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स्वास्थ्य केंद्र रास्ता के आभाव में महुआ डाबर गंगराई टोला कुशीनगर उत्तर प्रदेश

स्वास्थ्य केंद्र

स्वास्थ्य केंद्र

कुशीनगर कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जनपद के हाटा तहसील अंतर्गत महुआ डाबर गंगराई टोला की आबादी करीब 5000 है। वर्षों से यहां एक उपस्वास्थ्य केंद्र संचालित है, जो कागज़ों में तो क्रियाशील दिखता है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके ठीक उलट है। स्वास्थ्य सेवा का यह केंद्र यहां के लोगों के लिए वरदान की बजाय एक संघर्ष बन गया है। बुजुर्गों और बीमार ग्रामीणों को जब इलाज की ज़रूरत होती है तब यही रास्ता उनकी सबसे बड़ी बाधा बनता है। एंबुलेंस चालक भी इस मार्ग पर जाने से मना कर देते हैं। कई बार मरीजों को चारपाई पर लादकर या ट्रैक्टर से लाकर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाना पड़ता है। स्थानीय निवासी श्रीमती रीता देवी कहती हैं, “जब डिलीवरी का समय आता है तो हम डर जाते हैं कि सड़क के कारण कहीं अस्पताल न पहुंच पाने से जान न चली जाए।

उपस्वास्थ्य केंद्र की स्थिति भी बहुत दयनीय है। भवन जर्जर हो चुका है, न तो नियमित रूप से एएनएम आती हैं, और न ही जरूरी दवाइयों का स्टॉक रहता है। ग्रामीण बताते हैं कि कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन ना तो जनप्रतिनिधियों ने और ना ही स्वास्थ्य विभाग ने ठोस कदम उठाया। सिर्फ चुनाव के समय नेता यहां आकर वादे करते हैं—जल्द पक्की सड़क बनेगी स्वास्थ्य केंद्र का कायाकल्प होगा लेकिन यह सब महज़ एक छलावा बनकर रह जाता है। महुआ डाबर गंगराई टोला का यह मामला केवल एक गांव की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल व्यवस्था का प्रतीक है। केंद्र और राज्य सरकारें  आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना और “जननी सुरक्षा योजना” जैसे कार्यक्रम चला रही हैं, लेकिन जब लाभार्थी तक सुविधा पहुंचे ही ना, तो योजनाएं सिर्फ बैनर-पोस्टर बनकर रह जाती हैं। ग्रामीणों की मांग है कि स्वास्थ्य केंद्र तक जल्द पक्की सड़क बनाई जाए, क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाए और एक स्थायी चिकित्सा अधिकारी की नियुक्ति की जाए।

स्वास्थ्य सुविधाएं—ग्रामीण भारत की हकीकत

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गांवों में रहता है, वहां प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं जन-जीवन की रीढ़ होती हैं। भारत सरकार की नीति के अनुसार हर 5,000 की जनसंख्या पर एक स्वास्थ्य उपकेंद्र होना चाहिए। हालांकि, इन केंद्रों की मौजूदगी से ज्यादा अहम उनका संचालन और पहुंच है। महुआ डाबर गंगराई टोला में इसका एक दुखद उदाहरण है।

जननी सुरक्षा योजना—नाम बड़ा, लाभ कम

जननी सुरक्षा योजना (JSY) का उद्देश्य है कि प्रसव संस्थागत हो, ताकि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम की जा सके। इसके लिए सरकार हर गर्भवती महिला को आर्थिक सहायता और अस्पताल में सुविधाएं देती है। लेकिन जब एंबुलेंस ही रास्ते पर न पहुंचे और सड़क की हालत ऐसी हो कि महिला डिलीवरी से पहले रास्ते में ही दम तोड़ दे, तो योजना व्यर्थ हो जाती है।

विकास

विकास योजनाएं कागजों में तेज़ी से चलती दिखती हैं। हर साल स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी की जाती है, सांसद निधि और विधायक निधि से “केंद्र उन्नयन” के प्रस्ताव पास होते हैं। लेकिन इस गांव में सालों से न तो सड़क बनी, न भवन की मरम्मत हुई और न ही स्वास्थ्य केंद्र के लिए स्टाफ की व्यवस्था की गई। जिला प्रशासन के अधिकारियों से बात करने पर “जांच कराएंगे” जैसा जवाब मिलता है।

महुआ डाबर गंगराई टोला, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) — यह गांव कुशीनगर जनपद के हाटा तहसील क्षेत्र में स्थित है, जहां की जनसंख्या लगभग 5000 के आसपास है। यह इलाका मुख्यतः कृषि आधारित है, लेकिन स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है। वर्षों पूर्व यहां एक उपस्वास्थ्य केंद्र की स्थापना हुई थी, जो अब तक पूरी तरह कार्यशील नहीं हो सका है।


