सोना बना वैश्विक अर्थव्यवस्था की नई मुद्रा रिज़र्व की दौड़ में सोना सबसे आगे रिपोर्ट में खुलासा
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सोना बना वैश्विक अर्थव्यवस्था की नई मुद्रा रिज़र्व की दौड़ में सोना सबसे आगे रिपोर्ट में खुलासा

सोने के प्रति वैश्विक रुझान में तेजी आई है और यह धीरे-धीरे केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम घटक बनता जा रहा है। डीएसपी म्यूचुअल फंड की जुलाई 2025 की “नेत्रा रिपोर्ट” के अनुसार, जहां वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 12.5 ट्रिलियन डॉलर का है, वहीं सोने का बाजार वर्तमान में 23 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। इसका 15% अकेले भारत में स्थित है — यह दर्शाता है कि भारत अब भी सोने को न केवल सांस्कृतिक बल्कि रणनीतिक संपत्ति मानता है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अब डॉलर के बजाय सोने जैसे सुरक्षित विकल्पों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के दौर में सोना फिर से ‘सुरक्षित स्वर्ग’ के रूप में उभर रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार, अब तक निकाले गए कुल सोने का 65% हिस्सा आभूषणों के रूप में है, जो कि निजी और पारंपरिक उपयोग को दर्शाता है। वहीं वैश्विक भंडार का केवल 5% हिस्सा ही यदि सोने में स्थानांतरित होता है, तो यह मांग में जबरदस्त उछाल और कीमतों में ऐतिहासिक वृद्धि ला सकता है। इस अनुमान का आधार हालिया चार वर्षों में केंद्रीय बैंकों द्वारा की गई सोने की रिकॉर्ड खरीद है।

2000 से 2016 तक, जहां केंद्रीय बैंकों ने कुल 85 बिलियन डॉलर का सोना खरीदा, वहीं केवल 2024 में अकेले 84 बिलियन डॉलर की खरीद यह दिखाती है कि यह रुझान कितनी तेज़ी से बढ़ रहा है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2022 से केंद्रीय बैंकों ने हर साल लगभग 1,000 टन सोने की खरीद की है। यह आंकड़ा वैश्विक वार्षिक खनन आपूर्ति का लगभग एक चौथाई है। इस असामान्य खरीदारी का एक प्रमुख कारण यह है कि देश अब अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता घटा कर विविध भंडारण रणनीति अपनाना चाहते हैं

वर्तमान समय में जब अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड की अस्थिरता बढ़ी है, तो सोना एक अधिक स्थिर और विश्वसनीय आरक्षित संपत्ति के रूप में सामने आया है। रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि यह बदलाव केवल आकस्मिक नहीं है, बल्कि रणनीतिक रूप से तैयार की गई नई वैश्विक मौद्रिक नीति का हिस्सा है।

भारत की बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास फिलहाल 880 मीट्रिक टन सोना है। वित्त वर्ष 2026 में अभी तक रिज़र्व बैंक ने अपने भंडार में कोई नई खरीद नहीं जोड़ी है। विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा भारत द्वारा भू-राजनीतिक और व्यापार अनिश्चितताओं को देखते हुए सोने की कीमतों में नरमी का इंतज़ार करने के कारण हो सकता है।

गौरतलब है कि पिछले पांच वर्षों में भारत के स्वर्ण भंडार में 80% से अधिक की वृद्धि हुई है। इस आंकड़े से यह स्पष्ट होता है कि भारत इस दौड़ में पीछे नहीं है, बल्कि सटीक रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। केंद्रीय बैंक सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर रुख करके देश की मुद्रा स्थिरता को बनाए रखने की दिशा में काम कर रहा है।

वैश्विक मुद्रा प्रणाली के अन्य पहलुओं की बात करें तो रिपोर्ट में यूरो और चीनी युआन की स्थिति को लेकर भी अहम टिप्पणी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि “आर्थिक और मौद्रिक संघ (ईएमयू) की कमजोर वित्तीय स्थिति के कारण यूरो बार-बार दबाव में रहा है।” इसके विपरीत, युआन को भले ही चीन वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में स्थापित करना चाहता हो, लेकिन वह न तो बाजार-प्रेरित है और न ही राजनीतिक रूप से तटस्थ, जिससे इसकी स्वीकार्यता बाधित होती है।

इसके उलट, भारत का प्रदर्शन पिछले कुछ वर्षों में काफी सशक्त रहा है। ऑपरेटिंग कैश फ्लो (OCF) मार्जिन में निरंतर वृद्धि हुई है, जो रिपोर्ट के अनुसार, पूंजी आवंटन और कॉर्पोरेट प्रशासन दोनों दृष्टिकोणों से सकारात्मक संकेतक है। यह संकेत करता है कि भारत की कंपनियाँ अब अधिक मुनाफ़े के साथ, बेहतर वित्तीय अनुशासन का पालन कर रही हैं।

दुनिया भर के देशों के पास जो विदेशी मुद्रा भंडार जमा है, वह कुल मिलाकर 12.5 ट्रिलियन डॉलर के आसपास है। यह भंडार आमतौर पर अमेरिकी डॉलर, यूरो, युआन और अन्य प्रमुख मुद्राओं में रखा जाता है। इन भंडारों का मुख्य उद्देश्य देश की मुद्रा की स्थिरता बनाए रखना, अंतरराष्ट्रीय भुगतान संतुलन का प्रबंधन करना और वित्तीय संकट के समय देश को सुरक्षित रखना है।

