सोशल मीडिया क्रिएटर सविता देवी
सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | गोरखपुर। सोशल मीडिया जगत की जानी-मानी कंटेंट क्रिएटर सविता देवी ने धनतेरस, दीपावली, छठ पूजा, कार्तिक पूर्णिमा और भईया दूज के पावन अवसर पर गोरखपुर सहित समस्त भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने अपने विशेष संदेश में कहा कि “ये पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं, जो समाज में प्रेम, सहयोग, समानता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। सविता देवी, जो अपनी रचनात्मकता, प्रेरणादायक वीडियो और सामाजिक संदेशों के लिए जानी जाती हैं, ने कहा कि पर्व केवल उत्सव नहीं बल्कि आत्म-विकास, पारिवारिक एकता और समाज के उत्थान का माध्यम हैं। उन्होंने सभी से अपील की कि वे इन पर्वों को पर्यावरण-संवेदनशील, सामाजिक रूप से जिम्मेदार और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध रूप में मनाएँ।
धनतेरस
सविता देवी ने कहा कि धनतेरस न केवल धन और वैभव का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में सहयोग और समानता का संदेश देता है। उन्होंने कहा, “धनतेरस हमें सिखाता है कि सच्चा धन वह नहीं जो हम अपने पास रखते हैं, बल्कि वह है जो हम दूसरों के साथ बाँटते हैं।” इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, दीपक जलाते हैं, और मां लक्ष्मी व भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। सविता देवी ने कहा कि इस पर्व पर गरीबों, जरूरतमंदों और समाज के कमजोर वर्गों की मदद करना ही सच्चा ‘धनतेरस’ है। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि उन्हें अपने काम में ईमानदारी और समाज के प्रति जिम्मेदारी रखनी चाहिए। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि समृद्धि का अर्थ केवल आर्थिक वृद्धि नहीं बल्कि मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास भी है।
दीपावली
सविता देवी ने दीपावली को प्रकाश और प्रेम का पर्व बताया। उन्होंने कहा, “दीपावली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मा के भीतर बसे अंधकार को मिटाने का अवसर है।” उन्होंने कहा कि आज के डिजिटल युग में जहां सोशल मीडिया लोगों को जोड़ता है, वहीं दीपावली का संदेश हमें वास्तविक जीवन में एक-दूसरे के करीब लाने का अवसर देता है। उन्होंने आगे कहा कि दीप जलाना केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह उम्मीद, आशा और सहयोग का प्रतीक है। दीपावली के दिन जब हर घर में दीपक जलता है, तब अंधकार से प्रकाश की यात्रा केवल भौतिक नहीं बल्कि आत्मिक होती है। उन्होंने लोगों से अपील की कि इस दीपावली पर “घरों के साथ-साथ दिलों में भी रोशनी जलाएँ।
सविता देवी ने पर्यावरण के प्रति जागरूकता का संदेश देते हुए कहा कि इस बार लोग ‘ग्रीन दीपावली’ मनाएँ — कम प्रदूषण, कम शोर और अधिक सद्भावना के साथ।
छठ पूजा
छठ पूजा, जिसे सूर्य और छठी मइया की आराधना का पर्व कहा जाता है, को सविता देवी ने भारतीय संस्कृति की सबसे पवित्र परंपराओं में से एक बताया। उन्होंने कहा, “छठ पूजा केवल व्रत नहीं, बल्कि यह आत्म-संयम, अनुशासन और प्रकृति के प्रति आभार की भावना का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि इस पर्व में नदी के किनारे दिया गया अर्घ्य केवल पूजा नहीं बल्कि सूर्य की ऊर्जा और जल की पवित्रता के प्रति कृतज्ञता का भाव है। सविता देवी ने कहा कि आज के समय में जब मानव जीवन भागदौड़ और तनाव से भरा हुआ है, तब छठ पूजा जैसे पर्व हमें संतुलन और संयम सिखाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं को अपने क्षेत्रीय और पारंपरिक पर्वों को समझना और आगे बढ़ाना चाहिए। “जब हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, तभी हम जीवन में सच्ची सफलता प्राप्त कर सकते हैं,” उन्होंने कहा।
