सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | धनतेरस और दीपावली की रौनक के बीच भोजपुरी जगत की जानी-मानी लोकगायिका रंजना निषाद ने निषाद समाज और समस्त देशवासियों को धनतेरस, दीपावली, भईया दूज, छठ पूजा और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा कि ये सभी पर्व न केवल धार्मिक उल्लास के प्रतीक हैं, बल्कि समाज में प्रेम, भाईचारा और एकता का संदेश देते हैं। रंजना निषाद ने कहा, “त्योहार हमें जोड़ते हैं, बाँटते नहीं। दीपावली का दीपक हमें यह सिखाता है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, एक छोटी लौ भी उसे मिटा सकती है। उसी तरह हमारे छोटे प्रयास समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि निषाद समाज की परंपराएँ सदियों पुरानी हैं — मेहनत, संगीत, मछलीपालन और जल संस्कृति से जुड़ी यह सभ्यता आज भी भारतीय जीवन का अभिन्न हिस्सा है। “मैं गर्व महसूस करती हूँ कि मैं निषाद समाज की बेटी हूँ और अपने गीतों के माध्यम से इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हूँ,” उन्होंने कहा। रंजना निषाद ने अपने भावनात्मक संबोधन में कहा कि संगीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने और प्रेरित करने की शक्ति है। उन्होंने कहा, “भोजपुरी लोकगीतों में जीवन की हर भावना — जन्म से लेकर मृत्यु तक — का संगीत है। ये गीत हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं।” रंजना ने यह भी कहा कि त्योहारों के अवसर पर हमें केवल सजावट और उत्सव तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपने आस-पास के जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। “दीपावली की असली रोशनी तभी सार्थक होगी जब वह किसी गरीब के घर तक पहुँचे,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
उन्होंने अपने प्रशंसकों से अपील की कि त्योहारों पर भारतीय परंपरागत वाद्य यंत्रों और लोकगीतों को प्राथमिकता दें। “भोजपुरी संगीत हमारी पहचान है, हमें इसे आधुनिकता की भीड़ में खोने नहीं देना चाहिए,” उन्होंने कहा। रंजना निषाद ने कहा कि निषाद समाज के लोग संगीत, मेहनत और ईमानदारी से जीवन जीने का प्रतीक हैं। “हमारे पूर्वज गंगा, यमुना और सरयू जैसे पवित्र नदियों से जुड़े थे। उनका जीवन जल, धरती और संगीत से गहराई से संबंध रखता था,” उन्होंने बताया। उन्होंने कहा कि त्योहार समाज में ऊर्जा और एकजुटता का संदेश देते हैं। “छठ पूजा निषाद समाज के लिए केवल पूजा नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार का पर्व है। जब महिलाएँ नदी किनारे सूर्य को अर्घ्य देती हैं, तो वह श्रद्धा, पर्यावरण और संस्कृति का सुंदर संगम होता है।”
रंजना ने कहा कि आज आवश्यकता है कि हम अपनी लोकसंस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुँचाएँ। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में लोकगीत, लोककला और लोकनृत्य को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए। “हमारी जड़ें तभी मज़बूत होंगी जब हमारी परंपराएँ जीवित रहेंगी,” उन्होंने कहा। रंजना निषाद ने निषाद समाज की महिलाओं के लिए प्रेरणादायक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि महिलाएँ समाज की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति हैं। “हर घर में माँ लक्ष्मी का वास तभी होता है जब वहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है,” उन्होंने कहा। उन्होंने समाज की महिलाओं से आग्रह किया कि वे शिक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाएँ। “गायकी, कला या व्यवसाय — हर क्षेत्र में निषाद बेटियाँ आगे बढ़ें, यही मेरी कामना है।
रंजना निषाद ने दीप प्रज्ज्वलन करते हुए कहा, “संगीत का सबसे बड़ा उद्देश्य समाज में शांति, एकता और प्रेम का संदेश देना है।” उन्होंने यह भी कहा कि कलाकार केवल मंच तक सीमित नहीं होते, बल्कि समाज के प्रतिनिधि होते हैं |उन्होंने निषाद समाज के युवाओं को प्रेरित किया कि वे संस्कृति के संवाहक बनें। “युवाओं को सोशल मीडिया पर गाली-गलौज नहीं, बल्कि अपने गीतों, विचारों और कर्मों से समाज का नाम रोशन करना चाहिए। दीपावली की शुभकामनाएँ देते हुए रंजना निषाद ने कहा कि “हर घर में दीप जलें, हर मन में संगीत बजे — यही मेरे गीतों का उद्देश्य है।
रंजना निषाद की सांस्कृतिक पुकार
भोजपुरी जगत की प्रसिद्ध लोकगायिका रंजना निषाद ने दीपावली और छठ पूजा जैसे पवित्र त्योहारों के अवसर पर अपने प्रशंसकों और समाज के लोगों से एक गहरी अपील की है कि त्योहारों की असली आत्मा स्वदेशीता, संगीत और संवेदना में बसती है, न कि केवल भव्य सजावट या आधुनिक मनोरंजन में। उन्होंने कहा कि “आज के समय में जब कृत्रिम रोशनी और इलेक्ट्रॉनिक संगीत ने गाँव-गाँव की संस्कृति को ढँक लिया है, हमें याद रखना चाहिए कि हमारे अपने लोकगीत, ढोलक, मंजीरा और हारमोनियम ही असली भारत की आवाज़ हैं। दीपावली का दीप तभी सच्चा है जब उसकी रोशनी अपने घर के साथ-साथ गाँव की मिट्टी में बसे लोक कलाकारों तक पहुँचे।”
रंजना निषाद का मानना है कि हर त्योहार सिर्फ आनंद का अवसर नहीं, बल्कि संवेदना और साझा संस्कृति का उत्सव है। उन्होंने कहा भोजपुरी लोकगीत हमारी आत्मा हैं — इन्हें जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि त्योहारों में बॉलीवुड या पश्चिमी धुनों की जगह पर स्थानीय कलाकारों, लोकगायकों और पारंपरिक गीतों को प्रमुखता दी जानी चाहिए। जब हम दीपावली या छठ पर अपने गाँव की बहनें ‘काँच ही बांस के बहँगिया’ गाती हैं, तो उसमें सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि हमारी मातृभाषा, हमारी माटी की महक, और माँ के आशीर्वाद की भावना होती है,” उन्होंने भावुक स्वर में कहा। रंजना निषाद ने युवा पीढ़ी से आग्रह किया कि वे सोशल मीडिया पर भी भोजपुरी लोकगीतों को बढ़ावा दें। “सिर्फ ट्रेंडिंग गानों पर रील बनाने से अच्छा है कि अपने गाँव की संस्कृति को ट्रेंड बनाओ,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
रंजना निषाद की प्रेरक बात
रंजना निषाद ने निषाद समाज की महिलाओं को समाज परिवर्तन की मुख्य शक्ति बताया। उन्होंने कहा कि महिलाएँ केवल घर की रानी नहीं, बल्कि समाज की धड़कन हैं। हर निषाद बेटी में एक शक्ति छिपी है, बस उसे पहचानने की ज़रूरत है,” उन्होंने गर्व से कहा। उनका मानना है कि आज के दौर में महिलाएँ सिर्फ घर तक सीमित नहीं हैं। वे मंच पर गा रही हैं, समाज में नेतृत्व कर रही हैं, और अपने परिवार को सम्मान दिला रही हैं। निषाद समाज की बेटियाँ अब मंच पर ढोलक थामे हैं, माइक पर गीत गा रही हैं, और अपने गाँव की आवाज़ बन रही हैं — यही असली बदलाव है,” उन्होंने कहा। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण केवल नारे से नहीं आता, बल्कि आत्मविश्वास, शिक्षा और समान अवसर से आता है।
एक शिक्षित निषाद बेटी सिर्फ अपने परिवार का नहीं, पूरे समाज का भविष्य बदल सकती है, उन्होंने कहा। रंजना निषाद ने यह भी बताया कि वह अपने गीतों में महिलाओं की कहानियों को विशेष रूप से स्थान देती हैं — चाहे वह गंगा किनारे अर्घ्य देने वाली माँ की श्रद्धा हो या खेतों में काम करने वाली बहन की मेहनत। भोजपुरी गीतों में जब एक औरत गाती है, तो उसमें ईश्वर की आवाज़ झलकती है उन्होंने कहा उन्होंने समाज से आग्रह किया कि बेटियों को कला, संगीत और शिक्षा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। जब हम एक बेटी को मंच देते हैं, तो पूरा समाज रोशन होता है — यही असली दीपावली है,” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।
रंजना निषाद ने यह भी कहा कि भोजपुरी गीतों का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को जोड़ना और अपनी संस्कृति को जीवित रखना है। उन्होंने कहा, “जब गाँव की गली में कोई बच्चा ‘नदी किनारे बाजे बांसुरी’ गुनगुनाता है, तो वह सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि इतिहास को जीवित रखता है। उनकी यह पहल न केवल निषाद समाज के युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ेगी,। उन्होंने अंत में कहा हम संगीत के माध्यम से नदियों, नावों और मेहनतकश हाथों की कहानी सुनाएँगे — ताकि दुनिया जाने कि निषाद समाज केवल मेहनतकश नहीं, बल्कि सुरों का साधक भी है।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)

