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प्रधानमंत्री मोदी ने दी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र

संवादाताः कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN) | प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की लीला, उनके उपदेश और उनका जीवन हम सभी को धर्म, सत्य और कर्तव्यपथ पर चलने की प्रेरणा देता है। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट कर लिखा — “सभी देशवासियों को जन्माष्टमी की असीम शुभकामनाएं। जय श्रीकृष्ण प्रधानमंत्री के इस संदेश ने देशभर में जन्माष्टमी की खुशियों को और बढ़ा दिया। देश के कोने-कोने से लोग सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के संदेश को साझा कर रहे हैं और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं। जन्माष्टमी का पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास और भक्ति-भाव के साथ मनाया जा रहा है। मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई गई हैं और घर-घर में भगवान श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का स्मरण किया जा रहा है। दिल्ली, मथुरा, वृंदावन, द्वारका और जगन्नाथपुरी जैसे धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। मथुरा और वृंदावन में तो जन्माष्टमी का उत्सव विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंच रहे हैं। जगह-जगह भजन-कीर्तन, रास-लीला और मटकी-फोड़ प्रतियोगिताओं का आयोजन हो रहा है। प्रधानमंत्री का संदेश इन आयोजनों में श्रद्धालुओं के लिए  ऊर्जा का स्रोत बन रहा है।

 

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रतीक है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि लोकजीवन में आनंद और उल्लास का भी संदेश देता है। प्रधानमंत्री मोदी समय-समय पर इस बात पर जोर देते रहे हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का जीवन हमें कर्मयोग का आदर्श सिखाता है। इस अवसर पर उनका संदेश एक बार फिर लोगों को प्रेरित कर रहा है कि वे जीवन में सकारात्मकता, ऊर्जा और आत्मविश्वास बनाए रखें। धार्मिक महत्व और पौराणिक प्रसंग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने असुरों के संहार और धर्म की रक्षा के लिए कृष्ण अवतार लिया। उनके जन्म की कथा में कंस का अत्याचार, वसुदेव-देवकी की पीड़ा और गोकुल-वृंदावन की लीलाएं सम्मिलित हैं। यही कारण है कि जन्माष्टमी केवल एक पर्व नहीं बल्कि ‘धर्म की विजय’ और ‘अन्याय पर न्याय की स्थापना’ का प्रतीक है।

प्रधानमंत्री मोदी 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समय-समय पर भारतीय त्योहारों और परंपराओं को बढ़ावा देते रहे हैं। चाहे दीपावली हो, होली हो या जन्माष्टमी — वे हर अवसर पर देशवासियों को बधाई देते हैं और भारतीय संस्कृति के महत्व को रेखांकित करते हैं। उनका यह संदेश खासकर युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़ने और धर्म-आधारित नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने की प्रेरणा देता है।

देशभर में उत्सव का माहौल

उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन हो रहे हैं। मथुरा और वृंदावन की गलियां राधा-कृष्ण के भजनों से गूंज रही हैं। गुजरात में द्वारका धाम में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा हुआ है। महाराष्ट्र में मटकी-फोड़ प्रतियोगिताएं युवाओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। दक्षिण भारत के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और भक्ति संध्या का आयोजन किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जन्माष्टमी

केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय समुदाय भी जन्माष्टमी को बड़े हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फिजी जैसे देशों में ISKCON मंदिरों में विशेष कार्यक्रम हो रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी का संदेश वहां भी भारतीय प्रवासी समुदाय को गर्व और आत्मीयता का अनुभव करा रहा है।

1. भगवान कृष्ण का जन्म – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के भारतीयों के लिए आस्था, आनंद और उल्लास का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। उस समय मथुरा में कंस का अत्याचार चरम पर था और धर्म-प्रेमी जनता भय और संकट में जीवन व्यतीत कर रही थी। तभी वसुदेव और देवकी की संतान के रूप में श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। पौराणिक मान्यता है कि जब भी धरती पर अधर्म और अत्याचार बढ़ता है, तब भगवान विष्णु स्वयं अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं। इसी परंपरा के अंतर्गत श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, जिन्होंने बाल्यकाल से ही असुरों का नाश करके धर्म और सत्य की रक्षा की। यही कारण है कि जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं बल्कि “धर्म की विजय और अधर्म के अंत” का प्रतीक है।

