देहरादून प्रोजेक्ट एलीफेंट की 21वीं संचालन समिति बैठक मानव-हाथी संघर्ष प्रबंधन 

देहरादून प्रोजेक्ट एलीफेंट की 21वीं संचालन समिति बैठक मानव-हाथी संघर्ष प्रबंधन 

भारत के वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव – प्रोजेक्ट एलीफेंट की 21वीं संचालन समिति की बैठक – 26 जून, 2025 को देहरादून स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी (IGNFA) में संपन्न हुई। इस उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने की। बैठक का मुख्य फोकस हाथी संरक्षण की वर्तमान स्थिति की समीक्षा और मानव-हाथी संघर्ष के समाधान हेतु भावी रणनीति पर रहा।

इस बैठक में विभिन्न राज्यों के वन विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, हाथी विशेषज्ञ, प्रमुख संरक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि, वैज्ञानिक, और समुदाय-आधारित संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। बैठक का आयोजन न केवल नीति-निर्माण के दृष्टिकोण से, बल्कि जमीनी स्तर पर संरक्षण कार्य को और अधिक प्रभावशाली और सहभागी बनाने के इरादे से भी किया गया।


भाग 1: परियोजना एलीफेंट – एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत सरकार ने वर्ष 1992 में “प्रोजेक्ट एलीफेंट” की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य देश में हाथियों की आबादी की रक्षा करना, उनके निवास स्थान का संरक्षण और प्रबंधन करना तथा मानव-हाथी संघर्ष को कम करना था। भारत एशियाई हाथियों की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है और यह जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।

तीन दशकों में, प्रोजेक्ट एलीफेंट ने कई राज्यों में हाथी रिजर्व स्थापित किए हैं, उनके गलियारों की रक्षा की है, तथा जन-जागरूकता और अनुसंधान को बढ़ावा देकर हाथी संरक्षण को एक समावेशी सामाजिक आंदोलन में बदलने का प्रयास किया है।


भाग 2: संचालन समिति की 21वीं बैठक – प्रमुख एजेंडा

इस वर्ष की बैठक में निम्नलिखित बिंदुओं को प्राथमिकता दी गई:

  1. मानव-हाथी संघर्ष का समाधान

  2. सामुदायिक भागीदारी को संरचनात्मक स्वरूप देना

  3. जमीनी कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा और संसाधन सुदृढ़ीकरण

  4. डेटा संग्रह और विश्लेषण की आधुनिक प्रणाली का विकास

  5. प्रमुख संस्थानों के बीच सहयोगात्मक ढांचा

  6. संरक्षण प्रौद्योगिकी में नवाचार


भाग 3: केंद्रीय मंत्री श्री भूपेंद्र यादव का दृष्टिकोण

श्री यादव ने बैठक में अपने उद्घाटन भाषण में कहा:

“हाथी न केवल भारत की समृद्ध जैवविविधता का प्रतीक हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना का भी अभिन्न हिस्सा हैं। वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम तभी सफल हो सकता है जब उसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित हो।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि हाथियों के साथ सह-अस्तित्व की दिशा में सभी हितधारकों — सरकार, वैज्ञानिक समुदाय, रेलवे, बिजली मंत्रालय, खनन कंपनियाँ और स्थानीय लोग — को एकजुट होकर कार्य करना होगा।


भाग 4: मानव-हाथी संघर्ष – एक बड़ी चुनौती

मानव-हाथी संघर्ष आज भारत के कई राज्यों में एक बड़ी चुनौती बन चुका है। यह संघर्ष न केवल मानव जीवन और संपत्ति के लिए जोखिम है, बल्कि हाथी संरक्षण के प्रयासों को भी प्रभावित करता है। बैठक में यह बात प्रमुखता से उठाई गई कि यह संघर्ष विशेष रूप से उन क्षेत्रों में तीव्र है जहाँ वनवासी समुदाय और हाथी एक ही भू-क्षेत्र में रहते हैं।

इस दिशा में की गई पहलें:

  • मानव-हाथी संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों की पहचान

  • समर्पित डेटा संग्रह प्रणाली का निर्माण

  • रेलवे दुर्घटनाओं में हाथियों की मृत्यु पर एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट

  • विद्युत झटकों और खनन गतिविधियों से हाथियों को बचाने के उपाय


भाग 5: समुदाय की भूमिका – संरक्षण की रीढ़

बैठक में ज़ोर दिया गया कि संरक्षण कार्यक्रमों में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भूमिका अनिवार्य है। मंत्री महोदय ने कहा कि:

“जिन क्षेत्रों में मानव और हाथियों के बीच संघर्ष अधिक है, वहाँ समुदाय को समस्या का भागी नहीं, बल्कि समाधान का केंद्र बनाना होगा।”

उदाहरणस्वरूप, असम और झारखंड में सामुदायिक निगरानी समितियाँ हाथी गतिविधियों पर नजर रख रही हैं और समय रहते वन विभाग को जानकारी दे रही हैं।


भाग 6: प्रमुख संस्थानों की भूमिका और समन्वय

कई शीर्ष संस्थानों ने प्रोजेक्ट एलीफेंट के विभिन्न आयामों पर अपने अनुभव और शोध साझा किए। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित संस्थान रहे:

  • 1. सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON): जन-जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन पर जोर

    कोयंबटूर स्थित SACON, जैव विविधता और प्राकृतिक इतिहास से संबंधित अनुसंधान में अग्रणी संस्था रही है। संचालन समिति की बैठक में SACON ने मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए जन-जागरूकता अभियानों की महत्ता पर जोर दिया।

    संस्थान द्वारा सुझाए गए बिंदु:

    • संघर्ष प्रभावित गांवों में लक्षित जागरूकता कार्यक्रम

    • स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा आधारित संरक्षण अभियान

    • ऑडियो-विजुअल टूल्स, लोक गीत, नुक्कड़ नाटक आदि के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन

    SACON ने यह भी सुझाव दिया कि हाथी गलियारों में बसे समुदायों के साथ सतत संवाद स्थापित कर स्थानीय सामाजिक-पर्यावरणीय ताने-बाने को समझते हुए समाधान तैयार किए जाएं।


    2. भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (IIFM), भोपाल: नीति और प्रबंधन रणनीतियों का सशक्त आधार

    IIFM ने संरक्षण योजनाओं में नीति और रणनीतिक प्रबंधन के दृष्टिकोण को मजबूत करने की दिशा में अपने अनुभव साझा किए। संस्थान ने विशेष रूप से संरक्षण परियोजनाओं में सामुदायिक भागीदारी के मॉडल प्रस्तुत किए, जो आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय आयामों को संतुलित करते हैं।

    प्रमुख योगदान:

    • ईको-डेवलपमेंट समितियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम

    • हाथी-आश्रित पर्यटन गतिविधियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी

    • एमईई (Management Effectiveness Evaluation) मॉडल्स का विकास

    • संरक्षण आधारित आजीविका योजनाएं

    IIFM ने यह भी प्रस्तावित किया कि भारत के सभी हाथी रिजर्व्स में प्रबंधन दक्षता मूल्यांकन (MEE) की एकीकृत प्रणाली लागू की जाए।


    3. भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), देहरादून: अनुसंधान, निगरानी और संरक्षण तकनीकों का केंद्र

    WII देश के वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में शीर्ष अनुसंधान संस्थान है। प्रोजेक्ट एलीफेंट की बैठक में WII ने हाथियों की निगरानी, डीएनए प्रोफाइलिंग, गलियारा पहचान और दुर्घटनाओं के विश्लेषण के क्षेत्रों में अपने योगदान को साझा किया।

    प्रमुख प्रयास:

    • बंदी हाथियों की डीएनए प्रोफाइलिंग (22 राज्यों में 1911 प्रोफाइल पूर्ण)

    • गलियारा-आधारित माइग्रेशन पैटर्न का अध्ययन

    • हाथी-ट्रेन टकराव की रोकथाम के लिए डेटा एनालिटिक्स आधारित रिपोर्ट

    • जीआईएस मैपिंग और रीयल-टाइम ट्रैकिंग प्रौद्योगिकी

    WII ने यह सुझाव दिया कि रेलवे और वन विभाग के बीच रिस्पॉन्स प्रोटोकॉल विकसित किए जाएं ताकि रेलवे पटरियों पर हाथियों की उपस्थिति की सूचना तुरंत संबंधित अधिकारियों तक पहुंच सके।


    4. राज्य वन प्रशिक्षण संस्थान (SFTIs): जमीनी कर्मचारियों का क्षमता निर्माण

    हर राज्य के पास अपना वन प्रशिक्षण संस्थान होता है, जिन्हें हाथी क्षेत्रों में कार्यरत अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी दी जाती है। संचालन समिति में यह स्वीकार किया गया कि हाथी संरक्षण के संदर्भ में फील्ड स्टाफ की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।

