भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष
सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक क्षण के रूप में, भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष आज भारत से भारतीय वायुसेना के विशेष विमान द्वारा रूस के काल्मिकिया गणराज्य की राजधानी एलिस्टा पहुंचे। इनके आगमन के साथ ही यहाँ आठ दिवसीय “बुद्ध अवशेष प्रदर्शनी” का भव्य शुभारंभ हुआ। यह आयोजन भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों की नई परंपरा का सूत्रपात कर रहा है। प्रदर्शनी का आयोजन 11 से 18 अक्टूबर 2025 तक किया जा रहा है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल और कार्यक्रम विवरण भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के साथ एक उच्चस्तरीय भारतीय भिक्षु प्रतिनिधिमंडल भी पहुंचा है, जिसमें वरिष्ठ भिक्षु और धार्मिक विद्वान शामिल हैं। यह प्रतिनिधिमंडल स्थानीय श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देगा और बौद्ध समुदाय के लिए धार्मिक सेवाएँ संचालित करेगा। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य कर रहे हैं। सप्ताह भर चलने वाले कार्यक्रमों में अनेक सांस्कृतिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक आयोजन होंगे, जिनमें परम पावन 43वें शाक्य त्रिजिन रिनपोछे द्वारा शिक्षाएं और प्रवचन शामिल हैं। कंजूर ग्रंथों का प्रस्तुतीकरण कार्यक्रम के दौरान, भारत के अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) की ओर से ‘कंजूर’ नामक 108 खंडों के मंगोलियाई धार्मिक ग्रंथों का विशेष सेट नौ बौद्ध संस्थानों और एक विश्वविद्यालय को भेंट किया जाएगा। ये ग्रंथ तिब्बती भाषा से अनुवादित हैं और संस्कृति मंत्रालय के पांडुलिपि प्रभाग से संबंधित हैं। इस प्रस्तुति को भारत की ओर से बौद्ध ज्ञान परंपरा के संवर्धन और रूस में आध्यात्मिक पुनर्जागरण की दिशा में एक नई पहल के रूप में देखा जा रहा है।
पवित्र अवशेषों का स्वागत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एलिस्टा पहुँचने पर पवित्र अवशेषों का स्वागत कलमीकिया के शाजिन लामा गेशे तेनजिन चोइडक, कलमीकिया गणराज्य के प्रमुख श्री बट्टू सर्गेयेविच खासिकोव, और कई प्रतिष्ठित बौद्ध संघ सदस्यों ने किया। यह आयोजन रूस में बौद्ध परंपरा की जीवंतता को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे, जो भारत के प्रतिष्ठित बौद्ध भिक्षु और राजनयिक थे, ने मंगोलिया और रूस के तीन क्षेत्रों — बुर्यातिया, काल्मिकिया और तुवा — में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आयोजन के सहयोगी संस्थान यह पहली बार है जब रूस के किसी गणराज्य में भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की प्रदर्शनी आयोजित हो रही है। इस आयोजन का संयुक्त रूप से संचालन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC), राष्ट्रीय संग्रहालय, और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) द्वारा किया जा रहा है। इस अवसर पर केंद्रीय बौद्ध आध्यात्मिक प्रशासन और आईबीसी के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर भी प्रस्तावित हैं, जिससे भारत-रूस के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक सहयोग और मजबूत होगा।
प्रदर्शनी स्थल और उसकी ऐतिहासिकता पवित्र अवशेषों को एलिस्टा के मुख्य बौद्ध मठ “गेंडेन शेडुप चोइकोरलिंग” में स्थापित किया गया है, जिसे “शाक्यमुनि बुद्ध का स्वर्णिम निवास” भी कहा जाता है। यह मठ वर्ष 1996 में जनता के लिए खोला गया था और आज रूस में तिब्बती बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र है। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारत और रूस की आध्यात्मिक साझेदारी का प्रतीक बन गया है। विशेष प्रदर्शनी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आयोजन स्थल पर कर्नाटक के धारवाड़ के श्री विनोद कुमार द्वारा तैयार बौद्ध डाक टिकटों की एक दुर्लभ प्रदर्शनी भी लगाई गई है। इसमें लगभग 90 देशों के डाक टिकट प्रदर्शित किए गए हैं, जो बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरित हैं। इसके अलावा, आईबीसी द्वारा प्रस्तुत “शाक्यों की पवित्र विरासत: बुद्ध के अवशेषों का उत्खनन और प्रदर्शन” शीर्षक प्रदर्शनी आगंतुकों को बुद्ध के अवशेषों की अद्भुत यात्रा से परिचित कराती है — पिपरहवा (कपिलवस्तु) से लेकर उनके पुनः उत्खनन तक। भारतीय कला और बौद्ध धरोहर की प्रदर्शनी भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय और राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की ओर से आयोजित प्रदर्शनी ‘बोधिचित्त – बौद्ध कला का खजाना’ आगंतुकों को भारत की दो सहस्राब्दियों पुरानी बौद्ध कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत से जोड़ती है। इसमें बौद्ध मूर्तिकला, पांडुलिपियाँ, चित्रांकन और धातु कला के अद्भुत नमूने प्रदर्शित हैं, जो भारतीय सभ्यता की गहराई को उजागर करते हैं।
