
Indian Navy visit to Vietnam : भारतीय नौसेना की वियतनाम यात्रा समुद्री साझेदारी का नया आयाम ‘सागर’ दृष्टिकोण के तहत इंडो-पैसिफिक में मजबूत सहयोग की दिशा में भारत का एक और कदम
दिनांक : 26.07.2025 | Koto News | KotoTrust |
भारत और वियतनाम के बीच बढ़ते रक्षा और सामरिक सहयोग को और अधिक मजबूत करने के उद्देश्य से भारतीय नौसेना के तीन युद्धपोत — आईएनएस दिल्ली, आईएनएस शक्ति और आईएनएस किल्टन — 24 जुलाई को वियतनाम के डा नांग स्थित टिएन सा पोर्ट पहुंचे। ये पोत ईस्टर्न फ्लीट के अंग हैं, जिनका संचालन रियर एडमिरल सुशील मेनन के नेतृत्व में हो रहा है, जो फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग ईस्टर्न फ्लीट (FOCEF) हैं।
यह यात्रा भारतीय नौसेना के दक्षिण-पूर्व एशिया में चल रहे ऑपरेशनल डिप्लॉयमेंट का हिस्सा है और यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की ‘सागर’ (SAGAR – Security and Growth for All in the Region) नीति को मूर्त रूप देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
भारतीय नौसेना के इन युद्धपोतों का वियतनाम पीपुल्स नेवी (VPN) और डा नांग पीपुल्स कमेटी द्वारा गर्मजोशी भरे सैन्य-सांस्कृतिक समारोह के साथ भव्य स्वागत किया गया।
रक्षा संबंधों और दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी की गहराई को दर्शाता है।
इस औपचारिक स्वागत के पश्चात, दोनों देशों के वरिष्ठ नौसेना अधिकारियों के बीच परस्पर अभिवादन, जहाजों का निरीक्षण और सांस्कृतिक स्मृति चिह्नों का आदान-प्रदान हुआ।
रियर एडमिरल सुशील मेनन की अध्यक्षता में भारतीय नौसेना के प्रतिनिधिमंडल ने वियतनाम की पीपुल्स आर्मी, सैन्य क्षेत्र 5, नौसेना क्षेत्र 3 और डा नांग पीपुल्स कमेटी के शीर्ष अधिकारियों से औपचारिक द्विपक्षीय बैठकें कीं। इन बैठकों में समुद्री सुरक्षा, नौवहन स्वतंत्रता, क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियाँ, और डिफेंस कोऑपरेशन के विस्तार जैसे प्रमुख विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान किया गया।
इन बातचीतों का मकसद सिर्फ रणनीतिक वार्ता नहीं, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यावसायिक समन्वय, तकनीकी साझेदारी, और भविष्य में संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों के नए आयामों की पहचान करना भी था।
इस यात्रा के दौरान भारतीय और वियतनामी नौसेना कर्मियों के बीच व्यावसायिक संवाद का विस्तृत कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें परिचालन योजना (Operational Planning), साझा ब्रीफिंग, और मॉडर्न नेवी टेक्नोलॉजी पर चर्चा की गई।
इस तरह की बातचीतों का प्रमुख उद्देश्य है –
इंटरऑपरेबिलिटी (Interoperability) को सुदृढ़ करना
संयुक्त अभियानों के दौरान सामंजस्यपूर्ण कार्यपद्धति विकसित करना
आपसी विश्वास और समझ को मजबूत करना
इसके अतिरिक्त, दोनों देशों की नौसेना ने मैत्रीपूर्ण खेल प्रतियोगिताएं, सांस्कृतिक प्रदर्शनियां, और शिप ओपन टूर जैसे कार्यक्रमों में भी भाग लिया, जिससे रक्षा साझेदारी के साथ-साथ जनसंपर्क और सांस्कृतिक संवाद भी सशक्त हुआ।
यह यात्रा भारत के हिंद-प्रशांत में समावेशी और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। ‘सागर’ दृष्टिकोण भारत की समुद्री रणनीति का मूल स्तंभ है, जिसका उद्देश्य सभी क्षेत्रीय देशों के लिए सुरक्षा और विकास सुनिश्चित करना है।
वियतनाम की यह यात्रा, विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण है जब चीन की बढ़ती समुद्री सक्रियता के चलते दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में कूटनीतिक और सैन्य संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। भारत और वियतनाम का यह सहयोग इस भू-राजनीतिक संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
इसके अलावा, यह यात्रा भारत-वियतनाम रणनीतिक साझेदारी को एक नई ऊँचाई पर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करेगी, विशेषकर रक्षा उत्पादन, समुद्री निगरानी, और संयुक्त प्रशिक्षण के क्षेत्रों में।
‘सागर’ (SAGAR) दृष्टिकोण क्या है?
