भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण ने माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम आवंटन पर टिप्पणियों की अंतिम तिथि बढ़ाई

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) ने देश में डिजिटल संचार व्यवस्था के बुनियादी ढांचे को और अधिक सुदृढ़ और आधुनिक बनाने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए ‘6 गीगाहर्ट्ज़ (निम्न), 7 गीगाहर्ट्ज़, 13 गीगाहर्ट्ज़, 15 गीगाहर्ट्ज़, 18 गीगाहर्ट्ज़, 21 गीगाहर्ट्ज़, E-बैंड और V-बैंड में माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम के आवंटन’ से जुड़े परामर्श पत्र पर उद्योग और नागरिक समाज से टिप्पणियां और प्रति-टिप्पणियां आमंत्रित की थीं।

इस संदर्भ में उद्योग संघों और विभिन्न हितधारकों के अनुरोध पर TRAI ने अंतिम तिथि को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। अब टिप्पणियां जमा करने की अंतिम तिथि 2 जुलाई 2025 और प्रति-टिप्पणियों की अंतिम तिथि 16 जुलाई 2025 कर दी गई है। यह विस्तार नीति-निर्माण की प्रक्रिया को अधिक समावेशी और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।


परामर्श पत्र: डिजिटल भारत के लिए रणनीतिक दस्तावेज

TRAI द्वारा प्रस्तावित यह स्पेक्ट्रम बैंड्स भारत की दूरसंचार व्यवस्था की रीढ़ बनने वाले हैं। नीचे दिए गए बैंड्स को शामिल किया गया है:

  • 6 GHz (निम्न) बैंड – यह बैंड Wi-Fi 6E और अगली पीढ़ी की वायरलेस सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

  • 7 GHz – मिड-बैंड के रूप में उच्च आवृत्तियों के साथ तेज डेटा स्पीड उपलब्ध कराने वाला बैंड।

  • 13 GHz, 15 GHz, 18 GHz, और 21 GHz – ये बैंड वायरलेस बैकहॉल के लिए लंबे समय से प्रयोग में लाए जा रहे हैं और उच्च क्षमता के साथ विस्तृत क्षेत्र में नेटवर्क कवरेज देने में सक्षम हैं।

  • E-बैंड (71–76 GHz और 81–86 GHz) – उच्च डेटा रेट और कम विलंबता के साथ शहरी क्षेत्रों में FWA (Fixed Wireless Access) और 5G बैकहॉल के लिए बेहद उपयुक्त।

  • V-बैंड (57–64 GHz) – छोटी दूरी के लिए उपयोगी, यह बैंड हाई-थ्रूपुट और कम लैग के लिए जाना जाता है, जिससे घरेलू और कार्यालय नेटवर्कों को सशक्त किया जा सकता है।

इन सभी बैंड्स की विशेषता यह है कि ये हाई-कैपेसिटी, लो-लेटेंसी नेटवर्क प्रदान करते हैं, जो भविष्य की डिजिटल इंडिया संरचना के लिए आवश्यक हैं।


उद्योग और हितधारकों की भागीदारी को मिला प्रोत्साहन

परामर्श पत्र के प्रकाशन के बाद से ही विभिन्न उद्योग संघों, टेलीकॉम ऑपरेटरों, टेक्नोलॉजी प्रोवाइडर्स, स्टार्टअप्स और नागरिक समाज के विशेषज्ञों ने अपनी भागीदारी दर्शाई। उन्होंने विस्तृत प्रतिक्रिया देने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की थी, जिससे TRAI ने टिप्पणियों की तिथियों को बढ़ाने का निर्णय लिया।

इस पहल का उद्देश्य न केवल सभी वर्गों को सुनना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि जो भी नीति बने, वह व्यावहारिक, तकनीकी रूप से प्रभावशाली और भविष्य के विकास के अनुरूप हो।


माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम: क्यों है यह महत्वपूर्ण?