वर्तमान में सोने का वैश्विक बाजार आकार 23 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है, जो इसे विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना में कहीं अधिक स्थिर संपत्ति बनाता है। यह आंकड़ा न केवल इसकी मांग, बल्कि इसकी सीमित आपूर्ति, ऐतिहासिक मूल्य और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में इसकी भूमिका को भी दर्शाता है।

अब तक खनन किए गए कुल सोने का लगभग दो-तिहाई (65%) हिस्सा आभूषणों के रूप में मौजूद है। यह सोना निजी स्वामित्व में रहता है और बाज़ार में लगातार नहीं आता, जिससे इसकी आपूर्ति सीमित रहती है। भारत जैसे देशों में पारंपरिक रूप से सोना सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी मूल्यवान माना जाता है।

यदि वैश्विक मुद्रा भंडार का केवल 5% हिस्सा भी सोने में रूपांतरित किया जाता है, तो इससे सोने की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है। आपूर्ति की सीमाओं और खपत की निरंतरता को देखते हुए, यह बदलाव वैश्विक वित्तीय प्रणाली में व्यापक प्रभाव डाल सकता है — विशेषकर सोने को आरक्षित संपत्ति के रूप में पुनः स्थापित करने में।

इस 16 वर्ष की अवधि में केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की खरीद मंदी और स्थायित्व की तलाश को दर्शाती थी। यह अपेक्षाकृत धीमा दौर था, जब अधिकांश देश डॉलर और ट्रेजरी बॉन्ड में ही अपने भंडार रखते थे।

साल 2024 अकेला ही पिछले 16 वर्षों के बराबर रहा। यह तेजी इस ओर इशारा करती है कि अब केंद्रीय बैंक अधिकतम सुरक्षित संपत्ति के रूप में सोने की ओर रुख कर रहे हैं। भू-राजनीतिक तनाव, डॉलर में उतार-चढ़ाव और बॉन्ड रिटर्न की गिरावट ने इस रुझान को तेज किया है।

2022 से केंद्रीय बैंक हर साल 1,000 टन से अधिक सोने की खरीद कर रहे हैं — जो कि वैश्विक वार्षिक खनन का 25% से भी अधिक है। यह ट्रेंड दर्शाता है कि वे दीर्घकालिक रणनीति के तहत सुरक्षित संपत्तियों का भंडारण कर रहे हैं।

जब वार्षिक खनन 3,500-4,000 टन के बीच होता है और उसमें से 1,000 टन सिर्फ केंद्रीय बैंक खरीद लेते हैं, तो खुले बाजार में सोने की उपलब्धता घट जाती है — जिससे कीमतें स्वतः चढ़ती हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास इस समय 880 मीट्रिक टन सोना है। यह भंडार वैश्विक स्तर पर भारत को शीर्ष 10 स्वर्ण धारक देशों में शामिल करता है। यह भंडार देश की मौद्रिक नीति और मुद्रा स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

हालांकि पिछले 5 वर्षों में भंडार में 80% से अधिक की वृद्धि हुई है, लेकिन वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही तक कोई नई खरीद दर्ज नहीं की गई है। इसका प्रमुख कारण यह हो सकता है कि भारत कीमतों में संभावित नरमी का इंतजार कर रहा है, या फिर वह अपने मौद्रिक संतुलन को अधिक सावधानी से साध रहा है।

भारत में लगभग 15% वैश्विक स्वर्ण भंडार मौजूद है — जो मुख्य रूप से घरेलू परिवारों, मंदिरों और निजी संस्थानों के पास है। यह विश्व में सबसे बड़ी “गैर-सरकारी” स्वर्ण संपत्ति मानी जाती है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत की कंपनियों के ऑपरेटिंग कैश फ्लो मार्जिन में निरंतर वृद्धि हो रही है। यह सकारात्मक संकेत है कि व्यापारिक दक्षता और पूंजी अनुशासन मजबूत हो रहा है, जिससे देश की आर्थिक नींव और निवेश आकर्षण में बढ़ोतरी हो रही है।

यूरोपीय संघ की वित्तीय नीतियों की असंगति, बढ़ता ऋण संकट, और मुद्रास्फीति के असमान नियंत्रण के कारण यूरो बार-बार कमजोर होता रहा है। इससे यूरो पर वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में भरोसा कम होता गया है।

हालांकि चीन का युआन एक उभरती मुद्रा है, लेकिन इसकी राजनीतिक पारदर्शिता की कमी, और पूंजी नियंत्रण जैसे कारणों से यह वैश्विक निवेशकों और केंद्रीय बैंकों के लिए भरोसेमंद आरक्षित मुद्रा नहीं बन पाया है।

जब डॉलर की वैल्यू में उतार-चढ़ाव आता है और बॉन्ड यील्ड घटती है, तो दुनिया के देशों को सुरक्षित संपत्ति की तलाश होती है। ऐसे में सोना एक बार फिर “विश्वसनीय भंडारण माध्यम” और “मूल्य का स्थिर मानक” बन गया है, जो कि डॉलर के विकल्प के रूप में तेजी से उभर रहा है।

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