जल संकट और जल प्रदूषण की चुनौती से जूझते विश्व को जल्द ही एक ऐसी स्वदेशी तकनीक मिलने जा रही है, जो सौर प्रकाश, सूक्ष्म कंपन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की मदद से न केवल जल को शुद्ध करेगी, बल्कि इसे सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टि से टिकाऊ बनाएगी। यह तकनीक भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST), मोहाली में कार्यरत वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा विकसित की गई है।
समस्या: औद्योगिक अपशिष्ट जल और जल प्रदूषण
कपड़ा, दवा और रासायनिक उद्योगों द्वारा उत्सर्जित जल में पाए जाने वाले मेथिलीन ब्लू और कांगो रेड जैसे रंगीन डाई केवल जल का रंग नहीं बिगाड़ते, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन जाते हैं। इनसे त्वचा रोग, श्वसन संबंधित समस्याएं और दीर्घकालिक विषाक्त प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं।
अब तक के जल शुद्धिकरण समाधान जैसे कि इलेक्ट्रोकेमिकल ऑक्सीकरण, ओजोन उपचार, या अन्य भौतिक-रासायनिक प्रक्रियाएं ऊर्जा और महंगे रसायनों पर निर्भर करती हैं। साथ ही, ये पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
नवाचार: 3डी-मुद्रित बायोडिग्रेडेबल जल फिल्टर
INST के शोधकर्ताओं ने इस समस्या के समाधान के रूप में एक 3डी-प्रिंटेड, बायोडिग्रेडेबल पॉलीलैक्टिक एसिड (PLA) से निर्मित जल शुद्धिकरण ढांचा (Water Purification Scaffold) विकसित किया है, जो पीजो-फोटोकैटलिटिक गुणों से युक्त है। इस ढांचे को डॉ. अविरू बसु के नेतृत्व में तैयार किया गया है।
इस पर बिस्मथ फेराइट (BiFeO₃ – BFO) नामक उत्प्रेरक की कोटिंग की गई है, जो प्रकाश और यांत्रिक ऊर्जा (जैसे कंपन) की उपस्थिति में रासायनिक प्रदूषकों को तोड़ने में सक्षम है।
क्रियाविधि: पीजो-फोटोकैटलिसिस और AI मॉडल का संयोजन
यह सिस्टम पीजो-फोटोकैटलिसिस नामक तकनीक पर आधारित है – जिसमें
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सूरज की रोशनी (फोटोकैटलिसिस)
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और हल्के कंपन (पीजो प्रभाव)
मिलकर उत्प्रेरक को सक्रिय करते हैं। इससे यह प्रणाली सामान्य सौर शुद्धिकरण की सीमाओं से आगे बढ़ती है, जैसे बादल होने पर भी प्रक्रिया जारी रहती है।
इस प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क (ANN) आधारित मॉडल का भी निर्माण किया है, जो विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में प्रणाली के प्रदर्शन की 99% तक सटीक भविष्यवाणी कर सकता है।
परिणाम: उत्कृष्ट दक्षता और पर्यावरण के अनुकूल
इस प्रणाली की प्रयोगशाला में किए गए परीक्षणों में जल के नमूनों से
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98.9% कांगो रेड डाई
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और 74.3% मेथिलीन ब्लू डाई
को सफलतापूर्वक हटाया गया, जो आज की उन्नत तकनीकों से भी बेहतर प्रदर्शन है।
यह सिस्टम
✅ कम लागत वाला
✅ दोबारा उपयोग योग्य
✅ पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल
✅ रसायन मुक्त
✅ नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित
✅ उद्योगों व ग्रामीण समुदायों दोनों के लिए उपयुक्त है।
अनुसंधान की विशेषताएं
इस पूरी परियोजना को साकार करने के लिए वैज्ञानिकों ने:
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Sol-Gel विधि द्वारा BiFeO₃ नैनोपार्टिकल उत्प्रेरक तैयार किए,
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PLA स्कैफोल्ड्स की 3D प्रिंटिंग विकसित की,
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इन ढांचों पर उत्प्रेरक की कोटिंग की,
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डाई अपघटन की प्रभावशीलता का परीक्षण किया,
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और फिर AI मॉडल के माध्यम से इसके प्रदर्शन की गणना व सुधार किया।
उपयोग की संभावनाएं
यह तकनीक:
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औद्योगिक अपशिष्ट जल प्रबंधन में क्रांति ला सकती है,
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गांवों और दूरदराज क्षेत्रों में सस्ती और कुशल जल सफाई प्रणाली प्रदान कर सकती है,
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स्कूल, अस्पताल और छोटे उद्योगों में लागू की जा सकती है,
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और सबसे महत्वपूर्ण – यह भारत की नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छ जल मिशन को मजबूती प्रदान कर सकती है।
निष्कर्ष: नवाचार और सतत भविष्य की दिशा में एक कदम
यह शोध और नवाचार इस बात का प्रमाण है कि स्थानीय वैज्ञानिक संसाधनों और पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता को आधार बनाकर भी विश्वस्तरीय समाधान विकसित किए जा सकते हैं। यह परियोजना एक ओर जल संकट और प्रदूषण की समस्या से लड़ने में मदद करती है, तो दूसरी ओर सतत विकास के लक्ष्यों, जैसे स्वच्छ जल और स्वच्छता (SDG-6), जलवायु कार्रवाई (SDG-13) और नवाचार (SDG-9) को भी साकार करती है।