Folk Art at Rashtrapati Bhavan : राष्ट्रपति भवन में लोक कला का संगम ‘कला उत्सव 2025’ में पारंपरिक कलाकारों को मिला राष्ट्रीय मंच
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Folk Art at Rashtrapati Bhavan : राष्ट्रपति भवन में लोक कला का संगम ‘कला उत्सव 2025’ में पारंपरिक कलाकारों को मिला राष्ट्रीय मंच

दिनांक : 25.07.2025 | Koto News | KotoTrust |

राष्ट्रपति भवन इन दिनों केवल प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र नहीं, बल्कि भारत की जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं का साक्षी स्थल भी बना हुआ है। 24 जुलाई, 2025 को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु से देश के पारंपरिक लोक, आदिवासी और जनजातीय कलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले 29 कलाकारों ने भेंट की। ये सभी कलाकार ‘कला उत्सव 2025’ के अंतर्गत आयोजित ‘आवासीय कलाकार कार्यक्रम’ के दूसरे संस्करण में भाग लेने हेतु 14 जुलाई से 24 जुलाई तक राष्ट्रपति भवन में आवासित रहे।

इन कलाकारों ने राष्ट्रपति भवन परिसर में रहकर अपने अद्वितीय कला रूपों का सृजन किया, जिनमें झारखंड की सोहराय चित्रकला, ओडिशा की पट्टचित्र कला और पश्चिम बंगाल की पटुआ चित्रकला प्रमुख हैं। यह कार्यक्रम भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और राष्ट्रपति सचिवालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। इस अवसर ने इन कलाकारों को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला प्रदर्शित करने का मंच दिया, बल्कि उनके कार्य को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक प्रेरक माध्यम भी सिद्ध हुआ।

कार्यक्रम के समापन समारोह में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने कलाकारों द्वारा बनाई गई कला कृतियों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया। उन्होंने कलाकारों की प्रतिभा और उनकी कलात्मक लगन की मुक्तकंठ से सराहना की। उन्होंने कहा, “भारत की पारंपरिक कलाएं न केवल सौंदर्य की प्रतीक हैं, बल्कि वे हमारे समाज की स्मृतियों, विश्वासों और सांस्कृतिक पहचान की संवाहक भी हैं। इन कलाकारों का कार्य हमारे देश की आत्मा से जुड़ा हुआ है।” उन्होंने कलाकारों को शुभकामनाएँ देते हुए उन्हें भविष्य में भी इसी निष्ठा से अपनी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया।

‘कला उत्सव 2025’ का यह आवासीय कार्यक्रम भारत की विविधतापूर्ण कलात्मक परंपराओं का उत्सव है। इस पहल के माध्यम से न केवल कला रूपों को संरक्षित किया जा रहा है, बल्कि उन कलाकारों को भी राष्ट्रीय मान्यता मिल रही है, जो पीढ़ियों से अपने कौशल को आत्मीयता के साथ निभा रहे हैं। इस वर्ष का संस्करण विशेष रूप से पूर्वी भारत की कलाओं पर केंद्रित रहा, जिससे झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित चित्रकला शैलियों को नया आयाम मिला।

कलाओं की झलक

सोहराय कला (झारखंड):
यह कला मुख्य रूप से संथाल और अन्य आदिवासी समुदायों द्वारा की जाती है। यह फसलों, प्रकृति, पशुओं और देवी-देवताओं के प्रति कृतज्ञता को रंगों और प्रतीकों के माध्यम से प्रकट करती है। आमतौर पर यह मिट्टी की दीवारों पर की जाती है, लेकिन इस उत्सव में इसे कैनवास पर सजीव किया गया।

पट्टचित्र (ओडिशा):
यह अत्यंत प्राचीन और धार्मिक विषयवस्तु पर आधारित चित्रकला है, जो पारंपरिक तौर पर कपड़े या ताड़पत्र पर बनाई जाती है। भगवान जगन्नाथ, राधा-कृष्ण और अन्य पुराणिक कथाओं को इसमें अत्यंत सूक्ष्मता और जीवंत रंगों में उकेरा जाता है।

पटुआ कला (पश्चिम बंगाल):
पटुआ चित्रकला को स्क्रॉल पेंटिंग के रूप में जाना जाता है, जिसमें चित्रों के साथ-साथ कलाकार गीतों के माध्यम से कथा का वाचन भी करते हैं। यह कला रूप सामाजिक संदेशों, धार्मिक कहानियों और ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाने का सशक्त माध्यम है।

इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले कई कलाकारों के लिए यह एक असाधारण अनुभव रहा। झारखंड की कलाकार सोनी हेम्ब्रम ने कहा, “पहली बार हमें देश की सर्वोच्च संस्था में अपनी कला को प्रदर्शित करने का अवसर मिला है। यहाँ आकर लगा कि हमारी मेहनत को पहचान मिल रही है।” ओडिशा से आए कलाकार माधव महापात्रा ने कहा, “यह सिर्फ कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि संस्कृति की आत्मा को संरक्षित करने की एक महत्त्वपूर्ण पहल है।”

