
राजस्थान की डिजिटल क्रांति: “राजधरा पोर्टल” से पारदर्शिता और दक्षता को मिलेगा बढ़ावा
दिनांक : 10 .07.2025 | Koto News | KotoTrust |Rajasthan News|
राजस्थान सरकार ने खनन और खनिज संसाधनों के समुचित प्रबंधन को पारदर्शी, सुलभ और तकनीकी रूप से उन्नत बनाने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य के खान, भूविज्ञान एवं पेट्रोलियम विभाग के प्रमुख सचिव श्री टी. रविकान्त ने खनिज भवन, जयपुर में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में यह घोषणा की कि अब राज्य के सभी खनिज ब्लॉकों, प्लॉटों, संभावित खनिज भंडारों से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी “राजधरा पोर्टल” पर आमजन के लिए सुलभ कराई जाएगी।
इस योजना को भारत सरकार के “प्रधानमंत्री गतिशक्ति पोर्टल” से भी समन्वित किया जाएगा ताकि राज्य में निवेश, बुनियादी ढांचा और परियोजनाओं की योजना-निर्माण में व्यापक सहयोग और तकनीकी एकरूपता लाई जा सके। प्रमुख सचिव श्री रविकान्त ने कहा कि इस पहल से राज्य के खनन क्षेत्र को नई दिशा मिलेगी और राजस्थान को देश के खनन मानचित्र पर अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा के मार्गदर्शन में, माइनिंग सेक्टर में रोजगार, निवेश और राजस्व वृद्धि को प्राथमिकता दी जा रही है। यह डिजिटल समन्वय इसी दिशा में उठाया गया रणनीतिक कदम है।
इस बैठक में खान विभाग के निदेशक श्री दीपक तंवर, अतिरिक्त निदेशक भूविज्ञान श्री आलोक प्रकाश जैन और सूचना एवं प्रोद्योगिकी विभाग (डीओआईटी) की राजधरा टीम के अधिकारियों के साथ संयुक्त समीक्षा की गई। श्री रविकान्त ने बताया कि आगामी दो से तीन माह में यह पूरी प्रणाली लागू कर दी जाएगी।
इस क्रियान्वयन की निगरानी हेतु खान विभाग के श्री आलोक प्रकाश जैन और डीओआईटी की वरिष्ठ अधिकारी श्रीमती श्वेता सक्सेना को संयुक्त समन्वयक नियुक्त किया गया है, जो प्रत्येक सप्ताह प्रगति रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करेंगे।
प्रमुख सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि समस्त जानकारी एकीकृत, अद्यतन और सटीक रूप में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराई जाए जिससे कोई जानकारी छुपी न रहे और संभावित निवेशक या खनन अनुज्ञाधारी उसे आसानी से समझ सकें।
प्रमुख सचिव श्री रविकान्त ने जानकारी दी कि राजधरा पोर्टल पर खनिज संपदा को तीन प्रमुख स्तरों पर दर्शाया जाएगा—
प्रमुख खनिज (Major Minerals)
गौण खनिज (Minor Minerals)
बजरी खनिज (Sand & Gravel)
इसके अलावा, पोर्टल यह भी दर्शाएगा कि कोई खनिज ब्लॉक या प्लॉट वन क्षेत्र, चारागाह भूमि या संरक्षित क्षेत्र से प्रभावित तो नहीं है। इससे सरकार को विकास परियोजनाओं, जैसे सड़क, रेलवे, औद्योगिक क्षेत्र आदि के लिए भूमि चिन्हांकन करते समय खनिज क्षेत्रों से टकराव रोकने में सहायता मिलेगी।
प्रणाली से “ओवरलेपिंग” की संभावनाएं न्यूनतम होंगी, और विभिन्न विभागों के बीच बेहतर समन्वय से योजनाएं अधिक व्यावहारिक व सटीक बनाई जा सकेंगी।
यह कदम राज्य के खनिज संसाधनों की दीर्घकालिक सतत विकास नीति में भी एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।
खान विभाग के निदेशक श्री दीपक तंवर ने जानकारी दी कि विभाग ने पहले से ही कई प्रक्रियाओं को चरणबद्ध तरीके से ऑनलाइन किया है।
उन्होंने कहा, “खनन योजना (Mining Plan) की स्वीकृति और ‘नो ड्यूज सर्टिफिकेट’ की प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल किया जा चुका है। इसकी निगरानी संबंधित अधीक्षण खनि अभियंताओं को सौंपी गई है।”
विभाग अब खनिज आवंटन से लेकर पट्टा स्वीकृति तक की प्रक्रिया को डिजिटल ट्रैक पर लाने की तैयारी कर रहा है। इससे आवेदन प्रक्रिया तेज होगी, निर्णयों में पारदर्शिता आएगी और अनावश्यक देरी से बचा जा सकेगा।
उच्चस्तरीय बैठक में सूचना एवं प्रोद्योगिकी विभाग के तकनीकी निदेशक श्री अप्रेश दुबे, उपनिदेशक श्री विनय कुमार, राजधरा टीम के सदस्य तथा खान विभाग के वरिष्ठ अधिकारी—श्री महेश माथुर, श्री पी.आर. आमेटा, श्री एम.पी. मीणा, श्री गोपालाराम और वित्तीय सलाहकार श्री गिरिश कछारा सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।
डीओआईटी की टीम ने विश्वास दिलाया कि दो से ढाई माह की अवधि में यह तकनीकी एकीकरण और डिजिटलीकरण कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया जाएगा।
राज्य सरकार इस पूरी प्रक्रिया की नियमित मॉनिटरिंग करेगी और पोर्टल की टेस्टिंग, फीडबैक तथा सुधार के लिए एक स्थायी निगरानी तंत्र भी विकसित किया जाएगा।
