भारत की कृषि व्यवस्था ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2024-25 के लिए बागवानी फसलों के द्वितीय अग्रिम अनुमान जारी किए हैं, जिनके अनुसार देश का बागवानी उत्पादन अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है। यह सफलता सिर्फ संख्या में नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र के बहुआयामी विकास का सूचक है।
रिकॉर्ड उत्पादन: आंकड़ों की जुबानी कृषि की उपलब्धि
श्री चौहान द्वारा जारी किए गए अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में बागवानी फसलों का कुल क्षेत्रफल 292.67 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो कि वर्ष 2023-24 की तुलना में 1.81 लाख हेक्टेयर अधिक है। इससे यह स्पष्ट होता है कि किसान अब पारंपरिक फसलों से आगे बढ़कर विविधीकृत और लाभकारी बागवानी की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
उत्पादन के संदर्भ में यह वर्ष ऐतिहासिक साबित हुआ है। कुल उत्पादन 3.66% की वृद्धि के साथ 3677.24 लाख टन तक पहुंच गया है, जो वर्ष 2023-24 के 3547.44 लाख टन की तुलना में 129.80 लाख टन अधिक है। यह केवल सांख्यिकीय उन्नति नहीं है, बल्कि यह भारत की खाद्य सुरक्षा, पोषण व्यवस्था, कृषि निर्यात और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण का प्रतीक है।
बागवानी: कृषि व्यवस्था का पुनरुत्थान
भारत की कृषि परंपरा मुख्यतः खाद्यान्न उत्पादन पर केंद्रित रही है, किंतु पिछले एक दशक में बागवानी क्षेत्र ने कृषि आय के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है। इसमें फल, सब्जी, फूल, मसाले, सुगंधित एवं औषधीय पौधे, कंदमूल और नारियल इत्यादि शामिल हैं।
कृषि मंत्री ने स्पष्ट किया कि बागवानी अब सिर्फ वैकल्पिक नहीं, बल्कि मुख्यधारा की कृषि बन चुकी है। यह क्षेत्र किसानों को अधिक मूल्य, बेहतर निर्यात अवसर और न्यूनतम जोखिम प्रदान करता है।
फल उत्पादन में गुणात्मक और मात्रात्मक वृद्धि
वर्ष 2024-25 में फलों का उत्पादन 1145.10 लाख टन तक पहुंचने की संभावना है, जो कि 2023-24 की तुलना में 1.36% की वृद्धि को दर्शाता है। आम, केला, तरबूज, मंदारिन, मौसंबी और पपीते जैसी फसलों में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है।
प्रमुख फलों का उत्पादन विवरण:
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आम: 228.37 लाख टन (2023-24 में 223.98 लाख टन)
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केला: 380.35 लाख टन (2023-24 में 376.14 लाख टन)
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तरबूज: 44.70 लाख टन (2023-24 में 37.21 लाख टन)
यह वृद्धि सिर्फ उपज नहीं, बल्कि कृषि वैज्ञानिकों के बेहतर किस्मों, तकनीकी मार्गदर्शन और किसानों के प्रयासों का परिणाम है। इन फलों की वैश्विक मांग को देखते हुए यह उपलब्धि निर्यात संवर्धन की दिशा में भी मील का पत्थर है।
सब्जियों में आत्मनिर्भरता की ओर भारत: उत्पादन में ऐतिहासिक उछाल
भारत सब्जियों के उत्पादन में पहले से ही अग्रणी है, लेकिन वर्ष 2024-25 में इस उपलब्धि ने और भी ठोस स्वरूप ग्रहण किया है। आंकड़ों के अनुसार, देश का कुल सब्जी उत्पादन 2196.74 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है, जो कि पिछले वर्ष के 2072.08 लाख टन से 6.02% अधिक है। यह वृद्धि न केवल देश की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के दबाव को भी संतुलित करने में सहायक सिद्ध होगी।
प्रमुख सब्जियों का तुलनात्मक उत्पादन इस प्रकार है:
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प्याज: 307.72 लाख टन (2023-24 में 242.67 लाख टन)
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आलू: 601.75 लाख टन (2023-24 में 570.54 लाख टन)
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टमाटर: 207.52 लाख टन (2023-24 में 213.23 लाख टन)
प्याज के उत्पादन में 65.05 लाख टन की जबरदस्त वृद्धि इस वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानी जा रही है। यह वृद्धि घरेलू मांग को पूरा करने के साथ-साथ कीमतों को नियंत्रण में रखने में भी प्रभावी होगी, जिससे आम उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और महंगाई पर अंकुश लगेगा।
