केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज राजधानी में आयोजित राजभाषा विभाग के ‘स्वर्ण जयंती समारोह’ को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि संघर्ष, साधना और संकल्प के आधार पर राजभाषा विभाग ने 50 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पूरी की है। इस समारोह में दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री श्री बंडी संजय कुमार, संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष श्री भर्तृहरि महताब, राज्यसभा सांसद श्री सुधांशु त्रिवेदी और विभाग की सचिव श्रीमती अंशुली आर्या सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।
स्वाभिमान और राष्ट्र चेतना में भाषा का योगदान
अपने उद्बोधन में श्री अमित शाह ने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि राष्ट्र की आत्मा होती है। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं का संवर्धन देश के आत्मगौरव, संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का सशक्त माध्यम है। श्री शाह ने जोर देते हुए कहा कि जब तक हम अपनी भाषा में सोच, अभिव्यक्ति और निर्णय लेने की क्षमता नहीं विकसित करते, तब तक हम गुलामी की मानसिकता से मुक्त नहीं हो सकते।
राजभाषा विभाग की 50 वर्षों की यात्रा
राजभाषा विभाग की स्थापना 1975 में देश के प्रशासन को नागरिकों की भाषा में संचालित करने के उद्देश्य से की गई थी। श्री शाह ने कहा कि 1975 से 2025 तक की यात्रा में विभाग ने संघर्ष, साधना और संकल्प के साथ राजभाषा नीति को मजबूत किया है। यह यात्रा भारत की आज़ादी के शताब्दी समारोह के संदर्भ में विशेष महत्व रखती है।
मोदी सरकार में भाषा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन
श्री शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाषा नीति को एक नई दिशा मिली है। उन्होंने कहा कि तकनीकी, प्रशासनिक और शैक्षिक क्षेत्रों में भारतीय भाषाओं को अभूतपूर्व बढ़ावा मिला है। मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रशासनिक और शैक्षणिक कार्यों में मातृभाषा को महत्व मिले।
श्री शाह ने उल्लेख किया कि मध्य प्रदेश में हिंदी में मेडिकल शिक्षा की शुरुआत की गई है और अन्य राज्य भी अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा का विस्तार कर रहे हैं। यह पहल विद्यार्थियों के लिए सुलभ, सशक्त और सशक्तिकरण का माध्यम बनेगी।
‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ और भाषा संगम की भूमिका
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम के अंतर्गत काशी-तमिल संगमम, सौराष्ट्र-तमिल संगमम, काशी-तेलुगु संगमम जैसे आयोजनों ने राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ किया है। श्री शाह ने बताया कि ‘भाषा संगम’ के माध्यम से देश के हर स्कूल में 22 अनुसूचित भाषाओं के 100 वाक्य बच्चों को सिखाए जा रहे हैं, जिससे बहुभाषी भारत में भाषाई समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा मिल रहा है।
राजभाषा को सशक्त बनाने के प्रयास
श्री अमित शाह ने कहा कि राजभाषा विभाग द्वारा तैयार की गई ‘हिंदी शब्दसिंधु’ एक अभिनव पहल है जो हिंदी को अधिक समावेशी, लचीला और आधुनिक बनाएगी। यह शब्दसंपदा आम बोलचाल के शब्दों को आत्मसात कर हिंदी को विभिन्न भारतीय भाषाओं से जोड़ने का कार्य करेगी।
उन्होंने यह भी बताया कि इसी वर्ष भारतीय भाषा अनुभाग की स्थापना की गई है जो राज्यों और केंद्र सरकार के प्रशासन में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देगा।
तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में भारतीय भाषाओं की पहल
श्री शाह ने बताया कि देश की 12 भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रारंभ हो चुकी है। इसके साथ ही मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में मातृभाषा में पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्होंने राज्य सरकारों से आह्वान किया कि वे भी अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा का संचालन सुनिश्चित करें।
