भारत, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, उसकी प्रगति की गति ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और दक्षता पर निर्भर करती है। गर्मी के चरम और मानसून की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को सुचारू रूप से पूरा करना एक बड़ी उपलब्धि है। हाल ही में सामने आया 61.3 मिलियन टन कोयले का भंडारण आंकड़ा, न केवल ऊर्जा क्षेत्र के लिए राहत का संकेत है, बल्कि यह सरकार की दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति की सफलता का प्रमाण भी है। यह भंडारण मात्रा देश की 25 दिनों की बिजली आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है।
साइलो लोडिंग: कोयला लॉजिस्टिक्स में तकनीकी क्रांति
भारतीय रेलवे और कोयला मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से कोयला आपूर्ति प्रणाली में एक युगांतकारी बदलाव आया है – साइलो लोडिंग प्रणाली। पारंपरिक कोयला लोडिंग प्रणाली, जिसमें मैनुअल श्रमिक या फ्रंट एंड लोडर का उपयोग होता था, उसे अब आधुनिक, मशीनी और सटीक प्रक्रिया ने प्रतिस्थापित कर दिया है।
साइलो लोडिंग क्या है?
साइलो लोडिंग एक ऐसी प्रणाली है जिसमें कोयला पहले विशाल साइलो टावरों में संग्रहित किया जाता है और फिर गुरुत्वाकर्षण या बेल्ट कन्वेयर की मदद से सीधे रेलवे वैगनों में डाला जाता है। यह प्रक्रिया तेज़, सटीक और कम प्रदूषणकारी है।
मुख्य विशेषताएँ:
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कोयले का एकसमान आकार: जिससे पावर प्लांट्स में उपकरणों की क्षति नहीं होती और संचालन अधिक कुशल होता है।
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कम क्षति और प्रदूषण: वैगनों में मशीनी तरीके से कोयला भरने से धूल और नुकसान की संभावना बहुत कम होती है।
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वर्षा में भी निर्बाध लोडिंग: मानसून जैसी परिस्थितियों में भी लोडिंग बाधित नहीं होती।
2025-26 में साइलो लोडिंग का ऐतिहासिक विस्तार
वर्ष 2022-23 में कुल कोयला लोडिंग का केवल 18.8% भाग साइलो के माध्यम से किया जाता था। 2025-26 में यह आंकड़ा बढ़कर 29% तक पहुँच चुका है। यह वृद्धि न केवल साइलो प्रणाली की स्वीकार्यता दर्शाती है, बल्कि सरकार के इस दिशा में किए गए प्रयासों की सफलता का प्रमाण भी है।
विकास की प्रमुख उपलब्धियाँ:
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नए साइलो का निर्माण: देशभर के प्रमुख खनन क्षेत्रों में साइलो निर्माण कार्य प्रगति पर है।
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समर्पित वैगनों की तैनाती: रेलवे द्वारा साइलो के अनुकूल विशेष मालगाड़ियों की शुरुआत।
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AI और IoT आधारित निगरानी प्रणाली: जिससे लोडिंग की गति और सटीकता सुनिश्चित की जा सके।
नई दिल्ली में उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक: रणनीति और कार्यान्वयन की गति
नई दिल्ली में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में कोयला मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी और रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव ने संयुक्त रूप से साइलो लोडिंग के विस्तार की रणनीति की समीक्षा की। इस बैठक में उपस्थित अधिकारियों ने विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा की जिनमें शामिल हैं:
बैठक के प्रमुख बिंदु:
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प्रमुख खनन क्षेत्रों में साइलो की नई परियोजनाओं को गति देना।
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मौजूदा रेलवे यार्ड का आधुनिकीकरण।
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खदान से पावर प्लांट तक निर्बाध कोयला परिवहन सुनिश्चित करना।
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रेलवे और कोल कंपनियों के बीच समन्वय प्रणाली को सुदृढ़ बनाना।
श्री रेड्डी ने कहा, “हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि भारत की ऊर्जा आपूर्ति प्रणाली भविष्य के लिए तैयार हो। साइलो लोडिंग प्रणाली इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।”
भारतीय रेलवे: ऊर्जा लॉजिस्टिक्स की धुरी
भारतीय रेलवे का योगदान केवल यात्री परिवहन तक सीमित नहीं है। यह भारी माल की आवाजाही, विशेष रूप से कोयला जैसे आवश्यक ईंधन के क्षेत्र में भी बेहद महत्वपूर्ण है।
रेलवे की प्रमुख भूमिका:
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समर्पित फ्रेट कॉरिडोर: कोयला परिवहन को तेज़ करने के लिए विशेष माल गलियारों का निर्माण।
