
इज़राइल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 60 दोनों के लिए युद्ध विराम
इज़राइल और हमास के बीच आयोजित पहले अप्रत्यक्ष संघर्षविराम वार्ता दौर का समापन किसी ठोस समझौते के बिना हुआ है। फिलिस्तीनी सूत्रों के अनुसार, यह वार्ता 6 जुलाई को कतर की राजधानी में हुई थी, जिसका उद्देश्य संघर्षविराम और बंधकों की रिहाई को लेकर समझौता खोजना था। यह वार्ता ऐसे समय में हुई जब इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू वॉशिंगटन की अपनी तीसरी यात्रा पर रवाना हो रहे थे।
संघर्षविराम की संभावनाओं और भविष्य में शांति बहाल करने की दिशा में यह वार्ता बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही थी। हालांकि वार्ता का यह पहला दौर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका, फिर भी कूटनीतिक सूत्र इसे संवाद की दिशा में एक अहम कदम मान रहे हैं।
दोहा में हुए इस अप्रत्यक्ष संवाद में अमेरिकी और क़तरी मध्यस्थों ने अहम भूमिका निभाई। इस वार्ता से पहले हमास ने यह संकेत दिया था कि वह अमेरिका समर्थित संघर्षविराम प्रस्ताव के प्रति सकारात्मक रुख़ अपनाने को तैयार है। हमास के राजनीतिक प्रवक्ता ने पिछले सप्ताह कहा था कि उन्होंने अमेरिका की मध्यस्थता में प्रस्तुत किए गए प्रस्ताव का “सकारात्मक भावना में” जवाब दिया है। इसके जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में यह घोषणा की थी कि इज़राइल ने 60-दिवसीय संघर्षविराम के लिए आवश्यक शर्तों को स्वीकार कर लिया है।
प्रधानमंत्री नेतन्याहू, जो अब तक संघर्षविराम को लेकर काफी सतर्क रुख़ अपनाते रहे हैं, ने अमेरिका रवाना होने से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि इज़रायली प्रतिनिधिमंडल को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वे वही प्रस्ताव स्वीकार करें जो इज़राइल की सुरक्षा और रणनीतिक हितों के अनुकूल हो। उन्होंने यह भी दोहराया कि उनकी प्राथमिकता बंधकों की सुरक्षित रिहाई और हमास से उत्पन्न खतरे को समाप्त करना है।
नेतन्याहू ने यह भी जोड़ा कि वह वॉशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रंप के साथ होने वाली बैठक को बेहद अहम मानते हैं और उन्हें उम्मीद है कि यह वार्ता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद करेगी। उन्होंने कहा, “इस यात्रा का एक प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिका और अन्य मध्यस्थ पक्ष हमास पर अधिक दबाव बनाएं ताकि वह व्यावहारिक रुख अपनाए।”
दोहा में हुई वार्ता के पहले दौर में किसी तरह की ठोस घोषणा नहीं हुई, लेकिन मध्यस्थों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में जब दोबारा बातचीत शुरू होगी, तब अधिक रचनात्मक प्रस्ताव सामने आ सकते हैं। एक क़तरी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हालांकि कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ है, लेकिन दोनों पक्षों की ओर से कुछ संकेत मिले हैं जो आशा जगाते हैं। हम इस संवाद को बंद नहीं मानते।”
इस वार्ता की पृष्ठभूमि में हाल के सप्ताहों में ग़ज़ा पट्टी में जारी हिंसा, मानवाधिकार संगठनों की चिंता, और इज़राइल में बढ़ता राजनीतिक दबाव भी शामिल हैं। बंधकों की स्थिति को लेकर इज़राइल में लगातार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें परिजनों और नागरिक समाज के सदस्यों ने सरकार से ठोस कार्रवाई की मांग की है।
जानकारों का मानना है कि वर्तमान परिस्थिति में अमेरिका की भूमिका निर्णायक हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन की मध्यस्थता, जिसकी तीव्रता हालिया सप्ताहों में बढ़ी है, एक लंबे संघर्षविराम और संभावित शांति वार्ता की आधारशिला रख सकती है। अमेरिका, कतर और मिस्र जैसे देश इस प्रक्रिया में अहम कड़ी बने हुए हैं, लेकिन हमास और इज़राइल दोनों को लचीला रुख अपनाना होगा।
वहीं, हमास के एक वरिष्ठ नेता ने दोहा में मीडिया से कहा कि “हम स्थायी संघर्षविराम और ग़ज़ा की नाकेबंदी समाप्त करने के इच्छुक हैं, लेकिन इज़राइल को भी यह स्वीकार करना होगा कि केवल सैन्य दबाव से समाधान नहीं निकलेगा।”
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें अब नेतन्याहू और ट्रंप की बैठक पर टिकी हैं, जो 7 जुलाई को वॉशिंगटन डी.सी. में निर्धारित है। उम्मीद की जा रही है कि दोनों नेता इस बातचीत के बाद संयुक्त बयान जारी कर सकते हैं, जिसमें आगे की रणनीति स्पष्ट की जाएगी।
