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MPअस्पताल में फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट का खुलासा NHRC ने दी कड़ी अनुशंसाएं, सात मौतों पर मुआवज़ा

दिनांक :08.07.2025|Koto News|KotoTrust|Bhopal|MP|AyushmanBharat|MPNews|

संवाददाता भोपाल : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मध्य प्रदेश के दमोह जिले के मिशन अस्पताल में सामने आए फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट के गंभीर मामले में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं और राज्य सरकार समेत केंद्र सरकार को तत्काल कार्रवाई के लिए सख्त अनुशंसाएं दी हैं। आयोग की जांच में यह सामने आया कि अस्पताल में बिना योग्यता और प्रमाणिकता के एक कथित डॉक्टर ने कार्डियोलॉजिस्ट बनकर सात मरीजों का इलाज किया, जिनकी बाद में मृत्यु हो गई।

आयोग ने इस मामले को “मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन” बताते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान करे और अस्पताल के लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से निलंबित करे। साथ ही, केंद्र सरकार को देशभर में कार्यरत कैथ लैब्स की समीक्षा करने और आयुष्मान भारत योजना के दुरुपयोग की गहन जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं।

28 मार्च 2025 को दर्ज की गई शिकायत के आधार पर NHRC ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। आयोग ने अपनी स्वतंत्र जांच के साथ-साथ राज्य सरकार और जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी। जांच में यह पाया गया कि दमोह स्थित मिशन अस्पताल में एक फर्जी हृदय रोग विशेषज्ञ ने कार्डियोलॉजिस्ट के तौर पर काम किया और सात रोगियों की जान चली गई। यह न केवल चिकित्सकीय लापरवाही का मामला है, बल्कि सीधे तौर पर जनता के विश्वास और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के प्रति अपराध भी है।

NHRC की अनुशंसाओं के अनुसार, मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह पीड़ितों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए की अनुग्रह राशि दे और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। आयोग ने इस अस्पताल का लाइसेंस मामले के अंतिम निपटारे तक के लिए रद्द करने की सिफारिश की है। इसके अलावा सभी कैथ लैब्स और वहां कार्यरत डॉक्टरों की योग्यता की भी तत्काल जांच करवाई जाए।

आयोग ने यह भी पूछा है कि क्या अस्पताल ने बीमा करवाया था और यदि हां, तो क्या मृतकों के उत्तराधिकारियों को बीमा राशि प्रदान की गई है? इसके साथ ही यह जानकारी भी मांगी गई है कि मरीजों की सर्जरी, उनके मेडिकल इतिहास, संबंधित परीक्षणों और संभावित जोखिमों से जुड़े विवरण क्या सीएमएचओ (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी) दमोह के साथ साझा किए गए थे?

जांच में यह भी सामने आया कि जिस भूमि पर मिशन अस्पताल बना है (प्लॉट नंबर 86/1), उस पर पट्टा, हस्तांतरण और निर्माण प्रक्रिया में भी कई अनियमितताएं पाई गई हैं। आयोग ने इस संबंध में दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई शुरू करने की सिफारिश की है।

NHRC ने पुलिस महानिदेशक, मध्य प्रदेश को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वह अस्पताल प्रबंधन और फर्जी डॉक्टर के खिलाफ अलग-अलग एफआईआर दर्ज करे। इसमें गैर-इरादतन हत्या, धोखाधड़ी, जालसाजी, चिकित्सकीय लापरवाही, कदाचार और धन की हेराफेरी जैसे गंभीर आरोपों को शामिल किया जाए। इसके अलावा, जांच में लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जाए।

मामले की गंभीरता को देखते हुए NHRC ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है कि शिकायतकर्ताओं—जिन्होंने इस आपराधिक सिंडिकेट को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई—को व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट, 2014 के तहत पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाए।


NHRC ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जिन सात मरीजों की मृत्यु अस्पताल में फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट द्वारा इलाज के दौरान हुई, उनके परिजनों को राज्य सरकार तत्काल 10-10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान करे। यह सहायता केवल मानवीय आधार पर नहीं, बल्कि गंभीर प्रशासनिक और चिकित्सकीय लापरवाही की भरपाई मानी जानी चाहिए।


जब तक मामले की पूर्ण जांच नहीं हो जाती और जिम्मेदार पक्षों को दंड नहीं मिल जाता, तब तक अस्पताल को कार्य करने की अनुमति देना जन स्वास्थ्य के लिए सीधा खतरा होगा। आयोग ने लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश करते हुए कहा कि इससे अन्य संस्थानों के लिए भी एक कड़ा संदेश जाएगा।


