शिक्षा मंत्री ने नेत्रहीन दंपति की पीड़ा को समझा संवेदन शीलता दिखाते हुए

राजस्थान के शिक्षा एवं पंचायती राज मंत्री श्री मदन दिलावर ने गुरुवार को एक ऐसा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसने न केवल एक नेत्रहीन दंपति की वर्षों पुरानी व्यथा को दूर किया बल्कि समूचे प्रशासनिक तंत्र को संवेदनशीलता और मानवीयता की नई परिभाषा भी सिखाई। यह घटना बताती है कि जब प्रशासनिक पद पर बैठा व्यक्ति अपने पद की मर्यादा के साथ-साथ हृदय की गहराइयों से जुड़ा हो, तो वह नीतियों के साथ संवेदना का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत कर सकता है।

यह प्रसंग उस समय सामने आया जब मंत्री श्री दिलावर राजधानी जयपुर में पंचायती राज विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विभागीय बैठक ले रहे थे। उसी दौरान एक नेत्रहीन दंपति सुरक्षा घेरे को पार करते हुए सीधे बैठक कक्ष तक पहुंच गया। सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, किंतु शिक्षा मंत्री ने उन्हें अंदर बुला लिया और पूरी बात जानने की उत्सुकता दिखाई।

नेत्रहीन दंपति की व्यथा – 700 किलोमीटर की दूरी, जीवन की कठिन राह

इस नेत्रहीन दंपति में पति श्री दीपक कुमार ने मंत्री को बताया कि वे श्रीगंगानगर जिले के निवासी हैं और वर्तमान में बाड़मेर जिले के धोरीमना ब्लॉक स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, जगमाल का ताला में “अध्यापक लेवल प्रथम – विशेष शिक्षा वीआई” (दृष्टिबाधित) के पद पर कार्यरत हैं। यह स्थान उनके गृह जिले से लगभग 700 किलोमीटर दूर स्थित है।

श्री दीपक कुमार की पत्नी भी 100 प्रतिशत नेत्रहीन हैं, और ऐसी स्थिति में इतनी दूरी पर कार्य करना न केवल एक व्यावसायिक चुनौती थी बल्कि व्यक्तिगत जीवन के लिए भी कठिनाईपूर्ण था। घर से इतनी दूरी पर तैनाती होने के कारण न वे अपनी पत्नी की नियमित देखभाल कर पा रहे थे और न ही आवश्यक पारिवारिक आवश्यकताओं को पूरा कर पाते थे।

संवेदनशील मंत्री की तत्काल पहल

श्री दीपक की बातें सुनकर शिक्षा मंत्री का संवेदनशील मन द्रवित हो उठा। उन्होंने तत्काल गहनता से पूछा, “तुम्हें कहां पोस्टिंग चाहिए? बताओ, तुम्हारे इच्छित स्थान पर ही तुम्हें लगाया जाएगा।” यह संवाद किसी प्रशासनिक प्रक्रिया का नहीं, बल्कि एक मानवीय संवाद का रूप ले चुका था। श्री दीपक कुमार ने विनम्रता से निवेदन किया कि श्रीगंगानगर जिले के राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय, अशोकनगर में उन्हें तैनात किया जाए क्योंकि यह उनके घर के समीप है।

मंत्री श्री मदन दिलावर ने न केवल इस मांग को सहानुभूति पूर्वक सुना, बल्कि तुरंत आदेश जारी कर श्री दीपक कुमार को उनके घर के पास उक्त विद्यालय में नियुक्त करने के निर्देश दिए। इसके साथ ही उन्होंने श्रीगंगानगर के मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देशित किया कि वे दीपक कुमार की वर्तमान पदस्थापना से रिलीव कराकर शीघ्र ही श्रीगंगानगर में पदभार ग्रहण कराएं।

‘न्यूज’ से ‘इंस्पिरेशन’ तक – यह सिर्फ ट्रांसफर नहीं, मानवता की जीत है

यह घटना प्रशासनिक दुनिया में एक मिसाल बन गई है। प्रायः यह देखने को मिलता है कि विशेष योग्यजन, विशेषकर दूरस्थ क्षेत्रों में पदस्थ शिक्षक, अपनी पारिवारिक और सामाजिक चुनौतियों से जूझते हुए सरकार से गुहार लगाते रहते हैं, किंतु बहुत बार उनकी आवाजें सुनवाई तक नहीं पहुंच पातीं।

इस परिप्रेक्ष्य में यह उदाहरण उल्लेखनीय है क्योंकि एक वरिष्ठ मंत्री ने एक आम कर्मचारी की स्थिति को न केवल समझा, बल्कि तत्काल मानवीय पहल करते हुए उसकी मदद की। इस निर्णय से न केवल श्री दीपक कुमार को राहत मिली, बल्कि हजारों विशेष योग्यजनों के लिए यह प्रेरणा बन गया।

