भारत की कृषि नीति में मक्का जैसे बहुउपयोगी अनाज को लेकर नई ऊर्जा और दिशा दिखाई दे रही है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान उसकी आत्मा। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि को लाभकारी बनाना, किसानों की आमदनी दोगुनी करना और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता है।
फिक्की द्वारा आयोजित 11वें मक्का सम्मेलन में बोलते हुए मंत्री ने मक्का उत्पादन में भारत की प्रगति को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “90 के दशक में मक्के का उत्पादन 10 मिलियन टन था, जो अब 42.3 मिलियन टन तक पहुंच चुका है। यदि वर्तमान प्रगति बनी रही तो 2047 तक भारत का मक्का उत्पादन 86.10 मिलियन टन तक पहुंच सकता है।” उन्होंने इसे विकसित भारत 2047 के संकल्प से जोड़ते हुए मक्का को “अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने वाला अनाज” बताया।
मंत्री ने यह भी बताया कि भारत में औसतन मक्का उत्पादन 3.7 टन प्रति हेक्टेयर है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह औसत राष्ट्रीय स्तर से कहीं बेहतर है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि “हमें देशभर में उत्पादन को समान रूप से ऊंचा उठाने की आवश्यकता है, जिससे किसानों की आय में निरंतर वृद्धि हो सके।”
सम्मेलन के दौरान उत्कृष्ट मक्का उत्पादक किसानों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन किसानों को बधाई देते हुए कहा, “आपने यह साबित किया है कि परंपरागत कृषि को भी आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक ज्ञान के साथ जोड़कर अभूतपूर्व परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।”
मंत्री चौहान ने कहा कि सरकार ने किसानों को वैज्ञानिकों से जोड़ने के लिए ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ की शुरुआत की। इसके अंतर्गत 11,000 वैज्ञानिकों को 60,000 से अधिक गांवों में भेजा गया ताकि वे सीधे किसानों से संवाद कर सकें। मंत्री ने कहा, “हमने देखा कि वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में काम कर रहे हैं और किसान खेतों में—दोनों अलग-अलग दिशाओं में। अब हमने इस दूरी को खत्म कर ‘लैब को लैंड’ से जोड़ दिया है।”
मक्का न केवल मानव उपभोग के लिए उपयोगी है बल्कि यह पशुपालन, पोल्ट्री फीड, स्टार्च उद्योग, एथेनॉल उत्पादन और निर्यात के लिए भी अहम है। मंत्री ने कहा कि सरकार मक्का आधारित उद्योगों को बढ़ावा दे रही है, जिससे किसानों को स्थायी बाजार और बेहतर मूल्य मिल सके। उन्होंने कहा कि “यह फसल आने वाले समय में रोजगार और आय का बड़ा स्रोत बन सकती है।”
मंत्री ने बताया कि सरकार उन्नत बीज, ड्रिप सिंचाई, मौसम आधारित सलाह और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से मक्का उत्पादन को और बढ़ावा दे रही है। इसके अतिरिक्त किसानों को कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs), आईसीएआर संस्थानों और राज्यों के कृषि विभागों के जरिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
“हमारी नीति किसानों को सशक्त करने की है, जिससे वे आत्मनिर्भर बनें। कृषि केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की धुरी है।”
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित 11वां मक्का सम्मेलन देश के मक्का उत्पादक किसानों, वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और कृषि उद्योग के लिए एक ऐतिहासिक अवसर बनकर सामने आया। इस सम्मेलन का आयोजन फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की – FICCI) द्वारा 7 जुलाई 2025 को नई दिल्ली में किया गया। इसका उद्देश्य न केवल मक्का उत्पादन के वर्तमान स्वरूप की समीक्षा करना था, बल्कि भविष्य की रणनीतियों और विकास की संभावनाओं को भी स्पष्ट करना था।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की। उन्होंने सम्मेलन में स्पष्ट रूप से कहा कि मक्का उत्पादन में भारत की उपलब्धियां उत्साहजनक हैं, लेकिन अभी बहुत संभावनाएं शेष हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 90 के दशक में मक्के का उत्पादन 10 मिलियन टन था, जबकि वर्तमान में यह बढ़कर 42.3 मिलियन टन तक पहुंच चुका है। यह आंकड़ा इस बात का प्रमाण है कि किसानों की मेहनत, नीतिगत सुधार और वैज्ञानिक हस्तक्षेप के कारण मक्का एक उभरती हुई प्रमुख फसल बन चुकी है।
