भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र 2025 तक 195 लाख टन मछली उत्पादन, 8.74% वार्षिक वृद्धि दर और ₹60,524 करोड़ के समुद्री खाद्य निर्यात के साथ रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचा। सरकार की PMMSY, FIDF, PM-MKSSY जैसी योजनाएँ ग्रामीण आजीविका, निवेश और महिला सशक्तिकरण को नई दिशा दे रही हैं।
दुत : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | देश के मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र में समावेशी विकास को गति देने के उद्देश्य से, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्य पालन विभाग (डीओएफ) द्वारा आयोजित छह महीने की वर्चुअल चर्चा श्रृंखला ने एक ऐतिहासिक पहल का रूप ले लिया है। अप्रैल से सितंबर 2025 तक चली इस राष्ट्रव्यापी पहल में 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 15,000 से अधिक मछुआरों, मछली पालकों, सहकारी समितियों, एफएफपीओ, स्टार्टअप्स और विशेषज्ञों ने भाग लिया।
डीओएफ के सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी के नेतृत्व में आयोजित इन सत्रों ने न केवल मछुआरों और मछली पालकों को अपनी चिंताओं और अपेक्षाओं को सीधे सरकार तक पहुँचाने का अवसर दिया, बल्कि भविष्य के विकासात्मक रोडमैप के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई। इन वर्चुअल सत्रों का आयोजन 2 अप्रैल से 30 सितंबर 2025 के बीच हुआ, जिसमें तटीय, अंतर्देशीय, पहाड़ी, द्वीपीय और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों सहित लगभग प्रत्येक जिले के प्रतिनिधियों ने अपनी भागीदारी दर्ज कराई। चर्चाओं का प्रारूप इस तरह से तैयार किया गया था कि प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट चुनौतियों, अवसरों और आवश्यकताओं को पहचाना जा सके। इन चर्चाओं से नीति निर्माताओं को मछुआरों के जमीनी अनुभवों का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त हुआ, जिससे “विकसित भारत 2047” के दृष्टिकोण के अनुरूप क्षेत्र की नीतियाँ और योजनाएँ तैयार करने में मदद मिलेगी। इन सत्रों में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY), प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (PM-MKSSY), मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (FIDF), समूह दुर्घटना बीमा योजना (GAIS), नीली क्रांति, तथा किसान क्रेडिट कार्ड जैसी सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता पर भी विस्तृत चर्चा हुई।
प्रतिभागियों ने इन योजनाओं से प्राप्त सहयोग के लिए केंद्र सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इनसे उनकी आजीविका में स्थायित्व आया है।
चर्चाओं के दौरान मछुआरों और मछली पालकों ने कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। उन्होंने गुणवत्तापूर्ण मछली बीज, ब्रूड बैंक, किफायती चारा और स्थानीय चारा मिलों के विकास पर जोर दिया। साथ ही उन्होंने परिवहन और विपणन से संबंधित ढांचे को मजबूत करने, केज कल्चर, मिनी हैचरी, आइस बॉक्स, पॉली शीट, कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाओं के विस्तार और सौर ऊर्जा के एकीकरण की मांग की। हितधारकों ने तकनीकी नवाचारों के माध्यम से मत्स्य पालन क्षेत्र को आधुनिक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि जीवित मछलियों के परिवहन हेतु ड्रोन, मछुआरों की सुरक्षा के लिए उपग्रह अनुप्रयोग, और संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र (PFZ) सलाह प्रणाली जैसी प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से अपनाया जाए।
मछुआरों ने सरकार द्वारा उनके जहाजों में लगाए गए निःशुल्क ट्रांसपोंडरों की सराहना की, जिन्होंने उन्हें मौसम चेतावनियाँ, चक्रवात अलर्ट और सीमा रेखा पार करने से रोकने के लिए रीयल-टाइम अलर्ट प्रदान कर सुरक्षा सुनिश्चित की है।
इसके अलावा, प्रतिभागियों ने मत्स्य विपणन क्षेत्र में सुधार के लिए मूल्य श्रृंखला सुदृढ़ करने, मछली बाजारों, आधुनिक प्रसंस्करण संयंत्रों और कियोस्कों को विकसित करने पर बल दिया।
सुझाव दिया गया कि PMMSY जैसी प्रमुख योजनाओं को समुद्री शैवाल की खेती, सजावटी मछली पालन और मोती की खेती जैसी वैकल्पिक आजीविका गतिविधियों के साथ जोड़ा जाए, ताकि ग्रामीण युवाओं को नए रोजगार अवसर मिल सकें हितधारकों ने तकनीकी जानकारी, रोग नियंत्रण उपायों और कृषि प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करने के लिए नियमित क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता जताई।