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स्पेशल वैगन डिज़ाइन: जिनसे कोयले का गिरना, बिखरना और नुकसान न के बराबर होता है।
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24×7 निगरानी और कंट्रोल रूम: हर साइलो और ट्रैकिंग पॉइंट से डेटा एकत्र कर समन्वित कार्य प्रणाली।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “भारतीय रेलवे भारत की ऊर्जा की जीवनरेखा है। हमने लॉजिस्टिक्स का आधुनिकीकरण कर ऊर्जा क्षेत्र को एक नया संबल प्रदान किया है।”
मानसून की चुनौती और ऊर्जा सुरक्षा की रणनीति
भारत में मानसून एक ओर कृषि के लिए अमृत है, वहीं दूसरी ओर खनन और परिवहन गतिविधियों के लिए बड़ी चुनौती भी। भारी वर्षा के कारण खदानों में जलभराव, सड़कों की खराब स्थिति और रेलवे ट्रैक पर बाधाएं उत्पन्न होती हैं। ऐसे में पूर्व नियोजित कोयला भंडारण नीति अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
भंडारण की रणनीति:
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थर्मल पावर प्लांट्स में 25 दिन का स्टॉक: जिससे अचानक मांग बढ़ने पर भी आपूर्ति बाधित न हो।
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मॉनसून के पहले भंडारण बढ़ाना: मई-जून में कोयले की आपूर्ति को प्रोत्साहित करना।
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मल्टी-लोडिंग पॉइंट्स: जिससे एक क्षेत्र में बारिश से बाधा होने पर अन्य क्षेत्रों से आपूर्ति जारी रखी जा सके।
ऊर्जा क्षेत्र में साइलो लोडिंग के बहुआयामी लाभ
साइलो प्रणाली न केवल लॉजिस्टिक्स का आधुनिकीकरण है, बल्कि यह एक स्थायी, टिकाऊ और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील प्रणाली भी है।
प्रमुख लाभ:
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पर्यावरण संरक्षण: कम धूल और उत्सर्जन।
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श्रमिकों की सुरक्षा: मैनुअल हस्तक्षेप में कमी।
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गति में तीव्रता: पारंपरिक प्रणाली के मुकाबले लोडिंग की गति दोगुनी।
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लागत में कमी: दक्षता और कम नुकसान से लॉजिस्टिक्स लागत घटती है।
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ऊर्जा आपूर्ति की सटीकता: सटीक मात्रा और समय पर आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
2030 का विजन: ऊर्जा आपूर्ति में साइलो प्रणाली का आधिपत्य
भारत सरकार का दीर्घकालिक लक्ष्य है कि 2030 तक थर्मल पावर प्लांट्स में कोयले की आपूर्ति का 50% हिस्सा साइलो लोडिंग प्रणाली से हो। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा रहे हैं:
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साइलो परियोजनाओं का तेजी से कार्यान्वयन।
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Public-Private Partnership (PPP) के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी।
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रेलवे नेटवर्क का विस्तार और मालगाड़ियों की संख्या में वृद्धि।
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IoT, AI और डेटा एनालिटिक्स पर आधारित निर्णय प्रणाली का विकास।
कोयला मंत्रालय की दूरदर्शिता: संतुलित ऊर्जा नीति
कोयला मंत्रालय का मानना है कि जब तक अक्षय ऊर्जा पूर्णतः कार्यशील नहीं होती, तब तक कोयला आधारित थर्मल ऊर्जा देश की आधारभूत आवश्यकता बनी रहेगी। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए मंत्रालय ने न केवल लॉजिस्टिक्स पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि पर्यावरणीय दायित्वों को भी प्राथमिकता दी है।
पर्यावरणीय उपाय:
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खनन क्षेत्र का पुनर्वनीकरण।
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धूल नियंत्रण प्रणाली का कार्यान्वयन।
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जल संरक्षण उपाय।
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‘माइन टू मॉडर्निटी’ पहल, जिससे खनन और ऊर्जा आपूर्ति में तकनीकी समावेश हो।
निष्कर्ष: ऊर्जा सुरक्षा की नई परिभाषा
भारतीय रेलवे और कोयला मंत्रालय के सामूहिक प्रयासों ने भारत की ऊर्जा आपूर्ति प्रणाली को एक नई ऊँचाई प्रदान की है। साइलो लोडिंग प्रणाली के माध्यम से देश न केवल ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहा है, बल्कि यह एक आधुनिक, पारदर्शी और दक्ष आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण की दिशा में भी अग्रसर है।