दिनांक : 14.07.2025 | Koto News | KotoTrust |
13 JUL 2025 केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को नई दिल्ली में भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) के चिकित्सक दिवस समारोह के दौरान महान चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी और भारत रत्न डॉ. बिधान चंद्र रॉय को श्रद्धांजलि अर्पित की। डॉ. रॉय के योगदान को याद करते हुए उन्होंने चिकित्सा पेशे की गरिमा, डॉक्टर-रोगी विश्वास और नैतिक मूल्यों को पुनःस्थापित करने का आह्वान किया।
कार्यक्रम में डॉ. जितेंद्र सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उनके साथ मंच पर आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. भानुशाली, नवनिर्वाचित अध्यक्ष डॉ. नाइक, पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोकन सहित संगठन के अनेक वरिष्ठ पदाधिकारी भी मौजूद थे। मंत्री ने कहा कि बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में जिस डॉक्टर-रोगी संबंध की गहराई और पारदर्शिता थी, वह आज के युग में काफी हद तक क्षीण हो गई है।
उन्होंने डॉ. बी.सी. रॉय की पेशेवर निष्ठा की मिसाल देते हुए कहा, “वे 1940 के दशक में 66 रुपये परामर्श शुल्क लेते थे, और समाज में उनके प्रति श्रद्धा इतनी थी कि किसी ने इस पर कभी आपत्ति नहीं जताई।” डॉ. सिंह ने सवाल किया कि ऐसा विश्वास आज क्यों नहीं बचा? और इसी बहाने पूरे चिकित्सा समुदाय को आत्ममंथन करने की आवश्यकता बताई।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि चिकित्सा पेशेवरों को अपने व्यवहार और पेशेवर नैतिकता से समाज में विश्वास बहाल करना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विश्वास केवल चिकित्सकों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्यों में हो रहे व्यापक बदलाव का भी परिणाम है।
चित्र में: केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, भारतीय चिकित्सा संघ के अध्यक्षगणों के साथ मंच पर डॉ. बी.सी. रॉय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए।
(फोटो सौजन्य: प्रेस सूचना ब्यूरो)
IMA की गौरवशाली विरासत
स्थापना: 1928, कलकत्ता में
मुख्यालय: नई दिल्ली
सदस्यता: 3.3 लाख से अधिक डॉक्टर
शाखाएँ: 1,750+ स्थानीय शाखाएं, 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सक्रिय
उद्देश्य: चिकित्सा शिक्षा, स्वास्थ्य नीति, नैतिकता और जनजागरूकता में नेतृत्व
प्रमुख योगदानकर्ता: डॉ. बी.सी. रॉय, डॉ. अंसारी, सर नील रतन सरकार, कर्नल भोला नाथ
चिकित्सा और राष्ट्र निर्माण में चिकित्सकों की भूमिका
अपने वक्तव्य में डॉ. जितेंद्र सिंह ने डॉ. रॉय, डॉ. एम.ए. अंसारी, सर नील रतन सरकार और अन्य दूरदर्शी चिकित्सकों की उस पीढ़ी को याद किया, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान न केवल स्वास्थ्य सेवा में योगदान दिया बल्कि राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में भी भागीदारी की।
उन्होंने कहा, “उनका मिशन स्पष्ट था — चिकित्सा विज्ञान को आगे बढ़ाना, समाज के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना और पेशे की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखना। आज के दौर में यही मिशन अधिक प्रासंगिक हो गया है।”
चिकित्सा शिक्षा और नैतिकता पर विचार
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि चिकित्सा पेशा कभी समाज में सबसे भरोसेमंद पेशों में से एक था। “आज यह भरोसा डगमगाया है। हमें यह विचार करना होगा कि क्या हमारे व्यवहार, हमारी फीस, या हमारे दृष्टिकोण में कोई कमी आ गई है?” उन्होंने चिकित्सा शिक्षा में नैतिकता, सामाजिक सेवा और संवेदनशीलता को दोबारा स्थापित करने की आवश्यकता जताई।
बदलाव और चुनौतियाँ
केंद्रीय मंत्री ने भारत में स्वास्थ्य परिदृश्य में आए बदलावों का विश्लेषण किया। उन्होंने बताया कि जहां एक समय संक्रामक रोगों से जूझना प्राथमिकता थी, वहीं अब देश को गैर-संचारी रोगों (जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर) के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषयों की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
“आज भारत में लगभग हर प्रकार की बीमारी मौजूद है, जो शोधकर्ताओं और चिकित्सकों के लिए चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करती है,” उन्होंने कहा।
जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सेवा मॉडल
डॉ. सिंह ने भारत की जनसांख्यिकी संरचना पर विशेष टिप्पणी करते हुए कहा, “हम दुनिया के सबसे युवा देशों में से हैं, फिर भी उम्रदराज़ आबादी की संख्या बढ़ रही है। जीवन प्रत्याशा अब 70 वर्ष से अधिक हो चुकी है। इसके अनुरूप हमें चिकित्सा ढांचे, नीति और व्यवहार में बदलाव लाना होगा।”
एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकता
डॉ. जितेंद्र सिंह ने एलोपैथी के साथ आयुर्वेद, योग और आयुष प्रणालियों को जोड़कर एक समग्र स्वास्थ्य मॉडल की वकालत की। उन्होंने योग को दीर्घकालिक रोग प्रबंधन में उपयोगी बताया और विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के एकीकरण पर ज़ोर दिया।
“अब समय संशय का नहीं, सहयोग का है। दुनिया आवश्यकता से प्रेरित होकर एकीकृत चिकित्सा की ओर बढ़ रही है, भावनाओं से नहीं,” उन्होंने कहा।
तकनीकी प्रगति और भारत की अगुवाई
डॉ. सिंह ने भारत में हो रहे चिकित्सा अनुसंधान की प्रगति को रेखांकित किया। उन्होंने डीएनए वैक्सीन, जीन थेरेपी परीक्षण और स्वदेशी एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन का उदाहरण देते हुए बताया कि भारत चिकित्सा विज्ञान में वैश्विक नेतृत्व की दिशा में बढ़ रहा है।
युवा डॉक्टरों से अपील
उन्होंने युवा चिकित्सा पेशेवरों से वर्तमान गति को पहचानने और उसमें सक्रिय भागीदारी की अपील की। “अब हम गति पकड़ नहीं रहे हैं, बल्कि गति निर्धारित कर रहे हैं। नई चिकित्सा पीढ़ी को इस परिवर्तन का नेतृत्व करना होगा।”
सार्वजनिक-निजी समन्वय की ओर बढ़ते कदम
उन्होंने सार्वजनिक और निजी चिकित्सा सेवा प्रदाताओं के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि स्वास्थ्य सेवा अब केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि राष्ट्रव्यापी सहयोग का क्षेत्र है।
Source : PIB
Q1. डॉ. बी.सी. रॉय कौन थे और उन्हें इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर:
डॉ. बिधान चंद्र रॉय एक प्रसिद्ध चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री थे। उन्हें चिकित्सा सेवा, शिक्षा और राष्ट्र निर्माण में उनके असाधारण योगदान के लिए 1961 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वे डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास के प्रतीक माने जाते हैं।
Q2. डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने भाषण में डॉक्टर-रोगी विश्वास पर ज़ोर क्यों दिया?
उत्तर:
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि 20वीं सदी के पूर्वार्ध में डॉक्टरों पर अटूट सामाजिक विश्वास था, लेकिन आज यह भरोसा कमजोर पड़ा है। उन्होंने चिकित्सा पेशेवरों से आग्रह किया कि वे नैतिकता, व्यवहार और सेवा भाव से समाज का खोया हुआ विश्वास दोबारा अर्जित करें।
Q3. भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) क्या है और इसकी स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
IMA (Indian Medical Association) भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना चिकित्सक संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1928 में कलकत्ता में हुई थी। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है और यह देशभर में 1,750+ शाखाओं के माध्यम से 3.3 लाख से अधिक डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करता है।
Q4. डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के चिकित्सा परिदृश्य में किस प्रकार के बदलावों की चर्चा की?
उत्तर:
उन्होंने बताया कि पहले भारत संक्रामक रोगों से जूझता था, लेकिन अब गैर-संचारी रोग जैसे मधुमेह, हृदय रोग, और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। यह बदलाव चिकित्सा प्रणाली को अधिक जटिल और बहुआयामी बना रहे हैं।
Q5. एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली से डॉ. सिंह का क्या तात्पर्य था?
उत्तर:
उन्होंने कहा कि आधुनिक एलोपैथी को आयुष पद्धतियों (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी) और नवीनतम तकनीकी नवाचारों के साथ जोड़कर एक समग्र चिकित्सा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। यह रोगी के हित में है और वैश्विक आवश्यकता बन चुका है।