Site icon Koto News

उमा मल्लाह निषाद ने पर्वों पर समाज को दी शुभकामनाएँ कहा भाईचारे और सहयोग से ही समाज बनता सशक्त

उमा मल्लाह निषाद

उमा मल्लाह निषाद

सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | नेपाल के सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने वाली नेपाल निषाद परिषद की लुम्बिनी प्रदेश अध्यक्ष जिवन साहनी निषाद की सलाहकार उमा मल्लाह निषाद ने इस वर्ष धनतेरस, दीपावली, छठ पूजा, कार्तिक पूर्णिमा और भईया दूज जैसे पावन पर्वों के अवसर पर समाज के सभी वर्गों के लोगों को हार्दिक शुभकामनाएँ दीं। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि ये पर्व केवल रोशनी और आनंद के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये समाज में भाईचारे, सहयोग और जनसेवा की भावना को मजबूत करने का अवसर हैं। उन्होंने कहा कि आज के समय में जब समाज कई स्तरों पर विभाजित होता जा रहा है, ऐसे में त्यौहार हमें एकता और सहयोग के सूत्र में बाँधने का काम करते हैं। उमा मल्लाह निषाद ने अपने संदेश में विशेष रूप से युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें अपने उत्सवों और खुशियों को केवल परिवार तक सीमित नहीं रखना चाहिए। उन्होंने कहा, दीपावली का असली अर्थ तभी पूरा होता है, जब हम दूसरों के जीवन में भी रोशनी फैलाते हैं। उन्होंने अपील की कि समाज के सक्षम लोग जरूरतमंदों की मदद करें, वृद्धजनों का आदर करें और समाज में सहयोग की परंपरा को आगे बढ़ाएँ। उमा मल्लाह निषाद ने यह भी कहा कि पर्व केवल रीति-रिवाजों का पालन नहीं हैं, बल्कि ये हमें सहानुभूति और करुणा का भी पाठ पढ़ाते हैं।

उन्होंने बताया कि पर्वों के दौरान छोटे-छोटे सामाजिक योगदान समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, गरीब बच्चों को कपड़े या मिठाई देना, वृद्धाश्रमों में जाकर बुजुर्गों के साथ समय बिताना, और समाज में सफाई अभियान चलाना — ये सब ऐसे कार्य हैं जो व्यक्ति को भीतर से समृद्ध बनाते हैं।

उमा मल्लाह निषाद ने कहा कि समाज के हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी भूमिका एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में निभाए और समाज में सकारात्मक माहौल बनाने में सहयोग दे। उन्होंने आगे कहा कि आधुनिक युग में जब लोग डिजिटल माध्यमों में व्यस्त हैं, ऐसे में युवाओं को सोशल मीडिया का उपयोग केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि सकारात्मक संदेश फैलाने के लिए करना चाहिए। उनके अनुसार, आज के युवा समाज में सबसे प्रभावशाली परिवर्तनकर्ता हैं। यदि वे सेवा, सहयोग और भाईचारे का संदेश फैलाएँ, तो समाज में व्यापक परिवर्तन संभव है।

उमा मल्लाह निषाद ने कहा कि नेपाल जैसे बहुभाषी और बहुधार्मिक देश में एकता और सांस्कृतिक सद्भाव बनाए रखना सबसे बड़ी आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, “हमारे पर्व हमें यह सिखाते हैं कि समाज की सच्ची ताकत उसकी विविधता और एकजुटता में है।”

उन्होंने महिलाओं से भी अपील की कि वे परिवार और समाज के बीच सेतु बनें, और अपनी भूमिका को केवल घर तक सीमित न रखें, बल्कि समाज सुधार और सामुदायिक विकास में भी भाग लें। उनका कहना था कि त्योहार केवल व्यक्तिगत आनंद का माध्यम नहीं, बल्कि यह सामाजिक समरसता और मानवता के विकास का प्रतीक हैं। उमा मल्लाह निषाद ने यह भी कहा कि नेपाल निषाद परिषद सदैव समाज में सेवा, शिक्षा, और एकता की भावना को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करती रही है। उन्होंने विश्वास जताया कि यदि हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार समाज में योगदान दे, तो लुम्बिनी और समूचे नेपाल में एक सशक्त, समरस और सहयोगी समाज का निर्माण संभव है।

