दिनांक: 10.07.2025 | Koto News | KotoTrust | PM Modi |
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दीं। अपने आधिकारिक सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर उन्होंने कहा, “सभी देशवासियों को गुरु पूर्णिमा की ढेरों शुभकामनाएं। गुरु पूर्णिमा के विशेष पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।”
प्रधानमंत्री की यह शुभकामना संदेश न केवल आध्यात्मिक भावनाओं को बल देने वाली रही, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतवर्ष में गुरु परंपरा आज भी कितनी प्रासंगिक और पूजनीय है। उन्होंने अपने संदेश के माध्यम से सनातन ज्ञान परंपरा, शास्त्र, वेद और आचार्य परंपरा को सम्मान देने की परंपरा को पुनः जाग्रत किया।
गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह दिन महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने वेदों का संपादन कर उन्हें चार भागों में विभाजित किया और महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना की। इसी कारण उन्हें ‘आदि गुरु’ की उपाधि दी गई है। इस दिन शिष्य अपने-अपने गुरुओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनसे जीवनोपयोगी ज्ञान की प्राप्ति का आशीर्वाद मांगते हैं।
प्रधानमंत्री का गुरु परंपरा पर विशेष आग्रह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेक अवसरों पर भारतीय गुरु परंपरा और प्राचीन ज्ञान प्रणाली की प्रशंसा कर चुके हैं। उन्होंने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रमों में भी कई बार गुरुओं की भूमिका को राष्ट्र निर्माण, आत्मनिर्माण और सामाजिक जागरूकता में अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है। उनका मानना है कि गुरु केवल शिक्षा देने वाला ही नहीं, बल्कि जीवन दर्शन, मूल्यों और कर्तव्यों की राह दिखाने वाला पथप्रदर्शक होता है।
गुरु पूर्णिमा पर उनके शुभकामनाओं ने यह संदेश दिया कि आध्यात्मिक उत्थान, नैतिक जीवन और समाज सेवा की प्रेरणा गुरुओं से ही प्राप्त होती है।
देशभर में मनी गुरु पूर्णिमा की धूम
देश के विभिन्न राज्यों में आज गुरु पूर्णिमा पर्व पर श्रद्धा, भक्ति और परंपरा की अद्वितीय छवि देखने को मिली। काशी, उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज, अयोध्या और ऋषिकेश जैसे तीर्थस्थलों पर श्रद्धालुओं ने ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर गुरुओं की पूजा की। अनेक शैक्षणिक और आध्यात्मिक संस्थानों में विशेष कार्यक्रम, प्रवचन और गुरुवंदना समारोह आयोजित हुए।
बौद्ध परंपरा में यह दिन भगवान बुद्ध द्वारा अपना पहला उपदेश देने के स्मरण में ‘धम्मचक्क पवत्तन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। जैन और योग परंपरा में भी इसे आत्मज्ञान और साधना की विशेष तिथि माना जाता है।
युवाओं को गुरुओं से जुड़ने का संदेश
गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि वह मूल्य है जो व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाता है। प्रधानमंत्री मोदी की ओर से यह संदेश विशेष रूप से युवाओं को प्रेरित करता है कि वे अपने जीवन में ऐसे मार्गदर्शक चुनें जो उन्हें आत्मविकास और राष्ट्र सेवा के मार्ग पर आगे बढ़ा सकें।
डिजिटल युग में जब जानकारी तो बहुत है, लेकिन ज्ञान और विवेक का मार्ग कठिन हो गया है, ऐसे में एक योग्य गुरु का मार्गदर्शन ही व्यक्ति को सही दिशा दे सकता है।
गुरु पूर्णिमा – सनातन ज्ञान परंपरा का उत्सव
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा का एक ऐसा महान पर्व है, जो न केवल अध्यात्म और ज्ञान का प्रतीक है, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों, संस्कारों और आत्मिक उत्थान की भावना को पुष्ट करता है। यह दिन उन सभी गुरुजनों को श्रद्धा के साथ स्मरण करने और उनके योगदान को सम्मान देने का अवसर है जिन्होंने हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य किया।
गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महर्षि वेदव्यास की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का संकलन, महाभारत की रचना तथा पुराणों की रचना की। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
संपूर्ण भारतवर्ष में यह दिन विद्यार्थियों, साधकों और आध्यात्मिक अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपने-अपने गुरुओं के चरणों में श्रद्धा, सेवा और समर्पण व्यक्त करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का पर्व वैदिक सनातन परंपरा में अत्यंत आदर और श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन को विशेष रूप से महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने मानव सभ्यता को ज्ञान, साहित्य और दर्शन का अमूल्य भंडार प्रदान किया।
महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था और उन्होंने ही वेदों का वर्गीकरण—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद—के रूप में किया, जिससे इनका अध्ययन और शिक्षण अधिक व्यवस्थित हुआ। इसके अतिरिक्त उन्होंने महाभारत, 18 पुराणों, और ब्रह्मसूत्र जैसे ग्रंथों की भी रचना की। इस अद्वितीय ज्ञानसंपदा के कारण ही उन्हें ‘व्यास’ कहा गया, जिसका अर्थ है – विश्लेषण करने वाला, विस्तार देने वाला।
सनातन परंपरा में उन्हें ‘आदि गुरु’ की उपाधि दी गई, क्योंकि उन्होंने सबसे पहले गुरु-शिष्य परंपरा को व्यावहारिक और व्यवस्थित रूप दिया। उनके माध्यम से ज्ञान एक विशिष्ट अनुशासन बनकर समाज तक पहुँचा और गुरु-शिष्य संवाद को आध्यात्मिक, दार्शनिक और सामाजिक आधार मिला।
गुरु पूर्णिमा का यह दिन इसलिए मनाया जाता है कि हम महर्षि वेदव्यास के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें, जिनकी वजह से आज वेद, उपनिषद, स्मृति, इतिहास, पुराण और गीता जैसे दिव्य ग्रंथ हमारे जीवन का हिस्सा हैं।
बौद्ध धर्म में भी गुरु पूर्णिमा को अत्यंत पावन दिन माना गया है। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात पहली बार इसी दिन सारनाथ में अपने पाँच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था।
यह उपदेश ‘धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त’ के नाम से प्रसिद्ध है, जिसका अर्थ है – “धर्मचक्र का प्रवर्तन” या “धर्म के चक्र को गति देना”। इस ऐतिहासिक क्षण को बौद्ध धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से संघ (संघ यानी शिष्यों का समुदाय) की औपचारिक स्थापना हुई और बुद्ध का धर्म उपदेश विश्व में प्रचारित होना प्रारंभ हुआ।
इस उपदेश में भगवान बुद्ध ने मध्यम मार्ग (Middle Path), चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) और आष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path) जैसी शिक्षाओं की व्याख्या की, जो आगे चलकर बौद्ध दर्शन का मूल आधार बने। यही कारण है कि बौद्ध अनुयायी इस दिन को बुद्ध की ज्ञानगंगा के प्रथम प्रवाह के रूप में स्मरण करते हैं।
यह विशेषता भारतीय संस्कृति की ही है कि एक ही दिन को दो महान परंपराओं ने ज्ञान, साधना और गुरु-वंदना के उत्सव के रूप में अपनाया है। जहां वेदव्यास ने वेदों और दर्शन को सुव्यवस्थित कर सनातन ज्ञान परंपरा की नींव रखी, वहीं बुद्ध ने करुणा और ध्यान पर आधारित नई आध्यात्मिक दृष्टि समाज को दी।
गुरु पूर्णिमा इस बात का प्रतीक है कि गुरु केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन को जीने की कला सिखाने वाला वह प्रकाश है, जो युगों-युगों तक मानवता को दिशा देता है।
भारतीय चिंतन परंपरा में गुरु का स्थान सर्वोच्च माना गया है। वे केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि जीवनदृष्टा, मार्गदर्शक और आध्यात्मिक शक्ति के संवाहक होते हैं।
“गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णुः गुरु देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
इस मंत्र के माध्यम से गुरु को साक्षात परमब्रह्म के समान माना गया है।
गुरु वह होते हैं जो शिष्य के भीतर छिपी ऊर्जा और संभावनाओं को पहचानकर उसे उसकी श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करते हैं। उनका सान्निध्य केवल शिक्षा नहीं, बल्कि आत्मबोध, विवेक और संयम की साधना है।
आज जब हम डिजिटल युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां सूचनाओं की भरमार है परन्तु जीवनमूल्य और नैतिकता संकट में हैं, ऐसे समय में गुरुओं की भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
गुरु आज न केवल ज्ञान के स्रोत हैं, बल्कि वे भावनात्मक, सांस्कृतिक और नैतिक संबल देने वाले स्तंभ हैं। वे आज भी बच्चों, युवाओं और समाज को संस्कार, अनुशासन और आत्मिक चेतना की ओर ले जाने का कार्य कर रहे हैं।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा:
“सभी देशवासियों को गुरु पूर्णिमा की ढेरों शुभकामनाएं। गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करने और उनसे प्रेरणा लेने का यह पवित्र अवसर है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरु हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। आज के युग में हमें अपने शिक्षकों, मार्गदर्शकों और आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करना चाहिए जिन्होंने जीवन के हर मोड़ पर हमारा संबल बना।
Source : PIB