    SFTIs द्वारा सुझाए गए पहल:

    • हाथी व्यवहार, माइग्रेशन और संघर्ष प्रबंधन पर विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल

    • प्राथमिक चिकित्सा, हाथी टेम्पलेट प्रोफाइलिंग, और मानव-सुरक्षा उपायों का प्रशिक्षण

    • संकट प्रबंधन और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली

    इसके अलावा, SFTIs ने WII और IIFM के साथ साझा पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने की दिशा में पहल की बात कही।

इन संस्थानों को जन-जागरूकता, डेटा विश्लेषण, प्रशिक्षण और नीति-निर्माण में एक दूसरे के पूरक के रूप में कार्य करने का सुझाव दिया गया।


भाग 7: आंकड़ों का प्रभाव – रणनीतिक योजना का आधार

बैठक में प्रस्तुत किए गए प्रमुख आंकड़ों ने रणनीति निर्माण को और अधिक सटीक आधार प्रदान किया:

  • 3,452.4 किमी के संवेदनशील रेलवे खंडों का सर्वेक्षण पूरा

  • 77 उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान

  • 22 राज्यों में बंदी हाथियों के 1,911 डीएनए प्रोफाइल तैयार

  • पूर्वोत्तर राज्यों में 16,500 गोबर नमूने एकत्रित

  • नीलगिरि हाथी रिजर्व के लिए मॉडल ईसीपी निर्माणाधीन


भाग 8: महत्वपूर्ण दस्तावेज और रिपोर्टें

बैठक में जिन महत्वपूर्ण दस्तावेजों का विमोचन किया गया, वे थे:

  • हाथी-ट्रेन टकराव पर सुझावात्मक रिपोर्ट

  • 23 वर्षों के मानव-हाथी संघर्ष पर आधारित राज्यवार अध्ययन

  • बंदी हाथियों के दांत ट्रिमिंग पर परामर्शी दस्तावेज

  • “ट्रम्पेट” नामक प्रोजेक्ट एलीफेंट का त्रैमासिक न्यूजलेटर


भाग 9: आगामी कार्य योजनाएं और लक्ष्य

1. विश्व हाथी दिवस – 12 अगस्त 2025, कोयंबटूर

  • गज गौरव पुरस्कारों का वितरण

  • जन-जागरूकता कार्यक्रम

2. संरक्षित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान

  • नीलगिरि ईसीपी को दिसंबर 2025 तक अंतिम रूप

  • बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन वर्षीय ट्रैकिंग प्रोजेक्ट

  • उदलगुरी परिदृश्य में समेकित संरक्षण रणनीति

  • रिपु-चिरांग हाथी रिजर्व के लिए दीर्घकालिक संरक्षण योजना

3. एमईई मूल्यांकन

  • हाथी रिजर्व में प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (Management Effectiveness Evaluation – MEE)

  • कैम्पा (CAMPA) समर्थन से संचालित


भाग 10: नीति और संरचनात्मक सुधार की दिशा

श्री भूपेंद्र यादव ने विशेष रूप से निम्नलिखित नीतिगत सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित किया:

  • रेलवे, विद्युत मंत्रालय और NHAI के साथ संयुक्त रणनीति

  • मुआवजा वितरण प्रणाली का सरलीकरण

  • जैव गलियारों की रक्षा के लिए भूमि अधिग्रहण नीति का पुनर्विचार

  • हाथियों की सीमा पार आवाजाही को ट्रैक करने के लिए साझा डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म


भाग 11: मीडिया और जन-संवाद की भूमिका

“ट्रम्पेट” जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से जागरूकता फैलाने के साथ-साथ डिजिटल मीडिया, वृत्तचित्रों, स्कूल पाठ्यक्रम और सोशल मीडिया अभियानों के माध्यम से हाथियों के प्रति समाज को संवेदनशील बनाने पर भी चर्चा हुई।


भाग 12: निष्कर्ष – संरक्षण की साझी जिम्मेदारी

बैठक का समापन इस संकल्प के साथ हुआ कि हाथी संरक्षण कोई एक विभाग या संस्था का दायित्व नहीं, बल्कि यह सरकार, वैज्ञानिकों, नागरिकों, मीडिया और उद्योग जगत की साझी जिम्मेदारी है।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *