सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | आध्यात्मिक नगरी श्रीधाम वृन्दावन और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में इस वर्ष का दीपोत्सव केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अर्थों में भी विशेष महत्व रखता है। राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज ने इस अवसर पर देश और समाज को एक विशेष संदेश देते हुए कहा कि दीपोत्सव का सच्चा अर्थ केवल घरों में दीये जलाना नहीं, बल्कि अपने भीतर ज्ञान, प्रेम और करुणा का दीप जलाना है। उन्होंने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक संदर्भ देते हुए बताया कि भगवान गौतम बुद्ध के जीवन की एक प्रेरक घटना ही इस दीपोत्सव का मूल स्रोत मानी जाती है। जब सिद्धार्थ गौतम दीक्षा लेकर बोधगया से वापस कपिलवस्तु लौटे, तो नगरवासियों ने उनके स्वागत में दीप जलाए। उसी दिन को “दीपोत्सव” के रूप में मनाया गया, जिसका संदेश था अप्प दीपो भव — अर्थात् स्वयं अपने जीवन का दीप बनो।
राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज ने कहा कि दीप जलाने की यह परंपरा केवल बाहरी रोशनी का प्रतीक नहीं है। यह आत्मा के जागरण, सत्य के अनुभव और अज्ञान के अंधकार को मिटाने की साधना है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भगवान बुद्ध ने अंधकारमय संसार में ज्ञान का प्रकाश फैलाया, उसी प्रकार आज हर व्यक्ति को अपने भीतर के अंधकार अहंकार, लोभ, ईर्ष्या और द्वेष को दूर कर आत्मज्ञान का दीप जलाना चाहिए। संत ने कहा कि दीपोत्सव का मूल तत्व “दीक्षा और जागृति” है, और जब व्यक्ति स्वयं को पहचान लेता है, तभी सच्चा उत्सव मनाता है। उन्होंने लोगों से अपील की कि दीपावली केवल भौतिक उत्सव न बने, बल्कि यह आत्मशुद्धि, प्रेम और समाज कल्याण का माध्यम बने। अगर हर व्यक्ति एक दूसरे के जीवन में प्रकाश फैलाने का संकल्प ले, तो अंधकार मिटाने के लिए हमें किसी बड़े चमत्कार की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज |
संत गोपाल नंद गिरी महाराज ने भगवान बुद्ध के जीवन की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि सिद्धार्थ गौतम ने 29 वर्ष की आयु में राजमहल त्यागकर संसार के दुःखों का कारण जानने का संकल्प लिया। 35 वर्ष की आयु में बोधगया में उन्होंने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और “बुद्ध” कहलाए। उनका पहला उपदेश सारनाथ में दिया गया, जहाँ उन्होंने मध्यम मार्ग, करुणा, संयम और समता का संदेश दिया। बुद्ध का दर्शन यह बताता है कि जीवन का हर दीप दूसरों के लिए मार्गदर्शक बन सकता है।संत ने कहा कि जब सिद्धार्थ गौतम दीक्षा के बाद अपने गृह नगर लौटे, तो कपिलवस्तु की जनता ने उनका स्वागत दीप जलाकर किया वह दीप केवल उनके स्वागत के नहीं, बल्कि आत्मज्ञान की विजय के प्रतीक थे। इसी घटना को आज भी “दीपोत्सव” के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि “दीपावली के दीप भगवान राम के अयोध्या लौटने के प्रतीक हैं, और वही प्रकाश बोधि के ज्ञान दीप से जुड़कर आत्मा के जागरण का उत्सव बन गया। राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज ने समाज को एक गहन संदेश दिया आज मानवता के समक्ष सबसे बड़ा अंधकार शिक्षा, नैतिकता और प्रेम के अभाव का है। जब तक समाज के हर घर में ज्ञान का दीप नहीं जलेगा, तब तक सच्चा दीपोत्सव अधूरा रहेगा।