नेपाल निषाद परिषद की लुम्बिनी प्रदेश अध्यक्ष जिवन साहनी निषाद की सलाहकार और समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय उमा मल्लाह निषाद ने इस दीपावली एवं अन्य पावन पर्वों के अवसर पर समाज के सभी वर्गों के लोगों को हार्दिक शुभकामनाएँ दीं। अपने संदेश में उन्होंने न केवल इन पर्वों की पारंपरिक महत्ता पर प्रकाश डाला, बल्कि यह भी कहा कि त्योहार समाज में सेवा, सहयोग और संवेदना की भावना को पुनः जागृत करने का अवसर होते हैं।

उमा मल्लाह निषाद ने अपने प्रेरक संबोधन में कहा कि समाज में परिवर्तन सरकारों के आदेश या बड़ी योजनाओं से नहीं आता, बल्कि यह आम नागरिकों की छोटी-छोटी पहल से संभव होता है। उन्होंने कहा —सभी को यह समझना होगा कि समाज में बड़ा परिवर्तन सरकारों से नहीं, बल्कि व्यक्तियों की छोटी-छोटी पहल से आता है। जब हर व्यक्ति अपने हिस्से का दीप जलाता है, तभी पूरा समाज रोशनी से भर उठता है। त्योहारों का यही असली संदेश है — सेवा, सहयोग और संवेदना। समाज में सहयोग की संस्कृति ही असली दीपावली

उमा मल्लाह निषाद ने अपने संदेश में कहा कि दीपावली केवल घर की सजावट और रोशनी का पर्व नहीं है, बल्कि यह दिलों को रोशन करने का अवसर है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी खुशियों को केवल अपने परिवार तक सीमित नहीं रखना चाहिए। जब हम अपने घर के बाहर किसी जरूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान लाते हैं, तभी असली दीपावली मनती है। दीपक केवल घर की दीवारों पर नहीं, बल्कि समाज के हर कोने में जलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आज के समय में मानवता और भाईचारे की भावना को मजबूत करना समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। आधुनिक जीवन की आपाधापी में लोग खुद तक सीमित होते जा रहे हैं। ऐसे में पर्व हमें याद दिलाते हैं कि हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं — समाज रूपी परिवार के।

सकारात्मक परिवर्तन के वाहक बनें

उमा मल्लाह निषाद ने विशेष रूप से युवाओं से कहा कि वे अपने अंदर की ऊर्जा को समाज निर्माण में लगाएँ। उन्होंने कहा कि युवा केवल सोशल मीडिया पर शुभकामनाएँ साझा करने तक सीमित न रहें, बल्कि उसे सकारात्मक संदेश फैलाने का मंच बनाएं। उन्होंने कहा —आज के युग में युवाओं के पास शक्ति, समय और तकनीक — तीनों हैं। अगर यह शक्ति समाज की भलाई में लगे, तो कोई भी बदलाव असंभव नहीं है। आज जरूरत इस बात की है कि युवा अपने दिल और कर्म से समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाएँ। उन्होंने यह भी कहा कि पर्वों के समय युवाओं को आगे बढ़कर सामुदायिक कार्यों में भाग लेना चाहिए, जैसे — सफाई अभियान, पर्यावरण संरक्षण, गरीबों की मदद या शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देना। छोटे कदम समाज में बड़ा परिवर्तन लाने की दिशा में ठोस शुरुआत हैं।

छोटे प्रयासों से बनता है बड़ा समाज

उमा मल्लाह निषाद ने अपने संदेश में बताया कि समाज में बदलाव हमेशा जमीनी स्तर से शुरू होते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा — अगर कोई व्यक्ति अपने मोहल्ले में जरूरतमंदों को खाना बांटता है, या कोई युवा वृद्धाश्रम में जाकर बुजुर्गों से समय बिताता है — तो यह भी सेवा का ही एक रूप है ये प्रयास भले ही छोटे दिखते हों, लेकिन समाज में इंसानियत की नींव को मजबूत करते हैं।”

उन्होंने कहा कि पर्वों की असली भावना यही है कि हम अपने चारों ओर खुशियों और करुणा का वातावरण बनाएं। जब लोग एक-दूसरे की मदद करने लगते हैं, तो समाज में न केवल सौहार्द बढ़ता है, बल्कि विश्वास और एकता की भावना भी गहराती है।