भईया दूज और कार्तिक पूर्णिमा
सविता देवी ने भईया दूज को भाई-बहन के प्रेम और परिवारिक संबंधों को मजबूत करने वाला पर्व बताया। उन्होंने कहा, “यह त्योहार हमें पारिवारिक एकता और स्नेह की भावना सिखाता है।” इस दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु की कामना करती हैं और भाई बहन की सुरक्षा का वचन देते हैं। वहीं कार्तिक पूर्णिमा के बारे में उन्होंने कहा कि यह निषाद, मल्लाह और मेहनतकश समाज के श्रम, साहस और परंपरा का प्रतीक है। यह दिन जल, नाव और परिश्रम से जुड़े लोगों के प्रति सम्मान का अवसर है। उन्होंने कहा, “कार्तिक पूर्णिमा हमें यह याद दिलाती है कि श्रम ही समाज की असली शक्ति है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अनुयायियों से आग्रह किया कि वे इन पर्वों के माध्यम से श्रम और संस्कार दोनों का सम्मान करें क्योंकि दोनों ही समाज को जीवित रखते हैं।
सविता देवी का विस्तारित संदेश
“सच्चा त्योहार वही है जो दिलों को जोड़ता है, रिश्तों को मजबूत करता है और समाज को एकता के धागे में पिरोता है।”
उन्होंने कहा कि किसी भी पर्व का वास्तविक अर्थ केवल सजावट, पटाखे या मिठाइयों में नहीं छिपा होता, बल्कि उसकी आत्मा लोगों के बीच जुड़ाव, आपसी प्रेम और सहयोग में बसती है। जब हम दीपावली, छठ या भईया दूज जैसे त्योहार मनाते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन पर्वों का उद्देश्य समाज को जोड़ना है — न कि बाँटना। सविता देवी ने कहा कि आज के डिजिटल युग में जहाँ लोग मोबाइल स्क्रीन तक सीमित हो रहे हैं, वहीं त्योहार ही एक ऐसा अवसर हैं जो हमें वास्तविक मानवीय रिश्तों से जोड़ते हैं। इन पर्वों के माध्यम से हमें अपने परिवार, पड़ोस और समाज के लोगों से संवाद बढ़ाना चाहिए, ताकि हम सब मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकें जहाँ एकता और सद्भाव सर्वोच्च हो।
उन्होंने कहा, “त्योहार तभी सार्थक हैं जब वे समाज में प्रेम, सहयोग और समानता की भावना जगाएँ। जब एक दीपक किसी दूसरे दीपक से अपनी ज्योति बाँटता है, तब न पहला दीपक कम होता है, न ही दूसरा अंधेरे में रहता है — यही असली दीपावली है। पर्व मनाने का अर्थ केवल आनंद नहीं, बल्कि कृतज्ञता, अनुशासन और समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना है। सविता देवी ने कहा कि हर पर्व हमें एक सीख देता है — कृतज्ञता की, संयम की, और कर्तव्य की। जब हम भगवान, प्रकृति या अपने बड़ों का धन्यवाद करते हैं, तो वह केवल धार्मिक भावना नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति होती है। उन्होंने कहा कि हमें अपने त्योहारों को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं बनाना चाहिए, बल्कि उन्हें आत्मविकास और सामाजिक उत्थान का अवसर बनाना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “छठ पूजा का व्रत हमें अनुशासन और आत्मसंयम सिखाता है; दीपावली हमें अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है; और भईया दूज हमें रिश्तों की पवित्रता का महत्व समझाती है। इन सभी पर्वों का सार यही है कि हम अपने भीतर की अच्छाई को पहचानें और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में कदम बढ़ाएँ। सविता देवी ने यह भी कहा कि त्योहारों के समय हमें सामाजिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए — जैसे पर्यावरण की रक्षा करना, जरूरतमंदों की मदद करना, और दूसरों के जीवन में खुशी बाँटना। उन्होंने कहा, “जब हमारा उत्सव किसी और के चेहरे पर मुस्कान बन जाए, तभी हमारा पर्व सच्चे अर्थों में सफल होता है।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)