उन्होंने युवाओं से कहा कि वे “अप्प दीपो भव” के संदेश को जीवन में उतारें। हर व्यक्ति को स्वयं को बदलने की शुरुआत अपने भीतर से करनी चाहिए। संत ने कहा कि शिक्षा, सेवा और आत्मज्ञान — यही तीन दीप हैं जो जीवन को सार्थक बनाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरण की रक्षा और स्वच्छता का ध्यान रखते हुए हर व्यक्ति को “हरित दीपावली” मनानी चाहिए। दीप उत्सव तब सच्चा होता है जब किसी गरीब के घर में भी दीया जलता है, किसी अनपढ़ बच्चे को शिक्षा मिलती है और किसी दुखी हृदय में आशा का प्रकाश जगता है। राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज, श्रीधाम वृन्दावन |
अप्प दीपो भव बनो स्वयं अपने जीवन का दीप
राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज का प्रेरणादायक दीपोत्सव संदेश |श्रीधाम वृन्दावन/अयोध्या दीपावली का पर्व सदियों से अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक रहा है। परंतु राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज का कहना है कि दीपावली केवल दीये जलाने का पर्व नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण और अंतर्मन के प्रकाश का उत्सव है।उन्होंने अपने विशेष प्रवचन में भगवान बुद्ध के अमर वचन “अप्प दीपो भव” का उल्लेख करते हुए कहा दीपोत्सव का वास्तविक अर्थ यही है — स्वयं अपने जीवन का दीप बनो, अपनी चेतना को प्रकाशित करो, और दूसरों के लिए भी मार्गदर्शक प्रकाश बनो।
आत्मज्ञान का दीप सच्चे दीपोत्सव की पहचान
राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज ने कहा कि दीपावली का उत्सव केवल बाहरी रोशनी से नहीं, बल्कि भीतरी चेतना के आलोक से पूर्ण होता है। उन्होंने समझाया कि भगवान बुद्ध ने जब अपने शिष्यों को “अप्प दीपो भव” का उपदेश दिया, तो उसका अर्थ केवल धार्मिक नहीं था, बल्कि यह जीवन दर्शन था स्वयं को पहचानो, स्वयं पर विश्वास रखो और अपनी आत्मा को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करो। संत ने कहा अगर हर व्यक्ति अपने जीवन का दीप स्वयं बन जाए, तो संसार में कोई अंधकार शेष नहीं रहेगा। जो व्यक्ति स्वयं प्रकाशित होता है, वही दूसरों के जीवन में भी प्रकाश फैलाता है। उनका मानना है कि आज के युग में बाहरी जगमगाहट तो बहुत है, पर भीतर का दीप बुझा हुआ है। इसीलिए आवश्यकता है कि हम अपने मन की लौ को फिर से प्रज्वलित करें — सत्य, शिक्षा और सेवा के तेल से।
शिक्षा प्रकाश का प्रथम स्रोत
राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज ने अपने संदेश में यह स्पष्ट किया कि “आत्मज्ञान और शिक्षा का दीप ही सच्चा दीपोत्सव है। उन्होंने कहा कि जिस समाज में शिक्षा का प्रकाश फैलता है, वहाँ से अंधकार स्वतः मिट जाता है। संत ने कहा जब तक समाज का कोई भी बच्चा अशिक्षा के अंधकार में है, तब तक दीपोत्सव अधूरा है। सच्ची पूजा तभी है जब हम किसी अनपढ़ बच्चे को पढ़ने का अवसर दें, किसी निर्धन के घर में उजाला लाएँ। उनका यह संदेश समाज में गूंज उठा कि हर व्यक्ति एक दीप जला सकता है — ज्ञान का दीप, करुणा का दीप, और शिक्षा का दीप।
प्रेम और करुणा से जगमग समाज
