संविधान हत्या दिवस पर दिल्ली में ऐतिहासिक कार्यक्रम, गृह मंत्री अमित शाह

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख एक गहरे घाव की तरह दर्ज है। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में देश में आपातकाल लागू किया गया था, जिसने नागरिक स्वतंत्रताओं, प्रेस की आज़ादी और संवैधानिक मूल्यों पर सीधा प्रहार किया। इस ऐतिहासिक घटना के 50 वर्ष पूरे होने पर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और दिल्ली सरकार ने संयुक्त रूप से “संविधान हत्या दिवस” का आयोजन राजधानी दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल उस अंधकारमय कालखंड की याद दिलाना था, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को लोकतंत्र की अहमियत से परिचित कराना भी था।

इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने “#लॉन्गलिवडेमोक्रेसी यात्रा” को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। यह यात्रा देशभर में संवैधानिक मूल्यों, नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा के लिए चलाया जाने वाला अभियान है। इस यात्रा के माध्यम से भारत के कोने-कोने में जागरूकता फैलाई जाएगी कि लोकतंत्र कोई दी गई वस्तु नहीं है, बल्कि इसे हर नागरिक को मिलकर संरक्षित करना होता है।

कार्यक्रम की विशेष उपस्थिति

कार्यक्रम में कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। मंच पर प्रमुख रूप से उपस्थित व्यक्तियों में शामिल थे:

  • श्री अमित शाह, केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री (मुख्य अतिथि)

  • श्री अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय रेल, सूचना एवं प्रसारण, और इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी मंत्री

  • श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री

  • श्री विनय कुमार सक्सेना, दिल्ली के उपराज्यपाल

  • श्रीमती रेखा गुप्ता, मुख्यमंत्री, दिल्ली

इन नेताओं ने अपने-अपने संबोधनों में लोकतंत्र की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए नागरिकों से आग्रह किया कि वे संविधान की मूल भावना के साथ खड़े रहें।

श्री अमित शाह ने अपने वक्तव्य में कहा:

“आपातकाल केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने पर एक आघात था। आज हम इस दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में इसलिए याद करते हैं ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को यह बता सकें कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए सतत सजग रहना आवश्यक है।”

प्रदर्शनी – लोकतंत्र की यात्रा का चित्रण

इस आयोजन की एक प्रमुख विशेषता एक भव्य तीन-खंडीय प्रदर्शनी रही, जिसका शीर्षक था “भारत: लोकतंत्र की जननी”। इसमें भारत के लोकतांत्रिक विकास को तीन खंडों में प्रस्तुत किया गया:

  1. भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक परंपराएँ – वैशाली से लेकर पंचायतों तक भारत की गहन लोकतांत्रिक परंपराओं का वर्णन किया गया।

  2. लोकतंत्र के काले दिन (1975–77) – इस खंड में आपातकाल के दौरान घटित प्रमुख घटनाओं, विरोध प्रदर्शनों, गिरफ्तारी और सेंसरशिप की दास्तान को दस्तावेजों, तस्वीरों और वीडियो क्लिप्स के माध्यम से प्रदर्शित किया गया।

  3. आधुनिक भारत में लोकतंत्र की मजबूती – इसमें नारी शक्ति वंदन अधिनियम, DBT, डिजिटल लोक शिकायत प्रणाली, और चुनावी पारदर्शिता जैसे हालिया लोकतांत्रिक सुधारों को उजागर किया गया।

नाट्य और फिल्म के माध्यम से आपातकाल की पुनरावृत्ति

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) द्वारा प्रस्तुत एक नाटक ने दर्शकों को आपातकाल के उस भयावह कालखंड में ले जाया, जहां प्रेस पर ताले लगे, विरोधियों को जेल भेजा गया, और नागरिक स्वतंत्रता को कुचला गया। यह प्रस्तुति भावनात्मक रूप से दर्शकों को झकझोरने में सफल रही।

