श्री ललन साहनी निषाद महाराज
सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | वीरगंज, नेपाल। निषादाचार्य श्री ललन साहनी निषाद महाराज जी ने इस पावन अवसर पर निषाद समाज और समस्त देशवासियों को धनतेरस, दीपावली, छठ पूजा, कार्तिक पूर्णिमा और भईया दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ दीं। महाराज जी ने अपने संदेश में कहा कि ये पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि समाज में प्रेम, सहयोग, समानता और सामाजिक चेतना का प्रतीक हैं। श्री ललन साहनी निषाद महाराज जी ने विशेष रूप से यह उल्लेख किया कि हर पर्व का उद्देश्य समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है। उन्होंने कहा कि जब हम दीपावली में दीप जलाते हैं या छठ पूजा में गंगा किनारे अर्घ्य अर्पित करते हैं, तो हमें केवल ईश्वर की कृपा की कामना नहीं करनी चाहिए, बल्कि समाज में भाईचारा, सहयोग और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने युवाओं को इस संदेश के माध्यम से प्रेरित करते हुए कहा कि उन्हें अपने समुदाय, संस्कृति और धर्म के प्रति सजग रहना चाहिए।
निषादाचार्य महाराज ने बताया कि धनतेरस का पर्व केवल धन और समृद्धि के लिए नहीं, बल्कि यह समाज में सौहार्द, सहयोग और एकता का संदेश फैलाने का अवसर है। दीपावली का प्रकाश मन और आत्मा को प्रकाशित करता है और समाज में प्रेम, समानता और सहिष्णुता का संदेश देता है। छठ पूजा, गंगा किनारे अर्घ्य देने की परंपरा, केवल धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, कृतज्ञता और जीवन के संतुलन का प्रतीक है। भईया दूज भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और पारिवारिक मूल्यों को सुदृढ़ बनाने का अवसर है। इस दिन भाई अपनी बहन की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करता है, और बहन अपने भाई की सुरक्षा और कल्याण की प्रार्थना करती है। महाराज जी ने इस पर्व को केवल पारिवारिक नहीं बल्कि सामाजिक समरसता और भाईचारे के प्रतीक के रूप में देखा। वहीं, कार्तिक पूर्णिमा की नाव चलाना मछुआरा और निषाद समाज के जीवन के संघर्ष और श्रम का प्रतीक है, जो उनकी मेहनत और सामाजिक योगदान को उजागर करता है।
श्री ललन साहनी निषाद महाराज जी ने कहा कि पर्वों का वास्तविक महत्व तब समझा जा सकता है, जब समाज के सभी वर्ग मिलकर इन अवसरों का पालन करते हैं। उन्होंने युवाओं को विशेष संदेश दिया कि वे केवल अपनी भौतिक उन्नति तक सीमित न रहें, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति सजग और जिम्मेदार बनें। इसके साथ ही उन्होंने निषाद, मल्लाह और मछुआरा समुदाय के उत्थान पर जोर दिया और कहा कि समाज के कमजोर वर्ग को संगठित और आत्मनिर्भर बनाना हर सदस्य का कर्तव्य है। महाराज जी ने कहा कि न केवल व्यक्तिगत श्रद्धा, बल्कि सामूहिक चेतना और सामाजिक जिम्मेदारी को पर्वों के माध्यम से मजबूत करना आवश्यक है। उन्होंने समाज के लोगों से आग्रह किया कि वे अपने जीवन में सदाचार, भाईचारा, सहयोग और परंपराओं का पालन करें। उन्होंने कहा कि जब हम अपने युवा वर्ग को सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से जोड़ेंगे, तभी समाज में स्थिरता, एकता और प्रगति संभव होगी।
निषादाचार्य श्री ललन साहनी ने कि नंदीग्राम भरतकुंड अयोध्या धाम और वीरगंज के विभिन्न स्थानों पर आगामी महीनों में सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य युवा पीढ़ी को अपने धर्म, संस्कृति और सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति सजग करना है। उन्होंने कहा कि ये पहल केवल उत्सव का माध्यम नहीं हैं, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को जोड़ने और जागरूक करने का अवसर हैं। श्री ललन साहनी निषाद महाराज जी का संदेश यह है कि पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं हैं, बल्कि यह समाज में प्रेम, भाईचारा, सहयोग और समानता का संदेश फैलाने का अवसर हैं। उनके अनुसार, निषाद, मल्लाह और मछुआरा समाज के लिए ये अवसर उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक उत्तरदायित्व और जीवन के मूल्यों को बनाए रखने का माध्यम हैं।
धनतेरस आर्थिक समृद्धि और सामाजिक सहयोग का प्रतीक धनतेरस भारतीय पर्वों की श्रृंखला की शुरुआत करता है और इसे आर्थिक समृद्धि और सामाजिक सहयोग का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व न केवल धन की देवी लक्ष्मी की पूजा का अवसर है, बल्कि समाज में परस्पर सहयोग, दान और मानवता का संदेश भी फैलाता है। महाराज श्री ललन साहनी निषाद ने अपने संदेश में कहा कि धनतेरस के दिन केवल व्यक्तिगत लाभ की कामना करना पर्याप्त नहीं है; यह समाज में आर्थिक सहयोग और सामूहिक विकास की भावना को भी बढ़ावा देने का अवसर है।
