवारी, राजस्व निरीक्षक और पुलिस बल को सामूहिक रूप से अभियान में लगाया गया।

आँकड़ों में सफलता: 186 में से 125 रास्ते मुक्त

अभियान की सफलता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रारंभिक चरण में दर्ज 186 अतिक्रमण मामलों में से 125 रास्तों को पूरी तरह से अतिक्रमण मुक्त कर दिया गया है। यह महज एक संख्या नहीं, बल्कि हर एक रास्ता एक परिवार की राहत, एक किसान की उम्मीद और एक छात्र की सुविधा का प्रतीक है।

महवा उपखंड: सबसे अधिक सक्रियता

दौसा जिले के महवा उपखंड ने इस अभियान में सबसे अग्रणी भूमिका निभाई है। यहाँ 22 रास्तों को अतिक्रमण मुक्त करवाकर ग्रामीणों को राहत पहुंचाई गई। स्थानीय प्रशासन की सक्रियता, जनप्रतिनिधियों का सहयोग और नागरिकों की समझदारी ने इस उपलब्धि को संभव बनाया।

डाबर कलां: 25 साल बाद खुला रास्ता

रामगढ़ पचवारा पंचायत समिति की निजामपुर ग्राम पंचायत के डाबर कलां गांव में 25 वर्षों से बंद पड़ा रास्ता प्रशासन के प्रयास से खुल गया। यह रास्ता सलेमपुरा-राणौली मुख्य सड़क से डाबर कलां को जोड़ता था। रास्ते के दोनों ओर के काश्तकारों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था। इस कारण ग्रामीणों को वैकल्पिक मार्गों से लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी।

राजस्व विभाग और पुलिस के संयुक्त प्रयास से 26 जून को सवा किलोमीटर लंबे इस रास्ते को खोला गया। स्कूली बच्चों, बुजुर्गों और किसानों को इससे भारी राहत मिली है। गांव के वरिष्ठ नागरिकों ने इस दिन को ‘त्यौहार’ की तरह मनाया।

लवाण: बीस वर्षों से बंद था रास्ता

लवाण तहसील के पूर्णीयावास गांव में 18 जून को तहसीलदार के नेतृत्व में माधोलाई तलाई से खैराला की कोठी तक का रास्ता खुलवाया गया। यह रास्ता बीस वर्षों से बंद था और करीब 100 ग्रामीण इससे प्रभावित हो रहे थे। प्रशासन ने जेसीबी मशीन की मदद से रास्ते को साफ कराया और अब यह रास्ता पुनः सुचारू रूप से उपयोग में आ रहा

मीनावाड़ा: डेढ़ किलोमीटर लंबा रास्ता बहाल

बहरावंडा तहसील के मीनावाड़ा गांव में 25 साल से बंद डेढ़ किलोमीटर लंबे सार्वजनिक रास्ते को खोलना एक बड़ी उपलब्धि रही। यह रास्ता सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा अवाप्त किया गया था, लेकिन वर्षों से अतिक्रमण के कारण ग्रामीणों को परेशानी हो रही थी। यहां कोई दूसरा रिकॉर्डेड रास्ता नहीं था, जिससे ग्रामीण, शिक्षक और स्कूली छात्र-छात्राएं सभी प्रभावित थे। अप्रैल माह में राजस्व टीम और पुलिस बल ने संयुक्त कार्रवाई में अतिक्रमण हटाया।

सामाजिक सौहार्द की स्थापना

इस अभियान का एक अप्रत्यक्ष लेकिन महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है— सामाजिक समरसता में वृद्धि। वर्षों से जमीन, सीमा, रास्तों को लेकर चल रहे आपसी झगड़े इस अभियान के माध्यम से समाप्त हुए। प्रशासन ने कई स्थानों पर बातचीत और समझाइश से समाधान खोजा, जिससे किसी प्रकार का तनाव या हिंसा नहीं हुई। इससे ग्रामीणों में प्रशासन के प्रति विश्वास भी बढ़ा है।

ग्रेवल रोड निर्माण की योजना

जिला कलेक्टर श्री देवेंद्र कुमार ने सभी संबंधित विकास अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि खोले गए रास्तों को ग्रेवल रोड के रूप में विकसित किया जाए। इससे न केवल रास्ते लंबे समय तक सुचारू रहेंगे, बल्कि बारिश और कीचड़ के समय भी ग्रामीणों को परेशानी नहीं होगी। कई स्थानों पर ग्रेवल बिछाने का कार्य शुरू भी हो गया है।

अभियान में रही जनता की भागीदारी

एक लोकतांत्रिक प्रणाली की सफलता का सबसे बड़ा संकेत होता है— जनता की भागीदारी। “रास्ता खोलो” अभियान में यह बात स्पष्ट रूप से देखने को मिली। जहां-जहां प्रशासन गया, वहां ग्रामीणों ने साथ दिया। विरोध के मामलों में भी जब समझाइश दी गई, तो लोगों ने सकारात्मक रुख अपनाया।

जनप्रतिनिधियों की भूमिका

पंचायत समिति सदस्य, सरपंच, वार्ड पंच और विधायक— सभी ने इस अभियान को समर्थन दिया। कई स्थानों पर जनप्रतिनिधियों ने व्यक्तिगत रूप से प्रशासन के साथ बैठकर समाधान निकाला और रास्तों को खुलवाने में मदद की।

राज्य सरकार की प्रतिबद्धता

राज्य सरकार की नीतिगत प्रतिबद्धता और मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में यह अभियान केवल रास्तों को खोलने का कार्य नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन में सहजता, सुरक्षा और समरसता लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी भी ग्रामीण को रास्ते के लिए संघर्ष नहीं करना होगा।

आगे की राह: ‘रास्ता खोलो’ से ‘ग्राम सशक्तिकरण’ तक

“रास्ता खोलो” अभियान की सफलता के बाद राज्य सरकार इसे अन्य जिलों में भी विस्तार देने की तैयारी कर रही है। अगला चरण हो सकता है— इन खुलने वाले रास्तों पर सीमेंटेड सड़क, स्ट्रीट लाइट, साइनबोर्ड, और साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था। इसके साथ ही ग्रामीण विकास विभाग, शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग को इन क्षेत्रों में अपनी योजनाएं बेहतर पहुंचाने में आसानी होगी।

निष्कर्ष: रास्ता सिर्फ भौगोलिक नहीं, सामाजिक भी

“रास्ता खोलो” अभियान ने यह साबित कर दिया है कि रास्ते केवल मिट्टी और पत्थर के नहीं होते— ये भरोसे, उम्मीद, और एकजुटता के प्रतीक होते हैं। जब रास्ता खुलता है तो केवल आवाजाही नहीं होती, जीवन आसान होता है, दिल जुड़ते हैं और समाज आगे बढ़ता है। दौसा जिले की यह कहानी न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है।

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