आयोग ने इस बात पर चिंता जताई कि अस्पताल में कार्यरत अन्य डॉक्टरों की योग्यता और लाइसेंस की वैधता की भी जाँच होनी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि कोई भी चिकित्सक कैथ लैब या किसी भी तकनीकी चिकित्सा सुविधा में बिना प्रमाणित प्रशिक्षण और अनुभव के कार्य न कर रहा हो।


आयोग ने पाया कि जिला स्वास्थ्य और पुलिस प्रशासन की ओर से इस मामले में लापरवाही हुई है। इसलिए आयोग ने इन अधिकारियों के खिलाफ विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई और जवाबदेही तय करने की सिफारिश की है।


अस्पताल जिस भूमि पर बना है (प्लॉट नं. 86/1), उस पर पट्टा, हस्तांतरण और निर्माण के मामले में नियमों का उल्लंघन पाया गया है। आयोग ने नगर निगम, जिला प्रशासन और राजस्व विभाग से संयुक्त जांच कराकर दोषी अधिकारियों और अस्पताल प्रबंधन पर विधिक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।


आयोग ने इस पूरे कांड को एक “सुनियोजित आपराधिक कृत्य” करार दिया और आदेश दिया कि आरोपियों के खिलाफ अलग-अलग एफआईआर दर्ज कर के IPC की धाराओं में गैर इरादतन हत्या (धारा 304), धोखाधड़ी (420), कदाचार, आपराधिक षड्यंत्र और चिकित्सकीय लापरवाही जैसे आरोप लगाए जाएं।


यह आशंका जताई गई है कि अस्पताल ने सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत अनधिकृत लाभ उठाया। आयोग ने आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) और मुख्य आयकर आयुक्त (छूट), भोपाल के माध्यम से इस कथित दुरुपयोग की विस्तृत जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।


आयोग ने कहा कि ऐसी त्रासदी देश के किसी भी कोने में दोहराई न जाए, इसके लिए केंद्रीय स्तर पर सभी राज्यों की कैथ लैब्स का तकनीकी और नियामक ऑडिट कराया जाना अनिवार्य है।


NHRC ने स्पष्ट किया है कि जिन व्यक्तियों ने इस घोटाले को उजागर किया, उन्हें “व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट 2014” के अंतर्गत पूर्ण सुरक्षा और गोपनीयता दी जानी चाहिए। यह भविष्य में अन्य लोगों को भी भ्रष्टाचार और लापरवाही के खिलाफ बोलने के लिए प्रेरित करेगा।

केंद्र सरकार को निर्देशित किया गया है कि वह सभी राज्यों के स्वास्थ्य विभागों को आदेश जारी करे ताकि वे अपने-अपने क्षेत्रों में संचालित कैथ लैब्स की संरचनात्मक, तकनीकी और परिचालन जांच कराएं। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि प्रयोगशालाएं किसी भी झूठे विशेषज्ञ या बगैर मान्यता प्राप्त कर्मचारियों द्वारा संचालित न हों।


आयोग ने सुझाव दिया कि एक केंद्रीय एजेंसी को यह दायित्व सौंपा जाए कि वह आयुष्मान भारत योजना के तहत संचालित सभी अस्पतालों की वित्तीय लेन-देन और लाभार्थियों के रिकॉर्ड का विस्तृत ऑडिट कर संभावित धोखाधड़ी की पहचान करे।


इस घोटाले में धनशोधन, विदेशी चंदा के दुरुपयोग और टैक्स छूट के गलत प्रयोग की भी आशंका जताई गई है। इसीलिए NHRC ने केंद्र को निर्देशित किया कि वह इस मामले की बहु-स्तरीय जांच में इन एजेंसियों की विशेषज्ञता का लाभ उठाए।

 

NHRC ने स्पष्ट किया है कि सभी अनुशंसित कार्रवाई चार सप्ताह के भीतर पूरी की जाए और इसकी विस्तृत रिपोर्ट आयोग को भेजी जाए। यह एक समयबद्ध जवाबदेही तय करने की कोशिश है ताकि न्याय प्रक्रिया अनिश्चितकालीन न बने।


इस पूरे प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए, आयोग ने सुझाव दिया है कि राज्य सरकार इस मामले की न्यायिक जांच किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश या आयोग के वरिष्ठ सदस्य के नेतृत्व में करवाए। इससे निष्पक्षता और पारदर्शिता बनी रहेगी।


यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि मिशन अस्पताल या उससे संबद्ध किसी अन्य संस्था ने राज्य के अन्य जिलों में भी इसी प्रकार की गतिविधियां तो नहीं की हैं। राज्य सरकार को इसके सभी नेटवर्क की समीक्षा करने का निर्देश दिया गया है।

Source : PIB

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