भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की वह काली रात, जब संविधान को ताक पर रखकर आपातकाल थोप दिया गया। उसी ऐतिहासिक अन्याय को याद करते हुए, आज 26 जून 2025 को नई दिल्ली में “संविधान हत्या दिवस” के अवसर पर केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आपातकालीन संघर्षों पर आधारित दस्तावेज़ी पुस्तक ‘The Emergency Diaries – Years that Forged a Leader’ का भव्य विमोचन किया।
पुस्तक के विमोचन के अवसर पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री, रेल मंत्री और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव, दिल्ली के उपराज्यपाल श्री विनय कुमार सक्सेना, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता, सांसदगण, शिक्षाविद्, पत्रकार, पूर्व आंदोलनकारी, बुद्धिजीवी और अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
पुस्तक का उद्देश्य: मोदी जी के आपातकालीन संघर्षों की प्रेरणादायक यात्रा
‘The Emergency Diaries’ एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो न केवल भारत की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक लड़ाई का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे एक 25 वर्षीय युवा स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी ने तानाशाही और दमन के विरुद्ध साहसपूर्वक भूमिगत रहते हुए संघर्ष किया।
इस पुस्तक के पांच अध्यायों में विशेष रूप से शामिल किया गया है:
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मीडिया सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की हत्या
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सरकारी दमन और विपक्षियों की गिरफ्तारी
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संघ-जनसंघ की भूमिका
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आपातकाल पीड़ितों का मानवीय पक्ष
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तानाशाही से जनभागीदारी तक: लोकतंत्र की पुनर्प्राप्ति
अमित शाह का संबोधन: “जिसने तानाशाही को चुनौती दी, वही लोकतंत्र का संरक्षक बना”
पुस्तक विमोचन के पश्चात अपने भावपूर्ण संबोधन में केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह ने कहा:
“यह पुस्तक एक ऐसे युवा प्रचारक की यात्रा का संकलन है, जिसने 1975 में देश में लागू आपातकाल के समय निडरता और बुद्धिमत्ता से सत्ता के दमनकारी रूप का सामना किया और लोकतंत्र की लौ को जीवित रखा।”
श्री शाह ने विस्तार से बताया कि कैसे नरेंद्र मोदी ने जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख जैसे महान नेताओं के नेतृत्व में भूमिगत रहते हुए:
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मीसा (MISA) कानून के तहत बंद आंदोलनकारियों के परिवारों से संपर्क बनाए रखा,
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उनकी चिकित्सा और भोजन की व्यवस्था की,
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गुप्त रूप से अखबारों की छपाई, वितरण और विरोध अभियान में नेतृत्व किया।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी उस समय साधु, सरदार, हिप्पी, अगरबत्ती या अखबार विक्रेता बनकर रूप बदल-बदल कर सरकारी निगरानी को चकमा देते रहे।
परिवारवाद बनाम लोकतंत्र की लड़ाई
अमित शाह ने कहा:
“आपातकाल केवल संविधान का उल्लंघन नहीं था, बल्कि यह कांग्रेस के परिवारवाद को स्थापित करने का षड्यंत्र था। नरेंद्र मोदी जैसे राष्ट्रभक्तों ने न केवल इसका विरोध किया, बल्कि आज़ादी के बाद देश में पहली बार वैकल्पिक विचारधारा को आकार दिया।”
उन्होंने जोड़ा कि वही मोदी, जिन्होंने 1975 में लोकतंत्र की हत्या के विरोध में गांव-गांव घूमकर जनता को जागरूक किया, 2014 में प्रधानमंत्री बनकर परिवारवाद की राजनीति को उखाड़ फेंका।
अखबारों पर सेंसरशिप – स्वतंत्र पत्रकारिता का गला घोंटा गया
अमित शाह ने अपने संबोधन में कहा कि इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल लागू करते ही सबसे पहले मीडिया पर सेंसरशिप लगाई। उन्होंने कहा:
“सभी प्रमुख अखबारों को निर्देश दिए गए कि वे सरकार की अनुमति के बिना कोई समाचार न छापें। कुछ संपादकों को हटाया गया, कुछ ने इस्तीफा दे दिया। पूरे देश में केवल वही समाचार पढ़े जा सकते थे, जिन्हें सरकार ने मंजूरी दी हो।”
प्रेस की स्वतंत्रता का यह हनन इतना व्यापक था कि देश के इतिहास में पहली बार अखबारों के पहले पन्ने खाली छपे, यह दिखाने के लिए कि उन्हें कुछ लिखने की आज़ादी नहीं है।
न्यायपालिका पर दबाव – न्याय की स्वतंत्रता को बंदी बनाया गया
अमित शाह ने बताया कि उस समय न्यायपालिका पर भी असहनीय दबाव डाला गया। सुप्रीम कोर्ट के जजों को उनके फैसलों के लिए निशाना बनाया गया और जो सरकार के विरुद्ध बोले, उन्हें पदोन्नति से वंचित कर दिया गया।
उन्होंने कहा:
“देश की सबसे बड़ी अदालत से लेकर जिला न्यायालयों तक, सभी पर दबाव था कि वे सरकार के विरोध में न जाएं। यहां तक कि संविधान के मूल अधिकारों को भी स्थगित कर दिया गया।”
विपक्ष का दमन – जेलें भर दी गईं
केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि आपातकाल में लाखों विपक्षी नेताओं, समाजसेवियों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमे के जेल में ठूंस दिया गया।
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जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस सहित हज़ारों नेता महीनों जेल में बंद रहे।
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मीसा कानून (Maintenance of Internal Security Act) के तहत किसी को भी बिना कारण बताए अनिश्चितकालीन हिरासत में रखा जा सकता था।
अमित शाह ने कहा:
“यह समय केवल विचारों को बंद करने का नहीं, बल्कि इंसानों को भी बंद करने का था। उन जेलों में अमानवीय व्यवहार और मानसिक यातनाएं दी जाती थीं।”
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन – एक चुप्पी का दौर
आपातकाल ने आम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी छीन ली थी। न कोई विरोध प्रदर्शन, न सभाएं, न रैलियाँ – सरकार की अनुमति के बिना कोई आवाज़ नहीं उठ सकती थी।
अमित शाह ने कहा कि यह दौर भारतीय गणराज्य के मूलभूत अधिकारों की पूरी तरह से हत्या का प्रतीक था। उन्होंने कहा:
“आज सोशल मीडिया पर दो लाइन लिख कर हम अपने विचार प्रकट कर सकते हैं, लेकिन 1975 में तो कोई सार्वजनिक रूप से बोल भी नहीं सकता था कि वह असहमति रखता है।”
संघ और जनसंघ की भूमिका – अंधकार में दीप बन कर खड़े रहे राष्ट्रवादी
श्री शाह ने यह भी रेखांकित किया कि इस घनघोर अंधकार में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), भारतीय जनसंघ और अन्य राष्ट्रवादी संगठनों ने जनचेतना की लौ जलाए रखी।
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उन्होंने भूमिगत रहकर अखबार छापे, पर्चे बांटे, परिवारों तक राहत पहुंचाई।
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हजारों स्वयंसेवकों ने गुप्त संगठन बनाकर तानाशाही के खिलाफ जनजागरण का अभियान चलाया।
“आज की पीढ़ी को यह जानना चाहिए कि लोकतंत्र हमें मुफ्त में नहीं मिला। संघ और जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने इसे बचाने के लिए अपार त्याग किए हैं,” अमित शाह ने भावुक स्वर में कहा।
युवाओं को संदेश: पढ़ें, जानें और लोकतंत्र को मजबूत करें
गृह मंत्री अमित शाह ने युवाओं से अपील की:
“देश के युवाओं को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। यह केवल इतिहास नहीं, यह आदर्श है, एक प्रेरणा है कि एक साधारण युवा कैसे राष्ट्र के भविष्य की दिशा बदल सकता है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि वर्तमान समय में जब डिजिटल माध्यमों से भ्रम और अफवाहें फैलाई जाती हैं, तब यह आवश्यक है कि देश के युवा ऐतिहासिक तथ्यों को पढ़कर अपना मत और विचार मजबूत करें।
पुस्तक की विशेषताएं और लेखकीय दृष्टिकोण
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पुस्तक का लेखन अनेक पत्रकारों, इतिहासकारों, आरएसएस कार्यकर्ताओं और आपातकालीन आंदोलन में सहभागी लोगों के साक्षात्कार और दस्तावेजों के आधार पर किया गया है।
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इसमें कई दुर्लभ फोटोग्राफ्स, पत्र, पर्चे, भूमिगत प्रेस दस्तावेज शामिल हैं।
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एक विशेष अध्याय में नरेंद्र मोदी जी द्वारा लिखे गए डायरी नोट्स और रणनीतियों को पहली बार सार्वजनिक किया गया है।
सम्मेलन की चर्चा में उठे ये प्रमुख बिंदु:
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‘संविधान हत्या दिवस’ की संवैधानिक मान्यता:
वक्ताओं ने मांग की कि 25 जून को संविधान संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाए। -
आपातकाल पीड़ितों के लिए सम्मान निधि:
कुछ सामाजिक संगठनों ने सुझाव दिया कि आपातकाल पीड़ितों को विशेष पेंशन और सम्मान दिया जाए। -
शैक्षणिक पाठ्यक्रम में आपातकाल की शिक्षा:
कई शिक्षाविदों ने कहा कि NCERT और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में आपातकाल के अध्याय को और अधिक प्रभावी तरीके से शामिल किया जाए।
दर्शकों और समाज में प्रतिक्रिया
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के पश्चात वरिष्ठ पत्रकारों, शिक्षाविदों, विद्यार्थियों और बुद्धिजीवियों ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा:
“यह पुस्तक भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी लड़ाई की जीवंत गवाही है। युवा पीढ़ी को इसके माध्यम से यह जानने का अवसर मिलेगा कि जो प्रधानमंत्री आज भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ सख्त हैं, उन्होंने खुद अपने जीवन की शुरुआत ही तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष से की थी।”
निष्कर्ष: पुस्तक नहीं, प्रेरणा है ‘The Emergency Diaries’
‘The Emergency Diaries – Years that Forged a Leader’ न केवल एक जीवनी है, न केवल ऐतिहासिक दस्तावेज़ है – यह लोकतंत्र के लिए समर्पित जीवन की कहानी है। यह उन मूल्यों की रक्षा की प्रतिज्ञा है, जो संविधान ने हमें दिए हैं और जिनकी रक्षा के लिए नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं ने युवावस्था में जीवन दांव पर लगा दिया।