आज के डिजिटल युग में जहां सूचनाएं पलक झपकते ही विश्व भर में फैल जाती हैं, वहीं भ्रामक जानकारी और फेक न्यूज़ ने भी अभूतपूर्व गति से समाज को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। इसी गंभीर चुनौती से निपटने के लिए प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB), मुंबई ने केंद्रीय संचार ब्यूरो (CBC) के सहयोग से पुणे स्थित CBC क्षेत्रीय कार्यालय में ‘भ्रामक जानकारी से मुकाबला’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।
इस कार्यशाला में मीडिया विशेषज्ञों, पत्रकारों, सरकारी अधिकारियों, संचार के छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। कार्यशाला का उद्देश्य था — फेक न्यूज़ की पहचान, उसके प्रभाव को समझना और व्यावहारिक रूप से उससे निपटने के लिए लोगों को सक्षम बनाना।
कार्यशाला की शुरुआत और मुख्य अतिथि का स्वागत
कार्यशाला का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और राष्ट्रगान के साथ हुआ। तत्पश्चात, क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्रीमती अर्चना देशमुख ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि, “आज हम जिस सूचना युग में रह रहे हैं, उसमें सूचनाओं की शुद्धता सबसे अहम है। समाज की सामूहिक चेतना को जागरूक करने के लिए ऐसे कार्यक्रम समय की मांग हैं।”
मुख्य अतिथि और कार्यशाला के प्रमुख वक्ता श्री सौरभ सिंह, निदेशक, पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट ने अपने उद्घाटन भाषण में फेक न्यूज़ की बढ़ती चुनौती और सरकारी प्रयासों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
श्री सौरभ सिंह का संबोधन: फेक न्यूज़ से लड़ाई में ‘पीआईबी फैक्ट चेक’ की भूमिका
श्री सौरभ सिंह ने कहा, “फेक न्यूज़ न केवल समाज में भ्रम और भय फैलाता है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया, स्वास्थ्य सेवाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है। हाल के वर्षों में हमने देखा कि किस प्रकार कोविड-19 महामारी के दौरान गलत सूचनाओं ने समाज में अफवाहों और भय का वातावरण बनाया। इसी से प्रेरणा लेकर पीआईबी ने अपनी फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना की।”
उन्होंने बताया कि ‘PIB Fact Check’ भारत सरकार की आधिकारिक फैक्ट चेक यूनिट है, जो केंद्र सरकार से संबंधित फर्जी सूचनाओं की पुष्टि करती है और नागरिकों को सही जानकारी प्रदान करती है। यह यूनिट ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और वेबसाइट के माध्यम से काम करती है और 24×7 जनता से प्राप्त सूचनाओं की जांच करती है।
उन्होंने कुछ हालिया मामलों का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे वायरल वीडियो, झूठे विज्ञापन और मनगढ़ंत सरकारी योजनाओं की अफवाहें फैलाई जाती हैं, जिससे आमजन भ्रमित होते हैं। “हमें हर सूचना को तुरंत साझा करने से पहले उसकी पुष्टि करनी चाहिए,” उन्होंने कहा।
तकनीकी सत्र: फेक न्यूज़ की पहचान और उसे खंडित करने के उपकरण
कार्यशाला में तकनीकी सत्र भी आयोजित किए गए, जिसमें वरिष्ठ फैक्ट चेक विशेषज्ञों ने डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते हुए फेक न्यूज़ की पहचान और उसका खंडन कैसे किया जाए, इस पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया।
प्रमुख विषय जो शामिल किए गए:
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डिजिटल मीडिया की साक्षरता:
सोशल मीडिया का प्रयोग करते समय सतर्कता आवश्यक है। एक गलत क्लिक भी भ्रामक जानकारी के प्रसार में योगदान कर सकता है। -
फोटो और वीडियो सत्यापन के उपकरण:
Google Reverse Image Search, InVID, FotoForensics, TinEye जैसे उपकरणों के उपयोग पर चर्चा हुई। -
