राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित मजनू का टीला के किशोर सुधार गृह में किशोर की मौत

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित मजनू का टीला क्षेत्र के एक सरकारी किशोर सुधार गृह (जुवेनाइल होम) में एक 17 वर्षीय किशोर की मौत ने देशभर में चिंता और आक्रोश का माहौल उत्पन्न कर दिया है। यह मौत कथित तौर पर साथी कैदियों की पिटाई के चलते हुई। घटना के प्रकाश में आने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस पर गंभीरता दिखाई और स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव तथा दिल्ली पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया है। आयोग ने तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जिसमें मजिस्ट्रियल जांच रिपोर्ट, मृत्यु के कारणों का विवरण, जांच रिपोर्ट और पोस्टमार्टम रिपोर्ट शामिल होनी चाहिए।


घटना का विवरण:

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 17 जून, 2025 को मजनू का टीला स्थित एक सरकारी किशोर गृह में रह रहे एक 17 वर्षीय किशोर पर उसके ही दो साथी किशोरों ने कथित रूप से हमला किया। मारपीट के दौरान किशोर को गंभीर चोटें आईं। उसे तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। यह घटना देश की राजधानी में ऐसे एक संस्थान में घटी है, जो बच्चों के पुनर्वास और सुधार के लिए बनाया गया है।


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तत्परता:

NHRC ने इस पूरे मामले को बाल अधिकारों और मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन के रूप में देखा है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि यदि यह रिपोर्ट सही है, तो यह भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों के उल्लंघन का मामला बनता है। आयोग ने इस घटना को अत्यंत संवेदनशील मानते हुए दिल्ली सरकार को तीन सप्ताह के भीतर जवाबदेही तय करने की चेतावनी दी है।

NHRC द्वारा जारी नोटिस में मुख्य रूप से निम्न बिंदुओं पर प्रकाश डालने को कहा गया है:

  • पीड़ित की मृत्यु के वास्तविक कारणों की पुष्टि।

  • मजिस्ट्रेट द्वारा की जा रही जांच की रिपोर्ट।

  • दिल्ली पुलिस द्वारा की गई आपराधिक जांच की स्थिति।

  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट सहित अन्य चिकित्सीय प्रमाण।


किशोर न्याय प्रणाली पर प्रश्नचिह्न:

इस घटना ने देश की किशोर न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। किशोर गृहों का उद्देश्य अपराध करने वाले बच्चों को दंडित करना नहीं, बल्कि उन्हें मुख्यधारा में वापस लाना होता है। ऐसे में यदि इन्हीं संस्थानों में बच्चों की जान सुरक्षित न रहे, तो यह पूरे सुधार व्यवस्था पर काला धब्बा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि किशोर सुधार गृहों में अक्सर क्षमता से अधिक बच्चों को रखा जाता है, उचित निगरानी नहीं होती, और स्टाफ की मानसिकता भी दंडात्मक होती है। ऐसी स्थिति में छोटे अपराधों में लिप्त किशोर गंभीर अपराधियों के संपर्क में आकर या तो खुद हिंसा के शिकार हो जाते हैं या फिर हिंसक बन जाते हैं।


दिल्ली सरकार की भूमिका और जवाबदेही:

दिल्ली सरकार द्वारा संचालित इस किशोर गृह में हुई मौत ने प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं। यह साफ है कि पीड़ित की सुरक्षा में गंभीर चूक हुई है। किशोर गृहों में प्रत्येक किशोर की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक देखरेख की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा कैमरों की निगरानी, प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की नियुक्ति, और समय-समय पर बाहरी पर्यवेक्षण आवश्यक है।

दिल्ली के मुख्य सचिव से NHRC ने अपेक्षा की है कि वह यह स्पष्ट करें कि:

  • संबंधित सुधार गृह में कितने किशोर रह रहे थे और वहां की क्षमता क्या है।

  • स्टाफ की संख्या और योग्यता क्या है।

  • पहले से हिंसक प्रवृत्ति के किशोरों की पहचान और निगरानी की क्या व्यवस्था थी।

  • पीड़ित की पहले से कोई शिकायतें दर्ज थीं या नहीं।


मृतक किशोर की पृष्ठभूमि:

अब तक जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार मृतक किशोर किसी मामूली अपराध में सुधार गृह में लाया गया था। उसका कोई गंभीर आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। वह शिक्षा और परामर्श की सुविधा ले रहा था और पुनर्वास की प्रक्रिया में था। इस घटना से न केवल एक जीवन समाप्त हुआ, बल्कि एक परिवार का भविष्य उजड़ गया।