स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने वाली सड़क की जर्जर स्थिति और रास्ते का सुनसान माहौल।
गांव के बीचोंबीच स्थित उपस्वास्थ्य केंद्र तक कोई पक्की सड़क नहीं है। बरसात में रास्ता कीचड़ से भर जाता है, जिससे फिसलने, गिरने और समय पर न पहुंच पाने की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। गर्मियों में धूल और सर्दियों में कोहरा भी इस रास्ते को और अधिक खतरनाक बना देते हैं। रात के समय यहां सन्नाटा छा जाता है, जिससे महिलाएं और मरीज असुरक्षित महसूस करते हैं।


गर्भवती महिलाएं, बीमार वृद्धजन, नवजात और छोटे बच्चे
गांव की महिलाएं प्रसव के समय विशेष रूप से इस समस्या से प्रभावित होती हैं। गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच और आपातकालीन प्रसव की स्थिति में एंबुलेंस की अनुपलब्धता जानलेवा बन जाती है। वृद्धजनों और नवजात शिशुओं को भी प्राथमिक उपचार की आवश्यकता होने पर समय पर सहायता नहीं मिल पाती।


एंबुलेंस चालक गांव में आने से कतराते हैं।
102, 108 जैसी सरकारी एंबुलेंस सेवाओं को कई बार बुलाया गया, लेकिन खराब सड़क की वजह से या तो वाहन चालक मना कर देते हैं, या वाहन गांव की सीमा से पहले ही रुक जाता है। ऐसे में मरीजों को चारपाई या ट्रॉली पर ढोकर ले जाना पड़ता है। कुछ मामलों में ट्रैक्टर की मदद भी लेनी पड़ती है, जिससे मरीज की स्थिति और गंभीर हो जाती है। गांववासियों ने ग्राम प्रधान, बीडीओ, सीएमओ और स्थानीय विधायक तक कई बार समस्या रखी। बार-बार यह आश्वासन मिला कि सड़क निर्माण कार्य शीघ्र शुरू होगा, स्वास्थ्य केंद्र पर नियमित एएनएम की तैनाती होगी, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ। अब ग्रामीणों में प्रशासन के प्रति निराशा गहराती जा रही है।


पक्की सड़क निर्माण, चिकित्सा स्टाफ की नियुक्ति और आवश्यक दवाओं की स्थायी उपलब्धता।
ग्रामीणों का कहना है कि स्वास्थ्य केंद्र होने का कोई मतलब नहीं, अगर वहां तक रास्ता ही ना पहुंचे। वे मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द सड़क को पक्का किया जाए, केंद्र पर एक नियमित एएनएम व फार्मासिस्ट की नियुक्ति हो और सभी जरूरी दवाएं उपलब्ध कराई जाएं ताकि इलाज समय पर हो सके।


आयुष्मान भारत, जननी सुरक्षा योजना – कागजों तक सीमित, ज़मीन पर लाभ नहीं।
स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जैसे “आयुष्मान भारत” और “जननी सुरक्षा योजना” का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। वजह—बुनियादी ढांचा ही इतना कमजोर है कि पात्र व्यक्ति अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पाते। जब प्राथमिक सुविधा केंद्र ही दुर्गम हो, तो योजनाएं सिर्फ प्रचार तक सीमित रह जाती हैं।


राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक सक्रियता के बिना कोई सुधार संभव नहीं।
जब तक स्थानीय प्रशासन इस समस्या को प्राथमिकता नहीं देता, कोई भी योजना सार्थक नहीं हो सकती। अगर जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और जनप्रतिनिधि मिलकर एक ठोस रोडमैप बनाएं—जिसमें निर्माण कार्य, स्टाफ की नियुक्ति और निगरानी की व्यवस्था हो—तभी सुधार की संभावना है। नहीं तो यह समस्या केवल कागजों में शिकायत बनकर रह जाएगी।

महुआ डाबर गंगराई टोला निवासी प्रमोद ,महेश रंजन ने बताया कि जब से गांव में उपस्वास्थ्य केंद्र की स्थापना हुई है, तब से आज तक वहां तक जाने वाला रास्ता कभी भी ठीक नहीं रहा। बरसात में यह रास्ता कीचड़ से भर जाता है और गर्मी में धूल उड़ती है। एंबुलेंस चालकों तक को यहां आने में कठिनाई होती है। कई बार मरीजों को चारपाई या ट्रैक्टर पर ले जाना पड़ता है। प्रमोद रंजन का कहना है कि स्वास्थ्य केंद्र का कोई लाभ नहीं, जब वहां तक समय पर पहुंचना ही संभव न हो। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।

रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) |

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