‘सागर’ — यानी Security and Growth for All in the Region — भारत की समुद्री विदेश नीति का वह आधारभूत सिद्धांत है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में मॉरीशस की यात्रा के दौरान औपचारिक रूप से प्रस्तुत किया था। यह नीति हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) में भारत की सुरक्षा और कूटनीतिक प्रतिबद्धताओं का दिशा-निर्देशक बन गई है।
इस दृष्टिकोण के तहत भारत न केवल अपने समुद्री हितों की रक्षा करता है, बल्कि क्षेत्रीय देशों के साथ साझेदारी को भी प्राथमिकता देता है, ताकि पूरे क्षेत्र में शांति, स्थिरता, विकास और मानवीय सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके। ‘सागर’ नीति के अंतर्गत भारत निम्नलिखित पहलुओं पर कार्य करता है:
मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) जैसे भूकंप, चक्रवात या सुनामी के दौरान सहायता पहुँचाना।
क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण के माध्यम से मित्र देशों की नौसैनिक क्षमताओं को सशक्त बनाना।
समुद्री डकैती, अवैध मछली पकड़ने और मानव तस्करी जैसे गैर-पारंपरिक खतरों से निपटना।
संयुक्त समुद्री निगरानी और पेट्रोलिंग, जिससे समुद्री कानूनों का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
भरोसेमंद रक्षा साझेदार के रूप में स्वयं को स्थापित करना।
‘सागर’ दृष्टिकोण के माध्यम से भारत आज न केवल नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर (NSP) की भूमिका निभा रहा है, बल्कि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलित शक्ति का स्तंभ भी बन रहा है।
भारत-वियतनाम
भारत और वियतनाम के बीच नौसैनिक सहयोग पिछले एक दशक में तेजी से प्रगाढ़ हुआ है। दोनों देश सामरिक दृष्टि से समान चिंताओं और हितों को साझा करते हैं, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में।
निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों में यह सहयोग सक्रिय और महत्वपूर्ण है:
संयुक्त नौसैनिक अभ्यास
दोनों नौसेनाएं समय-समय पर PASSEX (Passage Exercise) जैसे संयुक्त युद्धाभ्यास करती हैं, जिससे दोनों देशों के जहाजों, हेलिकॉप्टरों और पनडुब्बियों के बीच संचालनात्मक तालमेल (interoperability) और युद्ध-कौशल में वृद्धि होती है।
साझा प्रशिक्षण कार्यक्रम
भारतीय नौसेना वियतनामी नौसेना के अधिकारियों को समुद्री युद्ध रणनीति, पनडुब्बी रोधी युद्ध, और साइबर सुरक्षा में प्रशिक्षण देती है। यह ज्ञान का आदान-प्रदान और दीर्घकालिक संबंध दोनों को मजबूत करता है।
साइबर सुरक्षा और सूचना साझा प्रणाली
दोनों देश समुद्री खुफिया सूचना और साइबर थ्रेट इंटेलिजेंस साझा करने के लिए संयुक्त ढांचे पर कार्य कर रहे हैं, ताकि समन्वित प्रतिक्रिया दी जा सके।
रक्षा ऋण रेखा (Defence Line of Credit)
भारत ने वियतनाम को 100 मिलियन डॉलर की रक्षा ऋण रेखा प्रदान की है, जिससे वह भारतीय रक्षा उत्पाद खरीद सके। यह रक्षा उद्योग में ‘मेक इन इंडिया’ को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने का भी माध्यम है।
वियतनाम
वियतनाम न केवल भौगोलिक रूप से भारत के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक दृष्टि से भी एक विश्वसनीय और स्थायी साझेदार है। इसकी सामरिक महत्ता निम्नलिखित बिंदुओं में निहित है:
दक्षिण चीन सागर में उपस्थिति
वियतनाम दक्षिण चीन सागर के किनारे स्थित है — एक ऐसा क्षेत्र जो दुनिया के सबसे व्यस्त और संवेदनशील समुद्री व्यापार मार्गों में से एक है। यह क्षेत्र चीन के आक्रामक विस्तारवाद के चलते वैश्विक कूटनीति का केंद्र बन चुका है। भारत की ऊर्जा कंपनियाँ भी इस क्षेत्र में निवेशित हैं, जिससे इसकी सुरक्षा भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
चीन के लिए रणनीतिक संतुलन
वियतनाम भारत के लिए एक प्राकृतिक सामरिक संतुलन का कार्य करता है। दोनों देशों की चीन से सीमावर्ती टकराव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, जिससे परस्पर सामरिक सहयोग सहज और अनिवार्य बन जाता है।
‘एक्ट ईस्ट’ नीति का प्रमुख स्तंभ
भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत वियतनाम दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की सक्रिय भूमिका के लिए प्रमुख सहयोगी बन चुका है। दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापार, संस्कृति, शिक्षा और रक्षा संबंधों से यह और भी मजबूत हुआ है।
आईएनएस दिल्ली, शक्ति और किल्टन जैसे प्रमुख युद्धपोतों की वियतनाम यात्रा केवल एक सौजन्य दौरा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत है। यह निम्नलिखित कारणों से मील का पत्थर मानी जा रही है:
क्षेत्रीय प्रतिबद्धता का प्रदर्शन
यह यात्रा दर्शाती है कि भारत अपनी समुद्री उपस्थिति को लेकर गंभीर है और वह हिंद-प्रशांत में स्थायी शांति और नियम-आधारित व्यवस्था के लिए कटिबद्ध है। यह नौसेना की मिशन-बेस्ड डिप्लॉयमेंट नीति का प्रमाण है।
लोकतांत्रिक नौसैनिक साझेदारी का सुदृढ़ीकरण
भारत और वियतनाम जैसे दो लोकतांत्रिक राष्ट्रों के बीच नौसैनिक सहयोग, शक्ति संतुलन और समावेशी समुद्री शासन का एक सकारात्मक उदाहरण बनता है।
रणनीतिक-सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक
इस यात्रा में सांस्कृतिक कार्यक्रम, समुदायिक गतिविधियाँ, और खुला जहाज दर्शन शामिल होना इस बात का संकेत है कि यह केवल सैन्य अभ्यास नहीं, बल्कि जनस्तर पर संवाद स्थापित करने का प्रयास भी है। यह सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी का भी उदाहरण है।
भविष्य की संयुक्त नौसैनिक परियोजनाओं का आधार
यह यात्रा न केवल वर्तमान सहयोग को बल देगी, बल्कि संयुक्त रक्षा उत्पादन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और साझा निगरानी प्रणाली जैसे क्षेत्रों में संभावित सहयोग की नींव भी रखेगी।
Source : PIB