भारत की सुरक्षा नीति और आयात नियंत्रण तंत्र के लिए वर्ष 2025 एक चुनौतीपूर्ण काल रहा है। विशेष रूप से, पहलगाम में हुए आतंकवादी हमलों के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान से किसी भी प्रकार के माल के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आयात अथवा पारगमन पर प्रतिबंध लागू किया था। यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि में लिया गया था। इन प्रतिबंधों को दरकिनार करने की कोशिशें भी उतनी ही सशक्त रूप से जारी रहीं। इन्हीं गतिविधियों को रोकने और आयात नीति के उल्लंघनकर्ताओं पर शिकंजा कसने के उद्देश्य से राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने “ऑपरेशन डीप मैनिफेस्ट” नामक एक विशेष अभियान की शुरुआत की।
यह ऑपरेशन भारत की वाणिज्यिक सुरक्षा प्रणाली, खुफिया ढांचे और सीमा शुल्क कार्यप्रणाली के संयोजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले सामग्री के माध्यम से पाकिस्तान के आर्थिक नेटवर्क को बाधित करने का प्रयास किया गया।
1. ऑपरेशन डीप मैनिफेस्ट की पृष्ठभूमि: राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता
भारत सरकार ने 2 मई, 2025 को एक आदेश जारी कर पाकिस्तान से किसी भी प्रकार के माल के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आयात और पारगमन को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया। इस निर्णय का आधार केवल व्यापारिक शुद्धता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा भी थी। इससे पहले, भारत ने पाकिस्तान से आने वाले माल पर 200% सीमा शुल्क लगाया था। लेकिन पहलगाम आतंकवादी घटनाओं के पश्चात यह महसूस किया गया कि केवल आर्थिक दंड पर्याप्त नहीं हैं; आवश्यक है कि पाकिस्तान से व्यापारिक संपर्क ही पूरी तरह समाप्त किए जाएं।
इसी रणनीतिक निर्णय के तहत “ऑपरेशन डीप मैनिफेस्ट” का खाका तैयार किया गया, जिसका उद्देश्य दुबई और अन्य मध्यवर्ती बंदरगाहों के माध्यम से भारत में घुसपैठ कर रहे पाकिस्तानी माल की पहचान करना और उसे रोकना था।
2. आयात नीति का उल्लंघन: कैसे हुआ खुलासा?
डीआरआई को गुप्त सूचनाएं प्राप्त हुईं कि कुछ कंपनियां जानबूझकर पाकिस्तानी उत्पादों को संयुक्त अरब अमीरात (विशेष रूप से दुबई के जबल अली बंदरगाह) के रास्ते भारत ला रही हैं और दस्तावेजों में उसे यूएई मूल का बता रही हैं। यह रणनीति न केवल सरकारी प्रतिबंधों का उल्लंघन थी, बल्कि यह आर्थिक राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में भी आती है।
एनालिटिकल डेटा जांच के माध्यम से डीआरआई ने संदिग्ध कंटेनरों को ट्रैक किया। न्हावा शेवा बंदरगाह पर जब्त किए गए दो प्रमुख मामलों में खुलासा हुआ कि ये माल मूलतः कराची (पाकिस्तान) से शिप होकर दुबई पहुंचा था, जहां ट्रांसशिपमेंट के माध्यम से उसे भारत भेजा गया।
3. बड़ी जब्ती: 39 कंटेनर और ₹9 करोड़ की खेप
डीआरआई ने ऑपरेशन डीप मैनिफेस्ट के तहत अब तक कुल 1,115 मीट्रिक टन अवैध रूप से आयातित सामग्री को जब्त किया है, जिसका कुल अनुमानित मूल्य लगभग ₹9 करोड़ है। यह सामग्री 39 कंटेनरों में लदी हुई थी और भारत में संयुक्त अरब अमीरात के नाम पर आयात की जा रही थी।
इस संबंध में 26 जून 2025 को एक प्रमुख आयातक फर्म के भागीदार को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में उसने बताया कि वह सामग्री के मूल देश को जानबूझकर छिपा रहा था, और दुबई स्थित कुछ व्यापारिक एजेंसियों के माध्यम से यह काम किया गया।
4. माल के परिवहन की रणनीति: पाकिस्तान से दुबई होते हुए भारत
इस पूरे ऑपरेशन का सबसे जटिल हिस्सा था शिपिंग नेटवर्क का विश्लेषण। डीआरआई की जांच में यह सामने आया कि इन खेपों को पहले कराची बंदरगाह से दुबई लाया गया, जहां उन्हें ट्रांसशिपमेंट कर नई बुकिंग के साथ भारत भेजा गया। शिपिंग डॉक्यूमेंट्स में जानबूझकर सामग्री की उत्पत्ति को UAE दर्शाया गया था।