मंत्री ने 2047 तक मक्का उत्पादन को 86.10 मिलियन टन तक ले जाने का लक्ष्य रखा, जो कि विकसित भारत 2047 के विजन के साथ तालमेल रखता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जरूरी है कि राष्ट्रीय औसत उत्पादन, जो वर्तमान में 3.7 टन प्रति हेक्टेयर है, उसे बेहतर बनाया जाए। बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इस दिशा में पहले ही अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, क्योंकि इन राज्यों में मक्का का उत्पादन राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
मंत्री ने इस अवसर पर “विकसित कृषि संकल्प अभियान” का विशेष रूप से उल्लेख किया। इस पहल का उद्देश्य किसानों और वैज्ञानिकों के बीच सीधा संवाद स्थापित करना तथा ‘लैब से लैंड’ तक की दूरी को समाप्त करना है। इस अभियान के तहत करीब 11,000 वैज्ञानिकों ने देश के 60,000 से ज्यादा गांवों का दौरा किया, और वहां किसानों को वैज्ञानिक खेती के तौर-तरीके, उन्नत बीज, कीट नियंत्रण, जल प्रबंधन, और नवाचार की जानकारी दी।
इस अभियान के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि किसान अपने खेतों में वैज्ञानिक सलाह और तकनीक के साथ काम करें ताकि उत्पादन क्षमता को और बेहतर बनाया जा सके। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और राज्य कृषि विभागों को सक्रिय भूमिका दी गई है। प्रशिक्षण, प्रदर्शन और सलाह की समन्वित प्रणाली से किसानों को लाभ मिल रहा है।
सम्मेलन में उन किसानों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया, जिन्होंने मक्का उत्पादन में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। यह न केवल उनके लिए सम्मान की बात रही, बल्कि बाकी किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी। इस सम्मान के पीछे यह सोच है कि कृषि में उत्कृष्टता को मान्यता देकर अन्य किसानों को भी प्रोत्साहित किया जाए।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि “लैब और लैंड की दूरी को खत्म करना, किसानों और वैज्ञानिकों को एक साथ लाना और तकनीक को खेत तक पहुंचाना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।” उन्होंने यह भी दोहराया कि सरकार का लक्ष्य केवल उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि खेती को लाभकारी और टिकाऊ बनाना है।
यह सम्मेलन भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की छत्रछाया में आयोजित 11वां मक्का सम्मेलन था, जो मक्का उत्पादन और इससे जुड़े विषयों पर केंद्रित था।
इस कार्यक्रम का आयोजन फिक्की (FICCI) ने किया, जो भारत की प्रमुख औद्योगिक संस्था है और कृषि सहित कई क्षेत्रों में नीति संवाद और कार्यक्रम आयोजित करती है।
7 जुलाई 2025, नई दिल्ली में इस सम्मेलन का भव्य आयोजन हुआ।
शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय कृषि मंत्री, ने इस सम्मेलन में प्रमुख वक्ता के रूप में भाग लिया और दिशा-निर्देश दिए।
वर्तमान में भारत का मक्का उत्पादन 42.3 मिलियन टन है, जो एक दशक पहले के मुकाबले चार गुना अधिक है।
1990 के दशक में मक्का उत्पादन मात्र 10 मिलियन टन था, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि भारत इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ा है।
भारत का लक्ष्य है कि 2047 तक मक्का उत्पादन को 86.10 मिलियन टन तक पहुंचाया जाए, जिससे यह फसल आत्मनिर्भर भारत की नींव बने।
वर्तमान में देश का मक्का उत्पादन औसतन 3.7 टन प्रति हेक्टेयर है, जिसे अगले दशक में 5 टन/हेक्टेयर तक ले जाने का लक्ष्य है।
बिहार और पश्चिम बंगाल को मक्का उत्पादन में अग्रणी माना गया है, जहां किसानों ने नई तकनीक और पद्धतियों को तेजी से अपनाया है।
‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के माध्यम से सरकार ने वैज्ञानिकों को किसानों के साथ जोड़कर ज्ञान और अनुभव का आदान-प्रदान सुनिश्चित किया।इस अभियान में 11,000 से अधिक वैज्ञानिकों ने सीधे 60,000 गांवों में जाकर किसानों को प्रशिक्षण और मार्गदर्शन प्रदान किया।
लैब और खेतों के बीच की दूरी को कम करना। खेती को वैज्ञानिक आधार देना ताकि उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार हो सके।
किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र, ICAR संस्थानों और राज्य कृषि विभागों के माध्यम से तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा रहा है।मंत्री का स्पष्ट संदेश था: “लैब और लैंड की दूरी खत्म करें” – यानी प्रयोगशाला और खेत को जोड़ा जाए।उत्कृष्ट मक्का उत्पादक किसानों को समारोह में सम्मानित किया गया, ताकि अन्य किसान भी प्रेरणा लेकर आधुनिक कृषि अपनाएं।