खबरों के स्रोत की जांच:
किस स्रोत से खबर आई है? क्या वह विश्वसनीय है? इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। -
ऑनलाइन अफवाहों का समाज पर प्रभाव:
कैसे एक अफवाह सांप्रदायिक तनाव या आर्थिक संकट का कारण बन सकती है, इस पर केस स्टडी प्रस्तुत किए गए।
कार्यशाला में सहभागिता और संवाद
कार्यशाला का विशेष आकर्षण रहा ‘ओपन फोरम’ जिसमें प्रतिभागियों को विशेषज्ञों से सीधे सवाल पूछने का अवसर मिला। एक प्रतिभागी, पुणे विश्वविद्यालय की पत्रकारिता छात्रा ने पूछा, “क्या कोई आम नागरिक भी फर्जी खबरों को पीआईबी फैक्ट चेक को भेज सकता है?” इस पर श्री सिंह ने जवाब दिया, “बिल्कुल, नागरिकों की सहभागिता ही हमारे अभियान की सफलता की कुंजी है।
फेक न्यूज़ के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
कार्यशाला में मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ डॉ. अनुपमा देशमुख ने फेक न्यूज़ के मनोवैज्ञानिक असर पर चर्चा करते हुए बताया कि “झूठी सूचनाएं न केवल भ्रम पैदा करती हैं बल्कि अवसाद, भय और आक्रोश का भी कारण बनती हैं। जब किसी व्यक्ति या समुदाय को बार-बार निशाना बनाया जाता है, तो वह मानसिक रूप से प्रभावित होता है।”
उन्होंने सुझाव दिया कि विद्यालयों और कॉलेजों में ‘सूचना साक्षरता’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी भ्रामक सूचना के प्रति सजग हो सके।
राजनीति, चुनाव और फेक न्यूज़
राजनीतिक संवाद में फेक न्यूज़ की भूमिका पर भी चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने बताया कि चुनावी समय में झूठी सूचनाएं जनता को भ्रमित करने के लिए रणनीतिक रूप से फैलाई जाती हैं। इस पर लगाम लगाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग और अन्य एजेंसियां भी प्रयासरत हैं, लेकिन जनता की जागरूकता सबसे प्रभावी उपाय है।
कार्यशाला का समापन और संकल्प
कार्यशाला का समापन समारोह अध्यक्षीय भाषण और प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरण के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर प्रतिभागियों ने एक सामूहिक संकल्प लिया:
“हम सत्य की रक्षा करेंगे, गलत सूचना के विरुद्ध खड़े होंगे और समाज में सूचना की शुद्धता बनाए रखने के लिए सदैव सजग रहेंगे।”
कार्यशाला की प्रतिक्रियाएं
प्रतिभागियों ने कार्यशाला को अत्यंत उपयोगी और ज्ञानवर्धक बताया। एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, “आज की मीडिया दुनिया में जब हर कोई सूचना का स्रोत बन गया है, तब ऐसे कार्यशालाएं अत्यंत आवश्यक हैं। पीआईबी और सीबीसी की यह पहल सराहनीय है।”
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “हम प्रशासनिक स्तर पर फैसले लेते हैं, लेकिन जब तक जनता तक सही जानकारी नहीं पहुँचती, तब तक प्रयास अधूरे हैं। आज की कार्यशाला ने हमें तकनीकी दृष्टि से सशक्त किया है।”
फेक न्यूज़ के खिलाफ जागरूकता का राष्ट्रीय अभियान
यह कार्यशाला, भारत सरकार के उन सतत प्रयासों का हिस्सा है, जो फेक न्यूज़ के विरुद्ध एक व्यापक अभियान चला रही है। पीआईबी, सीबीसी, निर्वाचन आयोग, शिक्षा मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय जैसे कई विभाग एक साझा रणनीति के तहत काम कर रहे हैं।
पीआईबी फैक्ट चेक के ट्विटर हैंडल @PIBFactCheck, इंस्टाग्राम और फेसबुक पेज लगातार भ्रामक सूचनाओं का खंडन कर रहे हैं और जनता को अपडेट कर रहे हैं।
आगे की राह
इस कार्यशाला के माध्यम से स्पष्ट हुआ कि भ्रामक जानकारी के विरुद्ध लड़ाई केवल सरकारी एजेंसियों की जिम्मेदारी नहीं है। यह समाज के प्रत्येक नागरिक की सहभागिता से ही संभव है। फेक न्यूज़ की समस्या से निपटने के लिए एक समावेशी, जागरूक और तकनीकी रूप से सशक्त समाज की आवश्यकता है।