नेपाल के प्रधानमंत्री माननीय केपी शर्मा ओली ने देश की ऊर्जा और औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए दो अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजनाओं — दैलेख गैस निष्कर्षण और धौवादी लौह एवं इस्पात उत्पादन — की प्रगति की समीक्षा की। यह समीक्षा बैठक प्रधानमंत्री कार्यालय सिंहदरबार में आयोजित की गई, जिसमें उद्योग, वाणिज्य तथा आपूर्ति मंत्रालय, ऊर्जा मंत्रालय, खनन विभाग, और राष्ट्रिय योजना आयोग सहित विभिन्न उच्चस्तरीय अधिकारियों ने भाग लिया।
दैलेख गैस परियोजना: ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर
बैठक में प्रधानमंत्री ओली को जानकारी दी गई कि दैलेख में पाए गए मीथेन गैस भंडार का परीक्षण कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो चुका है और अब निष्कर्षण की तैयारी प्रारंभ हो रही है। वैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार, दैलेख में उपस्थित गैस भंडार वाणिज्यिक उपयोग के योग्य है और इससे घरेलू गैस आवश्यकताओं को काफी हद तक पूरा किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ओली ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि “एक वर्ष के भीतर दैलेख से निकलने वाली मीथेन गैस को उपयोग के लिए तैयार किया जाए।” उन्होंने बल देते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन योजनाबद्ध, वैज्ञानिक और समयबद्ध ढंग से किया जाना चाहिए ताकि नेपाल को एलपीजी आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़े। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यदि यह परियोजना सफल होती है, तो यह दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों के लिए ऊर्जा की स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित करेगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गतिशील बनाएगी।
धौवादी लौह अयस्क परियोजना: नेपाल में इस्पात उत्पादन का नया युग
बैठक का दूसरा प्रमुख केंद्र बिंदु रहा — धौवादी लौह अयस्क परियोजना। गंडकी प्रदेश स्थित धौवादी क्षेत्र में हाल के वर्षों में अत्यधिक संभावनाशील लौह अयस्क के भंडार पाए गए हैं। यह परियोजना नेपाल की अब तक की सबसे बड़ी खनन पहल मानी जा रही है।
प्रधानमंत्री ओली ने निर्देश दिया कि “विक्रम संवत 2085 (ईस्वी सन् 2028-29) से पहले इस क्षेत्र से लौह और इस्पात का उत्पादन, विपणन और उपयोग शुरू हो जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि नेपाल में इस्पात का भारी आयात होता है, जो निर्माण क्षेत्र पर आर्थिक बोझ डालता है। “यदि हम इस परियोजना को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करते हैं, तो हम देश को लौह और इस्पात के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना सकते हैं,” उन्होंने जोड़ा।
परियोजनाओं में पारदर्शिता और समन्वय पर विशेष जोर
प्रधानमंत्री ओली ने निर्देश दिया कि इन दोनों परियोजनाओं के कार्यान्वयन में समन्वय, दक्षता और पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसी भी स्तर पर देरी, भ्रष्टाचार या गलत प्रबंधन न होने पाए। प्रधानमंत्री ने दोनों परियोजनाओं में शामिल सभी मंत्रालयों, प्राधिकरणों और निजी क्षेत्र के संभावित साझेदारों से निरंतर संवाद बनाए रखने को भी कहा।
उन्होंने विशेष रूप से वातावरणीय प्रभाव अध्ययन, स्थानीय समुदायों की भागीदारी, तथा तकनीकी विशेषज्ञता को शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी परियोजना को जनसमर्थन और पारिस्थितिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ाया जाए।
राष्ट्रीय प्राथमिकता के तहत तीव्र क्रियान्वयन
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि दैलेख और धौवादी परियोजनाओं को राष्ट्रीय प्राथमिकता में शामिल किया जाएगा। इन पर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा प्रत्यक्ष निगरानी की जाएगी, और प्रत्येक तीन महीने पर समीक्षा बैठकें आयोजित होंगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि इन परियोजनाओं को सरकार की “स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने” की नीति के तहत देखा जाए और आवश्यक बजटीय तथा कानूनी सहायता प्रदान की जाए।
स्थानीय समुदायों और युवा शक्ति की भागीदारी
प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि इन परियोजनाओं को न केवल आर्थिक संसाधन के रूप में देखा जाए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि स्थानीय समुदायों को रोजगार और प्रशिक्षण के अवसर मिलें। “हमें इस अवसर का उपयोग स्थानीय युवाओं को खनन, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दक्ष बनाने के लिए करना चाहिए,” उन्होंने कहा।
निष्कर्ष
दैलेख और धौवादी की ये दोनों परियोजनाएं नेपाल की आर्थिक और औद्योगिक आत्मनिर्भरता की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। प्रधानमंत्री के स्पष्ट निर्देश और प्रतिबद्धता ने यह संकेत दे दिया है कि सरकार अब केवल योजनाओं पर बात नहीं करना चाहती, बल्कि ठोस क्रियान्वयन चाहती है। यदि समयबद्ध तरीके से इन परियोजनाओं को मूर्त रूप दिया जाता है, तो यह देश के आर्थिक विकास, रोजगार सृजन, और ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि सिद्ध हो सकती है।