विशेष योग्यजन अधिकार और सम्मान के हकदार हैं

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में पारित “दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम” (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) एक ऐतिहासिक कदम था। इस कानून ने दिव्यांगता की श्रेणियों को 7 से बढ़ाकर 21 किया और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा व राजनीतिक भागीदारी सहित अनेक क्षेत्रों में अधिकार सुनिश्चित किए।

मुख्य प्रावधान:

  • सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण

  • उच्च शिक्षा संस्थानों में 5% आरक्षण

  • कार्यस्थल पर भेदभाव से सुरक्षा

  • सार्वभौमिक पहुंच (Accessibility) की गारंटी

  • सुलभ मतदान प्रणाली

  • पेंशन, आर्थिक सहायता, पुनर्वास सेवाएं

हालांकि, इस अधिनियम के बावजूद अनेक दिव्यांगजन आज भी मूलभूत सुविधाओं, समुचित नियुक्ति और सहूलियत भरे स्थानांतरण के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


सुगम्य भारत अभियान – हर दिव्यांग के लिए सुलभता का वादा

भारत सरकार का “सुगम्य भारत अभियान” (Accessible India Campaign) वर्ष 2015 में शुरू हुआ। इसका उद्देश्य दिव्यांगजनों के लिए सार्वजनिक भवनों, परिवहन सेवाओं और सूचना एवं संचार तकनीक को सुलभ बनाना है।

प्रमुख लक्ष्य:

  • सरकारी भवनों में रैंप, लिफ्ट, ब्रेल साइन

  • रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, हवाई अड्डों में सुविधा

  • वेबसाइटों को दिव्यांगों के अनुकूल बनाना

  • मोबाइल एप्स और सूचना प्लेटफॉर्म में आसान पहुंच

स्थिति:
हालांकि प्रमुख शहरों में आंशिक सुधार हुआ है, लेकिन ज़्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में आज भी सरकारी स्कूल, अस्पताल और कार्यालय दिव्यांगजनों के अनुकूल नहीं हैं।

श्री मदन दिलावर का संवेदनशील प्रशासनिक दृष्टिकोण

श्री मदन दिलावर, जो स्वयं एक शिक्षाविद और समाजसेवी पृष्ठभूमि से आते हैं, अपनी सहजता और संवेदनशीलता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पूर्व में भी ऐसे कई उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जहाँ उन्होंने नियमों की कठोरता के बीच मानवीय पक्ष को तरजीह दी है। चाहे शिक्षकों की समस्याएं हों या विद्यालयों के ढांचागत मुद्दे, श्री दिलावर ने हमेशा व्यक्तिगत पहल करते हुए समाधान की राह बनाई है।

समाज की प्रतिक्रिया – एक मंत्री, एक मिशाल

घटना के प्रकाश में आते ही सोशल मीडिया पर यह विषय वायरल हो गया। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लोगों ने शिक्षा मंत्री की सराहना की। आम जनता, शिक्षाविदों और दिव्यांग समाज से जुड़े संगठनों ने इसे एक “मॉडल एक्ट ऑफ सेंसेटिव एडमिनिस्ट्रेशन” करार दिया।

राजस्थान दिव्यांग कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री नरेश बांगड़ ने कहा, “श्री दिलावर जी ने केवल एक ट्रांसफर किया है, लेकिन इसके पीछे जो संवेदना है, वह हजारों दिव्यांग कर्मचारियों के लिए आशा की किरण है।”

श्री दीपक कुमार का भावुक आभार

पदस्थापन आदेश मिलने के बाद, श्री दीपक कुमार और उनकी पत्नी भावुक हो उठे। उन्होंने मंत्री श्री दिलावर के चरण स्पर्श करते हुए कहा, “आपने आज हमें नया जीवन दिया है। हम दिव्यांग लोग अक्सर जीवन की छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए तरसते हैं, पर आज आपने हमें सिर्फ सहूलियत नहीं दी, सम्मान भी दिया है।”

राज्य सरकार की प्राथमिकता – दिव्यांगों का समावेशी विकास

राज्य सरकार की नीतियां अब समावेशी शिक्षा और समावेशी प्रशासन की दिशा में तेजी से अग्रसर हो रही हैं। राज्य स्तर पर प्रस्तावित “दिव्यांग समावेश मिशन 2025” के तहत विशेष योग्यजन कर्मचारियों की सेवा शर्तों, कार्यस्थल की पहुँच, पदस्थापन की सुविधा और परिवहन के विकल्पों को बेहतर करने की दिशा में काम हो रहा है।

निष्कर्ष – एक संवेदनशील निर्णय, समाज में सकारात्मक संदेश

शिक्षा मंत्री श्री मदन दिलावर द्वारा एक नेत्रहीन दंपति की सहायता करना, सिर्फ एक प्रशासनिक कार्यवाही नहीं, बल्कि करुणा, संवेदनशीलता और सेवा भावना का उदाहरण है। यह घटना यह भी बताती है कि सत्तासीन पदों पर बैठे व्यक्ति जब ‘मनुष्य’ बनकर फैसले लेते हैं, तो नीतियों में जीवन का स्पंदन आ जाता है।

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