भाषाओं को जोड़ने वाली शक्ति के रूप में हिंदी
गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि हिंदी किसी भी भारतीय भाषा की विरोधी नहीं है, बल्कि वह सभी भाषाओं की सखी है। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं मिलकर ही आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भाषा भारत को विभाजित नहीं बल्कि एकजुट करने का माध्यम बने।
शास्त्रीय भाषाओं को मिला सम्मान
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया गया। आज भारत के पास कुल 11 शास्त्रीय भाषाएं हैं, जो किसी भी देश में सबसे अधिक हैं। यह भाषाएं हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं और इन्हें समृद्ध करना हमारी ज़िम्मेदारी है।
गृह मंत्री श्री अमित शाह ने डिजिटल शिक्षा में भाषाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने ई-प्रशिक्षण के माध्यम से हिंदी भाषा, टंकण, आशुलिपि और अनुवाद का व्यापक प्रशिक्षण आरंभ किया था। यह प्रशिक्षण अब स्थायी स्वरूप में उपलब्ध है और देशभर के सरकारी कर्मचारियों, अनुवादकों तथा विद्यार्थियों को राजभाषा के कार्यान्वयन में सक्षम बनाने का कार्य कर रहा है।
इसके अतिरिक्त, भारत सरकार के ‘दीक्षा प्लेटफॉर्म’ पर 133 भाषाओं में 3.66 लाख से अधिक ई-सामग्री उपलब्ध कराई गई है। इसमें 22 अनुसूचित भाषाओं के अलावा 7 विदेशी भाषाएं भी शामिल हैं। यह सामग्री छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए एक व्यापक डिजिटल शैक्षिक संसाधन बन चुकी है।
श्री शाह ने बताया कि सरकार द्वारा भारतीय सांकेतिक भाषा में कक्षा 1 से 12 तक की पाठ्यपुस्तकों का अनुवाद और डिजिटलीकरण भी किया गया है, जिससे दिव्यांग छात्रों को समावेशी और समान शिक्षा प्राप्त हो सके।
इस पहल के अंतर्गत 200 से अधिक टीवी चैनलों पर 29 भाषाओं में शैक्षणिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इसके साथ ही ई-लर्निंग सामग्री को मोबाइल एप्स, वेब पोर्टल्स और स्मार्ट टीवी के माध्यम से सुलभ बनाया गया है। यह सभी प्रयास भारतीय भाषाओं को डिजिटल युग के अनुकूल बनाने के लिए अभूतपूर्व कदम हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भाषाई समावेशन
गृह मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कक्षा 5 और 8 तक मातृभाषा में शिक्षा पर बल दिया गया है। 22 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में प्राथमिक कक्षा की 104 पुस्तकें शुरू की गई हैं। यह नीतिगत निर्णय भारतीय भाषाओं को शिक्षा के मुख्यधारा में लाने का ऐतिहासिक प्रयास है।
सशस्त्र बलों में भाषाई सशक्तिकरण
श्री शाह ने कहा कि केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में अब हवलदार पद की परीक्षा भारतीय भाषाओं में आयोजित की जा रही है और 95 प्रतिशत परीक्षार्थी अपनी मातृभाषा में परीक्षा दे रहे हैं। यह भाषाई लोकतंत्रीकरण का उत्कृष्ट उदाहरण है।
भारतीय भाषाओं को किशोरों और युवाओं की भाषा बनाने का लक्ष्य
राजभाषा विभाग का संकल्प है कि भारतीय भाषाएं युवाओं और किशोरों की भाषा बनें। श्री शाह ने कहा कि विगत दशकों में भाषा को भारत को तोड़ने का साधन बनाने के प्रयास असफल हुए हैं और अब यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भाषाएं राष्ट्र को जोड़ने का माध्यम बनें।
निष्कर्ष
गृह मंत्री श्री अमित शाह का यह संबोधन स्पष्ट करता है कि मोदी सरकार भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और विस्तार को लेकर प्रतिबद्ध है। राजभाषा विभाग की 50 वर्षों की यात्रा ने भारत की भाषाई आत्मा को जीवंत रखा है और अब इसका अगला चरण राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में भाषाओं को केंद्रीय भूमिका देने का होगा।