सम्पादक : निषाद कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | भोजपुरी जगत की जानी-मानी लोकगायिका पूनम बिन्द ने धनतेरस, दीपावली, भईया दूज, छठ पूजा और कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर निषाद समाज सहित समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा कि ये सभी पर्व भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं, जो समाज में प्रेम, एकता, सहयोग और सेवा की भावना को बढ़ावा देते हैं। पूनम बिन्द ने कहा दीपावली का दीप केवल घरों को नहीं, बल्कि दिलों को रोशन करता है। जब किसी ज़रूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान आती है, तभी यह पर्व सार्थक होता है। उन्होंने कहा कि त्योहारों का उद्देश्य केवल आनंद नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और सामाजिक समर्पण भी है।
लोकसंगीत और संस्कृति का संदेश
पूनम बिन्द ने कहा कि भोजपुरी लोकसंगीत भारतीय संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने कहा हमारे लोकगीतों में खेतों की खुशबू है, नदियों की लहरों की गूँज है, और माँ की लोरी की मिठास है। इन्हें जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि वे बचपन से ही लोकसंगीत की परंपरा से जुड़ी रही हैं और उनका मानना है कि भोजपुरी गीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज की आत्मा की अभिव्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि आज जब आधुनिकता और कृत्रिम संगीत का प्रभाव बढ़ रहा है, ऐसे में लोकगीतों की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। जब छठ के गीत गूँजते हैं, तो उसमें सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि माँ और प्रकृति के बीच का संवाद भी होता है उन्होंने भावुक होकर कहा।
महिला सशक्तिकरण का स्वर
पूनम बिन्द ने निषाद समाज की महिलाओं को समाज परिवर्तन की सबसे बड़ी शक्ति बताया। उन्होंने कहा महिलाएँ केवल घर की रानी नहीं, बल्कि समाज की धड़कन हैं। हर बेटी में एक दीप है, बस उसे जलाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि निषाद समाज की महिलाएँ अब घर की सीमाओं से बाहर निकलकर शिक्षा, संगीत, व्यवसाय और समाजसेवा में अपनी पहचान बना रही हैं। आज की निषाद बेटियाँ मंच पर गीत गा रही हैं, अपनी कला से समाज को प्रेरित कर रही हैं — यही असली प्रगति है,” उन्होंने कहा। उन्होंने महिलाओं से अपील की कि वे आत्मनिर्भर बनें, शिक्षा और कला के माध्यम से समाज में अपनी भूमिका को मजबूत करें।
जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है |
पर्यावरण, संस्कृति और स्वदेशी संगीत का मेल
पूनम बिन्द ने कहा कि दीपावली और छठ पूजा जैसे त्योहार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरण और संस्कृति के प्रति आभार के अवसर हैं।
उन्होंने कहा जब हम मिट्टी के दीप जलाते हैं, तो वह केवल पूजा नहीं, बल्कि धरती माता के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक होता है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे त्योहारों में स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करें, स्थानीय कारीगरों का समर्थन करें और अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें। उन्होंने कहा कि आज के समय में सबसे बड़ी जरूरत है — “स्वदेशी अपनाओ, संस्कृति बचाओ। भोजपुरी गायिका ने युवाओं से आग्रह किया कि वे सोशल मीडिया पर गाली-गलौज या फूहड़ता के बजाय अपने लोकगीतों, लोककला और सामाजिक संदेशों को साझा करें।
हर युवा अगर अपनी माटी की बोली और गीत को आगे बढ़ाए, तो हमारी संस्कृति हमेशा जीवित रहेगी |
भोजपुरी जगत की प्रसिद्ध लोकगायिका पूनम बिन्द ने कहा कि त्योहारों का असली अर्थ केवल रोशनी, सजावट और मिठाइयों में नहीं, बल्कि सेवा, करुणा और साझेदारी की भावना में छिपा है। उन्होंने कहा कि दीपावली की असली रोशनी वही है, जो किसी गरीब, वंचित या बेसहारा के घर तक पहुँच सके।