इज़राइल और हमास के बीच संघर्षविराम वार्ता का पहला दौर कतर की राजधानी दोहा में आयोजित किया गया। दोहा, लंबे समय से मध्यपूर्व क्षेत्र में शांतिवार्ता के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक मंच रहा है। इस शहर को तटस्थ और संवाद के लिए सुरक्षित स्थल माना जाता है, जहां पहले भी तालिबान-अमेरिका और ईरान-सऊदी जैसे शत्रु गुटों की अप्रत्यक्ष वार्ताएं हो चुकी हैं। कतर ने इस वार्ता के आयोजन में न केवल स्थल उपलब्ध कराया, बल्कि एक सक्रिय मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई।
इस वार्ता में इज़राइल और हमास के प्रतिनिधि आमने-सामने नहीं बैठे। दोनों पक्षों के बीच बातचीत मध्यस्थों के ज़रिए हुई, जिसे “अप्रत्यक्ष वार्ता” कहा जाता है। इस प्रक्रिया में अमेरिका, कतर और मिस्र जैसे मध्यस्थ देशों के अधिकारी दोनों पक्षों के बीच संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं, ताकि किसी संभावित समझौते की ज़मीन तैयार हो सके। यह फार्मेट तब अपनाया जाता है जब पक्षों के बीच सीधा संवाद असंभव या अत्यधिक तनावपूर्ण हो।
वार्ता के केंद्र में तीन प्रमुख मुद्दे रहे:
संघर्षविराम – ग़ज़ा पट्टी और दक्षिणी इज़राइल में जारी सैन्य संघर्ष को रोकने के लिए एक अस्थायी (60-दिन) या स्थायी संघर्षविराम का मसौदा तैयार करना।
बंधकों की रिहाई – हमास द्वारा पकड़े गए इज़राइली नागरिकों और सैनिकों की रिहाई की मांग, जिनकी संख्या करीब 120 मानी जा रही है।
नाकेबंदी का अंत – हमास की तरफ से ग़ज़ा की 17 वर्षों से जारी इज़रायली नाकेबंदी को समाप्त करने की शर्त रखी गई है, जो वहां की मानवतावादी स्थिति को गंभीर बना रही है।
वार्ता में तीन अंतरराष्ट्रीय ताकतों ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई:
अमेरिका – राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में अमेरिका ने इस वार्ता को प्राथमिकता दी है और इज़राइल पर दबाव बनाकर प्रस्ताव को आगे बढ़ाया।
कतर – वार्ता की मेज़बानी करने के साथ-साथ कतर ने हमास पर प्रभावी दबाव बनाने की भूमिका निभाई।
मिस्र – ऐतिहासिक रूप से ग़ज़ा और हमास से गहराई से जुड़ा हुआ, मिस्र इस प्रक्रिया में विश्वास निर्माण के लिए अहम सहयोगी है।
इन तीनों देशों के समन्वय से यह कूटनीतिक प्रयास संतुलित रूप में संचालित हो रहा है।
हमास ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि उसने अमेरिका द्वारा प्रस्तावित संघर्षविराम योजना का “सकारात्मक भावना में” जवाब दिया है। उनके अनुसार, अगर इज़राइल मानवीय सहायता, पुनर्निर्माण और बुनियादी सेवाओं की बहाली की गारंटी देता है, तो वे संघर्षविराम के लिए तैयार हैं। हमास के नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया है कि वे दीर्घकालिक स्थायी शांति के लिए इच्छुक हैं — बशर्ते फिलिस्तीनी जनता को उनके बुनियादी अधिकार मिलें।
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि इज़राइल केवल उन्हीं प्रस्तावों पर विचार करेगा जो उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा, बंधकों की रिहाई, और हमास से उत्पन्न खतरे के अंत की गारंटी दें। उन्होंने स्पष्ट किया कि इज़राइली प्रतिनिधियों को वार्ता में यह निर्देश दिया गया है कि वे किसी भी ऐसे समझौते को अस्वीकार करें जो “हमास की सैन्य क्षमताओं को बरकरार रखता हो” या “इज़राइल की सीमाओं पर खतरा पैदा करता हो।”
इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू संघर्षविराम वार्ता के बीच अमेरिका की अपनी तीसरी यात्रा पर निकले हैं। वॉशिंगटन डीसी में वे राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने वाले हैं। माना जा रहा है कि यह मुलाकात संघर्षविराम वार्ता में गतिरोध को दूर करने और अमेरिका-इज़राइल के बीच रणनीतिक समन्वय को और सुदृढ़ करने की दिशा में की जा रही है। नेतन्याहू ने रवाना होने से पहले कहा कि वे बंधकों की रिहाई और इज़राइल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका से “निर्णायक समर्थन” चाहते हैं।
हालांकि दोहा वार्ता का पहला दौर बिना किसी औपचारिक समझौते के समाप्त हो गया, लेकिन दोनों पक्षों ने आगे की बातचीत की संभावना को पूरी तरह से नकारा नहीं है। क़तरी और अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, यदि वॉशिंगटन में नेतन्याहू-ट्रंप बैठक से सकारात्मक संकेत मिलते हैं, तो अगले सप्ताह दोहा में दोबारा वार्ता आयोजित की जा सकती है। मध्यस्थों को आशा है कि पहले दौर की बातचीत से मिली स्पष्टताओं के आधार पर अगली बैठक में कुछ ठोस प्रगति हो सकेगी।