इस दिन लोग अपने घरों में साफ-सफाई और सजावट करते हैं, नए बर्तन, सोना-चांदी या अन्य उपयोगी वस्तुएँ खरीदते हैं। इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि हम केवल अपने परिवार के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी समृद्धि और सहयोग की भावना पैदा करें। पारंपरिक रूप से, धनतेरस के अवसर पर गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने की परंपरा भी रही है। महाराज जी ने कहा कि धनतेरस हमें यह याद दिलाता है कि व्यक्तिगत समृद्धि तभी मूल्यवान है, जब वह समाज और समुदाय के उत्थान में योगदान देती है। दीपावली: प्रकाश, प्रेम और एकता का पर्व धनतेरस के अगले दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। यह केवल घरों में दीप जलाने का पर्व नहीं है, बल्कि यह समाज में प्रेम, भाईचारा और एकता का संदेश फैलाता है। दीपावली का प्रकाश अज्ञान और अंधकार को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा फैलाने का प्रतीक है।
संतोष और सहयोग की भावना इस पर्व के माध्यम से समाज में प्रकट होती है। श्री ललन साहनी निषाद ने कहा कि दीपावली का मूल संदेश केवल रोशनी नहीं है, बल्कि यह चेतना और प्रेम का प्रतीक है। जब समाज के प्रत्येक व्यक्ति दीप जलाता है, वह न केवल अपने घर को रोशन करता है, बल्कि पूरे समाज में सहयोग और सामूहिक चेतना का प्रकाश भी फैलाता है। दीपावली के दिन लोग अपने घरों और मंदिरों को सजाते हैं, परिवार और मित्रों के बीच मिठाई, उपहार और शुभकामनाएँ बांटते हैं। यह पर्व समाज में मेलजोल और समानता को बढ़ावा देता है। मछुआरा, निषाद और अन्य ग्रामीण समाज इस अवसर पर विशेष रूप से नदी या तालाब किनारे दीप जलाते हैं, जो प्रकृति और जीवन के प्रति उनके सम्मान का प्रतीक है।
छठ पूजा गंगा किनारे अर्घ्य, अनुशासन और कृतज्ञता छठ पूजा भारतीय संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे मुख्य रूप से सूर्य और छठ माता की आराधना के रूप में मनाया जाता है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, कृतज्ञता और प्राकृतिक तत्वों के प्रति सम्मान का प्रतीक है। छठ पूजा के अवसर पर परिवार गंगा या किसी नदी के किनारे अर्घ्य अर्पित करते हैं। महाराज श्री ललन साहनी ने कहा कि अर्घ्य देना केवल पूजा नहीं, बल्कि यह मानव जीवन में संतुलन, परिश्रम और अनुशासन की सीख भी देता है। इस पर्व में प्रत्येक क्रिया — व्रत, अर्घ्य, नदी में स्नान समाज और परिवार के सदस्यों के बीच सहयोग और जिम्मेदारी को मजबूत करती है। छठ पूजा का महत्व बच्चों और युवाओं को पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों से जोड़ने में भी है। यह पर्व उन्हें सिखाता है कि जीवन में कृतज्ञता, परिश्रम और ईश्वर तथा समाज के प्रति सम्मान का संतुलन जरूरी है। छठ पूजा का संदेश केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना और सामाजिक समरसता का भी है।
भईया दूज भाई-बहन के रिश्तों का सुदृढ़ीकरण भईया दूज भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और पारिवारिक मूल्य स्थापित करने का पर्व है। इस दिन बहन अपने भाई के लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती है, और भाई अपनी बहन की सुरक्षा और कल्याण की प्रार्थना करता है। महाराज जी ने कहा कि भईया दूज केवल परिवार का पर्व नहीं है, बल्कि यह समाज में सहयोग, प्रेम और भाईचारे की भावना को मजबूत करने का अवसर भी है। इस दिन का उत्सव समाज के प्रत्येक सदस्य में पारिवारिक जिम्मेदारी, सम्मान और मेलजोल की भावना पैदा करता है। यह पर्व युवा पीढ़ी को पारंपरिक मूल्यों, परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य और आदर्श सिखाने का अवसर भी देता है।
भाई-बहन के बीच स्नेह और सहयोग को उजागर करने के लिए इस दिन विभिन्न सांस्कृतिक और सामूहिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। यह पर्व समाज में समानता और मेलजोल का प्रतीक बनकर उभरता है। कार्तिक पूर्णिमा: मछुआरा समाज के श्रम और परिश्रम का सम्मान कार्तिक पूर्णिमा मछुआरा और निषाद समाज के जीवन, परिश्रम और समाज में योगदान का पर्व है। इस दिन लोग जलाशयों और नदियों में नाव चलाकर अपने पेशे और जीवन के संघर्ष को प्रदर्शित करते हैं। यह पर्व मेहनतकश समाज के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक है।
महाराज श्री ललन साहनी ने कहा कि कार्तिक पूर्णिमा केवल पर्व नहीं, बल्कि यह सामाजिक चेतना और जीवन के मूल्य को उजागर करने का अवसर है। मछुआरा समाज के लोग इस दिन नदी और तालाब में नौकायन के माध्यम से अपनी मेहनत, प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान और समाज में योगदान का संदेश देते हैं। यह पर्व युवाओं को परिश्रम, समर्पण और सामाजिक जिम्मेदारी का महत्व भी सिखाता है। कार्तिक पूर्णिमा समाज में मेहनतकश वर्ग की प्रतिष्ठा और उनके परंपरागत पेशे के महत्व को याद दिलाता है। यह पर्व न केवल मछुआरा और निषाद समाज के लिए गर्व का अवसर है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को संस्कृति, श्रम और सामाजिक उत्तरदायित्व से जोड़ने का माध्यम भी है।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)