उन्होंने कहा कि यही भावनाएँ किसी भी सभ्य और समृद्ध समाज की नींव होती हैं।

संवेदना और सेवा ही सच्ची परंपरा

उमा मल्लाह निषाद ने अपने संदेश में इस बात पर जोर दिया कि समाज में परंपराओं को निभाने का मतलब केवल रिवाजों को दोहराना नहीं है, बल्कि उनके पीछे छिपे मानवीय मूल्यों को समझना है। उन्होंने कहा — त्योहार तभी सार्थक हैं जब वे इंसानियत की भावना को जगाते हैं। दीपावली का मतलब केवल घरों में दीये जलाना नहीं, बल्कि किसी के जीवन में उम्मीद की रोशनी जलाना है। जब समाज के कमजोर और जरूरतमंद वर्गों के चेहरे पर मुस्कान आती है, तभी त्योहार सफल होता है। उन्होंने यह भी कहा कि आज के दौर में जरूरत है मानवता के पुनर्जागरण की। तकनीकी विकास और भौतिक प्रगति के बावजूद अगर समाज में करुणा और संवेदना नहीं है, तो वह विकास अधूरा है।

उमा मल्लाह निषाद ने कहा कि नेपाल जैसे विविधता से भरे देश में आपसी सम्मान, एकता और सहयोग की भावना बनाए रखना ही सबसे बड़ा उत्सव है।

 

महिलाओं की भूमिका — समाज की आधारशिला उमा मल्लाह निषाद ने महिलाओं से भी विशेष रूप से अपील की कि वे समाज निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएँ। उन्होंने कहा कि महिलाएँ न केवल घर की आधारशिला होती हैं, बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों की संरक्षक भी हैं। एक माँ अपने बच्चों में संस्कार भरती है, वही संस्कार समाज का भविष्य तय करते हैं। इसलिए हर महिला अगर समाज सेवा की भावना के साथ कार्य करे, तो समाज में स्थायी परिवर्तन संभव है।” उन्होंने कहा कि महिलाओं को शिक्षा, स्वावलंबन और नेतृत्व के क्षेत्र में आगे आना चाहिए। त्योहारों के अवसर पर महिलाएँ समाज में सहयोग, सेवा और समरसता का सन्देश फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

हर दीप बने बदलाव का प्रतीक

उमा मल्लाह निषाद ने अपने संदेश में कहा कि दीपावली के दीपक केवल सजावट के प्रतीक नहीं हैं। वे यह संदेश देते हैं कि हर व्यक्ति अपने भीतर की अंधकार को दूर करे और दूसरों के जीवन में रोशनी फैलाए।

उन्होंने कहा — हर दीप जब दूसरों के लिए जलता है, तो वही समाज का सच्चा प्रकाश बनता है। हमें अपने भीतर के स्वार्थ, भेदभाव और नकारात्मकता को मिटाकर प्रेम, सहयोग और करुणा की ज्योति जलानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि हर व्यक्ति अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाए, तो समाज में किसी भी प्रकार की असमानता, गरीबी या भेदभाव टिक नहीं पाएगा।

नेपाल निषाद परिषद की भावना — सेवा, सहयोग और सौहार्द उमा मल्लाह निषाद ने कहा कि नेपाल निषाद परिषद सदैव समाज में शिक्षा, एकता, समानता और सेवा भावना को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर रही है।

लुम्बिनी प्रदेश में परिषद के कार्यकर्ता सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और युवा विकास के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे पर्व इन अभियानों को आगे बढ़ाने का सर्वोत्तम अवसर हैं, जब हर व्यक्ति अपनी भूमिका को पहचान सके और समाज को कुछ लौटाने की भावना रखे। उमा मल्लाह निषाद ने सभी नागरिकों से अपील की कि वे इस दीपावली और आगामी पर्वों पर अपनी खुशियाँ समाज के साथ साझा करें।.

उन्होंने कहा —जब हम दूसरों के लिए कुछ अच्छा करते हैं, तो हमारे भीतर की रोशनी और भी प्रखर हो जाती है।

यही है त्योहारों की सच्ची भावना — साझा करना, सहयोग करना और खुशियाँ बाँटना। उन्होंने कहा कि समाज में बड़ा परिवर्तन हमेशा छोटे प्रयासों से ही आता है। चाहे वह किसी गरीब परिवार को दीपावली की मिठाई देना हो या किसी बच्चे को शिक्षा दिलाने में मदद करना — ये कार्य समाज में रोशनी फैलाते हैं। जब हर व्यक्ति अपने हिस्से का दीप जलाता है, तभी पूरा समाज रोशनी से भर उठता है।

रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)

Exit mobile version