संत गोपाल नंद गिरी महाराज ने भगवान बुद्ध के जीवन का उदाहरण देते हुए कहा कि दीपावली का अर्थ केवल दीप जलाना नहीं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार घृणा, ईर्ष्या, अहंकार और लोभ को मिटाना है। उन्होंने कहा दीप की लौ हमें सिखाती है कि प्रकाश पाने के लिए पहले स्वयं जलना पड़ता है। जो व्यक्ति दूसरों के लिए जलता है, वही संसार में अमर प्रकाश फैलाता है। उन्होंने लोगों से अपील की कि इस दीपावली पर केवल अपने घर नहीं, बल्कि किसी जरूरतमंद के जीवन को भी रोशन करें। किसी गरीब परिवार को भोजन दें, किसी अनाथ बच्चे की फीस भरें, या किसी बीमार व्यक्ति के इलाज में सहायता करें। यही सच्चा दीपोत्सव है, यही आत्मदीप बनना है।
सेवा और प्रकृति की रक्षा दो पवित्र संकल्प
संत ने अपने प्रवचन में पर्यावरण संरक्षण पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि दीपावली को “हरित दीपावली” बनाना समय की आवश्यकता है यदि हम प्रकृति की रक्षा नहीं करेंगे, तो वह प्रकाश कहाँ से आएगा जो हमारे जीवन को सुंदर बनाता है पेड़ लगाना, स्वच्छता रखना और पशु-पक्षियों के प्रति करुणा दिखाना यही भगवान बुद्ध और भगवान राम, दोनों की शिक्षाओं का सार है। संत ने लोगों से आग्रह किया कि वे हर दीपोत्सव पर एक पेड़ अवश्य लगाएँ, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी स्वच्छ वायु और हरियाली के प्रकाश में जीवन व्यतीत कर सकें।
सहयोग का दीप समाज की एकता की लौ
गोपाल नंद गिरी महाराज ने कहा कि दीपावली का असली अर्थ सामूहिक प्रकाश है। जिस प्रकार एक दीप दूसरे दीप को जलाकर अंधकार मिटाता है, उसी प्रकार एक व्यक्ति दूसरे को प्रेरणा देकर समाज में प्रकाश फैला सकता है। उन्होंने कहा सहयोग और एकता का दीप जलाओ।
जब तक समाज एकजुट नहीं होगा, तब तक अंधकार पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकता। उन्होंने इस अवसर पर समाज के हर वर्ग विद्यार्थियों, शिक्षकों, किसानों, और महिलाओं — से आग्रह किया कि वे ज्ञान और सेवा के दीप से अपने जीवन को प्रकाशित करें।
अंतर्मन का आलोक दीपावली का सार
संत ने कहा कि जब मनुष्य स्वयं को पहचान लेता है, तो उसके भीतर का दीप स्वयं जल उठता है। उसके बाद बाहरी जगमगाहट गौण हो जाती है, क्योंकि असली प्रकाश भीतर से आता है। उन्होंने अपने प्रवचन का समापन इन शब्दों से किया दीपोत्सव तब पूर्ण होता है जब हमारे भीतर का दीप जलता है। जब तक एक भी घर अंधकार में है, एक भी आत्मा निराशा में है, तब तक दीपोत्सव अधूरा है। इसलिए आओ, इस दीपावली संकल्प लें कि हम स्वयं अपने जीवन का दीप बनेंगे, और दूसरों के जीवन में भी प्रकाश फैलाएँगे।
संदेश का सारांश
अप्प दीपो भव का अर्थ है स्वयं अपने जीवन का दीप बनो। आत्मज्ञान, शिक्षा, सेवा और करुणा यही चार दीप मानवता के सच्चे प्रकाश हैं दीपावली तभी पूर्ण होगी जब समाज का हर व्यक्ति ज्ञान और प्रेम के प्रकाश से आलोकित होगा। जब तक एक भी घर अंधकार में है, तब तक दीपोत्सव अधूरा है। हर व्यक्ति का जीवन दूसरों के लिए दीप बन सकता है।
संत का अंतिम संदेश
दीप केवल मिट्टी का नहीं होता वह मन का भी होता है।
जब मन का दीप जलता है, तब संसार में सच्चा प्रकाश फैलता है।
राष्ट्रीय संत गोपाल नंद गिरी महाराज, श्रीधाम वृन्दावन-अयोध्या |
रिपोर्ट : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) |

