दिनांक : 18.07.2025 | Koto News | KotoTrust |
भारत ने 16 जुलाई 2025 को एक अत्यंत अहम रक्षा सफलता हासिल की, जब लद्दाख क्षेत्र में 4,500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्वदेशी रूप से विकसित वायु रक्षा प्रणाली आकाश प्राइम ने दो हवाई उच्च गति लक्ष्यों को सटीकता से नष्ट कर दिया। इस परीक्षण ने भारत की वायु रक्षा क्षमताओं को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा दिया है और अत्यधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में विश्वसनीय सुरक्षा तंत्र की पुष्टि की है। यह परीक्षण ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अर्जित अनुभवों के बाद भारत की रक्षा तकनीक की परिपक्वता का प्रमाण है।
आकाश प्राइम प्रणाली भारत की मिसाइल रक्षा क्षमताओं का अत्याधुनिक संस्करण है, जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने सेना की वायु रक्षा शाखा के सहयोग से विकसित किया है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर, उन्नत गाइडेंस सिस्टम, और हाई एल्टीट्यूड ऑपरेशनल फीचर जैसे नवीनतम तकनीकी उपांग शामिल हैं। यह प्रणाली अत्यधिक ऊंचाई वाले, सीमांत और दुर्गम इलाकों में प्रभावी संचालन के लिए अनुकूलित की गई है।
इन परीक्षणों को पहले उत्पादन मॉडल फायरिंग ट्रायल के तहत सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। इस अवसर पर सेना वायु रक्षा, डीआरडीओ, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और निजी रक्षा उद्योगों के विशेषज्ञ उपस्थित थे। परीक्षणों ने इस बात को प्रमाणित किया कि आकाश प्राइम भारतीय रक्षा बलों के लिए एक मजबूत, स्वदेशी और तत्काल तैनाती योग्य विकल्प है। इससे उच्च ऊंचाई वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में त्वरित प्रतिक्रिया और आकाशीय खतरों से सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इस सफलता के लिए सेना, डीआरडीओ, सार्वजनिक उपक्रमों और निजी रक्षा उद्योगों को बधाई देते हुए कहा, “यह उपलब्धि भारत की वायु रक्षा क्षमताओं के साथ-साथ स्वदेशी तकनीक की परिपक्वता को दर्शाती है। यह हमारी सीमाओं की रक्षा और सैनिकों की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर जब बात लद्दाख जैसी संवेदनशील और ऊँचाई पर स्थित सीमाओं की हो।”
समीर वी. कामत ने कहा कि यह परीक्षण अत्यधिक ऊंचाई पर प्रभावी वायु रक्षा प्रणाली की आवश्यकता की पूर्ति करता है। उन्होंने आकाश प्राइम की क्षमताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह प्रणाली स्पष्ट पहचान, तेज़ ट्रैकिंग, और स्वचालित लक्ष्यान्वेषण के माध्यम से शत्रु के किसी भी हवाई हमले को विफल करने में सक्षम है।
इस प्रणाली की विशेषता यह है कि यह गतिशील इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर वातावरण में भी प्रभावी है। इसमें रेडार सिस्टम से मिले रियल-टाइम डेटा के आधार पर तत्काल निर्णय लेने और लक्ष्य को नष्ट करने की क्षमता है। भारत की सीमा सुरक्षा, विशेषकर लद्दाख, अरुणाचल और सियाचिन जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्रों में, यह प्रणाली एक निर्णायक भूमिका निभाने जा रही है।
स्वदेशी विकास की बात करें तो यह परीक्षण ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के रक्षा क्षेत्र में बड़े कदम की तरह देखा जा रहा है। इस परियोजना में 90% से अधिक घटक और तकनीकी समाधान भारत में ही विकसित किए गए हैं। आकाश प्राइम का यह संस्करण पूर्ववर्ती संस्करणों की तुलना में अधिक तेज, सटीक और वातावरण के अनुकूल बनाया गया है।
इस परीक्षण से यह स्पष्ट है कि भारत अब न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा में आत्मनिर्भर हो रहा है, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए भी तैयार है। कई अफ्रीकी और एशियाई देशों ने इस प्रणाली में रुचि दिखाई है, जिससे आने वाले समय में भारत की रक्षा निर्यात नीति को भी बल मिलेगा।
