
चांदी अंतरराष्ट्रीय बाजार में नरमी का असर घरेलू कीमतों पर, 13 जुलाई को बना था अब तक का रिकॉर्ड उच्च स्तर
दिनांक : 16.07.2025 | Koto News | KotoTrust |
चांदी के बाजार में खरीदारी की सोच रहे ग्राहकों के लिए राहतभरी खबर है। बीते दो दिनों में चांदी की कीमतों में ज़बरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (आईबीजेए) की ओर से बुधवार सुबह जारी कीमतों के मुताबिक, चांदी के दाम 2,871 रुपए प्रति किलो तक गिर गए हैं
देश भर के सर्राफा बाजारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। जानकारों के मुताबिक, इस कमी का मुख्य कारण वैश्विक बाजार में चांदी की कीमतों में आई नरमी है, जहां भाव 39.5 डॉलर प्रति औंस के ऑल-टाइम हाई से घटकर अब 38.15 डॉलर प्रति औंस पर आ गया है।
आईबीजेए प्रतिदिन दो बार — सुबह और शाम — कीमती धातुओं के औसत बाजार मूल्य जारी करता है, जो देश के प्रमुख सर्राफा बाज़ारों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित होते हैं। इनकी गणना से आम खरीदार और निवेशक दोनों को ही बाजार की सही तस्वीर मिलती है। मंगलवार से बुधवार के बीच कीमतों में आई गिरावट ने त्योहारी सीजन से पहले आम लोगों के लिए एक अच्छा अवसर प्रस्तुत किया है।
10 जुलाई से लेकर 13 जुलाई तक के दौरान चांदी की कीमतों में तेज़ी का रुख रहा था। 10 जुलाई को चांदी 1,06,900 रुपए प्रति किलो के भाव पर थी, जो महज़ तीन दिनों में 6,967 रुपए की बढ़त के साथ 1,13,867 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई। यह चढ़ाव चांदी के निवेशकों के लिए लाभ का अवसर था, जबकि अब आई गिरावट उन ग्राहकों के लिए अनुकूल है जो अब तक निवेश नहीं कर पाए थे।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के सीनियर कमोडिटी एनालिस्ट सौमिल गांधी ने बताया कि चांदी की कीमतों में हालिया उछाल और अब गिरावट के पीछे वैश्विक बाज़ार में अस्थिरता एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा, चांदी को अब सोने के विकल्प के रूप में अधिक देखा जा रहा है। निवेशक इसे एक सुरक्षित और लाभकारी निवेश मानते हैं। सिल्वर ईटीएफ में निवेश की बढ़ती प्रवृत्ति इस धारणा को और मज़बूती देती है।
चांदी की कीमतों में इस साल की शुरुआत से अब तक 29.03% की बढ़ोतरी देखी गई है। 1 जनवरी 2025 को चांदी 86,017 रुपए प्रति किलो के स्तर पर थी, जबकि अब यह 1,10,996 रुपए प्रति किलो पर पहुंच चुकी है। यानी करीब 24,979 रुपए प्रति किलो की बढ़त। हालांकि इस बढ़त के बावजूद हालिया गिरावट यह संकेत देती है कि बाजार में स्थिरता अभी पूरी तरह नहीं लौटी है।
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकेतकों के मुताबिक, अमेरिका और यूरोप की मौद्रिक नीतियों में नरमी और डॉलर की कमजोरी जैसे कारकों ने भी चांदी की कीमतों पर असर डाला है। चांदी की मांग औद्योगिक क्षेत्र में भी अधिक है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और सौर पैनल निर्माण में, जिससे दीर्घकालिक निवेशक इसे सुरक्षित विकल्प मानते हैं।
हालांकि, विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि मौजूदा गिरावट अल्पकालिक हो सकती है। यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिर से मांग बढ़ी, या डॉलर में और गिरावट आई, तो चांदी की कीमतें फिर से चढ़ सकती हैं। इसलिए निवेशकों को सावधानीपूर्वक निर्णय लेना चाहिए और बाज़ार के रुझानों पर निगाह बनाए रखनी चाहिए।
सर्राफा व्यापारियों का मानना है कि श्रावण मास, रक्षाबंधन और गणेश चतुर्थी जैसे आगामी त्योहारों में चांदी की मांग एक बार फिर बढ़ सकती है। गिरती कीमतें ग्राहकों को आकर्षित करेंगी और बाज़ार में खरीदारी का माहौल फिर से बनेगा।
चांदी निवेश से जुड़े प्रमुख पहलुओं की विस्तृत विवेचना निवेश के लिए सही समय
