रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय मछुआ जागरूकता सम्मेलन 2025 में नेपाल निषाद परिषद के अध्यक्ष जितेन्द्र सहनी निषाद का भव्य स्वागत हुआ। अखिल भारतीय निषाद महासंघ और राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में देशभर के मछुआ समुदाय ने एकजुट होकर आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी सशक्तिकरण का संदेश दिया। सहनी निषाद ने कहा— “नदी सीमाओं से नहीं बंधती, निषाद समाज एक प्रवाह है।” यह आयोजन निषाद समाज की एकता, शिक्षा और स्वाभिमान का प्रतीक बना।
सम्पादक : प्रिंस निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविवार को आयोजित राष्ट्रीय मछुआ जागरूकता सम्मेलन 2025 में निषाद समाज की एकता और अधिकारों की गूंज पूरे परिसर में सुनाई दी। इस भव्य आयोजन में नेपाल निषाद परिषद के अध्यक्ष जितेन्द्र सहनी निषाद का ऐतिहासिक स्वागत किया गया। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन और फूलों की वर्षा के बीच जब सहनी मंच पर पहुंचे, तो सभागार “जय निषाद राज” और “निषाद एकता ज़िंदाबाद” के नारों से गूंज उठा। आयोजन स्थल को सांस्कृतिक रूप से सजाया गया था, जहां निषाद समुदाय के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधियों और मछुआ समाज के हजारों लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस सम्मेलन का उद्देश्य था — मत्स्यजीवी समुदाय के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना तथा पारंपरिक व्यवसाय को आधुनिक तकनीक से जोड़ना। कार्यक्रम में विशेषज्ञों और समाजसेवियों ने अपने विचार रखे। उद्घाटन सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में जितेन्द्र सहनी निषाद ने कहा, निषाद समाज का इतिहास संघर्ष और साहस का प्रतीक है। आज हमें अपनी परंपराओं को वैज्ञानिक सोच के साथ जोड़कर समाज की नई दिशा तय करनी होगी।
उन्होंने मत्स्यजीवियों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार की योजनाओं का लाभ तभी मिलेगा जब समाज शिक्षित और संगठित होगा। सहनी ने भारत और नेपाल के निषाद समाज के बीच सांस्कृतिक एकता को “गंगा-जमुनी परंपरा का जीवंत उदाहरण” बताया।
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। नेपाल से आए निषाद परिषद के प्रतिनिधिमंडल का विशेष सम्मान किया गया। रायपुर के स्थानीय समाजसेवियों ने “सांस्कृतिक एकता यात्रा” के रूप में नगर में झांकी निकाली, जिसमें निषाद समाज की ऐतिहासिक वीरता और जल संस्कृति को दर्शाने वाले चित्र प्रदर्शित किए गए। आयोजन के दौरान मछुआ समुदाय की समस्याओं — जैसे मत्स्यपालन के लिए जलाशयों का आवंटन, सरकारी योजनाओं में निषाद समाज की भागीदारी, शिक्षा और स्वरोजगार — पर भी गहन चर्चा हुई। उपस्थित विशेषज्ञों ने मत्स्यजीवियों के लिए आधुनिक उपकरणों, प्रशिक्षण और डिजिटल मार्केटिंग की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के समापन सत्र में जितेन्द्र सहनी निषाद को “निषाद गौरव सम्मान 2025” से नवाज़ा गया। सम्मान समारोह में छत्तीसगढ़ राज्य मत्स्य विभाग के अधिकारियों, समाजसेवियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भाग लिया। सहनी ने अपने उद्बोधन में कहा कि “हमारी ताकत हमारी एकता में है। अगर हम शिक्षा, संगठन और संघर्ष को अपना हथियार बनाएं तो कोई भी शक्ति हमें पीछे नहीं कर सकती। उन्होंने यह भी घोषणा की कि नेपाल निषाद परिषद आने वाले वर्ष में भारत के विभिन्न राज्यों में “अंतरराष्ट्रीय निषाद एकता अभियान” चलाएगी ताकि सीमापार के निषाद समुदायों को समान अधिकार और अवसर मिल सकें। समारोह का समापन सामूहिक राष्ट्रगान और निषाद समाज के पारंपरिक नृत्य “मछुआ नाचा” के साथ हुआ। रायपुर का यह आयोजन न केवल समाजिक चेतना का प्रतीक बना बल्कि दक्षिण एशिया में निषाद समाज के अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दिशा में ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।
सरदार बलबीर जुनेजा इनडोर स्टेडियम रायपुर , रायपुर (छत्तीसगढ़)
राष्ट्रीय मछुआ जागरूकता सम्मेलन 2025 का आयोजन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सरदार बलबीर जुनेजा इनडोर स्टेडियम रायपुर में किया गया, जो राज्य का प्रमुख सम्मेलन स्थल माना जाता है। यह भवन न केवल अपनी आधुनिक सुविधाओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ अक्सर राष्ट्रीय स्तर के सामाजिक, सांस्कृतिक और नीति-निर्माण से जुड़े कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। रायपुर शहर स्वयं मध्य भारत का एक ऐसा केंद्र है जो नदियों, तालाबों और मत्स्य संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
सरदार बलबीर जुनेजा इनडोर स्टेडियम रायपुर में सुबह से ही प्रतिभागियों की आवाजाही शुरू हो गई थी। परिसर के बाहर निषाद समाज की पारंपरिक झांकियाँ सजाई गई थीं, जिनमें निषाद राज के जीवन और संघर्ष को चित्रों और मूर्तियों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। मुख्य द्वार पर “जल है तो जीवन है – निषाद समाज की पहचान” का विशाल बैनर लगा हुआ था।
