“विरासत और विकास” — यह वाक्य अब मात्र एक सरकारी नारा नहीं, बल्कि भारत की समग्र विकास यात्रा का मार्गदर्शक सिद्धांत बन चुका है। बीते 11 वर्षों में भारत ने जिस तेजी से आधुनिक संरचनाओं, तकनीकी प्रगति और वैश्विक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, उसी गंभीरता और समर्पण से देश की सांस्कृतिक धरोहरों, ऐतिहासिक स्मारकों और परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन भी सुनिश्चित किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि आधुनिक भारत का निर्माण केवल कंक्रीट और तकनीक पर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना, ऐतिहासिक आत्मबोध और राष्ट्रीय अस्मिता पर आधारित होगा। इसी कारण भारत की विकास गाथा आज एक अद्वितीय उदाहरण बन चुकी है, जहां विरासत और विकास एक-दूसरे के पूरक बनकर चल रहे हैं।
अतीत की शक्ति से भविष्य का निर्माण
भारत की पहचान सदियों से उसकी सभ्यता, आध्यात्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक विविधता से रही है। सिंधु घाटी से लेकर आधुनिक लोकतंत्र तक, भारत का हर युग किसी न किसी सांस्कृतिक उपलब्धि से जुड़ा रहा है। इसी ऐतिहासिक गर्व को आधार बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसे विकास मॉडल की नींव रखी है, जो केवल आर्थिक नहीं, बल्कि संवेदनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध हो।
संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014 से 2025 के बीच देश के 150 से अधिक ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण और पुनरुद्धार किया गया है। इनमें कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएँ हैं:
-
काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर, वाराणसी
-
केदारनाथ पुनर्निर्माण, उत्तराखंड
-
महाकाल लोक परियोजना, उज्जैन
-
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण
-
सोमनाथ मंदिर पुनरुद्धार और विकास
इन परियोजनाओं ने केवल धार्मिक महत्व नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था, पर्यटन, रोजगार और सांस्कृतिक गर्व को भी बढ़ाया है।
तकनीक और परंपरा का समन्वय: नया दृष्टिकोण
आज का भारत विरासत के संरक्षण में आधुनिक तकनीक का उपयोग कर एक नए युग की शुरुआत कर चुका है।
-
डिजिटल मैपिंग और 3D स्कैनिंग के माध्यम से ऐतिहासिक स्मारकों की डिजिटल संरक्षित प्रतिकृति तैयार की जा रही है।
-
वर्चुअल म्यूज़ियम और डिजिटल आर्काइविंग से आम जनता को घर बैठे भारत की कला, शिल्प और परंपराओं से जुड़ने का अवसर मिल रहा है।
-
राष्ट्रीय डिजिटल संग्रहालय अभियान के अंतर्गत अब तक 500 से अधिक संग्रहालयों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया गया है।
यह तकनीकी पहलें भारत को विरासत संरक्षण के वैश्विक मानकों की ओर अग्रसर कर रही हैं।
विश्व पटल पर भारत की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा
भारत की सांस्कृतिक कूटनीति भी पिछले एक दशक में बेहद सशक्त हुई है। संयुक्त राष्ट्र के UNESCO द्वारा भारत के 42 स्थलों को विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका है।
इनमें शामिल हैं:
-
अजंता की गुफाएं (महाराष्ट्र)
-
एलोरा की गुफाएं (महाराष्ट्र)
-
आगरा किला (उत्तर प्रदेश)
-
ताजमहल (उत्तर प्रदेश)
-
महाबलीपुरम स्मारक समूह (तमिलनाडु)
-
कोणार्क का सूर्य मंदिर (ओडिशा)
-
एलिफेंटा की गुफाएं (महाराष्ट्र)
-
फतेहपुर सीकरी (उत्तर प्रदेश)
-
हम्पी स्मारक समूह (कर्नाटक)
-
खजुराहो समूह (मध्य प्रदेश)
-
एलोरा की गुफाएं (दोहरे सूचीबद्ध)
-
बुद्ध स्मारक, सांची (मध्य प्रदेश)
-
चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्विक उद्यान (गुजरात)
-
भीमबेटका रॉक शेल्टर्स (मध्य प्रदेश)
-
कुतुब मीनार (दिल्ली)
-
लाल किला परिसर (दिल्ली)
-
हम्पी मंदिर परिसर (दोहरे सूचीबद्ध)
-
महाबोधि मंदिर (बोधगया, बिहार)
-
रानी की वाव (गुजरात)
-
विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको एन्सेम्बल्स (मुंबई)
-
जैसलमेर किला (राजस्थान)
-
जयपुर शहर (राजस्थान)
-
काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा मंदिर, तेलंगाना)
-
दरियागंज पुस्तक बाजार (नई दिल्ली) — प्रस्तावित
-
दखिनी सुल्तानात स्मारक समूह (बीदर, कर्नाटक)
-
धोलावीरा: सिंधु घाटी सभ्यता स्थल (गुजरात)
-
