
परिवहन निगम
गोरखपुर कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | गोरखपुर का मुख्य बस अड्डा, जो वर्षों से उत्तर प्रदेश के परिवहन विभाग का एक अहम केंद्र रहा है, अब अवैध बस संचालकों के कब्जे की कगार पर खड़ा है। यात्रियों को गंतव्य तक पहुँचाने के नाम पर हो रहे इस धंधे में न केवल दबंगई का बोलबाला है, बल्कि स्थानीय पुलिस और आरटीओ विभाग की संलिप्तता की भी आशंका जताई जा रही है | निगम के वैध चालकों और परिचालकों का कहना है कि अवैध बस चालक सीधे प्लेटफार्म के बाहर या उसके आस-पास यात्रियों को बहकाकर अपनी बसों में बिठा लेते हैं। यह स्थिति न केवल राजस्व हानि पहुंचा रही है बल्कि विभाग की साख पर भी सवाल उठा रही है। गोरखपुर बस अड्डे के बाहर इन दिनों अराजकता का माहौल बना हुआ है। सुबह से शाम तक दर्जनों अवैध बसें यात्रियों को गुमराह कर अपनी ओर आकर्षित करती हैं। निगम के कर्मचारियों की मानें तो ये बस संचालक अक्सर मारपीट और धमकी तक पर उतर आते हैं। पुलिस और आरटीओ की चुप्पी इस पूरे तंत्र को सवालों के घेरे में ला रही है। निगम के क्षेत्रीय मंत्री राजेश कुमार पाण्डेय और यूनियन प्रतिनिधि रामदुलारे ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि शासन-प्रशासन ने जल्द ही ठोस कार्रवाई नहीं की, तो वे कर्मचारी सड़कों पर उतर कर आंदोलन करेंगे। उन्होंने बताया कि परिवहन निगम को हर महीने लाखों रुपये की चपत लग रही है, और इसका सीधा असर कर्मचारियों के वेतन व सुविधा पर पड़ रहा है।
यात्रियों का भी कहना है कि अवैध बसों के चलते उन्हें कई बार धोखाधड़ी और असुविधा का सामना करना पड़ता है। “हमें बताया गया कि बस गोरखपुर से लखनऊ जाएगी, लेकिन रास्ते में ड्राइवर ने कह दिया कि बस केवल बस्ती तक जाएगी,” – यह कहना है यात्री अनीता देवी का, जो सोमवार को गोरखपुर बस अड्डे पर इसी तरह ठगी का शिकार हुईं। स्थानीय सूत्रों का दावा है कि अवैध बस संचालकों की यह पूरी व्यवस्था पुलिस और RTO की मिलीभगत के बिना चल ही नहीं सकती। हर बस की जानकारी, नंबर प्लेट, समय और गंतव्य अधिकारियों को पहले से पता रहता है, फिर भी कार्यवाही न होना कई सवाल खड़े करता है।
गोरखपुर बस अड्डा, उत्तर प्रदेश
गोरखपुर जिले का मुख्य बस अड्डा न केवल पूर्वांचल के यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि यह बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को जोड़ने वाले मार्गों का भी मुख्य जंक्शन है। यहाँ से प्रतिदिन हजारों यात्री आवागमन करते हैं, जिससे यह क्षेत्र परिवहन व्यवस्था के लिए अत्यंत संवेदनशील और रणनीतिक बन जाता है। यही कारण है कि अवैध गतिविधियों का यहां होना न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा पर भी खतरा उत्पन्न करता है।
अवैध बस संचालन और यात्रियों को जबरन खींचना
सबसे बड़ी समस्या यह है कि दर्जनों की संख्या में अवैध रूप से चल रही निजी बसें न केवल बस अड्डे के बाहर खड़ी रहती हैं, बल्कि अपने कर्मचारियों और दलालों के माध्यम से यात्रियों को बहकाकर अपनी बसों में बैठा लेती हैं। ये लोग कई बार जबरदस्ती, झूठी जानकारी, और दबाव का भी इस्तेमाल करते हैं। यात्रियों को भ्रमित किया जाता है कि ये भी परिवहन निगम की बसें हैं या ये “सीधी सेवा” दे रही हैं, जबकि असल में ये बिना अनुमति, बीमा, या मानक सुरक्षा सुविधाओं के संचालन कर रही होती हैं।
दबंगई, RTO और पुलिस की मिलीभगत
