भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 345 आरयूपीपी को सूची से हटाने की प्रक्रिया

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 345 आरयूपीपी को सूची से हटाने की प्रक्रिया

भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद राजनीतिक दलों पर टिकी है। चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता, पारदर्शिता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India – ECI) समय-समय पर आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाता रहा है। इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, 26 जून 2025 को आयोग ने देशभर के विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से संबंधित 345 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (Registered Unrecognized Political Parties – RUPPs) को सूची से हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की है। यह वे राजनीतिक दल हैं जिन्होंने 2019 से अब तक किसी भी लोकसभा, विधानसभा या उपचुनाव में भाग नहीं लिया है और जिनका कोई स्पष्ट भौतिक या प्रशासनिक अस्तित्व नहीं पाया गया है।

यह रिपोर्ट इस निर्णय की पृष्ठभूमि, प्रक्रिया, कानूनी आधार, राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव, संभावित विवाद, विशेषज्ञ दृष्टिकोण और आगे की दिशा पर विस्तृत प्रकाश डालती है।

1. आरंभिक संदर्भ और ईसीआई की भूमिका: भारत निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित एक स्वायत्त निकाय है, जिसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने का दायित्व सौंपा गया है। देश में लगभग 2800 से अधिक आरयूपीपी पंजीकृत हैं, जिनमें से कई वर्षों से निष्क्रिय हैं और केवल कागजों में ही मौजूद हैं। ऐसी पार्टियों का पंजीकरण बनाए रखने से न केवल संसाधनों का दुरुपयोग होता है, बल्कि कर छूट और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की भावना को भी क्षति पहुँचती है।

कानूनी आधार: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29A

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए कानूनी आधार प्रदान करती है। इसके अंतर्गत कोई भी दल भारत के निर्वाचन आयोग के साथ निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाकर पंजीकरण प्राप्त कर सकता है:

  • दल का संविधान, उद्देश्य और कार्यपद्धति का विवरण;

  • संगठन की संरचना और पदाधिकारियों की सूची;

  • सदस्यता की शर्तें और पारदर्शिता की गारंटी;

  • राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी का संकल्प।

पंजीकरण के लाभ:

एक बार आयोग के साथ पंजीकृत होने के बाद राजनीतिक दल को कई संवैधानिक और वित्तीय लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे:

  1. आयकर अधिनियम के तहत कर छूट – पंजीकृत दल आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A के अंतर्गत कर छूट प्राप्त करते हैं;

  2. चुनाव चिन्ह की मांग का अधिकार – चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के तहत एक विशेष चिन्ह पाने का अधिकार;

  3. वैधानिक पहचान – चुनावों में मान्यता और प्रचार के लिए मान्यता प्राप्त दर्जा;

  4. चुनावी फंडिंग में भागीदारी – पारदर्शी चुनावी खर्च और कॉर्पोरेट डोनेशन प्राप्त करने की सुविधा।

इन लाभों का उद्देश्य: केवल उन दलों को ये अधिकार देने का था जो लोकतंत्र को मजबूत करने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं, न कि नाममात्र के लिए पंजीकृत होकर निष्क्रिय या अवैधानिक गतिविधियों में लिप्त संगठनों को।


ईसीआई की पहचान और सत्यापन प्रक्रिया

हाल के वर्षों में आयोग ने यह पाया कि अनेक राजनीतिक दल केवल कागजों पर अस्तित्व में हैं और न तो चुनावों में भाग लेते हैं, न ही कोई वैधानिक गतिविधि करते हैं। कई मामलों में ऐसे दलों का दुरुपयोग काले धन को वैध बनाने, कर चोरी, या अवैध चंदा लेने जैसे कार्यों में हो रहा था। ऐसे में आयोग ने एक राष्ट्रव्यापी डेटा-संचयन एवं सत्यापन अभियान चलाया।

इस अभियान के मुख्य चरण निम्नलिखित रहे:

1. समग्र सूची निर्माण

सभी पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (Registered Unrecognised Political Parties – RUPPs) की समग्र सूची तैयार की गई। यह संख्या लगभग 2859 के आसपास थी।

2. 2019 के बाद चुनावी भागीदारी की समीक्षा

इन दलों में से किन-किन ने 2019 के लोकसभा चुनाव या बाद के विधानसभा चुनावों में भाग लिया, इसकी समीक्षा की गई।

3. स्थानीय स्तर पर फील्ड रिपोर्टिंग

भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचन अधिकारियों (CEO) और जिलाधिकारियों से भौतिक सत्यापन रिपोर्ट मंगवाई गई – जिसमें यह जांचा गया कि संबंधित दल का कार्यालय, संगठनात्मक गतिविधियां या कोई राजनीतिक कार्यक्रम अस्तित्व में हैं या नहीं।

