वाराणसी की जेलों में दो दिनों में तीन कैदियों की मौत NHRC मानवाधिकार

उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले की जेलों में 15 और 16 जून, 2025 को हुई तीन कैदियों की रहस्यमयी मौतों ने न केवल प्रशासन को झकझोर दिया है, बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए स्वत: संज्ञान लिया है। आयोग ने इसे संभावित मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मामला मानते हुए उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक और वाराणसी के पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। दो सप्ताह की अवधि में विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है, जिसमें प्रारंभिक स्वास्थ्य रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, कानूनी और मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट शामिल होनी चाहिए।


मामले की पृष्ठभूमि:

घटनाएं 15 और 16 जून 2025 की हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 15 जून को वाराणसी जिला जेल में एक महिला कैदी और एक पुरुष डॉक्टर कैदी की तबीयत बिगड़ने के बाद मौत हो गई। अगले ही दिन, 16 जून को वाराणसी के केंद्रीय कारागार में एक और कैदी की मृत्यु हो गई, जिसे हार्ट अटैक बताया गया है। तीनों मौतों की घटनाओं ने जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली, स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की प्रतिक्रिया:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की आशंका के रूप में देखा है। आयोग का कहना है कि जेल में बंद कैदियों की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार और जेल प्रशासन की होती है। यदि कोई कैदी बीमारी या अन्य वजहों से जान गंवाता है, तो यह संबंधित प्रशासन की लापरवाही का संकेत हो सकता है।

NHRC ने कहा है कि जेलों में कैदियों को स्वास्थ्य सुविधा, समय पर चिकित्सा, स्वच्छ वातावरण और मानसिक सुरक्षा प्रदान करना एक संवैधानिक दायित्व है। आयोग ने दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है ताकि मामले की वस्तुनिष्ठ जांच हो सके।


मृत कैदियों की जानकारी:

प्राप्त प्रारंभिक जानकारी के अनुसार:

  1. महिला कैदी: जिला जेल में बंद इस महिला की तबीयत खराब होने पर उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। मौत का कारण स्पष्ट नहीं है, परंतु रिपोर्ट में बीमारी का उल्लेख किया गया है।

  2. पुरुष डॉक्टर कैदी: यह व्यक्ति जेल में रहते हुए कथित तौर पर कई अन्य बंदियों का प्राथमिक उपचार किया करता था। उसकी भी मृत्यु अचानक हुई और बीमारी को कारण बताया गया।

  3. केंद्रीय कारागार में मृत बंदी: यह तीसरा मामला 16 जून को सामने आया, जब एक कैदी को सीने में दर्द की शिकायत हुई। अस्पताल ले जाते समय उसकी मृत्यु हो गई। प्रारंभिक रिपोर्ट में दिल का दौरा पड़ना मृत्यु का कारण बताया गया है।


जेल व्यवस्था पर उठे सवाल:

इन मौतों ने राज्य की जेल व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। जेलों में कैदियों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती, यह आरोप लंबे समय से लगता रहा है। इन तीन घटनाओं ने इस मुद्दे को पुनः उजागर कर दिया है। यह भी देखा गया है कि जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की संख्या, अस्वच्छ वातावरण, पर्याप्त चिकित्सकों की कमी और दवाओं की अनुपलब्धता जैसी समस्याएं लंबे समय से बनी हुई हैं।


जेलों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्टों के अनुसार, भारत में अधिकांश जेलों में स्वास्थ्य सुविधाएं अत्यंत दयनीय हैं। डॉक्टरों की संख्या नाममात्र होती है और कई जेलों में नियमित जांच या उपचार की व्यवस्था तक नहीं होती। वाराणसी की जेलों में हुई घटनाएं इस सच्चाई की गवाही देती हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि जिला जेल और केंद्रीय कारागार दोनों राज्य सरकार के नियंत्रण में हैं, और इनकी निगरानी के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश मौजूद हैं।


मजिस्ट्रीयल और चिकित्सीय जांच का आदेश:

NHRC ने उत्तर प्रदेश सरकार से यह अपेक्षा की है कि वे निष्पक्ष मजिस्ट्रेट जांच के साथ-साथ मेडिकल बोर्ड से विस्तृत पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार कराएं। प्रारंभिक स्वास्थ्य रिपोर्ट, जिसमें यह जानकारी हो कि मृतक कैदियों को किन-किन बीमारियों का सामना था, किस तरह का उपचार मिल रहा था, और उनकी देखरेख की क्या स्थिति थी—ये सभी तथ्य जांच के केंद्र में होंगे।


मानवाधिकार विशेषज्ञों की राय:

मानवाधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल व्यक्तिगत लापरवाही का नहीं बल्कि संस्थागत विफलता का प्रतीक है। वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. अजय गोस्वामी का कहना है, “यदि एक ही जेल में दो दिन के भीतर तीन मौतें होती हैं, तो यह महज संयोग नहीं हो सकता। यह सिस्टम की विफलता का स्पष्ट उदाहरण है। यह दिखाता है कि जेलों में कैदियों को बुनियादी मानवाधिकार—स्वास्थ्य, जीवन और गरिमा—भी नहीं मिल रहे हैं।”


राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:

घटना के सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर निशाना साधा है। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि आखिर ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार की प्राथमिकताओं में मानवाधिकार नहीं हैं और यह प्रशासनिक असंवेदनशीलता का प्रमाण है।

वहीं, सरकार की ओर से अभी तक कोई विस्तृत आधिकारिक बयान नहीं आया है, परंतु सूत्रों के अनुसार जेल प्रशासन ने आंतरिक जांच शुरू कर दी है।


मीडिया की भूमिका और रिपोर्टिंग:

स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। समाचार चैनलों, अखबारों और डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों पर लगातार रिपोर्टिंग हो रही है। मीडिया का ध्यान विशेषकर इस बात पर है कि क्या इन मौतों को रोका जा सकता था और क्या ये लापरवाही के चलते हुईं।

कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि कैदियों ने पूर्व में जेल की अव्यवस्थाओं की शिकायत की थी, लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।


NHRC की कार्रवाई की कानूनी प्रक्रिया:

NHRC किसी भी मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में स्वत: संज्ञान ले सकता है यदि उसे मीडिया रिपोर्टों या किसी याचिका से संज्ञान मिलता है। ऐसे मामलों में आयोग संबंधित प्रशासन को नोटिस जारी करता है और जवाबदेही तय करने के लिए विस्तृत जांच कराता है। अगर जांच में दोष साबित होता है, तो आयोग पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाने, दोषियों पर कार्रवाई और नीति सुधार की सिफारिश करता है।


अदालत की निगरानी में जांच की मांग:

कुछ सामाजिक संगठनों ने इस मामले की न्यायिक निगरानी में जांच की मांग की है। उनका कहना है कि सरकार के अधीन प्रशासनिक जांच से अपेक्षित निष्पक्षता नहीं मिल पाएगी। ऐसे मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक होता है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।


निष्कर्ष:

वाराणसी की जेलों में दो दिनों में तीन कैदियों की मौत न केवल दुखद है, बल्कि यह देश की जेल व्यवस्थाओं पर गहरी चिंता उत्पन्न करती है। यह घटना बताती है कि जेलों में बंद लोगों के प्रति हमारी प्रणाली कितनी असंवेदनशील हो सकती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तत्परता सराहनीय है, लेकिन जब तक राज्य सरकार और जेल प्रशासन इन संरचनात्मक कमजोरियों को दूर नहीं करता, तब तक ऐसी घटनाओं का होना अनिवार्य-सा प्रतीत होता है।

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