नेपाल की राजनीति और ऊर्जा क्षेत्र में जारी विवाद के बीच बड़ा फैसला सामने आया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने बजट में शामिल विवादास्पद ‘ले लो और दो’ (Take and Supply) बिजली खरीद समझौते (PPA) के प्रावधान को हटाने पर सहमति जता दी है। यह निर्णय संसद भवन में प्रधानमंत्री कक्ष में सोमवार शाम हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में लिया गया।
सूत्रों के अनुसार, बजट संशोधन का औपचारिक प्रस्ताव संसद में नहीं लाया जाएगा, लेकिन वित्त मंत्री बिष्णु पौडेल स्वयं सदन में इसकी घोषणा करेंगे कि विवादित प्रावधान बजट से हटा दिया गया है। इसके बाद कैबिनेट की बैठक में इस निर्णय को आधिकारिक मंजूरी दी जाएगी।
देउबा का हस्तक्षेप और राष्ट्रपति की भूमिका
सूत्रों के मुताबिक, शेर बहादुर देउबा ने स्वयं प्रधानमंत्री ओली और वित्त मंत्री पौडेल को फोन कर इस प्रावधान को हटाने का आग्रह किया था। देउबा के अनुसार, राष्ट्रपति ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि यह प्रावधान हटाकर ही बजट पास किया जाना चाहिए। नेपाली कांग्रेस के एक सांसद ने बताया, “अगर ‘ले लो और दो’ नहीं हटाया गया तो संसद में बजट पारित कराना मुश्किल हो जाएगा।”
PPA मॉडल को लेकर क्या है विवाद?
वर्तमान विवाद बिजली खरीद समझौते के दो मॉडलों को लेकर है:
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‘ले लो और दो’ (Take and Supply): इसमें नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) सिर्फ उतनी बिजली खरीदता है, जितनी आवश्यकता होती है, और उसी के लिए भुगतान करता है।
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‘ले लो और पे करो’ (Take or Pay): इस मॉडल में NEA को प्रावधान के अनुसार निश्चित मात्रा की बिजली खरीदनी ही होती है, भले ही उसकी तत्काल ज़रूरत न हो, अन्यथा उसे भुगतान करना पड़ता है।
ऊर्जा मंत्रालय, विद्युत उत्पादक संघ और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि ‘ले लो और दो’ मॉडल निवेश के लिए प्रतिकूल है, जिससे प्राइवेट हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है।
ऊर्जा मंत्री और उद्योग जगत का विरोध
ऊर्जा मंत्री दीपक खड़का, संसद और सार्वजनिक मंचों पर लगातार कहते आ रहे हैं कि यह प्रावधान उनके द्वारा नहीं भेजा गया और इसे बदला जाएगा। वहीं, स्वतंत्र विद्युत उत्पादक संघ (IPPAN) ने भी विरोध की कई गतिविधियाँ चलाई हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और ऊर्जा मंत्री को SMS और सोशल मीडिया अभियानों के ज़रिए दबाव बनाया।
IPPAN का कहना है कि वर्तमान में 12,889 मेगावाट की परियोजनाओं ने PPA के लिए आवेदन किया है, और ‘ले लो और दो’ लागू होने से बैंकों द्वारा वित्तीय सहयोग मिलना बंद हो जाएगा, जिससे हजारों करोड़ का निवेश डूबने की आशंका है।
सांसदों और विशेषज्ञों की चेतावनी
सोमवार को नेपाल इंफ्रास्ट्रक्चर जर्नलिस्ट सोसाइटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सांसदों, ऊर्जा उद्यमियों और विशेषज्ञों ने इस प्रावधान को तत्काल हटाने की मांग की। संसदीय इंफ्रास्ट्रक्चर विकास समिति के अध्यक्ष दीपक बहादुर सिंह ने बजट को पक्षपातपूर्ण बताया और कहा कि “ऊर्जा क्षेत्र को बचाने के लिए निष्पक्ष और साहसिक निर्णय ज़रूरी है।”
पूर्व योजना आयोग उपाध्यक्ष गोविंदा राज पोखरेल ने कहा कि सरकार ऊर्जा क्षेत्र की नीतिगत जरूरतों को गंभीरता से नहीं ले रही है, जबकि IPPAN अध्यक्ष गणेश कार्की ने चेतावनी दी कि यदि यह मुद्दा नहीं सुलझा तो नेपाल में जलविद्युत क्षेत्र की प्रगति ठप हो जाएगी।
दीर्घकालिक असर और सरकार की जिम्मेदारी
जलविद्युत परियोजनाओं के प्रवर्तकों का कहना है कि यदि यह नीति जारी रही तो 10 साल में 28,500 मेगावाट बिजली उत्पादन और 10,000 मेगावाट बिजली भारत को निर्यात करने का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा। इससे न केवल आर्थिक नुकसान होगा बल्कि क्षेत्रीय ऊर्जा सहयोग पर भी असर पड़ेगा।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री ओली और शेर बहादुर देउबा की यह सहमति नेपाल के ऊर्जा क्षेत्र को संभावित संकट से बचाने में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। अब सभी की निगाहें वित्त मंत्री की संसद में होने वाली घोषणा और आगामी कैबिनेट बैठक पर टिकी हैं, जिससे यह तय होगा कि ऊर्जा निवेश और परियोजनाओं की राह में आई रुकावटें जल्द हटेंगी या नहीं।