भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को बिहार के मुज़फ्फरपुर स्थित बिज़नेस मैनेजमेंट के स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए बिहार की ऐतिहासिक, बौद्धिक और संवैधानिक विरासत का भावनात्मक और प्रज्ञापूर्ण स्मरण किया। उन्होंने अपने भाषण में बिहार को “भारत की आत्मा” की संज्ञा दी और कहा कि यह केवल एक राज्य नहीं, बल्कि वह भूमि है जहाँ बुद्ध का बोध, महावीर का आत्मिक जागरण, चंपारण का प्रतिरोध, और संविधान निर्माता डॉ. राजेंद्र प्रसाद का योगदान — सभी एक ही धरातल पर मिलते हैं।
🔹 “बिहार की कथा, भारत की कथा है”
अपने उद्बोधन में श्री धनखड़ ने कहा,
“हम अक्सर दिमाग और दिल की सुनते हैं, पर आत्मा की नहीं। बिहार की धरती आत्मा की आवाज़ है। यह वही भूमि है जहाँ से भारत की दार्शनिक नींव की शुरुआत हुई। यहाँ नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे विश्वविद्यालयों ने ज्ञान की परंपरा को वैश्विक आयाम दिए।”
उन्होंने कहा कि पाँचवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय एक आवासीय वैश्विक शिक्षालय था, जहाँ 10,000 विद्यार्थी और 2,000 आचार्य रहते थे और चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत तथा मध्य एशिया के छात्र अध्ययन करते थे। उन्होंने अफसोस जताया कि 1192 में बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा की बर्बर विनाशलीला ने इस धरोहर को जला डाला, लेकिन भारत की ज्ञान परंपरा की ज्योति कभी नहीं बुझी।
🔹 शिक्षा: मुक्ति और मूल्यों का माध्यम
श्री धनखड़ ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसका आधार भारतीय ज्ञान परंपरा है। उन्होंने वैदिक सूत्र ‘सा विद्या या विमुक्तये’ को उद्धृत करते हुए कहा:
“ज्ञान वही है जो मुक्ति की ओर ले जाए। भारत की शिक्षा प्रणाली हमेशा मूल्य आधारित रही है, न कि केवल नौकरी की अर्हता।”
उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता और राष्ट्र निर्माण है। एनईपी का लक्ष्य है कुशल पेशेवरों, संतुलित नागरिकों और रोजगार प्रदाताओं को तैयार करना।
🔹 बिहार की भूमिका: संविधान से सामाजिक न्याय तक
उपराष्ट्रपति ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की भूमिका को याद करते हुए कहा कि जब सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन हुआ, तो वे भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में डटकर खड़े रहे, जैसे वे संविधान सभा में डटे रहे। उन्होंने कहा:
“संविधान सभा में संवाद, बहस और विचार हुआ — व्यवधान नहीं। यही लोकतंत्र का आदर्श है।”
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और डॉ. आंबेडकर ने मिलकर जो संविधान रचा, वह आज भी भारत के लोकतंत्र की मूल आत्मा है। उन्होंने यह भी कहा कि जब देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु संविधान की उसी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, तब यह बिहार की आत्मा की निरंतरता है।
🔹 सामाजिक न्याय और बिहार की विरासत
श्री धनखड़ ने बिहार के कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने को सामाजिक न्याय की विजय बताया। उन्होंने कहा:
“मेरा सौभाग्य है कि मैं उस समय केंद्र सरकार में मंत्री था जब मंडल आयोग लागू हुआ। आज जब मैं राज्यसभा का सभापति हूं और कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित होते देख रहा हूं, तो यह बिहार की मिट्टी का गौरव है।”
🔹 आपातकाल की याद और लोकतंत्र का मूल्य
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने 25 जून 1975 को लगे आपातकाल को भारत के लोकतंत्र का सबसे काला दिन बताया। उन्होंने कहा कि उस समय संविधान की हत्या हुई थी, लेकिन लोकतंत्र की ज्योति को जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने जलाए रखा।
“सम्पूर्ण क्रांति सिर्फ एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि राष्ट्र के नैतिक और लोकतांत्रिक पुनर्जागरण की पुकार थी।”
🔹 विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
इस अवसर पर बिहार सरकार के उद्योग मंत्री श्री नीतीश मिश्र, अंबेडकर यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर के कुलपति प्रो. दिनेश राय, के निदेशक श्री मनीष कुमार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
🔹 निष्कर्ष: बिहार – भारत का दर्शन, दिशा और दृष्टि
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के उद्बोधन ने यह स्पष्ट कर दिया कि बिहार केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक, शैक्षणिक, राजनीतिक और सामाजिक चेतना का केंद्र है। बिहार की माटी से उपजे आदर्शों और विरासतों को समर्पित यह समारोह न केवल गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, बल्कि भारत के भविष्य की दिशा भी निर्धारित करता है।