संतों की परंपरा से जुड़े स्थल (महाराष्ट्र)
-
शिव मंदिर, गजपतिपुरम (ओडिशा) — प्रस्तावित
-
अमृतसर का स्वर्ण मंदिर (प्रस्तावित)
-
वाराणसी सांस्कृतिक लैंडस्केप (प्रस्तावित)
-
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर (अयोध्या, प्रस्तावित)
-
वारंगल किला और मंदिर समूह (तेलंगाना)
-
गोवा के चर्च और मठ
-
नालंदा विश्वविद्यालय अवशेष (बिहार)
हाल ही में सरकार ने काशी, उज्जैन और पुरी को एक धार्मिक सांस्कृतिक विरासत सर्किट के रूप में विकसित करने की दिशा में काम शुरू किया है, जो न केवल भारत के श्रद्धालु नागरिकों, बल्कि वैश्विक पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं।
सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास
केंद्र सरकार ने सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
-
देखो अपना देश
-
एक भारत श्रेष्ठ भारत
-
स्वदेश दर्शन योजना
-
प्रसाद योजना
इन योजनाओं का उद्देश्य न केवल देशवासियों को अपनी संस्कृति और इतिहास से जोड़ना है, बल्कि स्थानीय पर्यटन को विकसित कर आर्थिक गतिविधियों और रोजगार को भी गति देना है।
अब भारत के विभिन्न राज्यों में स्कूलों और कॉलेजों के माध्यम से स्थानीय भाषा, लोकनाट्य, हस्तशिल्प, पारंपरिक संगीत और खानपान से युवाओं को जोड़ने के लिए विविध कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
शहरीकरण में विरासत की छाया
भारत के शहरी विकास मिशनों में भी विरासत संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है। ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ के अंतर्गत ऐसे डिज़ाइन तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें स्थानीय स्थापत्य, धार्मिक आस्थाएं, और ऐतिहासिक दृष्टिकोण को शामिल किया गया है।
उदाहरण:
-
काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना, जिसमें तीर्थ यात्रियों के लिए आधुनिक सुविधाएं विकसित की गईं, लेकिन मंदिर की परंपरा को यथावत रखा गया।
-
इंदौर का राजवाड़ा क्षेत्र, जहां पारंपरिक भवनों का पुनर्निर्माण स्मार्ट सुविधाओं के साथ हुआ।
-
जयपुर, जिसे उसके स्थापत्य के अनुरूप स्मार्ट शहर के रूप में उन्नत किया जा रहा है।
इस प्रकार शहरीकरण और विरासत संरक्षण एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि सहचर बन चुके हैं।
नव भारत का सांस्कृतिक आत्मबोध
भारत की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा आज विश्व पटल पर एक नई ऊंचाई पर है। इसके प्रमाण हैं:
-
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का वैश्विक स्तर पर आयोजन
-
गंगा आरती और कुम्भ मेले को यूनेस्को द्वारा मान्यता
-
भारतीय परिधान, हस्तशिल्प और व्यंजन को वैश्विक मंचों पर सम्मान
-
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय मुद्रा में कमल का प्रतीक, नेताओं की ध्यान मुद्रा में तस्वीरें, और संस्कृत मंत्रों का उच्चारण
प्रधानमंत्री मोदी स्वयं विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय संस्कृति को गर्व के साथ प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने अनेक अवसरों पर यह दोहराया है:
“भारत के विकास का मार्ग उसकी संस्कृति की आत्मा से होकर ही जाता है।”
जनभागीदारी और संस्कृति का मिलन
भारत की सांस्कृतिक विरासत केवल सरकार की संपत्ति नहीं है, बल्कि यह जनता की सहभागिता से जीवंत रहती है। इसी को ध्यान में रखते हुए:
-
कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत विरासत स्थलों के संरक्षण में निजी संस्थाओं की भागीदारी बढ़ रही है।
-
एनजीओ और स्वयंसेवी संगठनों को स्मारक दत्तक योजना (Adopt-a-Heritage) के तहत जोड़ा गया है।
-
स्कूलों और कॉलेजों में हेरिटेज वॉक, लोकगीत सप्ताह, और इतिहास उत्सव जैसे आयोजन नियमित हो रहे हैं।
इस तरह भारत की संस्कृति सिर्फ स्मारकों तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवनशैली, शिक्षण और व्यवहार का अभिन्न हिस्सा बन रही है।
निष्कर्ष: विरासत और विकास का अद्वितीय संगम
भारत ने बीते दशक में यह प्रमाणित कर दिया है कि परंपरा और प्रगति एक ही रथ के दो पहिए हैं। एक ओर जहां देश की अर्थव्यवस्था, रक्षा, विज्ञान और तकनीक तेज़ी से आगे बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर धरोहरों का संरक्षण, संस्कृति का पोषण और इतिहास का सम्मान भी उसकी प्राथमिकता में बना हुआ है।