डीआरआई ने विभिन्न एजेंसियों के सहयोग से यह भी सिद्ध किया कि इन व्यापारिक लेन-देन में पाकिस्तानी कंपनियों और फाइनेंसरों का प्रत्यक्ष संलिप्तता थी। कुछ धनराशि दुबई के माध्यम से पाकिस्तान को भेजी गई थी, जिससे यह संदेह प्रबल हो गया कि यह व्यापार वैधता की आड़ में मनी लॉन्ड्रिंग का माध्यम भी बन सकता था।
5. डाटा एनालिटिक्स और खुफिया निगरानी की भूमिका
डीआरआई ने इस ऑपरेशन में परंपरागत जांच पद्धतियों के साथ-साथ एडवांस्ड डेटा एनालिटिक्स का भी उपयोग किया। शिपिंग मैनिफेस्ट, कंटेनर मूवमेंट, डॉक्युमेंट ट्रेल्स, ट्रांसशिपमेंट पैटर्न और फाइनेंशियल ट्रांजेक्शंस की डिजिटल जांच ने पूरी साजिश को उजागर किया।
इस पूरे अभियान के लिए डीआरआई ने बहु-स्तरीय रणनीतिक निगरानी तंत्र बनाया, जिसमें वास्तविक समय कंटेनर ट्रैकिंग, AI आधारित अल्गोरिदम और लेन-देन के विसंगति संकेतक शामिल थे।
6. अंतरराष्ट्रीय सहभागिता और यूएई की भूमिका
इस पूरे नेटवर्क में दुबई की एजेंसियों और शिपिंग कंपनियों की भूमिका अत्यंत संदिग्ध रही। डीआरआई के अधिकारियों ने संयुक्त अरब अमीरात सरकार से इस विषय में संपर्क कर आवश्यक जानकारी मांगी है। यह संभावना जताई जा रही है कि कुछ एजेंसियों ने माल के मूल देश की जानकारी को जानबूझकर छुपाया।
यह मामला भारत और यूएई के बीच व्यापारिक और सीमा शुल्क सहयोग को मजबूत करने की दिशा में भी एक चुनौती और अवसर दोनों है।
7. ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन डीप मैनिफेस्ट: एक समानांतर सुरक्षा ढांचा
पहले “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत भी डीआरआई ने पाकिस्तान और खाड़ी देशों के व्यापार नेटवर्क की कड़ी जांच की थी। “ऑपरेशन डीप मैनिफेस्ट” उसी श्रृंखला की एक कड़ी है, जिसे वर्तमान सुरक्षा परिदृश्य के अनुरूप और अधिक कठोर एवं तकनीकी दृष्टिकोण के साथ क्रियान्वित किया गया।
इन ऑपरेशनों के माध्यम से डीआरआई ने यह सिद्ध किया है कि भारत की आर्थिक और रणनीतिक सीमाओं की रक्षा केवल सैन्य या राजनीतिक उपायों से नहीं, बल्कि आर्थिक खुफिया और सीमा शुल्क प्रवर्तन की दक्षता से भी की जा सकती है।
8. राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा के लिए नीतिगत संदेश
इस ऑपरेशन के माध्यम से सरकार ने स्पष्ट संकेत दिया है कि:
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पाकिस्तान से किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष व्यापार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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किसी भी व्यापारी द्वारा नीति का उल्लंघन करने पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
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शिपिंग मार्गों, दस्तावेजों, और वित्तीय लेनदेन की निगरानी और अधिक सख्त होगी।
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देश की आर्थिक और रणनीतिक सुरक्षा को खतरे में डालने वाले किसी भी नेटवर्क को नेस्तनाबूद किया जाएगा।
9. भविष्य की रणनीतियाँ और कानून प्रवर्तन की दिशा
डीआरआई अब इस कार्रवाई के बाद निम्नलिखित कदम उठा रहा है:
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अन्य बंदरगाहों और ICDs (Inland Container Depots) पर इसी प्रकार की खेपों की पुनः जांच।
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संबंधित फर्मों के GST, DGFT और कस्टम रिकॉर्ड की समन्वित जांच।
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विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय के सहयोग से यूएई और पाकिस्तान में सक्रिय नेटवर्क की पहचान।
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राष्ट्रीय वित्तीय जांच एजेंसियों जैसे ED और FIU के सहयोग से मनी ट्रेल की निगरानी।
10. निष्कर्ष: भारत की सीमा पर आर्थिक सुरक्षा का दृढ़ प्रहरी – डीआरआई
“ऑपरेशन डीप मैनिफेस्ट” न केवल सीमा शुल्क अधिकारियों की सतर्कता का परिचायक है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि जब देश की संप्रभुता और सुरक्षा की बात आती है, तो भारत का राजस्व तंत्र भी सैनिकों की भांति मोर्चे पर डटा होता है।