लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने कहा है कि संसदीय प्राक्कलन समितियाँ सरकार की विरोधी नहीं बल्कि सहायक और सुधारात्मक साधन हैं, जिनका उद्देश्य शासन व्यवस्था को उत्तरदायी, पारदर्शी और प्रभावी बनाना है। वे सोमवार और मंगलवार को मुंबई स्थित महाराष्ट्र विधान भवन में आयोजित राष्ट्रीय प्राक्कलन समिति सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
यह दो दिवसीय सम्मेलन भारत की संसद और विभिन्न राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं की प्राक्कलन समितियों के अध्यक्षों और सदस्यों को एक मंच पर लाने वाला एक ऐतिहासिक अवसर रहा। सम्मेलन में देश के 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की समितियों ने भाग लिया।
लोकतांत्रिक शासन में तकनीक और पारदर्शिता की भूमिका
लोकसभा अध्यक्ष श्री बिरला ने अपने समापन भाषण में कहा कि लोकतंत्र को मजबूत और प्रभावी बनाने के लिए प्रौद्योगिकी-संचालित शासन, वित्तीय अनुशासन और संस्थागत तालमेल अत्यंत आवश्यक हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से रेखांकित किया कि सुशासन केवल नीतियों और कानूनों के सहारे नहीं चलता, बल्कि उसकी सफलता शासन के विभिन्न अंगों के संपर्क, समन्वय और पारदर्शिता पर निर्भर करती है।
उन्होंने कहा, “प्रौद्योगिकी जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल निगरानी तंत्र का समुचित उपयोग करके प्राक्कलन समितियाँ न केवल सरकारी व्यय की निगरानी बेहतर कर सकती हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सकती हैं कि प्रत्येक रुपया जनकल्याण में उपयोग हो।”
सरकार के साथ सहयोगी दृष्टिकोण
श्री बिरला ने दोहराया कि संसदीय समितियों का कार्य सरकार की आलोचना करना नहीं, बल्कि रचनात्मक आलोचना एवं सुझाव देना है। उन्होंने कहा, “प्राक्कलन समितियाँ कार्यपालिका और विधायिका के बीच सेतु का कार्य करती हैं। वे अच्छी तरह से शोध आधारित सिफारिशें प्रस्तुत करके शासन को अधिक उत्तरदायी, पारदर्शी और परिणामोन्मुख बनाती हैं।”
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि समितियों की भूमिका महज़ व्यय का मूल्यांकन करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि योजनाएँ प्रभावी, प्रासंगिक और नागरिकों के लिए सुलभ हों।
बजट अनुमानों पर सशक्त निगरानी की वकालत
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि प्राक्कलन समितियों को चाहिए कि वे यह सुनिश्चित करें कि बजट में स्वीकृत प्रत्येक व्यय वास्तव में ज़मीनी स्तर पर जनसेवा और कल्याण में परिवर्तित हो। उन्होंने खास तौर पर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) जैसे तकनीकी नवाचारों का उदाहरण देते हुए कहा कि यह प्रणाली भ्रष्टाचार में कमी और लाभार्थियों तक प्रत्यक्ष पहुँच सुनिश्चित करने का उत्तम उदाहरण है।
उन्होंने कहा कि समिति सदस्य जनप्रतिनिधि होते हैं और उन्हें जमीनी हकीकत की जानकारी होती है, जिससे वे बजट की निगरानी को अधिक मानवीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण से देख सकते हैं।
समितियों में तकनीकी क्षमता का निर्माण
श्री बिरला ने इस बात पर बल दिया कि समितियों को आधुनिक डिजिटल संसाधनों और तकनीकी जानकारी से सशक्त किया जाना चाहिए। इससे वे अधिक प्रभावी ढंग से बजट विश्लेषण कर सकेंगी और शासन को जवाबदेह बना सकेंगी।
उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि अन्य समितियों — जैसे कि विशेषाधिकार समिति, याचिका समिति और महिला सशक्तिकरण समिति — के लिए भी ऐसे सम्मेलन आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि विभिन्न विषयों पर सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं का आदान-प्रदान संभव हो सके।
पारित प्रस्ताव और सम्मेलन की उपलब्धियाँ
सम्मेलन के दौरान सर्वसम्मति से छह प्रमुख प्रस्ताव पारित किए गए। इन प्रस्तावों में प्राक्कलन समितियों को और अधिक सक्षम, आधुनिक और जनोपयोगी बनाने के लिए एक दूरदर्शी कार्ययोजना तैयार की गई।
इन प्रस्तावों में मुख्यतः निम्नलिखित बिंदु शामिल थे:
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संसद और राज्यों की प्राक्कलन समितियों के बीच समन्वय को बढ़ावा देना
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डिजिटल तकनीक और डेटा आधारित निगरानी तंत्र का अधिक उपयोग
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प्रभावी और समयबद्ध अनुशंसाओं को लागू करने के लिए तंत्र विकसित करना
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जनहित योजनाओं की प्रासंगिकता और पहुंच की निगरानी
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लोक सहभागिता और रिपोर्ट के प्रचार को बढ़ावा देना
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प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों की व्यवस्था
अन्य गणमान्य अतिथियों का योगदान
सम्मेलन के समापन सत्र में महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी.पी. राधाकृष्णन ने विशेष संबोधन दिया। राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश, भारतीय संसद की प्राक्कलन समिति के अध्यक्ष श्री संजय जायसवाल, महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष श्री राम शिंदे, महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष श्री राहुल नार्वेकर, और विधान परिषद में विपक्ष के नेता श्री अंबादास दानवे सहित कई प्रमुख नेताओं ने सम्मेलन में भाग लिया।
महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष श्री अन्ना दादू बनसोडे ने समापन पर सभी का आभार प्रकट किया।
लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में सम्मेलन का महत्व
यह सम्मेलन भारत में प्राक्कलन समिति की 75 वर्षों की यात्रा को सम्मानित करने और उसकी प्रासंगिकता को नए संदर्भों में परिभाषित करने के लिए आयोजित किया गया था। इसका उद्देश्य दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में वित्तीय पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और प्रशासनिक दक्षता को एक नई दिशा देना रहा।
सम्मेलन का विषय था:
“प्रशासन में दक्षता और मितव्ययिता सुनिश्चित करने के लिए बजट अनुमानों की प्रभावी निगरानी और समीक्षा में प्राक्कलन समिति की भूमिका”।
निष्कर्ष
लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला के नेतृत्व में आयोजित यह सम्मेलन संसदीय लोकतंत्र में प्राक्कलन समितियों की भूमिका को नई ऊर्जा और स्पष्ट दिशा देने वाला साबित हुआ। तकनीकी प्रगति, जनभागीदारी, और पारदर्शिता जैसे मूल्यों को केंद्र में रखकर जो प्रस्ताव और विचार सामने आए हैं, वे निश्चित रूप से भारत में एक उत्तरदायी और नागरिक-केंद्रित शासन की नींव को और मजबूत करेंगे।
यह सम्मेलन आने वाले समय में विधायी संस्थाओं के लिए सहयोग, संवाद और नवाचार के नए रास्ते खोलेगा, जो अमृतकाल के भारत को और सशक्त बनाएंगे।