जब तक किसी ज़रूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान नहीं आती, तब तक हमारे घर का दीप अधूरा है पूनम बिन्द ने कहा। उन्होंने अपने प्रशंसकों और समाज के सभी वर्गों से अपील की कि इस बार दीपावली पर केवल सजावट और आतिशबाज़ी पर नहीं, बल्कि सेवा और दान पर ध्यान दिया जाए। उन्होंने बताया कि बचपन में उन्होंने अपनी माँ को मोहल्ले की विधवा और गरीब महिलाओं के घर दीप जलाते देखा था। “वही दृश्य आज भी मेरी आँखों में बसता है — सच्ची दीपावली वही थी, जब किसी के घर में पहली बार दीप जला था,” उन्होंने कहा। पूनम बिन्द ने आगे कहा कि दीपावली और छठ जैसे पर्व हमें यह सिखाते हैं कि जब तक समाज के सबसे पीछे खड़े व्यक्ति तक सुख नहीं पहुँचता, तब तक समृद्धि अधूरी है। हम अगर एक दीप अपने घर के बाहर जलाएं, तो उसका उजाला किसी अंधेरे कोने तक पहुँच सकता है — यही त्योहार का असली अर्थ है,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि लोग त्योहारों पर अनावश्यक खर्च करने की बजाय शिक्षा, स्वच्छता और समाजसेवा में योगदान दें। हर दीपावली हम यह संकल्प लें कि कोई बच्चा भूखा न रहे, कोई वृद्ध अकेला न रहे, और कोई घर अंधकार में न रहे। यही सबसे बड़ी पूजा होगी उन्होंने कहा।
पूनम बिन्द ने कहा कि भोजपुरी भाषा और संगीत हमारे संस्कारों की जड़ है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का दर्पण हैं — जो खेत-खलिहान, नदियों की लहरें, माँ की ममता और जनमानस की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। जब मैं ‘केरवा जे फरेला घेघवा से’ या ‘छठी माई के गीत’ गाती हूँ, तो मुझे लगता है जैसे मैं अपनी माटी से बात कर रही हूँ उन्होंने कहा। उनका मानना है कि भोजपुरी संगीत में एक अनोखी आत्मा है, जो सीधे दिल तक पहुँचती है। उन्होंने कहा कि आज आधुनिकता के नाम पर भोजपुरी संगीत की पहचान कुछ जगहों पर विकृत की जा रही है। “कुछ लोग इसे फूहड़ता का माध्यम बना रहे हैं, जो हमारी असली सांस्कृतिक धरोहर के साथ अन्याय है,” पूनम बिन्द ने कहा। उन्होंने सभी कलाकारों से आग्रह किया कि वे भोजपुरी के शुद्ध, संस्कारी और पारंपरिक रूप को बनाए रखें। भोजपुरी लोकगीतों में हमारी माँ की लोरी की मिठास है, दादी की कहानी की गहराई है और गाँव की मिट्टी की सोंधी खुशबू है — इसे आधुनिकता की भीड़ में खोने नहीं देना चाहिए,” उन्होंने कहा। पूनम बिन्द ने यह भी बताया कि वे जल्द ही एक लोकसंगीत प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने जा रही हैं, जहाँ युवा पीढ़ी को पारंपरिक गीत, स्वर और तान सिखाई जाएगी। अगर हर गाँव में एक बच्चा लोकगीत सीखे, तो हमारी संस्कृति हमेशा जीवित रहेगी,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया के ज़रिए भोजपुरी गीतों को नई पहचान दी जा सकती है लेकिन उसमें मर्यादा और सच्चाई बनी रहनी चाहिए। भोजपुरी भाषा को गर्व से बोलिए, गाइए और साझा कीजिए। यह हमारी पहचान है इसे छिपाने की नहीं, सजाने की ज़रूरत है उन्होंने कहा।
पूनम बिन्द ने निषाद समाज की महिलाओं को समाज परिवर्तन की असली शक्ति बताया। उन्होंने कहा कि “हर शिक्षित बेटी एक दीपक है — जो अपने साथ पूरे समाज को रोशन करती है। उनका मानना है कि निषाद समाज की महिलाएँ अब केवल घर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मंचों, विद्यालयों, व्यवसाय और समाजसेवा में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपने गायन करियर की शुरुआत की थी, तब समाज में महिलाओं के लिए मंच पर आना आसान नहीं था। “बहुत लोगों ने कहा कि लड़की होकर गाना गाना ठीक नहीं, लेकिन मैंने वही किया जो मेरी आत्मा ने कहा,” पूनम बिन्द ने कहा। अब वे चाहती हैं कि समाज की हर बेटी अपनी प्रतिभा को पहचानें। “संगीत, शिक्षा, खेल या कोई भी क्षेत्र — जहाँ भी अवसर मिले, निषाद बेटियों को आगे बढ़ना चाहिए उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी समाज का उत्थान तभी संभव है, जब वहाँ की महिलाएँ आत्मनिर्भर, शिक्षित और सशक्त हों।
पूनम बिन्द ने कहा कि उन्हें गर्व है कि अब निषाद समाज की कई महिलाएँ सामाजिक संगठनों, पंचायतों और शिक्षा संस्थानों में नेतृत्व की भूमिका निभा रही हैं। हमारे समाज की महिलाएँ अब निर्णय ले रही हैं, आवाज़ उठा रही हैं, और अपने हक के लिए डटकर खड़ी हैं — यही असली दीपावली की रोशनी है उन्होंने कहा। उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं को अपनी पहचान के लिए किसी की अनुमति की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की जरूरत है। जब एक महिला अपने सपने पूरे करती है, तो वह केवल अपनी नहीं, पूरे परिवार और समाज की जीत होती है,” पूनम बिन्द ने कहा। उन्होंने समाज के पुरुषों से भी अपील की कि वे बेटियों को बराबरी का अवसर दें। “जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है उन्होंने कहा। पूनम बिन्द का यह संदेश समाज में तेजी से फैल रहा है। कई युवा महिलाएँ उनके गीतों और शब्दों से प्रेरित होकर आत्मनिर्भरता की राह पर चल रही हैं। एक शिक्षित महिला पाँच पीढ़ियों को उजाला दे सकती है,” पूनम बिन्द ने कहा और यही दीपावली का असली अर्थ है।
रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)