फाइबर नेटवर्क की सीमाएं और माइक्रोवेव का विकल्प

पारंपरिक फाइबर नेटवर्क डेटा ट्रांसमिशन के लिए बेहतरीन माध्यम हैं, लेकिन इन्हें हर जगह बिछाना व्यवहारिक नहीं होता। खासतौर पर घनी आबादी वाले शहरों, झुग्गी क्षेत्रों, पहाड़ी इलाकों और पुरानी शहरी बस्तियों में फाइबर केबल बिछाना महंगा, समय-साध्य और तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।

इसी कारण माइक्रोवेव लिंक, जो बिना भौतिक केबल के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक रेडियो तरंगों के माध्यम से डेटा संचारित करते हैं, एक व्यवहारिक और तीव्र विकल्प बनकर उभरे हैं।


E-बैंड और V-बैंड: अगली पीढ़ी की कनेक्टिविटी का आधार

TRAI द्वारा हाल ही में जारी परामर्श पत्र में E-बैंड (71–76 GHz और 81–86 GHz) और V-बैंड (57–64 GHz) के उपयोग को लेकर विशेष जोर दिया गया है। ये बैंड्स अत्यधिक डेटा ट्रांसमिशन स्पीड, कम विलंबता (low latency) और कम हस्तक्षेप (low interference) के लिए जाने जाते हैं।

🔹 E-बैंड (Extremely High Frequency Band)

  • आदर्श उपयोग: 5G बेस स्टेशन, बैकहॉल नेटवर्क, एफडब्ल्यूए (FWA)

  • स्पीड: 10 Gbps तक

  • अनुप्रयोग: 5G/6G नेटवर्क को जोड़ने में उपयोगी, जहाँ तीव्र और विश्वसनीय डेटा लिंक की आवश्यकता होती है।

🔹 V-बैंड (Very High Frequency Band)

  • आदर्श उपयोग: शॉर्ट रेंज ट्रांसमिशन, घरेलू वायरलेस नेटवर्क, स्मार्ट ग्रिड कनेक्टिविटी

  • स्पीड: 1-7 Gbps तक

  • विशेषता: उच्च क्षमता के साथ सीमित दूरी तक कार्य करने में सक्षम, अत्यधिक घनत्व वाले शहरी क्षेत्रों में आदर्श।


फिक्स्ड वायरलेस एक्सेस (FWA) को देगा नया आयाम

FWA (Fixed Wireless Access) वह तकनीक है, जिसके माध्यम से स्थिर स्थानों—जैसे घरों, दुकानों, और कार्यालयों—में तेज़ इंटरनेट सेवा प्रदान की जाती है, बिना फाइबर या तार बिछाए। E-बैंड और V-बैंड की क्षमताएं FWA के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं।

FWA विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है:

  • जहाँ फाइबर पहुँचाना कठिन या खर्चीला है।

  • जहाँ उपयोगकर्ता घनत्व अधिक है।

  • जहाँ तेज़ और कम लागत वाली इंटरनेट सेवा की आवश्यकता है।


5G/6G कनेक्टिविटी के विस्तार में उपयोगिता

E-बैंड और V-बैंड, 5G बेस स्टेशनों को जोड़ने में भी उपयोगी हैं। 5G नेटवर्क की उच्च गति और कम लेटेंसी की क्षमताओं का लाभ तभी लिया जा सकता है जब बैकहॉल लिंक भी उसी गति और क्षमता के हों। माइक्रोवेव लिंक, विशेष रूप से E-बैंड, इस आवश्यकता को पूरी तरह से पूरा करता है।

इसके अतिरिक्त, 6G तकनीक पर अनुसंधान कर रही कंपनियों और संस्थानों के लिए भी यह बैंड भविष्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे।


स्मार्ट ग्रिड और शहरी अवसंरचना में योगदान

E-बैंड और V-बैंड का उपयोग स्मार्ट ग्रिड, वॉटर मैनेजमेंट, शहरी निगरानी, सीसीटीवी नेटवर्क, और इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम्स जैसी प्रणालियों में भी किया जा सकता है। इससे स्मार्ट सिटी मिशन के लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकेगा।


टिप्पणियां कैसे और कहां भेजी जाएं?

TRAI ने स्पष्ट किया है कि सभी इच्छुक पक्ष इलेक्ट्रॉनिक रूप में अपनी टिप्पणियां और प्रति-टिप्पणियां

किसी भी स्पष्टीकरण, तकनीकी जानकारी या मार्गदर्शन के लिए, हितधारक TRAI के नेटवर्क, स्पेक्ट्रम और लाइसेंसिंग विभाग के सलाहकार श्री अखिलेश कुमार त्रिवेदी से संपर्क कर सकते हैं।


ट्राई की समावेशी नीति प्रक्रिया

TRAI की परामर्श आधारित नीति निर्माण प्रक्रिया देश-विदेश में एक मिसाल मानी जाती है। यह प्रणाली पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी के सिद्धांतों पर आधारित है। नीति प्रस्तावों पर परामर्श पत्र जारी करना और सभी पक्षों से प्रतिक्रिया लेना, TRAI के कामकाज की बुनियादी पहचान है।

ट्राई का मानना है कि डिजिटल भारत और आत्मनिर्भरता की राह पर चलने के लिए, टेलीकॉम स्पेक्ट्रम जैसे तकनीकी मुद्दों पर भी बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।


मौजूदा तकनीकी परिदृश्य और अंतरराष्ट्रीय तुलना

वर्तमान में अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ जैसे देशों ने E-बैंड और V-बैंड के उपयोग को बढ़ावा दिया है और 5G के विस्तार में इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। भारत को भी अपनी बढ़ती डिजिटल मांग के अनुरूप, इसी दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, इन बैंड्स के लाइसेंसिंग मॉडल्स – लाइसेंस मुक्त, लाइसेंस के साथ साझा उपयोग, और बोली आधारित पूर्ण लाइसेंसिंग – को अपनाया गया है। ट्राई के परामर्श पत्र में इन विकल्पों पर भी विस्तृत चर्चा की गई है।


आगे की राह: नीति निर्माण से कार्यान्वयन तक

TRAI द्वारा प्राप्त टिप्पणियों और प्रति-टिप्पणियों का गहन विश्लेषण किया जाएगा और उसके बाद अंतिम सिफारिशें भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) को भेजी जाएंगी। DoT द्वारा अंतिम निर्णय लेने के बाद, इन बैंड्स की नीलामी या आवंटन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।

इसका असर केवल टेलीकॉम सेक्टर तक सीमित नहीं होगा, बल्कि यह स्टार्टअप्स, IoT एप्लिकेशन, स्मार्ट सिटी मिशन, स्वास्थ्य, शिक्षा, और ग्रामीण कनेक्टिविटी जैसे विविध क्षेत्रों को भी नई गति देगा।


निष्कर्ष: भारत को डिजिटल भविष्य की ओर ले जाता एक और कदम

TRAI द्वारा माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम के विभिन्न बैंड्स के लिए परामर्श पत्र लाना और फिर उसकी प्रक्रिया को अधिक व्यापक व सहभागी बनाना, यह स्पष्ट करता है कि भारत भविष्य की टेलीकॉम चुनौतियों के लिए तैयार हो रहा है। स्पेक्ट्रम आवंटन में पारदर्शिता, कुशलता और तकनीकी दृष्टिकोण अपनाकर भारत वैश्विक डिजिटल प्रतिस्पर्धा में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है।

E-बैंड और V-बैंड जैसे बैंड्स की नीतिगत मंजूरी और उनका व्यावहारिक उपयोग देश में 5G/6G नेटवर्क के विकेंद्रीकरण और विस्तार को नई दिशा देगा।

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