सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) |त्योहारों की रौनक और रोशनी के बीच, निषाद समाज के निषाद युवा वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशिल चन्द साहनी ने समस्त देशवासियों को धनतेरस, दीपावली, भईया दूज, छठ पूजा और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा कि ये सभी पर्व भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं, जो प्रेम, भाईचारा और सामाजिक सौहार्द का संदेश देते हैं। सुशिल साहनी ने अपने संदेश में कहा, त्योहार केवल दीप जलाने का अवसर नहीं, बल्कि यह समाज में आशा, उजाला और एकता का प्रतीक हैं। हर दीपक उस व्यक्ति की मेहनत को दर्शाता है जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में संघर्ष कर रहा है। हमारा उद्देश्य है कि कोई भी व्यक्ति इन त्योहारों की खुशियों से वंचित न रहे।
गोरखपुर स्थित अपने कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए सुशिल चन्द साहनी ने कहा कि निषाद समाज के लोग मेहनतकश, कर्मशील और मातृभूमि के सच्चे रक्षक हैं। उन्होंने समाज के युवाओं से अपील की कि वे दीपावली जैसे अवसरों पर पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाएं और ‘स्वदेशी अपनाओ’ अभियान को आगे बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि स्थानीय उत्पादों और कारीगरों को बढ़ावा देकर हम आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि त्यौहारों का वास्तविक अर्थ तभी पूरा होता है जब समाज के अंतिम व्यक्ति तक खुशियाँ पहुँचें। “यदि हमारे आस-पास कोई परिवार अंधेरे में है, तो हमें उसके घर में भी एक दीप जलाना चाहिए,” उन्होंने कहा।
निषाद युवा वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने समाज में शिक्षा, एकता और स्वाभिमान के मुद्दों पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि दीपावली का पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक जागरण का प्रतीक है। इस अवसर पर उन्होंने संगठन के पदाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में स्वच्छता अभियान चलाएँ और छठ पूजा जैसे आयोजनों में सहयोग करें। उन्होंने कहा, “छठ पूजा निषाद समाज के लिए गर्व का पर्व है। यह प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना का अद्भुत उदाहरण है। हमें अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित रखना है और इसे भावी पीढ़ी तक पहुँचाना है। साहनी ने सरकार से यह भी मांग की कि निषाद समाज के पारंपरिक कार्यों को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जाएँ, ताकि समाज की आर्थिक स्थिति मज़बूत हो सके।
साहनी ने कहा कि निषाद युवा वाहिनी समाज के हर वर्ग के साथ मिलकर काम कर रही है — चाहे वह किसान हो, मछुआरा, मजदूर या विद्यार्थी। संगठन का लक्ष्य समाज को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है।
उन्होंने कहा कि दीपावली जैसे अवसर पर हमें केवल पटाखों की आवाज़ में नहीं, बल्कि समाज के विकास की आवाज़ में खुश होना चाहिए। जब कोई नौजवान नौकरी पाए, जब किसी गरीब की बेटी की शादी सम्मानपूर्वक हो, जब किसी किसान को अपनी मेहनत का उचित मूल्य मिले वही सच्ची दीपावली है,” उन्होंने जोश के साथ कहा। उन्होंने कहा कि यही भारतीय संस्कृति की पहचान है साझा खुशियाँ, साझा जिम्मेदारी।
समाज में बड़ा परिवर्तन छोटे प्रयासों से संभव है
समाज का उत्थान किसी एक दिन या एक व्यक्ति के प्रयास से नहीं होता, बल्कि यह छोटे-छोटे कार्यों की श्रृंखला से संभव होता है। हर व्यक्ति यदि अपने हिस्से का एक दीप जलाए, तो अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, वह मिटने लगता है। परिवर्तन हमेशा भीतर से शुरू होता है — जब व्यक्ति अपने व्यवहार, सोच और दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाता है। हम अक्सर सोचते हैं कि समाज बदलने के लिए बड़ी योजनाएँ, बड़े मंच या सत्ता की शक्ति चाहिए, परंतु सच्चाई यह है कि “छोटे कदम ही बड़े सफ़र की नींव रखते हैं।” एक पेड़ लगाना, किसी बच्चे को शिक्षा दिलाना, किसी बुजुर्ग का सहारा बनना — ये छोटे दिखने वाले कार्य ही आने वाले कल की दिशा तय करते हैं। सुशिल चन्द साहनी जैसे सामाजिक नेता बार-बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि परिवर्तन केवल नारे या भाषणों से नहीं आता, बल्कि निरंतर कर्म और सामूहिक सहयोग से आता है। अगर समाज का हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे, तो गरीबी, भेदभाव और अशिक्षा जैसी समस्याएँ धीरे-धीरे समाप्त हो सकती हैं।