पश्चिम बंगाल की मीनाक्षी पटुआ ने कहा कि यह मंच ग्रामीण महिला कलाकारों के लिए एक नई प्रेरणा बना है, जिससे वे अपनी कला को न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक ले जाने के लिए आत्मविश्वास से भर सकें।

संस्कृति मंत्रालय की पहल

भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय ‘कला उत्सव’ जैसे आयोजनों के माध्यम से पारंपरिक कलाओं को सशक्त बनाने और कलाकारों के लिए आर्थिक और सामाजिक अवसर प्रदान करने का प्रयास कर रहा है। इस पहल के तहत आवासीय कार्यक्रमों में कलाकारों को सामग्री, आवास, सम्मान राशि और प्रदर्शन का मंच प्रदान किया जाता है।

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आगामी वर्षों में इस कार्यक्रम का विस्तार अन्य राज्यों और कला रूपों तक किया जाएगा, ताकि भारत की हर कला शैली को संरक्षित कर उन्हें भावी पीढ़ी तक पहुँचाया जा सके।

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली
भारत की संवैधानिक और सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक राष्ट्रपति भवन इस आयोजन का प्रमुख केंद्र बना। राष्ट्रपति भवन का कला कक्ष, ऐतिहासिक आभा और सांस्कृतिक गरिमा से युक्त वातावरण में, लोक और पारंपरिक कलाकारों के लिए प्रेरणा और गौरव का मंच बना।

14 से 24 जुलाई, 2025
कुल 11 दिनों तक चला यह आवासीय कार्यक्रम, न केवल रचनात्मक सृजन के लिए एक अवकाश स्थल रहा, बल्कि यह संवाद, सहयोग और सांस्कृतिक समागम का मंच भी बना। इन दिनों के दौरान कलाकारों ने न केवल नई कलाकृतियाँ बनाई, बल्कि पारस्परिक अनुभव भी साझा किए।

झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल
पूर्वी भारत के सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तीन राज्यों से कलाकारों को आमंत्रित किया गया—

झारखंड से सोहराय कला के अद्भुत चित्रकार

ओडिशा से प्राचीन पट्टचित्र शैली के विशेषज्ञ

पश्चिम बंगाल से पटुआ कलाकार, जो चित्र और गीतों के माध्यम से कथाएँ सुनाते हैं
इन राज्यों के चयन ने स्थानीय कलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सोहराय, पट्टचित्र, पटुआ
इस आयोजन में तीन विशिष्ट पारंपरिक चित्रकला शैलियाँ प्रमुख रूप से प्रदर्शित की गईं:

सोहराय कला: झारखंड की यह आदिवासी चित्रकला फसलों, पशुओं और प्रकृति से प्रेरित होती है। पहले यह दीवारों पर बनाई जाती थी, अब कैनवास पर भी उकेरी जाती है।

पट्टचित्र: ओडिशा की यह चित्रकला शैली कपड़े या ताड़पत्र पर बनाई जाती है और इसमें धार्मिक कथाएँ प्रमुख होती हैं।

पटुआ कला: पश्चिम बंगाल की यह शैली चित्र और मौखिक गायन के माध्यम से कहानी कहने की परंपरा है, जिसे ‘स्क्रॉल पेंटिंग’ भी कहा जाता है। यह कला समाज में संदेश और संवाद का माध्यम भी रही है।

इस कार्यक्रम में कुल 29 पारंपरिक कलाकार शामिल हुए, जिनमें पुरुष और महिलाएँ दोनों शामिल थे। ये सभी कलाकार अपने-अपने क्षेत्रों में वर्षों से कार्यरत हैं और अपने समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखे हुए हैं। उन्हें इस आयोजन में रचना, संवाद और प्रदर्शनी के समवेत अवसर मिले।

पारंपरिक लोक और आदिवासी कलाओं को संरक्षित और प्रोत्साहित करना
यह कार्यक्रम भारत की विलुप्त होती लोक और आदिवासी कला शैलियों को पुनर्जीवित करने, उन्हें संरक्षित करने और समाज में उनकी स्वीकार्यता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया। साथ ही, इस मंच के माध्यम से युवा पीढ़ी को भी इन कलाओं की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया गया।

राष्ट्रपति द्वारा कलाकारों से व्यक्तिगत भेंट और प्रदर्शनी अवलोकन
इस आयोजन की सबसे विशिष्ट उपलब्धि यह रही कि भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने न केवल इन कलाकारों से व्यक्तिगत रूप से भेंट की, बल्कि उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियों की प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया। उन्होंने कलाकारों के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि भारत की आत्मा उसकी पारंपरिक कलाओं में बसती है। यह एक ऐतिहासिक क्षण था जब लोक और जनजातीय कला को सर्वोच्च संवैधानिक मंच से मान्यता प्राप्त हुई।

Source: PIB

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