2. कृष्ण के नाम और स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण को अनेक नामों और स्वरूपों से पूजा जाता है। वे ‘योगेश्वर’ हैं क्योंकि उन्होंने गीता में योग और कर्म का महत्व समझाया। वे ‘मुरलीधर’ हैं क्योंकि उनकी बांसुरी की मधुर ध्वनि से गोपियां और समस्त गोकुल मंत्रमुग्ध हो जाता था। वे ‘माखनचोर’ हैं क्योंकि बाल्यकाल में उनका नटखटपन और माखन चोरी करने की लीलाएं सबको आकर्षित करती थीं। इन नामों और स्वरूपों से ही कृष्ण का बहुआयामी व्यक्तित्व सामने आता है – वे एक ओर योगी और दार्शनिक हैं तो दूसरी ओर रास-लीला के माधुर्य में डूबे हुए प्रेममूर्ति भी। जन्माष्टमी का पर्व कृष्ण के इन्हीं विभिन्न रूपों का उत्सव है।

3. गीता का उपदेश – जीवन का मार्गदर्शन महाभारत के युद्धक्षेत्र में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश आज भी जीवन का सबसे बड़ा मार्गदर्शन माना जाता है। गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन का सार्वकालिक दर्शन है। इसमें भक्ति, ज्ञान और कर्म—तीनों मार्गों की महत्ता बताई गई है। गीता का यह श्लोक— “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”— जीवन में कर्म करने की प्रेरणा देता है और फल की चिंता से दूर रहने की सीख देता है। यही शिक्षा आज भी हर युग और हर समाज के लिए प्रासंगिक है। जन्माष्टमी के अवसर पर गीता के उपदेशों को दोहराया जाता है और लोग इसे आत्मसात करने का संकल्प लेते हैं।

4. मथुरा, वृंदावन और द्वारका का महत्व भगवान श्रीकृष्ण का जीवन तीन प्रमुख स्थलों से जुड़ा हुआ है – मथुरा, वृंदावन और द्वारका। मथुरा : कृष्ण का जन्मस्थान। यहां की गलियां आज भी श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं की गवाही देती हैं। जन्माष्टमी पर मथुरा सज-धज जाती है और लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।वृंदावन यहां रास-लीला और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। वृंदावन की राधा-कृष्ण की झांकियां और भजन-कीर्तन जन्माष्टमी का सबसे बड़ा आकर्षण होती हैं। द्वारका  जीवन के उत्तरार्ध में कृष्ण ने यहां राज किया। गुजरात स्थित द्वारकाधीश मंदिर जन्माष्टमी पर अद्भुत आस्था का केंद्र बन जाता है। इन तीनों स्थलों पर जन्माष्टमी का उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारतीय परंपरा की धरोहर को जीवित रखता है।

5. उपवास, भजन-कीर्तन और रास-लीला का महत्व जन्माष्टमी के दिन भक्त व्रत-उपवास रखते हैं और आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं। मंदिरों और घरों में झूले सजाए जाते हैं, जिनमें ललित शृंगार से सुसज्जित बालकृष्ण की मूर्तियों को रखा जाता है भजन-कीर्तन और रास-लीला इस पर्व की आत्मा माने जाते हैं। पूरे रात मंदिरों में भक्ति संगीत गूंजता है, भक्तजन झूमकर नाचते-गाते हैं। रास-लीला के मंचन से कृष्ण की बाल और यौवन लीलाओं का स्मरण किया जाता है।

 

Source : PIB | रिपोर्ट : कोटो न्यूज़ नेटवर्क (KNN)

 

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