भारत के उपराष्ट्रपति एवं पांडिचेरी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति (एक्स-ऑफिशियो), माननीय श्री जगदीप धनखड़ ने आज विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को संबोधित किया। अपने गहन ऐतिहासिक दृष्टिकोण, सांस्कृतिक चेतना, और राजनीतिक संवाद की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा, नालंदा विश्वविद्यालय की विरासत और आज की राजनीतिक परिस्थिति को समग्रता में प्रस्तुत किया।
भारत का गौरवशाली शैक्षिक इतिहास
अपने संबोधन की शुरुआत में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा,
“भारत की शैक्षिक भूगोल और इतिहास — तक्षशिला, नालंदा, मिथिला, वल्लभी — जैसे महान शिक्षा केंद्रों से भरे पड़े हैं। ये संस्थान न केवल भारत की बल्कि पूरी दुनिया की बौद्धिक दिशा तय करते थे।”
उन्होंने विशेष रूप से नालंदा विश्वविद्यालय की चर्चा करते हुए कहा कि लगभग 1300 वर्ष पूर्व धर्मगंज नामक नौ मंजिला पुस्तकालय, जिसमें 90 लाख ग्रंथ थे, नालंदा के गौरव का केंद्र था। वहां पर गणित, खगोलशास्त्र और दर्शन जैसे विषयों पर गहन शोध होता था। लेकिन बख्तियार खिलजी द्वारा किए गए हमले ने इस ज्ञान धरोहर को आग में झोंक दिया।
धनखड़ ने गहरी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा,
“उसने केवल ग्रंथों को ही नहीं जलाया, बल्कि भिक्षुओं का संहार किया, स्तूपों को तोड़ा और भारत की आत्मा को कुचलने का प्रयास किया। किंतु वह नहीं जानता था कि भारत की आत्मा अविनाशी है। तीन महीने तक जलती आग और 90 लाख ग्रंथों का जलना — यह इतिहास है, जो भुलाया नहीं जाना चाहिए।”
राजनीतिक संवाद की आवश्यकता
अपने संबोधन के दूसरे भाग में उपराष्ट्रपति ने राजनीतिक संवाद, सहिष्णुता और विचार-विनिमय की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा:
“हमने एक आदत बना ली है कि हम मतभेद को महत्त्व देते हैं, समाधान को नहीं। अगर कोई अच्छा विचार मेरे अतिरिक्त किसी और से आता है, तो उसे नकार देना — यह प्रवृत्ति घातक है।”
उन्होंने भारत की वैदिक परंपरा ‘अनंतवाद’ का उल्लेख करते हुए कहा कि समाज में विचार, विमर्श, अभिव्यक्ति और संवाद होना अनिवार्य है।
धनखड़ ने सवाल उठाया:
“जब जलवायु परिवर्तन पहले से ही धरती को गर्म कर रहा है, तो हम राजनीति की गर्मी क्यों बढ़ा रहे हैं? हम क्यों अपने धैर्य के ग्लेशियरों को पिघला रहे हैं?”
उन्होंने राजनीतिक दलों और नेताओं से राजनीतिक टकराव से बचने, संवाद को प्राथमिकता देने और संविधान द्वारा प्रदत्त लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने की अपील की।
राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
श्री धनखड़ ने जोर देकर कहा कि वर्तमान समय में जब भारत वैश्विक मंच पर उभरता हुआ राष्ट्र है, तब राजनीतिक नेतृत्व को राष्ट्रीय हित के अनुरूप कार्य करना चाहिए।
“वर्तमान समय में भारत सबसे अधिक आशावान राष्ट्र है। यदि हमने राजनीति को टकराव की ओर मोड़ा, तो यह हमारे विकास के मार्ग में बाधा बन सकता है।”
विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का संदेश
अपने संबोधन के अंत में उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि
“आप ही भारत के भविष्य निर्माता हैं। आप भारत की उस ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करें, जिसने कभी सारी दुनिया को शिक्षा दी थी। आपके विचार, संवाद और संवेदना भारत को फिर से ‘विश्वगुरु’ बना सकते हैं।”
निष्कर्ष
पांडिचेरी विश्वविद्यालय में उपराष्ट्रपति धनखड़ का यह संबोधन न केवल भारत की गौरवशाली इतिहास और धरोहर की पुनः स्मृति था, बल्कि आज के संदर्भ में राजनीतिक सहिष्णुता, संवाद की संस्कृति और शिक्षा के महत्व पर एक सशक्त संदेश भी था। यह भाषण निःसंदेह विद्यार्थियों, शिक्षकों और राजनीतिक नेतृत्व के लिए एक आत्मचिंतन और पुनर्निर्माण का आह्वान है।