उन्नत संस्करण – परिष्कृत स्वदेशी प्रणाली:
आकाश प्राइम भारत की पहली स्वदेशी सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली “आकाश” का अत्याधुनिक और तकनीकी रूप से परिष्कृत संस्करण है। यह नई प्रणाली अपने पूर्ववर्ती संस्करण की तुलना में अधिक संवेदनशील, सटीक और मल्टी-टारगेट क्षमताओं से युक्त है, जिससे यह आज के युद्धक्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करती है।
संचालन क्षमता – ऊँचाई पर अडिग रक्षा कवच:
आकाश प्राइम की सबसे बड़ी उपलब्धि इसकी संचालन क्षमता है। यह प्रणाली अत्यधिक ऊँचाई वाले इलाकों में — विशेषकर लद्दाख, सियाचिन और अरुणाचल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में — 4,500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर भी सटीकता से कार्य कर सकती है। इससे भारतीय सशस्त्र बलों को दुर्गम क्षेत्रों में भी हवाई खतरे से निपटने की प्रभावशाली क्षमता मिलती है।
तकनीकी तंत्र – रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर और मल्टी-टारगेट ट्रैकिंग:
इस प्रणाली में रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर का उपयोग किया गया है, जो लक्ष्य के संकेतों को पकड़ने और उस पर लॉक करने में मदद करता है। साथ ही, मल्टी-टारगेट ट्रैकिंग तकनीक इसे एक साथ कई लक्ष्यों की पहचान और निष्पादन की क्षमता प्रदान करती है, जिससे यह इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर या जटिल हमलों में भी भरोसेमंद साबित होती है।
स्वदेशी निर्माण – आत्मनिर्भर भारत की मिसाल:
आकाश प्राइम में उपयोग किए गए 90% से अधिक पुर्जे भारत में ही डिज़ाइन, डेवलप और निर्मित किए गए हैं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “आत्मनिर्भर भारत” और “मेक इन इंडिया” नीति का सशक्त प्रमाण है। इससे न केवल भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता बढ़ती है, बल्कि रक्षा निर्यात में भी नए अवसर पैदा होते हैं।
गतिशीलता – त्वरित तैनाती की क्षमता:
इस प्रणाली को विशेष मोबाइल प्लेटफॉर्म्स पर तैनात किया जा सकता है, जिससे इसे सीमावर्ती क्षेत्रों में त्वरित रूप से पहुँचाया और तैनात किया जा सकता है। इसकी यह गतिशीलता युद्ध स्थितियों में वास्तविक समय में निर्णय और संचालन को आसान बनाती है।
लक्ष्यों की पहचान – AI आधारित विश्लेषण प्रणाली:
आकाश प्राइम में उन्नत ऑटोमेटेड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रणाली का उपयोग किया गया है, जो लक्ष्य का त्वरित विश्लेषण करती है और सटीक इंटरसेप्शन सुनिश्चित करती है। यह इसे आधुनिक हाइब्रिड और ड्रोन हमलों के विरुद्ध भी अत्यधिक प्रभावी बनाती है।
मिसाइल रेंज – प्रभावी दूरी:
इस प्रणाली की मारक सीमा लगभग 25 से 30 किलोमीटर तक है, जो इसे छोटे और मध्यम दूरी के लक्ष्यों को कुशलता से नष्ट करने में सक्षम बनाती है। यह सीमा सीमावर्ती क्षेत्रों में हवाई हमलों के समय त्वरित प्रतिक्रिया में विशेष सहायक होती है।
सहयोगी एजेंसियाँ – सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का समन्वय:
आकाश प्राइम के निर्माण और परीक्षण में DRDO (Defence Research and Development Organisation), भारतीय सेना की वायु रक्षा शाखा, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) तथा कई निजी रक्षा उत्पादक कंपनियों ने सहभागिता की है। यह परियोजना सार्वजनिक-निजी भागीदारी का एक आदर्श उदाहरण है।
भारत की वायु रक्षा में आकाश प्रणाली की भूमिका
2007 – पहली परिचालन सफलता:
भारत की रक्षा प्रणाली में आकाश मिसाइल का पहला परिचालन परीक्षण वर्ष 2007 में किया गया, जिसने यह साबित किया कि भारत सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर हो चुका है। यह परीक्षण DRDO की वर्षों की शोध और विकास प्रक्रिया का सफल परिणाम था।
Source : PIB