भारतीय संरक्षण सम्मेलन 2025 में पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव का संबोधन

भारतीय संरक्षण सम्मेलन 2025 में पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव का संबोधन

वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण आज वैश्विक चिंता का विषय है। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता में गिरावट, वनों की कटाई, और वन्य प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट के इस दौर में भारत जैसे देश का सक्रिय नेतृत्व समूचे विश्व के लिए एक उदाहरण बनकर उभरा है। इसी सन्दर्भ में भारतीय संरक्षण सम्मेलन 2025 का आयोजन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) में किया गया, जहाँ केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव ने देश की संरक्षण उपलब्धियों और भावी योजनाओं को विस्तार से प्रस्तुत किया।


सम्मेलन का परिचय: संरक्षण के ज्ञान का संगम

भारतीय संरक्षण सम्मेलन 2025 (Indian Conservation Conference 2025) तीन दिवसीय आयोजन है, जिसकी थीम है:
“ज्ञान, विज्ञान और करुणा के साथ संरक्षण की ओर”

इस सम्मेलन में भारत और विश्व भर से आए:

  • वन अधिकारियों,

  • वैज्ञानिकों,

  • जैव विविधता विशेषज्ञों,

  • शिक्षकों,

  • शोधकर्ताओं और

  • छात्रों
    ने भाग लिया। यह सम्मेलन 24 जून से 27 जून तक चल रहा है।


मंत्री भूपेन्द्र यादव का उद्घाटन भाषण: प्रमुख बिंदु

1. भारत का वैश्विक नेतृत्व

भूपेन्द्र यादव ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में विश्व स्तर पर अग्रणी भूमिका निभा रहा है। उन्होंने 2014 के बाद से भारत की संरक्षण यात्रा की प्रगति को स्पष्ट किया।

“2014 में देश में 47 टाइगर रिजर्व थे, जो आज बढ़कर 58 हो चुके हैं।”

यह वृद्धि केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि नीति, संसाधनों और समुदाय के सहयोग की सफलता का संकेत है।

2. पारंपरिक ज्ञान का वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण आवश्यक

उन्होंने कहा कि भारत के पास संरक्षण का एक समृद्ध पारंपरिक ज्ञान है — जैसे कि जनजातीय समुदायों की वन आधारित जीवनशैली, पवित्र वनों की संस्कृति, और लोक मान्यताओं में जीव-जंतुओं की महत्ता। अब आवश्यकता है कि इस पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक रूप से दस्तावेज किया जाए और आधुनिक संरक्षण रणनीतियों में शामिल किया जाए।

3. युवाओं से विशेष आह्वान

श्री यादव ने युवाओं से अपील की कि वे केवल भावनात्मक या पारंपरिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और संवेदना (Empathy) के साथ संरक्षण का नेतृत्व करें। उन्होंने कहा:

“भविष्य उन्हीं का है जो संवेदना के साथ विज्ञान को अपनाएंगे।”


टाइगर रिजर्व्स की वृद्धि: भारत की बड़ी सफलता

2014 में भारत में 47 टाइगर रिजर्व थे। वर्ष 2025 तक यह संख्या बढ़कर 58 हो गई है। इसका श्रेय मिलता है:

  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की रणनीतियों को

  • राज्यों के वन विभागों की दृढ़ता को

  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी को

  • और मजबूत कानूनी ढांचे को

यह बाघों के आवासों के संरक्षण, मानव-पशु संघर्ष को कम करने, और शिकार रोकने के लिए चलाई गई योजनाओं का परिणाम है।

उल्लेखनीय रिजर्व जो हाल ही में जुड़े हैं:

  • गुरु घासीदास नेशनल पार्क (छत्तीसगढ़)

  • रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (मध्य प्रदेश)

  • बक्सा टाइगर रिजर्व में पुनरुद्धार परियोजनाएं


वन्यजीव संस्थान का योगदान

भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), देहरादून, देश की प्रमुख शोध संस्था है जो वन्यजीवों के संरक्षण, आवास प्रबंधन, जैव विविधता और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही है। WII के द्वारा तैयार किए गए आंकड़े, मॉनिटरिंग उपकरण, और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट्स नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।


अंतरराष्ट्रीय मान्यता और सहयोग

भारत की संरक्षण रणनीतियों को UNEP, CITES, IUCN, Convention on Migratory Species जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मान्यता मिली है। भारत अब विश्व के लिए एक मॉडल बन रहा है कि कैसे जनसंख्या और विकास के दबाव के बीच भी जैव विविधता को बचाया जा सकता है।

प्रमुख उदाहरण:

  • Project Tiger और Project Elephant की अंतरराष्ट्रीय सराहना

  • एशियाई शेरों की संख्या में वृद्धि

  • गिद्ध संरक्षण योजना

  • लेपर्ड प्रोटेक्शन कॉरिडोर निर्माण


तकनीक के माध्यम से संरक्षण

AI आधारित वन्यजीव निगरानी प्रणाली

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के उपयोग से अब वन क्षेत्रों में लगे कैमरा ट्रैप्स और सेंसर से प्राप्त डेटा का विश्लेषण तेज़ी और सटीकता से किया जा रहा है। इससे:

