अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर श्री मनोहर लाल के नेतृत्व में पारंपरिक वेशभूषा में योगाभ्यास

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर श्री मनोहर लाल के नेतृत्व में पारंपरिक वेशभूषा में योगाभ्यास

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर भारत की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने और योग परंपरा को प्रोत्साहित करने हेतु एक विशिष्ट आयोजन संसद मार्ग स्थित ऐतिहासिक जंतर मंतर परिसर में संपन्न हुआ। इस विशेष योग सत्र का नेतृत्व भारत सरकार के केंद्रीय विद्युत तथा आवासन और शहरी कार्य मंत्री श्री मनोहर लाल जी ने किया। इस अवसर ने न केवल योग को शारीरिक एवं मानसिक संतुलन का माध्यम बताया, बल्कि इसे भारत की जीवंत सांस्कृतिक पहचान और आत्मिक विकास की परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया गया।

पारंपरिक परिधान में योग: संस्कृति से जुड़ाव का प्रतीक

इस वर्ष के योग दिवस आयोजन की विशेषता यह रही कि सभी प्रतिभागियों ने पारंपरिक भारतीय वेशभूषा धारण कर योग में भाग लिया। पुरुषों ने धोती-कुर्ता, कुर्ता-पायजामा अथवा सफेद पारंपरिक वस्त्र पहन रखे थे, वहीं महिलाओं ने साड़ी या भारतीय पारंपरिक पोशाकों में योगाभ्यास किया। इससे कार्यक्रम का वातावरण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हो गया।

केंद्रीय मंत्री श्री मनोहर लाल जी स्वयं पारंपरिक भारतीय पोशाक में योग करते हुए नजर आए, जिससे उन्होंने एक प्रेरणादायक संदेश दिया कि योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि भारतीय जीवनशैली का अभिन्न अंग है। उनकी उपस्थिति और सक्रिय भागीदारी ने उपस्थित सभी अधिकारियों, कर्मचारियों और आम नागरिकों को प्रेरित किया।

योग: भारत की अमूल्य धरोहर

कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में मंत्री श्री मनोहर लाल ने कहा:

“योग भारत की प्राचीन जीवनशैली और आध्यात्मिक परंपरा का अमूल्य उपहार है। जब हम भारतीय वेशभूषा में योग करते हैं, तो हम न केवल अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सशक्त करते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान और मूल्यों से भी गहराई से जुड़ते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि योग तन, मन और आत्मा का संतुलन है, और इसे अपनाकर व्यक्ति न केवल स्वयं को स्वस्थ रख सकता है, बल्कि अपने आस-पास सकारात्मक ऊर्जा और सामूहिक कल्याण का वातावरण भी तैयार कर सकता है।

उच्च अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी

इस विशेष योग सत्र में दोनों मंत्रालयों – विद्युत मंत्रालय तथा आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय – के वरिष्ठ अधिकारियों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (CMDs) और बड़ी संख्या में मंत्रालयों के कर्मचारियों ने भाग लिया। योगाभ्यास के दौरान सभी ने एकजुट होकर विभिन्न योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान का अभ्यास किया।

कार्यक्रम की शुरुआत वंदना और शांति मंत्रों के साथ हुई, जिसके बाद प्रशिक्षित योग शिक्षकों के मार्गदर्शन में योगासन सत्र आयोजित किया गया। पूरे आयोजन में शांति, अनुशासन और एकता का अद्वितीय वातावरण देखने को मिला।

स्वास्थ्य के साथ-साथ संस्कृति का उत्सव

यह आयोजन न केवल एक योग सत्र था, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और जीवनशैली का एक उत्सव भी था। पारंपरिक वेशभूषा में योगाभ्यास करने का विचार प्रतिभागियों के बीच अत्यंत सराहनीय रहा। इससे यह संदेश गया कि विकास की दौड़ में हमारी संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिक सोच को साथ लेकर चलना ही सच्चे भारत निर्माण की दिशा है।

कार्यक्रम में उपस्थित अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के आयोजन सिर्फ शारीरिक फिटनेस तक सीमित नहीं होते, बल्कि ये समाज में एक सकारात्मक सोच, सामूहिक अनुशासन, तथा आत्मिक विकास की भावना को भी जाग्रत करते हैं।

सामूहिक संकल्प: योग को जीवनशैली बनाएं

योग सत्र के समापन अवसर पर सभी अधिकारियों और कर्मचारियों ने सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि वे नियमित रूप से योग करेंगे और इसे अपने जीवन की दिनचर्या में शामिल करेंगे। मंत्री महोदय ने सभी से आग्रह किया:

“योग केवल 21 जून को मनाने का दिन नहीं है, बल्कि यह प्रतिदिन अपनाए जाने वाली जीवनशैली है। मैं सभी नागरिकों से आग्रह करता हूं कि वे प्रति दिन योग करें, अपने परिवार को इसके लिए प्रेरित करें और भारत की इस महान परंपरा को सशक्त बनाएं।

डिजिटल प्रसारण और सोशल मीडिया पर व्यापक सराहना

इस आयोजन को डिजिटल माध्यमों के द्वारा भी प्रचारित किया गया। कार्यक्रम की झलकियों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X (पूर्व ट्विटर), फेसबुक और यूट्यूब पर साझा किया गया, जिससे देशभर के लोगों को इससे जुड़ने का अवसर मिला। जनता ने इस अनोखे आयोजन की व्यापक सराहना की और कहा कि यह भारत की परंपरा और आधुनिकता का सुंदर संगम था।

निष्कर्ष

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित यह विशेष कार्यक्रम यह दर्शाता है कि जब नेतृत्व प्रेरणास्पद हो और उद्देश्य राष्ट्रीय संस्कृति को सशक्त करना हो, तो एक साधारण योग सत्र भी राष्ट्र निर्माण का माध्यम बन सकता है। श्री मनोहर लाल जी के नेतृत्व में आयोजित यह सत्र भारत की सांस्कृतिक आत्मा को पुनः जाग्रत करने का प्रतीक बनकर उभरा।

यह आयोजन न केवल एक स्वास्थ्य अभियान था, बल्कि यह भारतीय गौरव, सांस्कृतिक अस्मिता और आत्मिक विकास की पुनर्पुष्टि का भी सशक्त माध्यम बन गया।

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