त्योहार केवल आनंद का नहीं, बल्कि सेवा और सहयोग का अवसर हैं
भारत में त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने वाले सेतु हैं। दीपावली, छठ पूजा, कार्तिक पूर्णिमा, ईद, क्रिसमस — सभी पर्व मनुष्य को यह सिखाते हैं कि सच्ची खुशी दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने में है। त्योहारों का असली अर्थ तभी पूरा होता है जब हम अपने आनंद को दूसरों के साथ साझा करें। जब किसी निर्धन परिवार के घर में भी दीया जलता है, जब किसी अनाथ बच्चे के चेहरे पर मिठास भरी मुस्कान आती है — तभी त्योहार की रोशनी सार्थक होती है। सेवा का अर्थ केवल दान करना नहीं, बल्कि संवेदना रखना है। यदि हर व्यक्ति अपने आस-पास के जरूरतमंद की मदद करे, तो समाज में असमानता कम होगी। त्योहार हमें यही सिखाते हैं कि सुख बाँटने से बढ़ता है और दुख बाँटने से घटता है।सुशिल चन्द साहनी ने भी अपने संदेश में कहा है कि “दीपावली पर दीप जलाने का सबसे बड़ा पुण्य वही है जो किसी और के जीवन में उजाला लाए।” यही भावना समाज को सशक्त और मानवीय बनाती है।
युवाओं को समाज में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए
हर समाज की रीढ़ उसकी युवा पीढ़ी होती है। युवा यदि सजग, शिक्षित और सक्रिय हैं, तो किसी भी राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल होता है। आज के युवाओं को केवल नौकरी या करियर की चिंता तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें समाज सुधार और राष्ट्र निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। सोशल मीडिया पर बहस करने से अधिक आवश्यक है ज़मीनी स्तर पर काम करना — गाँव में शिक्षा फैलाना, पर्यावरण बचाना, नशा मुक्ति अभियान चलाना, और जरूरतमंदों की सहायता करना। युवाओं को यह समझना होगा कि परिवर्तन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है। सुशिल चन्द साहनी जैसे नेता युवाओं को लगातार प्रेरित करते हैं कि वे “नेता बनने से पहले कर्मयोगी बनें”। एक छोटा सा उदाहरण यह है कि अगर किसी मोहल्ले के 10 युवा मिलकर दीपावली पर सफाई अभियान चलाएँ, तो न केवल पर्यावरण सुधरेगा, बल्कि लोगों में भी जागरूकता बढ़ेगी। यही सक्रिय भागीदारी समाज में स्थायी परिवर्तन लाती है।
महिलाएँ समाज की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति हैं
किसी भी समाज का नैतिक संतुलन उसकी महिलाओं पर निर्भर करता है। माँ, बहन, पत्नी और बेटी — ये केवल रिश्ते नहीं हैं, बल्कि समाज की आत्मा हैं। महिलाएँ भावनात्मक शक्ति, सहनशीलता और नैतिकता की जीती-जागती मिसाल होती हैं। आज महिलाएँ शिक्षा, राजनीति, व्यवसाय, और सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। निषाद समाज की महिलाएँ भी अब संगठनात्मक कार्यों में जुड़ रही हैं — वे केवल घर तक सीमित नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन की दिशा तय कर रही हैं। सुशिल चन्द साहनी ने कई बार कहा है कि “महिला सशक्तिकरण केवल एक नारा नहीं, बल्कि समाज की वास्तविक आवश्यकता है।” जब महिलाएँ निर्णय प्रक्रिया में शामिल होती हैं, तो समाज में न्याय, समानता और सहानुभूति का भाव बढ़ता है। दीपावली का पर्व भी माँ लक्ष्मी की आराधना का प्रतीक है, जो इस बात का संकेत देता है कि स्त्री ही समृद्धि और शांति की आधारशिला है। इसलिए समाज को महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा और शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
दीपावली की रोशनी तभी सार्थक है जब वह किसी जरूरतमंद के घर तक पहुँचे
हर वर्ष दीपावली पर हम अपने घरों को जगमग रोशनी से भर देते हैं, लेकिन क्या वह रोशनी किसी गरीब झोपड़ी तक पहुँचती है? यही प्रश्न हमें आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करता है। दीपावली केवल अपने घर की सजावट का पर्व नहीं, बल्कि यह मानवता के दीप जलाने का अवसर है। यदि हम अपने आस-पास किसी गरीब परिवार को मिठाई बाँट दें, किसी बच्चे को कपड़े दे दें, या किसी बीमार व्यक्ति की दवा का खर्च उठा लें — तो वही सच्ची पूजा होगी। सुशिल चन्द साहनी ने अपने संदेश में कहा, “दीपावली का अर्थ केवल बाहरी प्रकाश नहीं, बल्कि भीतर की करुणा और संवेदना का प्रकाश है।” जब समाज का हर व्यक्ति यह भावना अपनाता है, तब ही वास्तविक परिवर्तन आता है। साहनी का संगठन “निषाद युवा वाहिनी” इसी सोच पर काम कर रहा है — कि दीप हर घर में जले, कोई भी परिवार अंधकार में न रहे।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)