काल्मिकिया का सांस्कृतिक और धार्मिक परिदृश्य काल्मिकिया रूस का एक अनूठा क्षेत्र है जिसकी विशेषता इसके विशाल घास के मैदान और खानाबदोश जीवनशैली में झलकती है। यह यूरोप का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ महायान बौद्ध धर्म का पालन किया जाता है। काल्मिक लोग मूलतः ओइरात मंगोलों के वंशज हैं, जो 17वीं शताब्दी की शुरुआत में पश्चिमी मंगोलिया से यहाँ आकर बसे थे। उनकी संस्कृति, भाषा और आध्यात्मिक जीवनशैली पर बौद्ध दर्शन का गहरा प्रभाव है। पूर्ववर्ती अंतर्राष्ट्रीय मंच और भारत-रूस संवाद एलिस्टा में इससे पहले तीसरा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध मंच 24-28 सितंबर 2025 को आयोजित किया गया था। उस समय भारत और रूस के विद्वानों ने ‘विश्व शांति के लिए बौद्ध शिक्षाएं’ विषय पर गहन चर्चा की थी। वर्तमान प्रदर्शनी को उसी संवाद की अगली कड़ी माना जा रहा है, जो दोनों देशों के बीच आध्यात्मिक कूटनीति (Spiritual Diplomacy) का नया अध्याय खोलती है।
भारत-रूस सांस्कृतिक संबंधों में नया अध्याय भारत और रूस सदियों से सांस्कृतिक रूप से गहराई से जुड़े रहे हैं। बुद्ध के पवित्र अवशेषों की यह यात्रा न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की “विश्व गुरु” परंपरा और रूस की आध्यात्मिक जिज्ञासा का संगम भी है। यह आयोजन दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संवाद, धार्मिक पर्यटन और आध्यात्मिक शिक्षा के नए अवसर खोलेगा। आध्यात्मिक संदेश और विश्व शांति की अपील आयोजन के दौरान भिक्षुओं ने शांति, करुणा और सह-अस्तित्व का संदेश दिया। भारतीय भिक्षु भंते डॉ. धम्मप्रिय ने कहा कि “बुद्ध के उपदेश आज के युग में मानवता के लिए दिशा-प्रदर्शक हैं। यह अवशेष हमें स्मरण कराते हैं कि शांति केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन से संभव है। रूसी श्रद्धालुओं ने भारत के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और इस प्रदर्शनी को “विश्व शांति का उत्सव” कहा।
भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की यह ऐतिहासिक यात्रा भारतीय आध्यात्मिक विरासत और वैश्विक बौद्ध समुदाय के बीच आध्यात्मिक एकता का प्रतीक बन गई है। ये अवशेष उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा स्थित पवित्र स्थलों से लिए गए हैं, जहाँ 19वीं शताब्दी के अंत में पुरातात्विक खुदाई के दौरान इन्हें खोजा गया था। पिपरहवा की पहचान प्राचीन कपिलवस्तु, अर्थात् भगवान बुद्ध के शाक्य वंश की राजधानी के रूप में की जाती है। यहीं से प्राप्त इन अवशेषों को भारत सरकार ने वर्षों से राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में अत्यंत श्रद्धा और सुरक्षा के साथ संरक्षित रखा है।
इन अमूल्य अवशेषों को विशेष रूप से तैयार की गई धार्मिक कलशों (Reliquaries) में स्थापित किया गया, जिन्हें अत्याधुनिक सुरक्षा और संरक्षा व्यवस्था में रखा गया है। प्रस्थान से पूर्व, इन्हें नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान में वैदिक मंत्रोच्चार, बुद्ध वंदना और पुष्प अर्पण के साथ विदाई दी गई। इसके पश्चात, भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से रूस के लिए रवाना किया गया। यह विमान नई दिल्ली से उड़ान भरकर सीधे रूस के काल्मिकिया गणराज्य की राजधानी एलिस्टा पहुँचा, जहाँ उनका आधिकारिक स्वागत बौद्ध भिक्षुओं और गणमान्य अतिथियों द्वारा पारंपरिक मंडल अर्पण और खाद्य भेंट से किया गया।
इन अवशेषों की प्रदर्शनी 11 से 18 अक्टूबर 2025 तक एलिस्टा स्थित गेंडेन शेडुप चोइकोरलिंग मठ (शाक्यमुनि बुद्ध का स्वर्णिम निवास) में आयोजित की जा रही है। प्रदर्शनी स्थल को भव्य रूप से सजाया गया है, जहाँ हजारों श्रद्धालु भारत से आए इन पवित्र प्रतीकों के दर्शन करने पहुँच रहे हैं।
Source : PIB | रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)