कार्यक्रम स्थल के अंदर लगभग 2000 लोगों की क्षमता वाला सभागार रंग-बिरंगे निषाद ध्वजों, मत्स्यजीवी समुदाय की झंडियों और सजावटी पंडालों से सुसज्जित था। मंच के पीछे LED स्क्रीन पर “राष्ट्रीय मछुआ जागरूकता सम्मेलन 2025 – रायपुर” का लोगो लगातार प्रदर्शित हो रहा था।
रायपुर प्रशासन और राज्य मत्स्य विभाग के सहयोग से सम्मेलन के दौरान सुरक्षा, यातायात, भोजन और आवास की सुदृढ़ व्यवस्था की गई थी। प्रतिभागियों के लिए विशेष बसें और स्वागत केंद्र बनाए गए थे ताकि विभिन्न राज्यों से आने वाले प्रतिनिधियों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
इस स्थल ने आयोजन को भव्यता, गंभीरता और गरिमा प्रदान की — जिससे यह केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और संगठन का प्रतीक बन गया।
अखिल भारतीय निषाद महासंघ एवं राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ
इस सम्मेलन का आयोजन अखिल भारतीय निषाद महासंघ और छत्तीसगढ़ राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। दोनों संगठनों ने पिछले कई महीनों से इसकी तैयारी की थी। आयोजन समिति में देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था ताकि कार्यक्रम की रूपरेखा सर्वसमावेशी बन सके।
अखिल भारतीय निषाद महासंघ लंबे समय से निषाद, मछुआ, केवट, बिन्द, धीवर, राय, नाईक, मांझी और अन्य जलजीवी समुदायों के सामाजिक उत्थान के लिए कार्यरत है। इस महासंघ का मुख्य उद्देश्य है — निषाद समाज की पहचान को मुख्यधारा की नीतियों से जोड़ना, उनकी पारंपरिक आजीविका को संरक्षित करना और आधुनिक तकनीकी साधनों से सशक्त बनाना।
दूसरी ओर, राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ ने इस आयोजन को जमीनी स्तर पर सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। इस संघ ने मत्स्य व्यवसाय से जुड़ी चुनौतियों, जैसे तालाबों के लीज़ अधिकार, मत्स्य पालन के प्रशिक्षण, और बाजार व्यवस्था पर कई कार्यशालाओं का आयोजन किया।
दोनों संगठनों की यह साझेदारी “समुदाय आधारित विकास” का उदाहरण बनकर उभरी। आयोजन समिति के संयोजक ने कहा,
हमारा उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना नहीं, बल्कि समाज को आत्मनिर्भरता और सम्मान के मार्ग पर अग्रसर करना है। रायपुर सम्मेलन इसी दिशा में हमारा सामूहिक प्रयास है।”
जितेन्द्र सहनी निषाद (अध्यक्ष, नेपाल निषाद परिषद)
सम्मेलन के मुख्य आकर्षण और प्रेरणास्रोत रहे नेपाल निषाद परिषद के अध्यक्ष जितेन्द्र सहनी निषाद। वे दक्षिण एशिया में निषाद समाज की एकता और जागरूकता के प्रतीक माने जाते हैं। उनके आगमन पर भारत और नेपाल के निषाद समुदाय के बीच आत्मीयता और सहयोग की नई भावना देखने को मिली।
सहनी के स्वागत में पारंपरिक नगाड़ों, शंखनाद और फूल-मालाओं की वर्षा से वातावरण गूंज उठा। उनके मंच पर पहुंचते ही हजारों लोग खड़े होकर तालियों से उनका स्वागत करते रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा,
“निषाद समाज नदियों से जुड़ा हुआ है, और नदी सीमाओं से नहीं बंधती। इसलिए भारत और नेपाल के निषाद एक ही प्रवाह के दो किनारे हैं — हमें साथ चलना होगा, तभी जल संस्कृति की असली पहचान बचेगी।”
उनके वक्तव्य ने न केवल लोगों में गर्व की भावना जगाई बल्कि सीमा-पार सामाजिक एकता का सशक्त संदेश दिया।
जितेन्द्र सहनी ने इस अवसर पर भारत सरकार और राज्य सरकारों से अपील की कि मत्स्यजीवी समुदाय के अधिकारों को संविधानिक रूप से और मजबूत किया जाए। उन्होंने कहा कि निषाद समाज को केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि नीति निर्धारण में भागीदार बनाना समय की आवश्यकता है।
उनकी उपस्थिति ने सम्मेलन को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया और यह स्पष्ट किया कि निषाद समाज अब केवल एक स्थानीय पहचान नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में सामाजिक चेतना का उभरता हुआ स्वरूप है।
मछुआ समाज को सरकारी योजनाओं, तकनीकी ज्ञान और एकता के माध्यम से सशक्त बनाना
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था — देशभर के मछुआ समुदाय को एक मंच पर लाकर उन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी देना, मत्स्य पालन में नई तकनीकों का प्रशिक्षण देना और समाज में संगठन की भावना को सुदृढ़ करना।
कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में मत्स्य पालन केवल पारंपरिक व्यवसाय नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुका है। यदि इस क्षेत्र में आधुनिक तकनीक, वैज्ञानिक अनुसंधान और डिजिटल विपणन को अपनाया जाए, तो निषाद समाज आत्मनिर्भरता की नई ऊँचाइयों को छू सकता है।
सत्रों में “जल संसाधन प्रबंधन, सतत मत्स्य पालन, मछुआ महिला उद्यमिता, और सरकारी सहायता योजनाओं की पहुँच” जैसे विषयों पर कार्यशालाएँ आयोजित की गईं।
कार्यक्रम के दौरान समाज के युवा प्रतिनिधियों को “मछुआ उद्यमी प्रशिक्षण” के लिए नामांकित किया गया, जो आगामी छह महीनों तक सरकारी संस्थानों में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)