गंगा संरक्षण के लिए एकीकृत प्रयास केंद्रीय मंत्री सी.आर. पाटिल की अध्यक्षता में ईटीएफ की 15वीं बैठक

गंगा संरक्षण के लिए एकीकृत प्रयास केंद्रीय मंत्री सी.आर. पाटिल की अध्यक्षता में ईटीएफ की 15वीं बैठक

गंगा की निर्मलता और अविरलता को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को एक बार फिर बल मिला, जब केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी.आर. पाटिल ने गंगा संरक्षण पर गठित अधिकार प्राप्त टास्क फोर्स (Empowered Task Force – ETF) की 15वीं बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की गतिविधियों और प्रगति की समग्र समीक्षा की गई और भावी रणनीतियों को रेखांकित किया गया। इसमें प्रमुख मंत्रालयों, राज्य सरकारों, संस्थानों और तकनीकी विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी रही।


समेकित दृष्टिकोण और सरकार की प्रतिबद्धता

बैठक की शुरुआत करते हुए केंद्रीय मंत्री श्री पाटिल ने कहा कि नमामि गंगे कार्यक्रम के माध्यम से सरकार गंगा को केवल एक नदी नहीं, बल्कि संस्कृति और आस्था की धारा मानती है। उन्होंने कहा कि एक समन्वित, समयबद्ध और प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोण के माध्यम से गंगा को और अधिक स्वच्छ तथा टिकाऊ बनाने की दिशा में सभी हितधारकों को मिलकर कार्य करना होगा।

उन्होंने जोर दिया कि केवल परियोजनाओं की घोषणा ही नहीं, बल्कि उनका प्रभावी क्रियान्वयन और स्थायी रख-रखाव ही कार्यक्रम की सफलता की कुंजी है।


बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की प्रगति और सराहना

श्री पाटिल ने एनएमसीजी द्वारा संचालित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन की तेज गति और हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय की सराहना की। इस अवसर पर यह जानकारी दी गई कि हाल ही में बिहार में 10 परियोजनाओं का उद्घाटन या शिलान्यास किया गया, जिससे राज्य में सीवेज प्रबंधन और जल गुणवत्ता सुधार को बल मिलेगा।


वित्तीय प्रबंधन में अनुकरणीय सुधार

एनएमसीजी द्वारा वित्तीय प्रशासन में लाए गए सुधारों की केंद्रीय मंत्री ने प्रशंसा की। बैठक में बताया गया कि:

  • उपयोगिता प्रमाणपत्रों की लंबितता में उल्लेखनीय कमी आई है।

  • वर्षों से अटके कराधान विवादों का समाधान किया गया।

  • ट्रेजरी सिंगल अकाउंट सिस्टम (TSA) को प्रभावी रूप से लागू किया गया।

  • बीमा ज़मानत बांड (Insurance Surety Bonds) को पारंपरिक बैंक गारंटी के विकल्प के रूप में अपनाया गया है।

इन सुधारों से न केवल वित्तीय पारदर्शिता बढ़ी है, बल्कि ठेकेदारों पर आर्थिक दबाव भी कम हुआ है। इससे निविदा प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और परियोजनाओं की गति में तेजी आई है।


शहरी विस्तार और नदी प्रदूषण की चुनौतियाँ

गंगा किनारे बसे शहरों के तेजी से फैलते शहरीकरण और नए नालों के उद्भव से उत्पन्न समस्याओं के समाधान के लिए एनएमसीजी ने दो महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल तैयार किए हैं:

  1. अनुपचारित सीवेज डिस्चार्ज को शून्य बनाए रखने हेतु दिशानिर्देश।

  2. I&D (Intercept & Diversion) संरचनाओं के नियमित रखरखाव के लिए मानक प्रक्रिया।

श्री पाटिल ने जिला गंगा समितियों को इन प्रोटोकॉल के निर्वहन और निगरानी में सक्रिय भूमिका निभाने का निर्देश दिया। उन्होंने नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत प्राप्त लाभों को दीर्घकालिक बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।


एसटीपी की कार्यक्षमता और सुरक्षा ऑडिट

बैठक में गंगा बेसिन में स्थापित STP (Sewage Treatment Plant) की प्रदर्शन और सुरक्षा ऑडिट की आवश्यकता पर बल दिया गया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि:

  • सभी एसटीपी की तीसरे पक्ष एजेंसियों द्वारा नियमित मूल्यांकन होना चाहिए।

  • IIT BHU और IIT दिल्ली के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को यह ज़िम्मेदारी दी जाएगी।

  • एसटीपी पर ऑनलाइन निगरानी प्रणाली की समीक्षा की गई और इसे और बेहतर बनाने के निर्देश दिए गए।

  • साइट पर सुरक्षा अभ्यास और तत्काल सुधारात्मक कार्यवाहियाँ अनिवार्य की जाएंगी।

श्री पाटिल ने कहा कि कार्यस्थल की सुरक्षा में कोई समझौता नहीं किया जा सकता और इसे प्रशासनिक प्राथमिकता बनाया जाना चाहिए।


नवाचार और वैज्ञानिक सहभागिता को बढ़ावा

बैठक के दौरान केंद्रीय मंत्री ने दो बड़ी पहलों का शुभारंभ किया:

1. Riverthon 1.0

यह एक राष्ट्रीय स्तर का हैकथॉन है, जिसे एमिटी यूनिवर्सिटी के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य नदी पुनरुद्धार हेतु नवाचार को बढ़ावा देना है।

मुख्य विषय:

  • बाढ़ क्षेत्र मानचित्रण

  • जैव विविधता निगरानी

  • आपदा प्रबंधन

  • LiDAR तकनीक आधारित पर्यावरण निगरानी

  • डेटा-संचालित समाधान

2. Ecological Status & Trends Booklets

गंगा की सहायक नदियों – रामगंगा, गोमती, कोसी, दामोदर, यमुना, घाघरा, गंडक और सोन – पर आधारित 8 पारिस्थितिकी पुस्तिकाओं का विमोचन किया गया। ये भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के सहयोग से विकसित की गई हैं।

इन पुस्तकों में:

  • जल गुणवत्ता

  • वनस्पति व जीव-जंतुओं की उपस्थिति

  • मानव हस्तक्षेप का प्रभाव

  • दीर्घकालिक पारिस्थितिक प्रवृत्तियों

का व्यापक विवरण दिया गया है।


बहु-स्तरीय भागीदारी: राज्यों और मंत्रालयों का योगदान

गंगा संरक्षण का कार्य विभिन्न मंत्रालयों की एकीकृत सहभागिता के बिना अधूरा है। बैठक में निम्नलिखित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया:

  • ऊर्जा मंत्रालय: जिनका ध्यान पानी आधारित ऊर्जा परियोजनाओं और जल उपयोग दक्षता पर केंद्रित रहा।

  • आवास और शहरी कार्य मंत्रालय: जिन्होंने शहरी क्षेत्रों से निकलने वाले सीवेज प्रबंधन, ठोस कचरा निपटान और शहरी जल निकासी संरचनाओं के पुनर्निर्माण पर अपने इनपुट दिए।

  • पर्यटन मंत्रालय: जिन्होंने धार्मिक स्थलों पर पर्यावरणीय प्रबंधन, तीर्थ यात्रियों द्वारा उत्पन्न कचरे की जिम्मेदारी और सतत पर्यटन के विषयों पर मार्गदर्शन दिया।

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय: जिनकी भागीदारी विशेष रूप से जैव विविधता संरक्षण, नदी के आसपास के पारिस्थितिक तंत्र की निगरानी और प्रदूषण मानकों के प्रवर्तन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही।

इन मंत्रालयों ने स्पष्ट किया कि गंगा से संबंधित किसी भी योजना को लागू करने के लिए केवल एक विभागीय दृष्टिकोण पर्याप्त नहीं है। इसके लिए क्रॉस-सेक्टोरल कनेक्टिविटी और साझा जवाबदेही आवश्यक है।


राज्य सरकारों की सक्रिय भागीदारी और ज़मीनी अनुभव

गंगा किनारे बसे पांच प्रमुख राज्यों – उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड और पश्चिम बंगाल – के प्रतिनिधियों ने बैठक में भाग लिया। हर राज्य ने अपनी-अपनी चुनौतियाँ, नवाचार और सफलता की कहानियाँ साझा कीं।

  • उत्तर प्रदेश ने बताया कि उन्होंने जिला गंगा समितियों को सशक्त किया है, जिससे स्थानीय निगरानी और जन सहभागिता को बढ़ावा मिला है।

  • बिहार ने अपने हालिया 10 परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास की जानकारी साझा की, जो सीवेज प्रबंधन की दिशा में बड़ा कदम है।

  • उत्तराखंड ने ऊपरी गंगा क्षेत्र में प्राकृतिक जल प्रवाह और भूमि कटाव नियंत्रण की दिशा में हो रहे प्रयासों को रेखांकित किया।

  • झारखंड ने शहरीकरण के विस्तार के साथ बढ़ते नालों और अपशिष्ट जल प्रबंधन की समस्याओं पर ध्यान दिलाया।

  • पश्चिम बंगाल ने कहा कि वे पारिस्थितिक अध्ययन आधारित हस्तक्षेप को बढ़ावा दे रहे हैं और स्थानीय निकायों को तकनीकी रूप से सशक्त कर रहे हैं।

राज्यों ने यह भी सुझाव दिया कि स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता, और वित्तीय लचीलापन बढ़ाने से गंगा संरक्षण की योजनाएं अधिक प्रभावी होंगी।


निष्कर्ष: सतत प्रयासों की आवश्यकता

गंगा भारत की जीवनरेखा है — सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से। ईटीएफ की यह 15वीं बैठक इस प्रयास का प्रमाण है कि सरकार केवल योजनाएं नहीं बना रही, बल्कि उनके प्रभावी कार्यान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन पर गंभीरता से ध्यान दे रही है। श्री पाटिल की अध्यक्षता में हुई इस समीक्षा बैठक ने स्पष्ट किया कि गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाए रखने के लिए राज्य, केंद्र और जनता के सहयोग से ही परिणामोन्मुखी सफलता पाई जा सकती है।

नमामि गंगे केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय जन-आंदोलन का स्वरूप ले रहा है, जिसमें तकनीक, भागीदारी और स्थायित्व की त्रयी भारत को जल प्रबंधन के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर कर रही है।

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