राजस्थान देश का खनिज दृष्टि से सर्वाधिक समृद्ध राज्यों में से एक है। यहाँ भूवैज्ञानिक दृष्टि से विविध प्रकार की संरचनाएं पाई जाती हैं, जिसके चलते अब तक 81 से अधिक प्रकार के खनिजों की पहचान की जा चुकी है। इनमें से जिंक (Zinc), लेड (Lead), लाइमस्टोन (चूना पत्थर), मार्बल (संगमरमर), ग्रेनाइट, फेल्स्पार, फॉस्फेट, जिप्सम, वोलस्टोनाइट, डोलोमाइट, सिलिका सैंड आदि आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण खनिज हैं।
विशेष रूप से उदयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, नागौर, भीलवाड़ा, और झुंझुनूं जैसे जिले खनिज उत्पादन के हॉटस्पॉट के रूप में विकसित हो चुके हैं। राज्य की खनिज विविधता न केवल औद्योगिक कच्चे माल की आपूर्ति में अहम भूमिका निभाती है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है।
खनिज आधारित उद्योगों, खनन राजस्व और रोजगार सृजन के माध्यम से यह क्षेत्र राजस्थान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, खनिज क्षेत्र का राज्य की सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में योगदान लगभग 5.4 प्रतिशत रहा, जो दर्शाता है कि यह क्षेत्र न केवल प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का केंद्र है, बल्कि आर्थिक मजबूती का भी आधार है।
खनन से प्राप्त रॉयल्टी, नीलामी शुल्क, पट्टा शुल्क, और निर्यात से अर्जित आय राज्य सरकार के राजस्व में नियमित वृद्धि कर रही है। यह क्षेत्र राजस्थान की अर्थव्यवस्था के लिए ‘गति शक्ति’ का कार्य कर रहा है।
खनन क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 10 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। इसमें खनन मजदूर, ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर, मशीन संचालक, सर्वेयर, भूवैज्ञानिक, पर्यावरण विशेषज्ञ, सुरक्षा अधिकारी, तकनीकी इंजीनियर, और कार्यालय सहायक शामिल हैं।
इसके अलावा, इस क्षेत्र से जुड़े सहायक व्यवसाय जैसे स्टोन कटिंग यूनिट्स, पोलिशिंग इंडस्ट्री, ट्रांसपोर्टेशन कंपनियाँ, और ठेकेदार वर्ग को भी बड़े स्तर पर व्यावसायिक अवसर प्राप्त होते हैं। यह क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने में भी विशेष भूमिका निभाता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ अन्य औद्योगिक अवसर सीमित हैं।
राजस्थान का खनिज क्षेत्र निर्यात क्षमता के लिहाज से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ उत्पादित मार्बल, ग्रेनाइट, स्टोन स्लैब्स, कोटा स्टोन, और जिंक कंसंट्रेट की अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मांग निरंतर बढ़ रही है।
भारत के जिंक उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा राजस्थान से आता है, विशेषकर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की खानें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। मार्बल और ग्रेनाइट उत्पादों का निर्यात अमेरिका, इटली, यूएई, तुर्की, और चीन जैसे देशों में किया जा रहा है, जिससे विदेशी मुद्रा अर्जन में भी राजस्थान का योगदान उल्लेखनीय बनता है।
नवाचार, निवेश और संरक्षण का समन्वय
राज्य सरकार द्वारा लागू की गई “खनिज नीति 2024–29” राजस्थान को माइनिंग सेक्टर में देश का पथप्रदर्शक राज्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस नीति के अंतर्गत निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष बल दिया गया है—
ई-नीलामी प्रणाली का विस्तार:
सभी प्रकार के खनिज ब्लॉकों के लिए पारदर्शी ई-नीलामी को अनिवार्य बनाया गया है, जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो और प्रतिस्पर्धी निवेश को बढ़ावा मिले।
निजी निवेश को प्रोत्साहन:
खनन क्षेत्र में निजी कंपनियों, विदेशी निवेशकों और MSME सेक्टर को आकर्षित करने के लिए अनुकूल नीति, सब्सिडी, और संरचनात्मक सहयोग प्रदान किया जाएगा।
पर्यावरणीय संतुलन:
खनन कार्यों में ईको-फ्रेंडली तकनीक, री-क्लेमेशन प्लान, और ईआईए (पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन) की अनिवार्यता सुनिश्चित की गई है, जिससे सतत खनन की दिशा में राज्य अग्रसर हो।
टेक्नोलॉजी आधारित निगरानी:
ड्रोन मैपिंग, सैटेलाइट इमेजिंग, और जीआईएस (GIS) आधारित मॉनिटरिंग से अवैध खनन को नियंत्रित किया जाएगा।
स्थानीय समुदाय का सशक्तिकरण:
खनन प्रभावित क्षेत्रों में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी जा रही है।
Source : DIPR