  • पशुओं की गतिविधियों की वास्तविक समय पर निगरानी संभव है,

  • शिकार और अतिक्रमण की घटनाओं की पहचान तुरंत हो जाती है,

  • प्रजातियों की संख्या और व्यवहार की वैज्ञानिक जानकारी मिलती है।

Drones से गश्ती और निगरानी

ड्रोन टेक्नोलॉजी ने दुर्गम वनों में गश्ती को सरल और सशक्त बना दिया है। विशेष रूप से उन इलाकों में जहाँ वनकर्मी आसानी से नहीं पहुँच सकते, वहाँ ड्रोन से:

  • अवैध कटाई और शिकार पर नजर रखी जा रही है,

  • वन्यजीवों के मूवमेंट की ट्रैकिंग की जा रही है,

  • जंगल की आग जैसे आपात मामलों में त्वरित प्रतिक्रिया दी जा रही है।

e-DNA तकनीक से प्रजातियों की पहचान

e-DNA (Environmental DNA) तकनीक के माध्यम से जल, मिट्टी या वायुमंडलीय नमूनों से किसी क्षेत्र में उपस्थित वन्य प्रजातियों की पहचान की जा रही है। इससे:

  • दुर्लभ या विलुप्तप्राय जीवों का पता लगाना आसान होता है,

  • किसी क्षेत्र की जैव विविधता का अद्यतन आकलन संभव होता है,

  • संरक्षण योजनाएं अधिक लक्ष्य आधारित बनाई जा सकती हैं।

GIS आधारित हॉटस्पॉट मैपिंग

भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग करके वन क्षेत्रों और जैव विविधता हॉटस्पॉट्स की सटीक डिजिटल मैपिंग की जा रही है। इसके माध्यम से:

  • वन्यजीवों के आवासों की सीमाओं और उपयोग की समझ विकसित होती है,

  • मानव-पशु संघर्ष वाले क्षेत्रों की पहचान होती है,

  • संरक्षित क्षेत्रों के बेहतर प्रबंधन के लिए डेटा-संचालित निर्णय संभव हैं।

रेडियो कॉलरिंग और सैटेलाइट ट्रैकिंग

बाघ, हाथी, गैंडा जैसे प्रमुख वन्यजीवों को रेडियो कॉलर पहनाकर उनकी गतिविधियों की सैटेलाइट आधारित निगरानी की जा रही है। इससे:

  • उनकी दिनचर्या, प्रवासन और व्यवहार को समझा जा रहा है,

  • जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान होती है,

  • आपातकालीन हस्तक्षेप की व्यवस्था बनाई जा सकती है।


संरक्षण और समुदाय: जनभागीदारी का महत्व

सम्मेलन में यह भी चर्चा हुई कि बिना स्थानीय समुदाय की भागीदारी के कोई भी संरक्षण कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता। इस दृष्टिकोण से:

  • ईको-डेवलपमेंट समितियाँ

  • वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अधिकारों का संतुलन

  • वन धन योजना

  • संरक्षित क्षेत्रों में महिला स्व-सहायता समूहों की भागीदारी
    जैसे प्रयासों को मजबूती दी जा रही है।


शिक्षा और संवेदना का मेल

पर्यावरण मंत्री ने सुझाव दिया कि:

  • स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पर्यावरण और जैव विविधता पर अनिवार्य पाठ्यक्रम हो

  • विद्यार्थियों के लिए वन भ्रमण और प्रायोगिक अध्ययन अनिवार्य हो

  • युवाओं के लिए “कंजर्वेशन फेलोशिप्स” शुरू की जाएं

  • इको-क्लब्स और प्रकृति विज्ञान मंडलों को और विस्तारित किया जाए


भारतीय दृष्टिकोण: “प्रकृति ही परम गुरु है”

सम्मेलन में वक्ताओं ने भारत के सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित करते हुए बताया कि भारतीय दर्शन में:

  • वृक्षों को देवता माना गया

  • नदी, पर्वत और वन को पवित्र माना गया

  • हर प्राणी में आत्मा का वास माना गया

यह दृष्टिकोण भारत को प्राकृतिक न्याय का प्रहरी बनाता है।


भविष्य की योजनाएँ

  1. National Conservation Data Grid का निर्माण

  2. Climate-Resilient Ecosystem Corridors की पहचान

  3. Endangered Species Recovery Program

  4. Citizen Science Platforms को विकसित करना

  5. Green Skill Development Programme (GSDP) को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना


निष्कर्ष: भारत – विश्व का संरक्षण नेतृत्वकर्ता

भारतीय संरक्षण सम्मेलन 2025 ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत केवल जैव विविधता का रक्षक नहीं, बल्कि एक वैश्विक संरक्षण नेतृत्वकर्ता बन चुका है। विज्ञान, संस्कृति, नीति और जनभागीदारी के समन्वय से भारत आज एक स्थायी भविष्य की दिशा में अग्रसर है।

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