चांदी की कीमतों में बीते दो दिनों में आई तेज गिरावट ने एक बार फिर निवेशकों के सामने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह चांदी में निवेश करने का उचित समय है। विशेषज्ञों की मानें तो गिरती कीमतें अक्सर नए निवेशकों के लिए एक सुनहरा अवसर होती हैं, विशेषकर तब जब लंबे समय तक कीमतों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई हो। चांदी की कीमतों में हालिया गिरावट लगभग ₹2,900 प्रति किलो तक रही है, जो इसके पिछले उच्चतम स्तर से काफ़ी नीचे है। ऐसे में जिन निवेशकों ने पहले ऊंचे भावों पर चांदी नहीं खरीदी थी, उनके लिए यह एक तर्कसंगत प्रवेश बिंदु हो सकता है। हालांकि, निवेश करते समय व्यक्ति की जोखिम सहनशीलता, पूंजी का आकार और निवेश की समयावधि जैसे कारकों को ध्यान में रखना अनिवार्य है।
चांदी बनाम सोना: कौन बेहतर
जब सुरक्षित धातु निवेश की बात होती है, तो अधिकतर लोग स्वाभाविक रूप से सोने की ओर झुकते हैं। लेकिन चांदी भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लाभदायक विकल्प हो सकती है, विशेषकर उन निवेशकों के लिए जो कम पूंजी से शुरुआत करना चाहते हैं। चांदी का प्रमुख लाभ यह है कि इसका औद्योगिक उपयोग बहुत व्यापक है — इलेक्ट्रॉनिक्स, चिकित्सा उपकरण, सौर पैनल, बैटरियां और फोटोग्राफिक उपकरणों में चांदी का अत्यधिक उपयोग होता है। इसके विपरीत, सोना मुख्यतः आभूषण और केंद्रीय बैंकों के भंडार में संरक्षित होता है। इसलिए जब वैश्विक औद्योगिक मांग बढ़ती है, तब चांदी की कीमतों में अपेक्षाकृत अधिक तेजी देखी जाती है। हालांकि, सोना आर्थिक अनिश्चितताओं के समय अधिक स्थिर और सुरक्षित निवेश माना जाता है। इसलिए निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में दोनों धातुओं को संतुलित रूप से शामिल करने की रणनीति अपनानी चाहिए।
सिल्वर ईटीएफ का प्रभाव
पिछले कुछ वर्षों में भारत और वैश्विक बाजारों में सिल्वर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। ईटीएफ के माध्यम से निवेशक चांदी को इलेक्ट्रॉनिक रूप से खरीद और बेच सकते हैं, जिससे भौतिक चांदी रखने की आवश्यकता नहीं रहती। इस तरीके से निवेशक छोटे पूंजी में भी हिस्सा ले सकते हैं और चांदी की कीमतों से जुड़ा प्रतिफल प्राप्त कर सकते हैं। हाल ही में सिल्वर ईटीएफ में देखी गई मजबूत प्रवाह यह दर्शाता है कि निवेशक चांदी को अब एक दीर्घकालिक परिसंपत्ति के रूप में मानने लगे हैं। जैसे-जैसे निवेशक संस्थान इस सेगमेंट में प्रवेश कर रहे हैं, चांदी की कीमतों को एक नया समर्थन स्तर मिल रहा है, जिससे इसका बाजार अधिक स्थिर और संरचित बनता जा रहा है।
वैश्विक संकेतक और उनका प्रभाव
चांदी की कीमतें पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार के संकेतकों से प्रभावित होती हैं। इनमें प्रमुख भूमिका डॉलर इंडेक्स, अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ब्याज दर नीति, यूरोपीय केंद्रीय बैंक की मौद्रिक रणनीति, और भू-राजनीतिक तनाव निभाते हैं। डॉलर की ताकत चांदी जैसी कमोडिटी को महंगा या सस्ता बना सकती है — डॉलर मजबूत होगा तो चांदी महंगी लगती है और उसकी मांग घट सकती है। इसके अलावा, जब ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं, तो निवेशक आम तौर पर सुरक्षित और निश्चित प्रतिफल वाली परिसंपत्तियों की ओर रुख करते हैं, जिससे चांदी और अन्य कीमती धातुओं की मांग पर असर पड़ता है। हालिया समय में अमेरिका-चीन तनाव, यूरोपीय मंदी की आशंका और तेल बाजार की अस्थिरता जैसे घटनाक्रमों का भी सीधा प्रभाव चांदी की कीमतों पर पड़ा है।
सतर्कता और रणनीति जरूरी
भले ही चांदी को एक लाभकारी निवेश माना जा रहा हो, लेकिन इसमें सफल निवेश के लिए सावधानी और उचित रणनीति अत्यंत आवश्यक है। चांदी की कीमतों में अक्सर अस्थिरता अधिक होती है — यानी इसमें तेजी और गिरावट दोनों तेज गति से हो सकती है। अतः निवेश से पहले मौजूदा बाजार ट्रेंड, तकनीकी विश्लेषण, फंडामेंटल कारक और विशेषज्ञों की राय को समझना जरूरी होता है। इसके अलावा, निवेशकों को यह तय करना चाहिए कि वे चांदी में भौतिक निवेश करेंगे (जैसे सिक्के, बार्स, आभूषण), या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से (ईटीएफ, म्यूचुअल फंड, कॉमोडिटी ट्रेडिंग)। अपने निवेश को चरणबद्ध ढंग से करने और गिरावट के समय खरीदारी करने की रणनीति से बेहतर प्रतिफल की संभावना बढ़ जाती है।
Source : DD News