इन अवैध बस संचालकों पर दबंगई करने का सीधा आरोप निगम कर्मियों द्वारा लगाया गया है। कई मामलों में मारपीट, गाली-गलौच और धमकाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इससे भी गंभीर बात यह है कि निगम के कर्मचारियों और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, पुलिस और क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) के कुछ अधिकारी इन संचालकों के साथ मिलीभगत में हैं। इन आरोपों में कहा गया है कि हर बस की जानकारी और उनकी गतिविधियों के बावजूद प्रशासनिक चुप्पी इस मिलीभगत की ओर स्पष्ट इशारा करती है।
परिवहन निगम, वैध बस चालक, आम यात्री
इस पूरे मामले में तीन सबसे अधिक प्रभावित पक्ष हैं:
-
उत्तर प्रदेश परिवहन निगम – वैध बसों को पर्याप्त यात्री नहीं मिलते, जिससे राजस्व में भारी गिरावट आई है।
-
वैध बस चालक और परिचालक – वर्षों से सेवा में लगे कर्मचारियों को वेतन, बोनस और अन्य लाभों में कटौती झेलनी पड़ रही है।
-
आम यात्री – उन्हें असुरक्षित बसों में यात्रा करनी पड़ती है, जो न तो बीमा-आधारित होती हैं, न ही समय-सारणी का पालन करती हैं। धोखाधड़ी, अचानक रूट बदलना और खराब सुविधा आम हो गई है।
प्रशासनिक कार्रवाई,
निगम कर्मियों, यूनियन नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि शासन अविलंब विशेष अभियान चलाकर इन अवैध बस संचालकों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करे। मांग की गई है कि बस अड्डे और उसके आस-पास अवैध संचालन करने वाली बसों पर जुर्माना लगाया जाए, उनका परमिट रद्द किया जाए और यदि आवश्यक हो तो बसें ज़ब्त की जाएं। आरटीओ और पुलिस के संदिग्ध अधिकारियों पर विभागीय जांच शुरू करने की भी मांग तेज हो रही है।
आंदोलन की चेतावनी, सड़क पर उतरने की तैयारी
परिवहन निगम की यूनियन ने साफ कर दिया है कि यदि प्रशासन ने 7 दिनों के भीतर कार्रवाई नहीं की, तो वे पूरे जिले में हड़ताल कर देंगे और सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करेंगे। क्षेत्रीय मंत्री राजेश कुमार पाण्डेय और वरिष्ठ कर्मचारी रामदुलारे ने बताया कि वह प्रदेश स्तर पर मुख्यमंत्री से मिलकर ज्ञापन सौंपेंगे। उनका कहना है कि यह केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि “सार्वजनिक सुविधा और सुरक्षा” का मुद्दा है।
राजस्व हानि, यात्रियों की असुविधा
इन अवैध बस संचालनों से परिवहन निगम को प्रतिदिन लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। यात्रियों के परिवहन में गिरावट ने निगम की आर्थिक स्थिति को चरमरा दिया है। इसके अलावा, यात्रियों को सुरक्षा, समय और विश्वसनीयता की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। कुछ यात्रियों ने बताया कि उन्हें जबरदस्ती दूसरी जगह छोड़ दिया गया, तो कुछ को बस बीच रास्ते में खराब हो जाने के बाद घंटों इंतज़ार करना पड़ा।
संभावित छापेमारी, जांच समिति का गठन प्रस्तावित
इस मामले में शासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, परन्तु सूत्रों के अनुसार, क्षेत्रीय परिवहन आयुक्त ने एक प्रारंभिक रिपोर्ट मांगी है और संभावना है कि जल्द ही संयुक्त छापेमारी अभियान शुरू किया जाए। साथ ही, एक विशेष जांच समिति का गठन करने का प्रस्ताव भी उच्च अधिकारियों के समक्ष रखा गया है, जो पुलिस और RTO की भूमिका की गहराई से जांच करेगी।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) |