4. ईमेल व डाक द्वारा सूचना मांगना

आयोग ने संबंधित दलों को संपर्क कर अद्यतन जानकारी देने, वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने और चुनावी भागीदारी का रिकॉर्ड उपलब्ध कराने के लिए नोटिस जारी किए। जो दल उत्तर देने में विफल रहे, उन्हें संदिग्ध माना गया।

5. शून्य गतिविधियों वाले दलों की पहचान

जिन दलों के खिलाफ न कोई गतिविधि पाई गई, न ही उन्होंने नोटिस का उत्तर दिया, उन्हें प्रारंभिक तौर पर निष्क्रिय घोषित किया गया और उनके खिलाफ अगली कार्यवाही की सिफारिश की गई।

4. नोटिस एवं सुनवाई प्रक्रिया: 345 आरयूपीपी को सूची से हटाने से पहले उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिया गया है। इसके लिए संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (Chief Electoral Officers – CEOs) को कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) जारी करने का निर्देश दिया गया। इन नोटिसों में संबंधित दलों से यह स्पष्ट करने को कहा गया है कि क्यों न उन्हें आयोग की सूची से हटाया जाए।

यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी दल को बिना उचित प्रक्रिया के बाहर न किया जाए। सभी दलों को प्रमाण सहित जवाब देने और दस्तावेज प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाएगा। यदि संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता है, तो अंतिम निर्णय भारत निर्वाचन आयोग द्वारा लिया जाएगा।

5. निष्क्रिय राजनीतिक दलों के खतरे:

  • आर्थिक दुरुपयोग: ऐसे दल आयकर अधिनियम की छूट का दुरुपयोग कर सकते हैं।
  • राजनीतिक काले धन की संभावना: शेल पार्टियों की तरह इनका उपयोग फंड ट्रांसफर और हवाला जैसे तरीकों के लिए हो सकता है।
  • प्रचार और पहचान का दुरुपयोग: असली चुनावों में भ्रम पैदा करने हेतु इन पार्टियों के नामों, प्रतीकों का गलत इस्तेमाल हो सकता है।

6. राजनीतिक व्यवस्था की शुद्धता: यह कदम राजनीतिक व्यवस्था की सफाई के संदर्भ में मील का पत्थर है। इससे यह संकेत जाता है कि केवल वही पार्टियाँ लोकतंत्र में टिकेंगी, जो सक्रिय हों, जवाबदेह हों और जिनका जनता से जुड़ाव हो। यह लोकतंत्र की गुणवत्ता को मजबूत करता है।

7. विशेषज्ञ दृष्टिकोण:

  • चुनाव विशेषज्ञ: आयोग का यह कदम बिल्कुल समयानुकूल और प्रशंसनीय है। यह निष्क्रिय दलों की सफाई कर लोकतंत्र की मजबूती का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • राजनीतिक विश्लेषक: जब कोई पार्टी चुनाव नहीं लड़ती, न उसका जनाधार होता है और न ही सार्वजनिक गतिविधियाँ, तब उसका अस्तित्व बनाए रखना केवल संसाधनों की बर्बादी है।
  • वित्तीय विश्लेषक: यह कदम कर प्रणाली की पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा और कर छूट के दुरुपयोग को रोकने में सहायक होगा।

8. आलोचनाएँ और चुनौतियाँ:

  • कुछ आलोचकों का मानना है कि कई छोटी क्षेत्रीय पार्टियाँ केवल स्थानीय निकायों तक सीमित होती हैं और वे विधानसभा/लोकसभा चुनाव नहीं लड़तीं। ऐसे में केवल चुनाव में भाग न लेने के आधार पर उन्हें सूची से हटाना अनुचित हो सकता है।
  • कई बार संसाधनों की कमी, नेतृत्व परिवर्तन या क्षेत्रीय संकट के कारण भी पार्टियाँ अस्थायी रूप से निष्क्रिय हो जाती हैं। ऐसे में आयोग को संतुलनपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

9. आगामी कार्यवाही: 345 पार्टियों के बाद, आयोग शेष आरयूपीपी की भी समीक्षा करेगा। यह अभियान चरणबद्ध रूप में चलेगा, और इस दौरान निम्नलिखित कार्य होंगे:

  • प्राप्त उत्तरों का विश्लेषण;
  • दस्तावेज़ों का सत्यापन;
  • फील्ड निरीक्षण;
  • अंतिम सूची का प्रकाशन।

10. निष्कर्ष: भारतीय निर्वाचन आयोग का यह निर्णय लोकतंत्र को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे निष्क्रिय, केवल कागज़ी अस्तित्व वाले राजनीतिक दलों का सफाया होगा, और केवल वे ही संगठन चुनावी प्रक्रिया में भाग लेंगे जो सक्रिय, संगठनात्मक रूप से सक्षम और जनता से जुड़े हुए हैं।

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