
सूरज साहनी
गोरखपुर संवादाताः कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | पिपराइच विधानसभा के माननीय विधायक को समाजसेवी सूरज साहनी ने रवीवार को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा, जिसमें निषाद समाज और उससे जुड़ी उपजातियों के आरक्षण वर्गीकरण में हो रहे कथित अनियमितताओं को तत्काल रोकने और संविधान व शासनादेश के अनुरूप अनुसूचित जाति (SC) प्रमाणपत्र जारी करने की मांग की गई। ज्ञापन में स्पष्ट कहा गया कि 31 .12. 2016 और 12 .01.2017 के शासनादेशों के तहत, निषाद, केवट, मल्लाह, कश्यप, कहार, धीमर, बिन्द, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी, मछुआ जैसी जातियों को OBC सूची से हटाकर SC में शामिल किया जा चुका है, लेकिन कई जिलों में अभी भी तहसील स्तर पर OBC प्रमाणपत्र जारी किए जा रहे हैं, जो “नियम विरुद्ध और असंवैधानिक” है।
ज्ञापन में शासनादेश संख्या 117/2025/1543/26-3-2025-1690967, दिनांक 16 जून 2025 का हवाला देते हुए कहा गया कि राज्यपाल की अधिसूचना का पालन सुनिश्चित कराया जाए और इन जातियों को OBC प्रमाणपत्र जारी करने पर तुरंत रोक लगे। सूरज सहनी ने कहा कि यह मामला केवल प्रशासनिक आदेश का पालन करने का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का है। उन्होंने यह भी मांग की कि विधानसभा में “मझवार” और “तुरैहा” को संवैधानिक रूप से परिभाषित कराया जाए और OBC से इनके नाम हटाकर SC प्रमाणपत्र की प्रक्रिया को राज्यव्यापी स्तर पर लागू किया जाए।
ज्ञापन में ऐतिहासिक और संवैधानिक साक्ष्यों का भी उल्लेख किया गया है। इसमें राष्ट्रपति की अधिसूचना दिनांक 10 अगस्त 1950 और जनगणना नियमावली 1961 का हवाला दिया गया, जिसमें इन जातियों का स्पष्ट उल्लेख अनुसूचित जातियों के रूप में किया गया है। 1961 की जनगणना पुस्तिका में, मझवार का पर्यायवाची “केवट, मल्लाह” (क्रम संख्या 51), तरमाली पासी का पर्यायवाची “भर, राजभर” (क्रम संख्या 57), शिल्पकार का पर्यायवाची “प्रजापति, कुम्हार” (क्रम संख्या 63) और तुरैहा का पर्यायवाची “कश्यप, कहार, धीवर, धीमर” (क्रम संख्या 66) बताया गया है। राजस्व परिषद के पुराने अभिलेखों का हवाला देते हुए ज्ञापन में कहा गया कि संशोधित शासनादेश संख्या 4442/26-818-1957, दिनांक 22 मई 1957, और संशोधन अधिनियम-1976, दिनांक 27 जुलाई 1977 में भी इन जातियों को SC श्रेणी में शामिल किया गया था। राज्यपाल ने 31 दिसंबर 2016 को पिछड़ा वर्ग अधिनियम में संशोधन कर इन्हें OBC से हटाकर SC सूची में डाल दिया था। इसके बावजूद, कई जिलों में तहसीलदारों और राजस्व अधिकारियों द्वारा आदेश की अवहेलना कर OBC प्रमाणपत्र जारी किए जा रहे हैं।
सूरज साहनी ने ज्ञापन में । लेकिन गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती और कई अन्य जिलों में आज भी इनको OBC प्रमाणपत्र थमाया जा रहा है। उन्होंने मांग की कि राज्य भर में एक समान नीति अपनाई जाए और सभी जिलाधिकारियों एवं उपजिलाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश जारी किए जाएं कि ये जातियां SC में आती हैं और इन्हें उसी श्रेणी के तहत प्रमाणपत्र दिए जाएं। ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य की तर्ज पर यूपी में भी यह स्पष्ट कर दिया जाए कि “मझवार”, “तुरैहा” और “तरमाली पासी” कोई अलग जातियां नहीं, बल्कि कई जातियों का समूह हैं, जिनके पर्यायवाची कहार, कश्यप, केवट, निषाद, बिंद, भर, प्रजापति, राजभर, बथाम, मल्लाह, तुरहा, गोडिया, मांझी, धीवर, कुम्हार, मछुआ आदि हैं। सभी को SC श्रेणी में प्रमाणपत्र देना ही संवैधानिक और न्यायसंगत होगा।
मुख्य बिंदु
जातियों का पुनर्वर्गीकरण:
उत्तर प्रदेश सरकार ने 16 जून 2025 को जारी आदेश में स्पष्ट निर्देश दिया कि निषाद, केवट, मल्लाह, कश्यप, कहार, धीमर, बिंद, बथाम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ जैसी जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची से हटाकर अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल किया जाए।