परिवार की प्रतिक्रिया:

पीड़ित किशोर के परिजनों ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए न्याय की मांग की है। परिजनों का कहना है कि उन्हें सुधार गृह की स्थिति के बारे में कभी कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्हें यह भी नहीं बताया गया कि उनके बच्चे को किन परिस्थितियों में अस्पताल लाया गया।

मृतक की मां का कहना है, “मेरा बेटा वहां सुधार के लिए गया था, पर वो कभी लौटा ही नहीं। अगर सरकार की जिम्मेदारी है सुधार गृह चलाना, तो उसे यह भी देखना चाहिए कि वहां बच्चे जीवित रहें।”


राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं:

इस हृदयविदारक घटना पर सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार संस्थाओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। दिल्ली महिला आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, और अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से जवाब मांगा है।

राजनीतिक स्तर पर भी विपक्षी दलों ने इसे सरकार की विफलता करार दिया है। आम आदमी पार्टी की सरकार पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने हमला बोला है। बीजेपी प्रवक्ता का कहना है, “जब राजधानी के सुधार गृह में ही बच्चे सुरक्षित नहीं, तो बाकी राज्य की स्थिति का क्या कहना।” कांग्रेस ने भी इसे प्रशासनिक अमानवीयता का प्रमाण बताया है।


विशेषज्ञों की राय:

किशोर न्याय विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों का कहना है कि सुधार गृहों की संरचना में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। प्रो. संध्या मेनन, जो किशोर अपराध और समाज पर काम कर रही हैं, कहती हैं, “यह घटना अकेली नहीं है। देशभर के किशोर गृहों में हिंसा, उत्पीड़न और उपेक्षा की घटनाएं सामने आती रहती हैं। जरूरत है कि सरकारें केवल दीवारें न बनवाएं, बल्कि अंदर सुधार की मानसिकता और संस्कृति विकसित करें।”


कानूनी दृष्टिकोण:

भारतीय किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 स्पष्ट करता है कि किशोर गृहों में बंद बच्चों को पूर्ण सुरक्षा, शिक्षा, परामर्श और गरिमा से जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे गृहों में बच्चों की सुरक्षा सरकार और संस्थान की जिम्मेदारी होती है। यदि किसी कारणवश कोई किशोर हिंसा का शिकार होता है, तो संस्था प्रमुख पर आपराधिक लापरवाही का आरोप बनता है।

NHRC की पहल इस दिशा में एक कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत है, जिससे यह उम्मीद की जा सकती है कि दोषियों को सजा मिलेगी और पीड़ित परिवार को न्याय मिलेगा।


संभावित सुधार और सिफारिशें:

इस घटना के आलोक में निम्न सुधार प्रस्तावित किए जा सकते हैं:

  1. स्वतंत्र निगरानी तंत्र: हर किशोर गृह में एक स्वतंत्र मानवाधिकार पर्यवेक्षण समिति का गठन हो।

  2. सीसीटीवी निगरानी: प्रत्येक कोने में कैमरे हों और वीडियो रिकॉर्डिंग सुरक्षित रखी जाए।

  3. मानव संसाधन में सुधार: स्टाफ की ट्रेनिंग अनिवार्य की जाए, विशेषकर बच्चों से संवेदनशील व्यवहार पर।

  4. मानसिक स्वास्थ्य सहायता: सभी किशोरों के लिए नियमित परामर्श सत्र और चिकित्सकीय मूल्यांकन हो।

  5. अनुशासनिक प्रणाली का पुनरीक्षण: हिंसक व्यवहार करने वाले किशोरों के लिए पृथक निगरानी और सुधार की विशेष योजना बनाई जाए।


निष्कर्ष:

दिल्ली के मजनू का टीला किशोर गृह में एक किशोर की कथित हत्या न केवल एक प्रशासनिक विफलता है, बल्कि यह देश की बाल संरक्षण प्रणाली पर एक गहरा धब्बा है। यह घटना हमें बताती है कि संरचनाएं चाहे जितनी भी अच्छी हों, यदि उनके भीतर मानवीय संवेदना और जवाबदेही नहीं हो, तो वे मृत्यु का स्थल बन सकती हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तत्परता और उसकी कानूनी कार्रवाई से यह उम्मीद की जा सकती है कि दोषियों को सजा मिलेगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकेगी। परंतु यह तभी संभव है जब सरकारें बच्चों को महज आंकड़ा नहीं, बल्कि संवेदनशील नागरिक मानकर उनके प्रति दायित्व का निर्वहन करें।

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