उन्होंने सुझाव दिया कि प्रत्येक जिले में जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की जाएँ, ताकि जलीय स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली को सुदृढ़ किया जा सके और रोगों की रोकथाम में सुधार लाया जा सके।
मोबाइल-आधारित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रारूप ने इन सत्रों को सुलभ बनाया — जिससे मछुआरे अपने घरों से ही सीधे वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों से जुड़ सके।
डीओएफ सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी ने कहा,ये संवाद सत्र मछुआरों, मछली पालकों और नीति निर्माताओं के बीच एक मजबूत सेतु हैं। प्राप्त फीडबैक हमारे नीति निर्माण के लिए दिशा-निर्देशक सिद्ध होंगे, ताकि मत्स्य क्षेत्र का विकास हमारे 5 वर्षीय रोडमैप और विकसित भारत 2047 के विज़न के अनुरूप टिकाऊ और किसान-केंद्रित बना रहे। मछली पालन क्षेत्र को भारत की अर्थव्यवस्था में एक “उभरता हुआ क्षेत्र” माना जाता है। यह लगभग 3 करोड़ लोगों की आजीविका से जुड़ा है, जिनमें अधिकांश हाशिए पर रहने वाले और कमजोर वर्गों से हैं।
भारत आज विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जिसका वैश्विक मछली उत्पादन में 8% योगदान है। साथ ही भारत जलीय कृषि उत्पादन में भी दूसरे स्थान पर है।
2015 के बाद से लक्षित नीतियों और योजनाओं के परिणामस्वरूप केंद्र सरकार ने ₹38,572 करोड़ के निवेश को मंजूरी दी है या उसकी घोषणा की है।
इन पहलों के चलते कुल मछली उत्पादन बढ़कर 195 लाख टन तक पहुँच गया है, और क्षेत्र में 8.74% की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई है।
वर्ष 2023-24 में समुद्री खाद्य निर्यात ₹60,524 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँचा। डीओएफ अब 34 मत्स्य उत्पादन एवं प्रसंस्करण क्लस्टरों की अधिसूचना के बाद प्रजाति-विशिष्ट क्लस्टरों के गठन की दिशा में कार्य कर रहा है। इसका उद्देश्य है कि नवीनतम तकनीकों के माध्यम से प्रजाति-विशिष्ट मूल्य श्रृंखलाएँ मजबूत की जा सकें, जिससे उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन के हर चरण में सुधार आए।
इस क्लस्टर दृष्टिकोण के तहत महिला सशक्तिकरण, एफएफपीओ और सहकारी समितियों के गठन, घरेलू मछली खपत को बढ़ावा देने और हाशिए पर पड़े मछुआरों की आजीविका को सुरक्षित करने पर भी जोर दिया जा रहा है। विभाग अब डिजिटल मत्स्य क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
मत्स्य उत्पादन, विपणन, और निर्यात से संबंधित आंकड़ों को डिजिटल रूप में एकत्र कर रियल-टाइम डैशबोर्ड विकसित किए जा रहे हैं। इससे योजनाओं की पारदर्शिता बढ़ेगी और संसाधनों का बेहतर प्रबंधन संभव होगा।
इसके साथ ही “मछुआरा मित्र” मोबाइल एप और डिजिटल प्रशिक्षण पोर्टल विकसित करने पर भी काम चल रहा है, जिससे छोटे मछुआरे आधुनिक तकनीक और बाजार से सीधे जुड़ सकेंगे।
भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र की झलक (2025 तक)
भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र आज देश की ग्रामीण और समुद्री अर्थव्यवस्था का एक मज़बूत स्तंभ बन चुका है। यह न केवल लाखों लोगों की आजीविका का आधार है, बल्कि कृषि-आधारित आय को विविधता देने, पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने और निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
1. कुल मछली उत्पादन: 195 लाख टन
वर्ष 2025 तक भारत का कुल मछली उत्पादन 195 लाख टन के ऐतिहासिक स्तर पर पहुँच गया है। इसमें अंतर्देशीय मत्स्य पालन (Inland Fisheries) का योगदान लगभग 70% है, जबकि शेष 30% उत्पादन समुद्री मत्स्य पालन (Marine Fisheries) से प्राप्त होता है।
यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि देश में जलीय कृषि (Aquaculture) के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धतियों, उन्नत बीज उत्पादन, बेहतर फीड प्रबंधन और तकनीकी नवाचारों को बड़े पैमाने पर अपनाया गया है।
2. वार्षिक वृद्धि दर: 8.74%
मत्स्य क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 8.74% दर्ज की गई है, जो कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सबसे तेज़ मानी जाती है।