इसके अतिरिक्त, एक विशेष रूप से निर्मित लघु फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया, जिसमें आपातकाल के निर्णय, इसके प्रभाव और जनआंदोलनों को सिनेमाई शैली में प्रस्तुत किया गया।

सिग्नेचर ट्रिब्यूट वॉल – नागरिकों की सहभागिता

कार्यक्रम स्थल पर स्थापित “सिग्नेचर ट्रिब्यूट वॉल” पर हज़ारों नागरिकों ने अपने हस्ताक्षर कर लोकतंत्र और संविधान के मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। यह दीवार एक प्रतीक बन गई, जो दर्शाती है कि आमजन आज भी संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सजग और समर्पित हैं।

“#लॉन्गलिवडेमोक्रेसी यात्रा” की शुरुआत

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हरी झंडी दिखाकर शुरू की गई #लॉन्गलिवडेमोक्रेसी यात्रा एक राष्ट्रीय जन-जागरण अभियान है। यह यात्रा मायभारत के स्वयंसेवकों के नेतृत्व में गांवों, कस्बों और शहरों तक जाएगी और वहां नागरिकों को लोकतंत्र, अधिकारों और जिम्मेदारियों के विषय में जागरूक करेगी। यात्रा के दौरान नुक्कड़ नाटक, संवाद सत्र, प्रदर्शनी और डिजिटल माध्यमों से संवाद को प्रोत्साहित किया जाएगा।

राष्ट्रव्यापी आयोजन

दिल्ली के मुख्य कार्यक्रम के समानांतर देश भर के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में भी “संविधान हत्या दिवस” पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और लोक प्रतिनिधियों ने इन आयोजनों का नेतृत्व किया। प्रमुख गतिविधियाँ निम्न थीं:

  • लोकतंत्र की रक्षा में योगदान देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित किया गया।

  • छात्रों और युवाओं के बीच जनसंवाद, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएँ और फिल्म स्क्रीनिंग आयोजित की गईं।

  • इंटर-जनरेशनल डायलॉग्स के माध्यम से नई पीढ़ी को लोकतंत्र के महत्व से जोड़ा गया।

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने देशभर के 50 प्रमुख स्थलों पर “लॉन्ग लिव डेमोक्रेसी प्रदर्शनी” के आयोजन का समन्वय भी किया, जो अगले कुछ हफ्तों तक आम जनता के लिए खुली रहेंगी।

संविधान हत्या दिवस की पृष्ठभूमि

25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा आपातकाल घोषित किया गया। इसका उद्देश्य राजनीतिक विरोध को दबाना और सरकार को असीमित अधिकार देना था। इस दौरान लाखों लोगों को बिना मुकदमा जेल में डाला गया, मीडिया पर कठोर सेंसरशिप लगी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी प्रभावित हुई।

भारत सरकार ने वर्ष 2024 में आधिकारिक रूप से 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में अधिसूचित किया ताकि यह दिन केवल स्मरण नहीं बल्कि लोकतंत्र की चेतना का केंद्र बन सके।

उपसंहार: लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प

संविधान हत्या दिवस का यह आयोजन महज एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक चेतावनी और प्रेरणा है। यह हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की रक्षा केवल सरकार या संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। कार्यक्रम के समापन पर उपस्थित जनसमूह ने संविधान के प्रति निष्ठा और लोकतंत्र की रक्षा के लिए संकल्प लिया।

“हम संविधान की रक्षा करेंगे, उसकी आत्मा को जीवित रखेंगे और कभी भी तानाशाही प्रवृत्तियों को पनपने नहीं देंगे।”

भारत के लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं, लेकिन उनकी रक्षा के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं। संविधान हत्या दिवस न केवल अतीत की गलतियों से सबक लेने का दिन है, बल्कि एक ऐसा क्षण है जब पूरा देश मिलकर लोकतंत्र की मशाल को आगे बढ़ाता है।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *