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निमिषा प्रिया की फांसी स्थगित भारत सरकार की कोशिशें रंग लाईं

निमिषा प्रिया

दिनांक : 17.07.2025 | Koto News | KotoTrust |

भारत सरकार के निरंतर प्रयासों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते समर्थन के फलस्वरूप केरल की रहने वाली भारतीय नागरिका निमिषा प्रिया की यमन में प्रस्तावित फांसी को स्थगित कर दिया गया है। यमन के न्यायिक अधिकारियों ने 16 जुलाई को होने वाली फांसी की सजा को अंतिम समय पर टाल दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इसकी पुष्टि की और कहा कि भारत सरकार इस मामले पर बेहद संवेदनशील और सक्रिय है।

विदेश मंत्रालय की भूमिका

प्रवक्ता जायसवाल ने गुरुवार को साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में जानकारी दी कि निमिषा प्रिया को पर्याप्त कानूनी सहायता प्रदान की गई है। उनके परिवार की सहायता के लिए वकील भी नियुक्त किया गया है। उन्होंने बताया कि भारतीय दूतावास लगातार यमनी अधिकारियों और निमिषा के परिजनों के साथ संपर्क में है और कांसुलर पहुंच को सुनिश्चित किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ मित्र देशों से भी यमन सरकार से संवाद कराने में सहयोग मांगा गया है।

हत्या का मामला और पृष्ठभूमि

निमिषा प्रिया 2008 में नर्स के रूप में यमन गई थीं। कुछ वर्षों बाद 2015 में उन्होंने एक स्थानीय क्लिनिक खोला। यमन में व्यवसाय संचालन के लिए किसी स्थानीय नागरिक की साझेदारी आवश्यक होती है, इसी प्रक्रिया में उन्होंने यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी के साथ साझेदारी की। लेकिन संबंधों में खटास आने लगी। निमिषा ने आरोप लगाया कि महदी ने उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया, उनके साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया और उन्हें अपनी पत्नी बताने लगा।

घटना और मुकदमा

जानकारी के अनुसार, जुलाई 2017 में अपने पासपोर्ट को वापस पाने के लिए निमिषा ने महदी को बेहोशी का इंजेक्शन देने का प्रयास किया लेकिन ओवरडोज़ के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और 2018 में दोषी ठहराया गया। 2020 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और 2023 में यमन की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने इसे बरकरार रखा। भारत सरकार और निमिषा के परिजन लगातार इस सजा को माफ करवाने अथवा टालने के लिए प्रयासरत रहे हैं।

जीवन और संघर्ष

निमिषा प्रिया का जीवन एक मेहनती भारतीय महिला का प्रतीक रहा है, जो बेहतर भविष्य की तलाश में विदेश गईं थीं। शुरुआत में नर्स के रूप में कार्य कर उन्होंने अपने कार्य क्षेत्र में अच्छी पहचान बनाई थी। लेकिन यमन की कठोर परिस्थितियों, सांस्कृतिक भिन्नताओं और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं में वे फंसती चली गईं। उनकी मां सोफी देवी और बेटी इनाया की ओर से भारत सरकार से लगातार अपीलें की जाती रहीं।

क़ानूनी विकल्प और क़िसास प्रणाली

यमन की इस्लामिक न्याय प्रणाली के अनुसार ‘क़िसास’ सिद्धांत के तहत दोषी को मृतक के परिवार से क्षमा प्राप्त करने का प्रावधान है, जिसमें वित्तीय मुआवजे (ब्लड मनी) के जरिए सजा में राहत मिल सकती है। भारत सरकार ने इस दिशा में भी प्रयास तेज कर दिए हैं। विदेश मंत्रालय और दूतावास की टीम यमनी पीड़ित पक्ष के साथ संभावित समझौते के लिए बातचीत की प्रक्रिया में है।

भारत सरकार के मित्र देशों से संपर्क

रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कुछ मित्र देशों से भी सहयोग मांगा है जो यमन पर प्रभाव रखते हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में इन देशों के माध्यम से यमन सरकार पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाने का प्रभाव पड़ेगा।

भारत में जन समर्थन और सामाजिक पहल

भारत में विशेषकर केरल राज्य में निमिषा प्रिया के समर्थन में कई नागरिक समाज संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अभियान चलाया है। एक ऑनलाइन याचिका Change.org पर हजारों लोगों ने उनके समर्थन में हस्ताक्षर किए हैं। राज्य सरकार ने भी केंद्र को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी।

आगे की राह

फिलहाल निमिषा प्रिया की फांसी स्थगित हो गई है, लेकिन अंतिम निर्णय अब भी यमन के न्यायिक व प्रशासनिक तंत्र पर निर्भर करता है। भारत सरकार की कोशिश है कि आपसी समझौते के जरिये इस संकट का मानवीय समाधान निकले। विदेश मंत्रालय ने विश्वास दिलाया है कि वह हर जरूरी कदम उठाएगा।


केरल की रहने वाली निमिषा प्रिया ने वर्ष 2008 में बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में भारत से यमन की ओर रुख किया। उन्होंने ताशरीह शहर के अस्पतालों में एक प्रशिक्षित नर्स के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया। शुरुआती वर्षों में उन्होंने सहायक नर्स के रूप में कार्य करते हुए यमन की स्थानीय भाषा, संस्कृति और सामाजिक संरचना में खुद को ढाल लिया और अपनी मेहनत से एक सम्मानजनक पहचान बनाई।


लगभग सात वर्षों की सेवा और अनुभव के बाद, उन्होंने यमन में एक निजी चिकित्सा क्लिनिक खोलने का निर्णय लिया। यमन के नियमों के अनुसार, किसी विदेशी को व्यवसाय खोलने के लिए एक स्थानीय नागरिक की साझेदारी अनिवार्य होती है। इसी व्यवस्था के तहत उन्होंने यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी को अपने क्लिनिक में साझेदार बनाया।


कुछ वर्षों बाद, निमिषा और महदी के बीच संबंध तनावपूर्ण होने लगे। निमिषा ने यह आरोप लगाया कि महदी उनके साथ दुर्व्यवहार करता था और उनके पासपोर्ट को जब्त कर उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था। 2017 में, उन्होंने अपने पासपोर्ट को वापस लेने के प्रयास में महदी को बेहोश करने हेतु उसे एक इंजेक्शन दिया, लेकिन ओवरडोज़ के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके पश्चात यमन पुलिस ने निमिषा को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और उनके विरुद्ध मामला दर्ज किया गया।


मामला यमन की अदालत में गया, जहाँ 2018 में उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया। अदालत ने यह माना कि भले ही हत्या जानबूझकर न की गई हो, लेकिन यह एक सुनियोजित और असंवैधानिक कदम था। इस आधार पर उन्हें आपराधिक हत्या के आरोप में दोषी घोषित किया गया।


मुकदमे के आधार पर, यमन की अदालत ने वर्ष 2020 में निमिषा प्रिया को मौत की सजा सुनाई। यह सजा यमन के “क़िसास” कानून के अंतर्गत थी, जिसके अंतर्गत मृतक के परिवार को यह अधिकार होता है कि वह क्षमा करें या प्रतिशोध लें। निमिषा ने इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी, लेकिन यह एक लंबी और कठिन कानूनी प्रक्रिया साबित हुई।


वर्ष 2023 में यमन की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इससे मामला और गंभीर हो गया। भारत सरकार, विशेष रूप से विदेश मंत्रालय, और कई मानवाधिकार संगठनों ने इस पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया। भारत में भी यह मामला राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना।


16 जुलाई 2025 को तय फांसी की तिथि से ठीक पहले भारत सरकार के हस्तक्षेप और लगातार कूटनीतिक प्रयासों के चलते यमन प्रशासन ने फांसी को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया। विदेश मंत्रालय की ओर से यमनी अधिकारियों और मृतक के परिवार से वार्ता शुरू की गई। कुछ मित्र राष्ट्रों और मानवाधिकार समूहों ने भी भारत का समर्थन किया। इस घटनाक्रम ने पूरे देश को थोड़ी राहत दी और अब संभावनाएं जताई जा रही हैं कि “दिया” (ब्लड मनी) या समझौते के माध्यम से इस सजा से मुक्ति दिलाई जा सकती है।

Source :DD News

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