यह वृद्धि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) जैसी लक्षित योजनाओं, सहकारी समितियों, एफएफपीओ (Fish Farmer Producer Organizations) और महिला स्व-सहायता समूहों की सक्रिय भागीदारी का परिणाम है।
इस तेज़ विकास दर ने न केवल मत्स्य उत्पादन को बढ़ाया है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नए रोजगार अवसरों और उद्यमिता को भी प्रोत्साहित किया है।
3. समुद्री खाद्य निर्यात (2023-24): ₹60,524 करोड़
भारत अब वैश्विक स्तर पर समुद्री खाद्य निर्यात में शीर्ष देशों में शामिल है। वर्ष 2023-24 में भारत का समुद्री खाद्य निर्यात ₹60,524 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
भारतीय झींगे (Shrimps), ताजे पानी की मछलियाँ, टूना और कटला जैसी प्रजातियाँ विश्व बाजारों में अत्यधिक मांग में हैं।
यह निर्यात वृद्धि गुणवत्तापूर्ण प्रसंस्करण संयंत्रों, कोल्ड चेन अवसंरचना, और संपूर्ण ट्रेसबिलिटी प्रणाली (Traceability System) के विकास से संभव हुई है।
सरकार अब ब्रांड इंडिया सीफूड अभियान के माध्यम से भारतीय मछली उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नई पहचान दिला रही है।
4. कुल निवेश (2015 से): ₹38,572 करोड़
वर्ष 2015 के बाद से केंद्र सरकार ने मत्स्य क्षेत्र में ₹38,572 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश मंज़ूर या घोषित किया है।
यह निवेश बुनियादी ढाँचा विकास, बीज उत्पादन, कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयाँ, मछली बाजार, चारा निर्माण इकाइयाँ और तकनीकी नवाचारों के लिए किया गया है।
इससे ग्रामीण मत्स्य समुदायों में सहकारी संस्थाओं और निजी निवेश को भी बढ़ावा मिला है।
निवेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY), FIDF (Fisheries and Aquaculture Infrastructure Development Fund) और PM-MKSSY जैसी योजनाओं के अंतर्गत उपयोग किया जा रहा है।
5. प्रत्यक्ष लाभार्थी: 3 करोड़ से अधिक लोग
मत्स्य पालन क्षेत्र सीधे तौर पर 3 करोड़ से अधिक भारतीयों की आजीविका से जुड़ा हुआ है।
इनमें मछुआरे, मछली पालक, प्रसंस्करण इकाई कर्मचारी, व्यापारी, महिलाएँ और युवा उद्यमी शामिल हैं।
इस क्षेत्र ने विशेष रूप से तटीय और अंतर्देशीय ग्रामीण इलाकों में रोज़गार, पोषण और सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम बनकर आर्थिक असमानता को कम करने में मदद की है।
कई राज्यों में महिलाएँ मछली प्रसंस्करण, विपणन और मूल्य संवर्धन गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, जिससे महिला सशक्तिकरण को भी नई दिशा मिली है।
6. मत्स्य उत्पादन एवं प्रसंस्करण क्लस्टर: 34
भारत सरकार ने देशभर में 34 मत्स्य उत्पादन एवं प्रसंस्करण क्लस्टरों की अधिसूचना जारी की है।
इन क्लस्टरों का उद्देश्य है —
क्षेत्रीय स्तर पर प्रजाति-विशिष्ट उत्पादन प्रणाली विकसित करना,
उत्पादन से प्रसंस्करण और विपणन तक एकीकृत मूल्य श्रृंखला बनाना,
और महिला समूहों तथा एफएफपीओ के माध्यम से सामुदायिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करना।
आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में ये क्लस्टर तेजी से कार्य कर रहे हैं और आने वाले वर्षों में भारत के मत्स्य उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएंगे।
7. प्रमुख योजनाएँ: PMMSY, PM-MKSSY, FIDF, GAIS, नीली क्रांति, KCC
भारत सरकार ने मत्स्य क्षेत्र के समग्र विकास के लिए अनेक योजनाएँ लागू की हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY):
इसका उद्देश्य है टिकाऊ मत्स्य उत्पादन बढ़ाना, अवसंरचना सुदृढ़ करना, और मछुआरों की आमदनी दोगुनी करना।
प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (PM-MKSSY):
छोटे मत्स्य किसानों और स्टार्टअप्स को वित्तीय सहायता और नवाचार प्रोत्साहन देने हेतु शुरू की गई योजना।
मत्स्य बीज, चारा, कोल्ड चेन, आइस प्लांट और परिवहन सुविधाओं के निर्माण हेतु दीर्घकालिक निवेश फंड।
समूह दुर्घटना बीमा योजना (GAIS):
मछुआरों और नाविकों के लिए सुरक्षा कवच प्रदान करने वाली बीमा योजना।
नीली क्रांति:
“मछली से समृद्धि” के मंत्र पर आधारित यह राष्ट्रीय कार्यक्रम मत्स्य उत्पादन, विपणन और निर्यात को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) विस्तार:
मछुआरों को कार्यशील पूंजी और ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना को मत्स्य क्षेत्र तक विस्तारित किया गया है।
Source : PIB |रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)