टमाटर के उत्पादन में थोड़ी गिरावट जरूर दर्ज की गई है, लेकिन यह अस्थायी मानी जा रही है और अगले अनुमानों में इसकी भरपाई की संभावना है।
मसाले और औषधीय फसलें: भारत की सोंधी पहचान, वैश्विक अवसर
भारत सदियों से मसालों का स्वाभाविक घर रहा है। यहां के मसाले न केवल स्वादवर्धक हैं, बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर हैं। वर्ष 2024-25 के अनुमान के अनुसार, मसालों का कुल उत्पादन 123.70 लाख टन रहेगा, जो पिछले वर्ष (124.84 लाख टन) से थोड़ा कम है। हालांकि, कुछ प्रमुख मसालों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो इन फसलों की बढ़ती मांग और उत्पादन क्षमता का संकेत है।
प्रमुख मसालों का तुलनात्मक उत्पादन:
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अदरक: 25.42 लाख टन (2023-24 में 23.33 लाख टन)
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लहसुन: 35.03 लाख टन (2023-24 में 33.16 लाख टन)
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हल्दी: 12.04 लाख टन (2023-24 में 10.63 लाख टन)
इन फसलों की विशेषता यह है कि इनका उपयोग सिर्फ रसोई तक सीमित नहीं है, बल्कि इनका व्यापक उपयोग औषधीय, कॉस्मेटिक और हेल्थकेयर उत्पादों में भी होता है। आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रति बढ़ते वैश्विक रुझान को देखते हुए इनकी खेती में तेजी आ रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इन मसालों की गुणवत्ता, खुशबू और औषधीय गुण विश्व बाज़ार में भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त दिलाते हैं। यह न केवल किसानों के लिए लाभकारी है, बल्कि देश के निर्यात को भी मजबूती प्रदान करता है।
नीतिगत समर्थन और वैज्ञानिक योगदान: सफलता का आधार
श्री चौहान ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह उपलब्धि किसानों की मेहनत, कृषि वैज्ञानिकों की शोध और केंद्र सरकार की दूरदर्शी नीतियों का परिणाम है। भारत सरकार के बागवानी मिशन, फसल विविधीकरण योजना, माइक्रो इरिगेशन योजना, पीएम-किसान और कृषि यंत्रीकरण जैसी योजनाएं बागवानी को तकनीक-संपन्न और लाभकारी बना रही हैं।
डेटा आधारित निर्णय: भविष्य की कुंजी
इस द्वितीय अग्रिम अनुमान की तैयारी केंद्र और राज्यों के सहयोग, सटीक आंकड़ों के संकलन, और कृषि सांख्यिकी के गहन विश्लेषण के बाद की गई है। इससे न केवल नीतिगत निर्णयों को बल मिलेगा, बल्कि निजी निवेशकों, प्रोसेसिंग उद्योगों, और निर्यातकों को भी मार्गदर्शन प्राप्त होगा।
राज्यों की भागीदारी: संघीय कृषि प्रबंधन का उदाहरण
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में राज्यों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस अनुमान के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आंकड़े प्राप्त कर उनका विश्लेषण किया गया। इससे यह सुनिश्चित किया गया कि नीति निर्माण राष्ट्रीय आवश्यकताओं के साथ-साथ स्थानीय जरूरतों के अनुकूल हो।
बागवानी में निजी निवेश और उद्यमिता की संभावनाएं
बागवानी क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग, जैसे — ग्रीनहाउस खेती, ड्रिप सिंचाई, सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई, फर्टिगेशन, जैविक खेती और वैल्यू एडिशन प्रोसेसिंग — निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुके हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता को बढ़ावा मिल रहा है और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे हैं।
कृषि और जलवायु के बीच संतुलन
बागवानी फसलों का एक और लाभ यह है कि यह अपेक्षाकृत कम पानी और संसाधनों में अधिक मूल्य देता है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में यह एक सतत समाधान प्रदान करता है। केंद्र सरकार इस दिशा में माइक्रो इरिगेशन फंड, पीएम-कुसुम योजना और नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर जैसी योजनाओं के माध्यम से सक्रिय भूमिका निभा रही है।
निष्कर्ष: बागवानी में भारत की अग्रणी भूमिका
वर्ष 2024-25 के द्वितीय अग्रिम अनुमान यह दर्शाते हैं कि भारत अब केवल खाद्यान्न उत्पादन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बागवानी के क्षेत्र में भी वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। यह सफलता सरकार, किसान और वैज्ञानिक समुदाय के सहयोग और समर्पण की जीती-जागती मिसाल है।