यह फैसला 31 दिसंबर 2016 और 12 जनवरी 2017 को जारी पुराने शासनादेशों की पुनर्पुष्टि के रूप में लिया गया, जिनमें पहले ही इन जातियों का पुनर्वर्गीकरण किया जा चुका था।
कानूनी आधार:
आदेश का आधार 1950 का राष्ट्रपति अधिसूचना, 1961 की जनगणना पुस्तिका और 1957 तथा 1976 में जारी संशोधित संवैधानिक अनुसूचियां हैं। इनमें इन जातियों के पर्यायवाची नाम स्पष्ट रूप से दर्ज हैं — जैसे मझवार (केवट, मल्लाह), तुरैहा (कश्यप, कहार, धीवर, धीमर) आदि।
प्रशासनिक निर्देश:
आदेश के तहत सभी जिलाधिकारियों, उपजिलाधिकारियों और तहसीलदारों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए कि इन जातियों को SC प्रमाणपत्र ही जारी हो, ताकि इन्हें शिक्षा, सरकारी नौकरियों और कल्याणकारी योजनाओं में अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण और सुविधाओं का लाभ मिल सके।
वर्तमान स्थिति
आदेश की अनदेखी:
आदेश के बावजूद प्रदेश के कई जिलों में अभी भी इन जातियों को OBC प्रमाणपत्र जारी किए जा रहे हैं। गोरखपुर, बस्ती, महराजगंज, बलिया और अन्य जिलों से लगातार शिकायतें आ रही हैं कि तहसील स्तर पर नियमों की अनदेखी हो रही है।
विधानसभा में मामला उठने की तैयारी:
समाजसेवी और जनप्रतिनिधि, विशेषकर सूरज साहनी और अन्य निषाद समाज के नेता, इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब संविधान और सरकारी आदेश दोनों ही इन जातियों को SC मानते हैं, तो OBC प्रमाणपत्र देना न केवल गैरकानूनी है बल्कि यह समुदाय के अधिकारों का हनन भी है।
आंदोलन की चेतावनी:
निषाद समाज के विभिन्न संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि शासनादेश का पालन नहीं हुआ, तो राज्यव्यापी धरना, प्रदर्शन और सड़क जाम जैसे आंदोलन शुरू किए जाएंगे।
उनका तर्क है कि यह लड़ाई केवल आरक्षण की नहीं, बल्कि पीढ़ियों से वंचित रहे अधिकारों और सामाजिक सम्मान की बहाली की है।
1. यह मामला किस बारे में है?
यह मामला निषाद समाज और उससे जुड़ी जातियों (जैसे केवट, मल्लाह, कश्यप, कहार, धीमर, बिंद, बथाम, तुरहा, गोडिया, मांझी, मछुआ आदि) के आरक्षण वर्गीकरण से जुड़ा है। शासनादेश के अनुसार इन्हें OBC से हटाकर SC में शामिल किया गया है, लेकिन कई जिलों में अभी भी OBC प्रमाणपत्र जारी हो रहे हैं।
2. सरकार ने कब और कैसे इन जातियों को SC में शामिल किया?
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31 दिसंबर 2016 और 12 जनवरी 2017 के शासनादेश में इन जातियों को SC सूची में शामिल किया गया।
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16 जून 2025 के आदेश में इस फैसले की पुनर्पुष्टि की गई और स्पष्ट निर्देश दिए गए।
3. कानूनी आधार क्या है?
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1950 का राष्ट्रपति अधिसूचना
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1961 की जनगणना पुस्तिका (जिसमें पर्यायवाची नाम स्पष्ट दर्ज हैं)
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1957 और 1976 की संशोधित संवैधानिक अनुसूचियां
इन दस्तावेजों में “मझवार” और “तुरैहा” जैसी जातियों के पर्यायवाची नामों में निषाद, मल्लाह, केवट, कहार, धीमर, बिंद आदि का स्पष्ट उल्लेख है।
4. समस्या क्या है?
कई जिलों में (जैसे गोरखपुर, बस्ती, महराजगंज, बलिया) तहसील स्तर पर अभी भी OBC प्रमाणपत्र जारी हो रहे हैं, जो शासनादेश और संविधान के विपरीत है।
5. समाज की मांग क्या है?
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सभी जिलों में एक समान नीति अपनाई जाए।
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OBC प्रमाणपत्र जारी करने पर तुरंत रोक लगे।
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केवल SC प्रमाणपत्र जारी हों।
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विधानसभा में “मझवार” और “तुरैहा” को संवैधानिक परिभाषा मिले।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)